Saturday, March 31, 2012
Wednesday, March 28, 2012
Monday, March 26, 2012
Thursday, March 22, 2012
जल संरक्षण
जल संरक्षण से ही जीवन संरक्षण संभव
जल संरक्षण की आवश्यकता
विश्व जल दिवस यानी पानी के वास्तविक मूल्य को समझने का दिन ,पानी बचाने के संकल्प का दिन। पानी के महत्व को जानने का दिन और जल संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.6 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है। पानी की इसी जंग को खत्म करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाने का निश्चय किया। विश्व जल दिवस की अंतरराष्ट्रीय पहल रियो डि जेनेरियो में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में की गई। जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया।
प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है।
धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा खुचा है उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं।
संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त हैं वहीं पानी, खाद्य तथा ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियों का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और सैनिटेशन यानी साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं।एक पीढ़ी से कुछ अधिक समय में दुनिया की आबादी के 60 प्रतिशत लोग कस्बों और शहरों में रहने लगेंगे और इसमें सबसे अधिक बढ़ोतरी विकासशील देशों में शहरों के अंदर उभरी मलिन बस्तियों तथा झोपड़-पट्टियों के रूप में होगी।
भारत में शहरीकरण के कारण अधिक सक्षम जल प्रबंधन तथा समुन्नत पेय जल और सैनिटेशन की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि शहरों में अक्सर समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं, और इस समय तो समस्याओं का हल निकालने में हमारी क्षमताएं बहुत कमजोर पड़ रही हैं।
जिन लोगों के घरों या नजदीक के किसी स्थान में पानी का नल उपलब्ध नहीं है ऐसे शहरी बाशिंदों की संख्या विश्व परिद्रश्य में पिछले दस वर्षों के दौरान लगभग ग्यारह करोड़ चालीस लाख तक पहुंच गई है, और साफ-सफाई की सुविधाओं से वंचित लोगों की तादाद तेरह करोड़ 40 लाख बतायी जाती है। बीस प्रतिशत की इस बढ़ोतरी का हानिकारक असर लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक उत्पादकता पर पड़ा हैः लोग बीमार होने के कारण काम नहीं कर सकते।
भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है। लेकिन, उसके लिए मात्र 4 प्रतिशत पानी ही उपलब्य है। विकास के शुरुआती चरण में पानी का अधिकतर इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता था। लेकिन, समय के साथ स्थिति बदलती गयी और पानी के नये क्षेत्र-औद्योगिक व घरेलू-महत्वपूर्ण होते गये।
शहरीकरण के कारण अधिक सक्षम जल प्रबंधन और बढ़िया पेय जल और सैनिटेशन की जरूरत है। लेकिन शहरों के सामने यह एक गंभीर समस्या है। शहरों की बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती मांग से कई दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। जिन लोगों के पास पानी की समस्या से निपटने के लिए कारगर उपाय नहीं है उनके लिए मुसीबतें हर समय मुंह खोले खड़ी हैं। कभी बीमारियों का संकट तो कभी जल का अकाल, एक शहरी को आने वाले समय में ऐसी तमाम समस्याओं से रुबरु होना पड़ सकता है।
पानी संबंधी चुनौतियां पहुंच से भी आगे बढ़ चुकी हैं। अनेक देशों में साफ-सफाई की सुविधाओं में कमी के कारण लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और पनघट से पानी लाते समय या सार्वजनिक शौचालयों को जाते या आते हुए औरतों को परेशान किया जाता है। इसके अलावा, समाज के अत्यधिक गरीब और कमजोर वर्ग के सदस्यों को अनौपचारिक विक्रेताओं से अपने घरों में पाइप की सुविधा प्राप्त अमीर लोगों के मुकाबले 20 से 100 प्रतिशत अधिक मूल्य पर पानी खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है। यह तो बड़ा अन्याय है। अब ऐसा समय आ गया है जबकि दुनिया की सभी सरकारों को ऐसे प्रावधान खोजने में योगदान देना होगा जिससे पेयजल की सुरक्षित, सुलभ, सस्ती, उपयुक्त और नियमित आपूर्ति हो सके और 884 मिलियन लोगों की पानी की मांग को पूरा किया जा सके। यह मुद्दा सरकारों की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए .
भारत में जल संबंधी मौजूदा समस्याओं से निपटने में वर्षाजल को भी एक सशक्त साधन समझा जाए। पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए। यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए। अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है। जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता। कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है।
पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं।अगर हम इसी तरह कथित विकास के कारण अपने जल संसाधनों को नष्ट करते रहें तो वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे।
जल नीति के विश्लेषक सैंड्रा पोस्टल और एमी वाइकर्स ने पाया कि बर्बादी का एक बड़ा कारण यह है कि पानी बहुत सस्ता और आसानी से सुलभ है। कई देशों में सरकारी सब्सिडी के कारण पानी की कीमत बेहद कम है। इससे लोगों को लगता है कि पानी बहुतायत में उपलब्ध है, जबकि हकीकत उलटी है।
इस निराशाजनक परिदृश्य में कुछ उदाहरण उम्मीद जगाने वाले हैं। पहला उदाहरण चेन्नई का है, जहां अनिवार्य जल संचय के लिए एक सुस्थापित प्रणाली काम कर रही है। दूसरा उदाहरण कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ में विश्व बैंक द्वारा समर्थित सफल योजना का है। यहां बेहतर ढांचागत संरचना, प्रभावी आपूर्ति तंत्र और वसूली के जरिए वाजिब कीमत पर 24 घंटे पानी की आपूर्ति की जा रही है।
समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरुरत है जागरुकता की। एक ऐसी जागरुकता की जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें।
लेखक
शशांक द्विवेदी
Tuesday, March 20, 2012
जल संकट- कथित विकास की देन
जल संकट- कथित विकास की देन
जल है तो कल है
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि विश्व के अनेक हिस्सों में पानी की भारी समस्या है और इसकी बर्बादी नहीं रोकी गई तो स्थिति और विकराल हो जाएगी क्योंकि भोजन की मांग और जलवायु परिवर्तन की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
विश्व जल मुद्दे पर पिछले दिनों छह दिवसीय बैठक में जारी एक विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में अनेक बड़ी चुनौतियां मसलन गरीब तबके को स्वच्छ जल और साफ-सफाई की सुविधा मुहैया कराना, विश्व आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराना, भूमंडलीय तापमान में वृद्धि के दुष्प्रभाव आदि पूरे विश्व के सामने खड़ी हैं. इन समस्यायों और चुनौतियों से हर देश की प्राथमिकता में सबसे ऊपर होना चाहिए क्योंकि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी मौजूदा सात अरब से बढ़कर नौ अरब हो जाने की उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने इस रिपोर्ट में कहा है, कृषि की बढ़ती जरूरतों, खाद्यान उत्पादन, उर्जा उपभोग, प्रदूषण और जल प्रबंधन की कमजोरियों की वजह से स्वच्छ जल पर दबाव बढ़ रहा है।
विश्व जल मुद्दे पर पिछले दिनों छह दिवसीय बैठक में जारी एक विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में अनेक बड़ी चुनौतियां मसलन गरीब तबके को स्वच्छ जल और साफ-सफाई की सुविधा मुहैया कराना, विश्व आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराना, भूमंडलीय तापमान में वृद्धि के दुष्प्रभाव आदि पूरे विश्व के सामने खड़ी हैं. इन समस्यायों और चुनौतियों से हर देश की प्राथमिकता में सबसे ऊपर होना चाहिए क्योंकि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी मौजूदा सात अरब से बढ़कर नौ अरब हो जाने की उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने इस रिपोर्ट में कहा है, कृषि की बढ़ती जरूरतों, खाद्यान उत्पादन, उर्जा उपभोग, प्रदूषण और जल प्रबंधन की कमजोरियों की वजह से स्वच्छ जल पर दबाव बढ़ रहा है।
दुनिया में तकरीबन 20 फीसदी लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है और 40 फीसदी लोग सफाई की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इन वंचितों में से आधे से ज्यादा लोग चीन या भारत में हैं। दुनिया भर में ज्यादातर क्षेत्रों में काफी तरक्की हुई है और जल प्रचुरता से उपलब्ध है। लेकिन एक अरब 10 करोड़ लोग पीने के साफ पानी से अब भी वंचित हैं। इसके अलावा दो अरब 60 करोड़ लोगों को साफ-सफाई की मूलभूत सुविधाएं हासिल नहीं हैं।
भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है। लेकिन, उसके लिए मात्र 4 प्रतिशत पानी ही उपलब्य है। विकास के शुरुआती चरण में पानी का अधिकतर इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता था। लेकिन, समय के साथ स्थिति बदलती गयी और पानी के नये क्षेत्र-औद्योगिक व घरेलू-महत्वपूर्ण होते गये।
भविष्य में इन क्षेत्रों में पानी की और मांग बढ़ने की संभावना है, क्योंकि जनसंख्या के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी तीव्र वृद्धि हो रही है। गौरतलब है कि कई शहरों (बंगलूर, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि) में अभी से पानी की किल्लत होने लगी है। दूसरी तरफ गांवों में पेयजल की समस्या भी कम विकट नहीं है। वहां की 90 प्रतिशत आबादी पेयजल के लिए भूजल पर आश्रित है। लेकिन, कृषि क्षेत्र के लिए भूजल के बढ़ते दोहन से बहुत से गांव पीने के पानी का संकट झेलने लगे हैं। दुनिया के ज्यादातर इलाकों में पानी की गुण्वत्ता में कमी आ रही है और साफ पानी में रहने वाले जीवों की प्रजातियों की विविधता और पारिस्थितिकी को तेजी से नुकसान पहुंच रहा है।
यहां तक कि समुद्री पारिस्थितिकी की तुलना में भी यह क्षरण ज्यादा है। इसमें यह भी रेखांकित किया गया है कि 90 फीसदी प्राकृतिक आपदाएं जल से संबंधित होती हैं और इनमें बढ़ोत्तरी हो रही है।
वन क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों के बढ़ने, नदियों-जलाशयों के प्रदूषित होते जाने और बिगड़ते परिस्थितिकी संतुलन को लेकर काफी समय से चिंता जतायी जा रही है। न सिर्फ पर्यावरण के लिए काम करने वाले संगठन इसके लिए सरकारों पर दवाब बनाने की कोशिश करते रहे हैं, बल्कि विभिन्न अदालतें भी इनसे संबंधित कई निर्देश जारी कर चुकी हैं। मगर लगता है, सरकारें प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा को लकर गंभीर नहीं हैं।
कई बड़े शहरों में तालाबों के सूख जाने की स्थिति में उनके रख-रखाव की पहल करने की बजाय उन पर रिहाइशी कालोनियां या व्यावसायिक परिसर बना दिये गये हैं। तालाबों को इस तरह दफनाने के खिलाफ एक संस्था की अपील पर सर्वोच्च नयायालय ने कहा है कि, प्राकृतिक संसाधनों और परिस्थितिकी संतुलन की कीमत पर कोई भी विकास कार्य नहीं किया जाना चाहिए। यह संवैधानिक तकाजा है कि सरकारें पर्यावरण संवर्धन के कार्यक्रम चलायें और लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे वनों, नदियों, तालाबों आदि की रक्षा में अपना सहयोग दें।
बंगलुर में कई झीलें और तालाब मकानों में तब्दील हो गये हैं, जो पहले पानी से लबालब भरे रहते थे। इसी तरह राजस्थान के अनेक शहरों में झीलों-तालाबों को पाटकर भवन बना लिये गये हैं। ऐसे भी कई जलाशय हैं, जिनके किनारे सिकुड़ते चले गये हैं और पर्यटकों को लुभाने की मंशा से वहां रेस्तरां या सांस्कृतिक केंद्र खोल दिये गये हैं। दूसरे प्रदेशों के शहरों में भी ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं। अमूमन जलाशयों के रख रखाव पर समुचित ध्यान न दिये जाने के कारण उनमें लगातार गाद भरती जाती है और वे उथले होते-होते सूख जाते हैं।
ऐसे में शहरी विकास प्राधिकरणों को लगता है कि उनकी उपयोगिता समाप्त हो गयी है। और, निजी भवन निर्माताओं की पहल पर या कई बार वे खुद वहां रिहाइशी कालोनियां, व्यावसायिक केंद्र या सरकारी दफ्तर आदि बनाने का नक्शा पास कर देते हैं। इससे लोगों के रहने या कारोबार करने की कुछ और जगह तो जरूर बन जाती है। मगर, इससे परिस्थितिकी संतुलन को जो नुकसान पहुंचता है, उसकी भरपाई किसी और जरिए से नहीं की जा सकती है।
पूरे देश में पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। इससे पार पाना सभी सरकारों के लिए चुनौती है। पर्यावरण विशेषज्ञ वर्षा जल संचयन पर बल देते रहे हैं। अगर तालाबों और झीलों जैसे पारंपरिक जल स्त्रोतों के संरक्षण-संर्वधन की बजाय उन पर कंक्रीट के जंगल खड़े होते गए, तो इस संकट से निपटने की उम्मीद हम कैसे कर सकते हैं। कई राज्यों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों की देख-रेख के लिए अलग से विभाग हैं। जलाशयों में बढ़ते प्रदूषण और गाद को रोकने के लिए वे योजनाएं बनाते हैं। मगर वे कागज पर ही रह जाती हैं।
राजस्थान के कुछ इलाकों में लोगों ने अपनी तरफ से कई तालाबों की साफ-सफाई करके उनकी जल संग्रहण क्षमता बढ़ाई है। इससे उन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिली है। ऐसे प्रयासों से राज्य सरकारों को प्ररेणा लेने की जरूरत है। लेकिन, इसके साथ ही आम लोगों को भी पारंपरिक जल स्त्रोतों को बचाने के लिए आगे आना होगा।
अब हमें जब यह पता है कि जल संकट का विकट दौर चल रहा है तो हमंे यह समझना होगा कि जल का कोई विकल्प नहीं है, मानव का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है, जल सृष्टि का मूल आधार है, जल है तो खाद्यान है, जल है तो वनस्पतियॉं हैं, जल का कोई विकल्प नहीं है, जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण है, जल का पुरर्भरण करना ही जल का उत्पादन करना है और हमें कुल मिलाकर ये समझना ही होगा कि जल है तो कल है। हमें यह मानना ही होगा कि मानव की जल की आवष्यकता किसी अन्य आवष्यकता से काफी महत्वपूर्ण है। हमें यह समझना और समझाना होगा कि जल सीमित है और विष्व में कुल उपलब्ध जल का 27 प्रतिषत ही मानव उपयोगी है।
लेखक
शशांक द्विवेदी
Monday, March 19, 2012
Friday, March 16, 2012
Tuesday, March 6, 2012
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