कई सालों बद कल अकेले कोई फिल्म देखने गया था .फेसबुक पर कुछ लोगोने ने तारीफ़
करी तो “मसान “ देखने चला गया ..जैसा कि उम्मीद थी सुबह के शो में ज्यादा दर्शक नहीं थे पीछे
से चौथी पंक्ति में बैठा था ,फिल्म शुरू होने के १० मिनट तक तो हॉल में शांति का
महाल था लेकिन १० मिनट के बाद मेरे पीछे की पंक्ति में बैठे ३-४ लड़कों ने “मोदी “ के बारे में जोर जोर से बात करनी शुरू कर दी ..कोई बोला ये
मोदी बिहार में कुछ नहीं कर पायेगा तो कोई बोलाइसकी ताबूत में आख़िरी कील है ये
चुनाव .,नीतिशवा इन्हें मजा चखा देगा ...कुलमिलाकर उनके इस वार्तालाप से मै बहुत
परेशान हो रहा था तो मैंने उनसे कहा कि वो लोग मोदी के बारें में बाहर बात कर लें
..खैर मेरे २-३ बार कहने पर भी वो लोग नहीं माने तो मैं अपनी सीट चेंज करके शांति से फिल्म देखने लगा ....फिल्म
के इंटरवल में उन ३-४ लडको से फिर बातचीत हुई तो पता चला कि वो सब जे एन यू से थे और वामपंथी थे .मुझे पहली बार प्रत्यक्ष
तौर पर अहसास हुआ कि मोदी ,वामपंथियों की रग रग में कैसे समाये हुए है, जिन्हें ये लोग सोते
जागते ,नहाते ,धोते ,खाते ,पिक्चर देखते समय भी ये मोदी की चर्चा ,परिचर्चा और
आलोचना में दिल से लगे रहते है ..ये कभी अपनी पार्टी के बारें में नहीं सोचते है न
ही उसके लिए कुछ कहते या करते है ..हनुमान जी की तरह अगर किसी वामपंथी का हृदय चीर
कर देखा जाए तो उसमे सिर्फ मोदी ही
दिखेंगे ...इनकी इसी मानसिक बीमारी से आज इन लोगों का पतन हो गया ..पूरे
देश में कोई नामलेवा भी नहीं बच रहा है इनका ..यार अब तो इन धूर्तों को देखकर
बिलकुल भी गुस्सा नहीं आता बल्कि बहुत ज्यादा दया आती है देखो इन्हें मोदी ने क्या
से क्या बना दिया ...सच में असली भक्त तो यही लोग है जो दिन रात तल्लीनता से मोदी
विरोध में लगे रहते है ..फिल्म का टिकट लेकर भी मोदी
भक्ति ....मान गया इन वामपंथियों को भाई
... खैर फिल्म तो बहुत ही ज्यादा अच्छी थी ,जितनी
तारीफ़ करू उतनी कम ...फिल्म का अहसास तो अभी तक है दिल दिमाग में ...
Wednesday, July 29, 2015
Wednesday, July 1, 2015
अन्त में हम दोनों ही होंगे !!!.
पति-पत्नी के रिश्तों पर एक बहुत ही मानवीय संवेदनशील कविता ,(मूल लेखक पता नही ..)
अन्त में हम दोनों ही होंगे !!!.
" भले ही झगड़े, गुस्सा करें एक दूसरे पर
टूट पड़ें एक दूसरे पर दादागिरि करने के लिये,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
जो कहना है, वह कह लें जो करना है, वह कर लें
एक दुसरे के चश्मे और लकड़ी ढूँढने में,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
मैं रूठूं तो तुम मना लेना, तुम रूठो ताे मै मना लूँगा
एक दुसरे को लाड़ लड़ाने के लिये,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
आँखें जब धुँधला जायेंगी, याददाश्त जब कमजोर होंगी
तब एक दूसरे को एक दूसरे मे ढूँढने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
घुटने जब दुखने लगेंगे, कमर भी झुकना बंद करेगी
तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
घुटने जब दुखने लगेंगे, कमर भी झुकना बंद करेगी
तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे साथ जब छूटने वाला होगा,
बिदाई की घड़ी जब आ जायेगी तब एक दूसरे को माफ करने के लिए, .
अन्त में हम दोनों ही होंगे...."
अन्त में हम दोनों ही होंगे !!!.
" भले ही झगड़े, गुस्सा करें एक दूसरे पर
टूट पड़ें एक दूसरे पर दादागिरि करने के लिये,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
जो कहना है, वह कह लें जो करना है, वह कर लें
एक दुसरे के चश्मे और लकड़ी ढूँढने में,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
मैं रूठूं तो तुम मना लेना, तुम रूठो ताे मै मना लूँगा
एक दुसरे को लाड़ लड़ाने के लिये,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
आँखें जब धुँधला जायेंगी, याददाश्त जब कमजोर होंगी
तब एक दूसरे को एक दूसरे मे ढूँढने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
घुटने जब दुखने लगेंगे, कमर भी झुकना बंद करेगी
तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
घुटने जब दुखने लगेंगे, कमर भी झुकना बंद करेगी
तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे साथ जब छूटने वाला होगा,
बिदाई की घड़ी जब आ जायेगी तब एक दूसरे को माफ करने के लिए, .
अन्त में हम दोनों ही होंगे...."
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