Saturday, December 21, 2013

अलविदा नन्ना ( नाना जी )

शशांक द्विवेदी
नन्ना आप इतना जल्दी ,इस तरह ये दुनियाँ छोड़ कर चले जायेंगे ,यकीन नहीं होता ..आप का जाना से एक युग का अंत हो गया ,उस युग का जिसने निस्वार्थ  भाव से अपने समाज और परिवार की सेवा की .हमेशा फकीरी में जिए और फकीरी में ही मरे ..सोचकर विश्वास ही नहीं होता कि घनघोर जंगल में रहकर आपने अपने परिवार के लिए वो कर दिखाया जो बड़े बड़े शहर में भी रहकर लोग नहीं कर पाए ,शायद नहीं कर पायेंगे .बाँदा जिले की नरैनी तहसील में बहुत छोटे से गाँव या ये कहें की कुछ सौ लोगों का पुरवा “मुर्दीराम पुर में रह कर आपने अपने परिवार के लिए विकासवादी  और आधुनिक सोच की जो नीव रखी वो एक मिसाल है आने वाली पीढियों के लिए . मुर्दीराम पुर,जहाँ जाने के लिए आज से 30-40 साल पहले सिर्फ पैदल या बैलगाड़ी ही एक माध्यम था, आपने शिक्षा की महिमा समझते हुए न सिर्फ अपने बेटों को शिक्षित किया बल्कि उन्हें उस जगह पहुँचाया जिसकी कल्पना आज के जमाने में कोई कर ही नहीं सकता .2 बेटे डाक्टर और एक बेटा इंजीनियर ,वो भी सभी शासकीय सेवा में ,सिर्फ और सिर्फ आपकी मेहनत और त्याग का ही परिणाम था .आपके विजन के बिना ये संभव ही नहीं था ...आपने अपना सुख –दुःख सब कुछ न्योछावर कर दिया अपने बच्चों के लिए .. “मुर्दीराम पुर “ में आपके वीरान घर की हकीकत शायद ही आपके बच्चों की कोठियाँ समझ पायें .नन्ना आपने बचपन से मुझे बहुत प्यार दिया ,प्यार और अपनेपन का सही और वास्तविक अर्थ मैंने सिर्फ अपने ननिहाल में महसूस किया ..आपको और नानी को देखकर लगता ही नहीं है आप इसी गृह के प्राणी है ..आपकी सादगी और अपनापन देख कर मै बचपन से ही अभिभूत रहा हूँ .. “मुर्दीराम पुर “ का घर ,उसकी गलियाँ ,नदी ,बांस के पेड़ और मेरा बचपन ,मेरी यादों की सबसे बड़ी धरोहर है ..बचपन में नरैनी से “मुर्दीराम पुर “ तक बैलगाड़ी की यात्रा अक्सर मेरी यादों में घूमता है ..मेरी गर्मी की छुट्टियाँ जब मैंने ननिहाल में जिंदगी जिया ,मेरी खूब शैतानियाँ जिस पर आप हमेशा हँसें,जिसकी वजह से ही मै मौलिक बन पाया ..शुक्रिया ..आपको और नानी को याद करके अक्सर आँखों में सिर्फ आँसू ही आते है ..नानी जैसी सादगी मैंने आज तक विश्व की किसी महिला में देखा ही नहीं जिन्होंने अपना सामान रखने के लिए आज तक संदूक और अटैची नहीं रखा ,,पैसे कितने है कहाँ है उसका भी कोई पता नहीं जिसने जब कुछ दे दिया रख लिया और जिसने जितना माँग लिया ,अगर है तो उसे पूरा दे दिया ,कोई हिसाब-किताब नहीं .देवियाँ मंदिरों में पूजी जाती है लेकिन वो साक्षात् जीवित देवी है ..इतना निस्वार्थ भाव कभी देखा सुना नहीं ,सिर्फ कल्पनाओं में ही हो सकता है ..मै खुशनसीब हूँ कि इतने अच्छे नाना –नानी का मुझे सानिध्य और आशीर्वाद मिला ..मेरे विकास में आप लोगों का  बहुत बड़ा योगदान है ....बुढापे और अंतिम समय में आपका “मुर्दीराम पुर “ में इस तरह अकेले रहना मुझे बहुत ज्यादा परेशान करता रहा है ..आपके बच्चे ,मेरे मामा लोग जो आज बहुत अच्छी पोजीशन में है ने आपके बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया ,इसका मुझे बहुत दुःख रहा है ... “मुर्दीराम पुर “ में रहकर भी आपकी जिंदादिली देखकर मै हमेशा हतप्रभ ही रहा ..अपने जीते जी आपने कभी किसी से सहायता नहीं माँगी .. लोगों को ,परिवार को दिया ...सिर्फ दिया ..किसी का कोई एहसान नहीं आपके जीवन पर ..आप ने अपनी जिंदगी शून्य और बेबसी से शुरू की लेकिन आपने अपनी जिंदगी में अपने पुरुषार्थ से बहुत धन –संपदा बनाया ..बस दुःख इस बात का है कि इसका आप कभी उपयोग नहीं कर पाए बल्कि जिंदगी भर सिर्फ पुत्र –मोह में फंसे रहें जिन्होंने आपकी जिंदगी को सुंदर बनाने के लिए कुछ भी नहीं किया ..नन्ना आपकी जिंदगी से मैंने सिर्फ एक बात सीखी कि आपके कितने भी बच्चे हो ,कितने भी लड़के हो ,कितने भी काबिल हो ,,आखिर में जिंदगी अकेले ही और अपने दम पर ही बितानी पड़ती है कोई साथ में नहीं आता ..कोई साथ नहीं देता ..2 साल पहले जब आपसे मिला था तब आपके अकेलेपन की बेबसी ने मुझे झकझोर दिया था ..पहली बार महसूस हुआ इतना बड़ा परिवार ,इतनी सम्रद्धि किस काम की ,किसके लिए ?जीवन के सांयकाल में तो जिंदगी अकेले ही बितानी पड़ती है ,इसलिए अभी से इसके लिए तैयार रहो ..कोई संतान काम नहीं आती सिर्फ अपना पुरुषार्थ ,अपनी जिंदादिली ही काम आती है ,हम बेवजह संतान मोह में फसें रहते है ..

नन्ना आपने अपने परिवार के लिए जो किया वो अनुकरणीय है ,इन परिस्थियों में शायद ही कोई ऐसा करके दिखा पाए ..नन्ना आप ये दुनियाँ छोड़ कर चले गये लेकिन आप हमेशा मेरी यादों में रहोगे ...ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे ,आपको मेरी भावभीनी श्रधांजली ....

Friday, December 20, 2013

घर में बेटी होने का सच !!

दयानंद पांडे 
जिस घर में बेटी नहीं, वह घर नहीं है। एक बार पढ़ने में, सुनने में यह सूत्र वाक्य विह्वल कर देता है। पर हकीकत में? और तो सब ठीक है लेकिन ज़रा बेटी की शादी खोज कर एक बार देख लीजिए। सारे सूत्र वाक्य भूल जाएंगे। यह और ऐ्से सारे सूत्र वाक्य ज़मीन पर आ जाएंगे। बहुत कठिन काम है यह। यह संविधान, समाज, परिवार और लोग भी झूठ ही कहते हैं कि स्त्री पुरुष सभी बराबर हैं। सिद्धांत और है, व्यवहार और। कहीं कोई बराबर नहीं है। कहीं कोई बराबरी नहीं। बेटी की शादी खोजने में सारे सच नंगे हो कर सामने आ जाते हैं। दुनिया के किसी भी बाज़ार से खतरनाक और पतनशील है शादी का बाज़ार। सारे के सारे पढ़े-लिखे लोग भी जहालत की मूर्ति बन कर खड़े हो जाते हैं। तन कर। पूरी बेशर्मी से। क्यों के वह बेटे के माता-पिता हैं। और सब कुछ और सारी बराबरी के बावजूद आप भिखारी बन कर बल्कि इस से भी बुरी स्थिति में खड़े हो जाते हैं क्यों कि आप बेटी के पिता हैं। बावजूद इस सब के बेटियां तो हमारी प्राण हैं और रहेंगी ! सर्वदा !


Thursday, December 19, 2013

कितने दूर -कितने पास

  
हम कितने दूर है ,कितने पास है
इसका न तुम्हे एहसास है ,न मुझे एहसास है ,
किसी क्षण में तो हम इतना दूर चले जाते है ,
कि लगता है पास ही न आ पायेंगे
और किसी क्षण में हम इतना पास हो जाते है
कि लगता है कभी दूर ही न जा पायेगें,
प्रति क्षण बदलता रहता है इस नजदीकी और दूरी का एहसास
कभी –कभी कितना दूर होकर भी पास होतें है हम ,
और कभी –कभी कितना पास होकर भी दूर रहतें है हम ,
नजदीकी और दूरी के इस पेंडुलम में हम झूलते ही रहते है
कभी नजदीकी ज्यादा होती है कभी दूरी ज्यादा होती है

 प्यार और नफरत की पूरकता

जिंदगी किताब नहीं होती
जिंदगी “जिंदगी “होती है
तभी तो प्यार में नफरत
और नफरत में प्यार
दोनों का एहसास साथ रहता है
कोई एक हमेशा ही प्रभावी रहता है
तभी तो जिंदगी की दूरी में भी नजदीकी
और नजदीकी में भी दूरी का एहसास साथ रहता है हमेशा
दोनों पूरक है एक दूसरे के
एक के न होने का मतलब दूसरे का होना है
हम कितनी भी दूर हो लें
फिर भी पास आ जातें है
और कितना भी पास हो ले दूर चले जाते है
स्वरचित -शशांक द्विवेदी 

(संपादक ,विज्ञानपीडिया डाट  कॉम)

स्वराज्य और रामराज्य !!!

हम स्वराज्य लायेंगे ,
हम रामराज्य लायेंगे ,
लेकिन जब वो आये थे तो न स्वराज्य दिखा ,न रामराज्य दिखा
तब सिर्फ स्वार्थ राज्य दिखा
“सौगंध राम की खातें है हम मंदिर वहीं बनायेंगें “,
नारा लगता था उस समय
लेकिन जब सत्ता मिली तब न सौगंध याद आयी न मंदिर याद आया
अब चुनाव आने वाले है
अब सौगंध भी याद आ गयी
मंदिर भी याद आ गया ,
अब नारे भी याद आने लगे ,
सारी याददाश्त वापस आ गयी चुनाव में ,
राम मंदिर और राम राज्य याद आ जाते है चुनाव में ,
चुनाव तक “राम “ का नाम ही चलता है ,
मुँह से राम का नाम ही निकलता है
गरीब और अमीर सबको “राम “ की याद दिलाएंगे
गरीब को बताएँगे कि “राम “ बड़ा है रोटी से
“राम “ को ही लायेंगे
तब सिर्फ “राम “ ही पहनना और “राम “ ही खाना
सब कुछ “राम मय“ हो जाएगा
अमीर तो राम की सौगंध पहले ही खाते थे
अब गरीब भी खाने लगा ,
“राम “ पहले अमीर के ही थे
अब गरीब के भी हो गये
रोटी से पहले “राम “ आ गया
चुनाव आ गया ....


स्वरचित -शशांक द्विवेदी 

सपने जरुर देखने चाहिए

शशांक द्विवेदी 
आज अजीज मित्र युवा कवि और लेखक प्रांजल धर ने इसी महीने की "योजना " (प्रकाशन विभाग ,भारत सरकार की महत्वपूर्ण पत्रिका ) भेजी जिसमें मेरा लेख प्रकाशित हुआ है .इसी अंक में उनका भी एक लेख है .."योजना " देखकर असीम प्रसन्नता हुई क्योंकि इस पत्रिका में छपना बेहद महत्वपूर्ण लगता है ,इसमें मेरे कई लेख प्रकाशित हुए है और हर बार एक सुखद अनुभूति होती है ..क्योंकि जब मै इलाहाबाद में था उस समय इस पत्रिका का क्रेज मैंने युवा प्रतियोगियों में देखा था तब से यही सपना देखा था कि योजना ,कुरुक्षेत्र और विज्ञान प्रगति में एक दिन मेरे लेख जरुर आयेंगे ..उस समय इलाहबाद में मेरे मामा जी नवभारतटाइम्स अखबार लेते थे जो एक दिन बाद आता था (आज का अखबार कल ) उसमें संपादकीय पेज बड़ा आकर्षित करता था और हर दिन का पढता और संभाल कर रखता था इस सपने के साथ कि एक दिन मै भी इसमें जरुर लिखूंगा और मेरे मामा उसे पढ़कर शाबाशी देंगे ..मै घर में बाबा जी से कहता था देखना बाबा एक दिन सब बड़े -बड़े अखबारों में लिखूंगा .. उस समय उम्र कम थी (12 वी पास करके इलाहाबाद में पहुँचा था ) लेकिन सपने काफी बड़े थे ..लेकिन उस समय के देखे हुए सपने आज जब पूरे होते है तो लगता है कि सपने देखने चाहिए ..एक दिन जरुर पूरे होते है ...उन सपनों को याद करके आज भी ताकत मिलती है .. 

खुर्शीद अनवर को विनम्र श्रधांजली ..

शशांक द्विवेदी
मै खुर्शीद अनवर को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता ,मुझे यह भी नहीं पता कि जो आरोप उन पर लगे है वो सही है या गलत ,लेकिन मै इतना जानता हूँ कि जनसत्ता में उनके लेख मुझे बहुत पसंद थे ..उनकी फ़ेसबुक पोस्ट शानदार रहती थी ..बेहतरीन सोच वाले व्यक्ति लगते थे ..आज उनकी आत्महत्या की खबर से मुझे दुःख हुआ क्योंकि सोशल मीडिया और मीडिया ट्रायल ने उनको अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया ,उनको जबरदस्ती "बलात्कारी " घोषित कर दिया .गया ...इस पर एक मशहूर गजल की एक पंक्ति याद आती है "मुझको पहले सजा दी गयी फिर अदालत में लाया गया "
उनकी मौत ने प्रगतिशील लोगों पर और न्याय के बेसिक सिद्धांत पर कई सवाल खड़े किये है ..जो भी हुआ वो ठीक नहीं हुआ ,बेहद अफसोसजनक ..खुर्शीद अनवर को मेरी तरफ से विनम्र श्रधांजली ..