Monday, August 26, 2013

प्रियंका द्विवेदी की कवितायें नेशनल दुनियाँ अखबार में

बेटियाँ ही क्यूं
जला दी जाती हैं बेटियाँमार दी जाती हैं बेटियाँ
पैदा होने से पहले और बाद में भी मार दी जाती हैं बेटियाँ
आखिर क्यूं
शादी के लिए और शादी के बाद भी मार दी जाती हैं बेटियां
आखिर क्यूं
हर घंटे हिंसा का शिकार होती है बेटियाँ
घर हो या दफतर या हो कोई भी चैराहा
सरेआम बेपर्दा की जाती हैं बेटियाँ
गरीब हो या अमीर फिर रोती हैं बेटियाँ
सिसकियां भरती हैं बेटियाँ
आखिर क्यूं
क्या नारी होना ही अभिशाप है इस धरा पर
अरे मत भूलों जगत जननी भी होती हंै बेटियाँ
तुम्हारें घर को संभालती हैं बेटियाँ
तुम्हारें घर में चिराग जलाती हैं बेटियाँ
तुम्हारें वंश को आगे बढाती हैं बेटियाँ
तुम्हारें रिश्ते बनाती, तुम्हें मान भी दिलाती हैं बेटियाँ
अपना घर छोड दूसरों की जिंदगी संवारती हैं बेटियाँ

     बचपन 

नटखट और नादान है बचपन
बेखौफ और बेधडक है बचपन
न किसी से डरना और ना धमकना है बचपन
बेखौफ शरारते करता है बचपन
हंसना और बस हंसना है बचपन
मनमरजी शरारतें करता है बचपन
अपनी बातें मनवाता है बचपन
रो रोकर चिल्लाता है बचपन 
अपनी बात पहंुचाता बचपन
नन्हें पैरों से चलना, गिरना फिर गिर कर संभलना है बचपन
गिरकर भी चोट, दर्द का एहसास न होना है बचपन
बस उठो और फिर से करो वही
आखिर क्यूं गिरे न सोचो यही तो है बचपन
कभी पानी तो कभी मिटटी में खेलना यही तो है बचपन
न धूल और ना धूप की गर्मी की चिंता, यही तो है बचपन
पानी में भीगना, अपने को और दूसरों को भीगोना यही तो है बचपन
न ठंड की परवाह न गर्मी का एहसास यही तो है बचपन
कभी रोना और आंखों में आंसू भरना
गले से आवाज निकालना और चिल्लाना यहीं तो है बचपन
न अपने और न पराए का भेद यही तो है बचपन
सब कुछ देना सब कुछ लेना है बचपन
न जात, न पात की समझ, यही तो है नादान बचपन
लेखिका
प्रियंका द्विवेदी
वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार

वर्तमान में देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन
कविता link 

औरत की बोल्डनेस !!

Arshana Azmat
 औरत को जब भी बोल्ड दिखाना होता है ... उसे सिगरेट पीते, कई बार दारू पीते, खुलेआम किसी से भी शारीरिक सम्बन्ध बनाते, बिना बात बहस करते, जींस शर्ट पहने और तेज़ स्पीड में गाड़ी चलाते ही क्यों दिखाया जाता है ... आप मुझे बताइए साड़ी पहनने वाली, किचेन में खाना बनाने वाली, गीता पढने वाली या सावन में मेहँदी लगाने वाली, औरत बोल्ड क्यों नहीं हो सकती ... ये अच्छा है ... औरत को बोल्ड दिखाने के लिए मर्दों वाले नेगेटिव काम उससे कराने लगो .... अरे बात तो तब है जब औरत .. औरत रहते हुए बोल्ड बने .... इस बाबत मंटो लिखते हैं कि जब वो पहली बार इस्मत से मिले तो बड़े मायूस हुए .. अपनी बीवी को ख़त लिखा कि इस्मत लिखती तो बड़ा बेबाक हैं लेकिन देखने और बात करने में बिलकुल आम औरत है ... कई साल बाद मंटो ने अपनी ही नज़र को ख़ारिज किया और लिखा कि औरत ... औरत बने रह कर ही तारीख बना सकती है, अगर इस्मत आम औरत न होतीं तो कभी भी इतना बेमिसाल न लिखतीं ....

Saturday, August 24, 2013

प्रकाशन विभाग (भारत सरकार ) की पत्रिका " योजना " में मेरा लेख


कल प्रकाशन विभाग (भारत सरकार ) की पत्रिका " योजना " में फरवरी २०१३ में छपे मेरे एक लेख (वैज्ञानिक अनुसंधान पर उदासीनता) का चेक (पारिश्रमिक) मिला . अच्छा लगा और थोड़ा दुःख भी हुआ कि ६ महीने पहले भेजे उस लेख को मै भूल चुका था ,मुझे पता भी नहीं था कि मेरा कोई लेख फरवरी में आया है ,इस बाबत मुझे न कोई सूचना मिली न ही उस महीने की वो प्रति मुझे भेजी गयी .लेकिन मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मेरे इस लेख को "योजना " के संपादकीय विभाग ने कंशीडर किया जबकि इस लेख में मैंने बहुत सारी बाते सरकार की नीतियों के विरोध में लिखी थी,लेकिन वो सच थी .मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी महत्वपूर्ण सरकारी पत्रिका में वो लेख कंशीडर होगा ..इसके लिए योजना की संपादक रेमी कुमारी को धन्यवाद ..


article lik



Thursday, August 22, 2013

कॉरपोरेट पति की बीवी

मनीषा पांडे
वैसे अच्छेे-खासे कमाऊ सॉफ्टवेअर इंजीनियर, कॉरपोरेट स्लेकव पति की बीवी बनने में काफी ऐश भी है। सुबह उठकर ऑफिस नहीं भागना पड़ता, ऑफिस के दबाव-तनाव नहीं झेलने पड़ते। सुबह नौ बजे से लेकर रात नौ बजे तक हफ्ते में छह दिन अपनी ऐसी की तैसी नहीं करानी पड़ती। पति इतना मोटी कमाई करता हो तो घर के काम भी नहीं करने पड़ते। झाडू, पोंछा, बर्तन, कपड़ा और यहां तक की खाना बनाने के लिए भी मेड होती है। फुट टाइम सर्वेंट। मजे से सीरियल देखो, फेशियल करवाओ, शॉपिंग करो, नए डिजायनर सूट पहनो और वीकेंड में पति की बांह से सटकर मॉल में पिज्जा खाओ। 
मजे ही मजे हैं। 
लेकिन इस मजे की भी कीमत है। अपनी आजादी भूल जाइए, अपने फैसले, अपना जीवन, अपना हक, अपनी मर्जी सब गए तेल लेने। 
कमाऊ पति का ऐशोआराम और आजाद फैसले एक सा‍थ नहीं मिलते। दोनों हाथों में लड्डू मुमकिन नहीं।
इसलिए तय करना होगा - ये या वो। इस पार या उस पार। 
कोई एक ही चीज मिलेगी। 
"या कॉरपोरेट की नौकरी या कॉरपोरेट के खिलाफ लड़ाई।"
।"

Wednesday, August 21, 2013

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की ताजा रिपोर्ट

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ)  की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश के मुसलमान औसतन 32.66 रुपये प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं। एक दिन में सबसे कम पैसों में गुजारा करने वाले देश के धार्मिक समुदायों में मुसलमान सबसे निचली पायदान पर हैं। हिंदुओं की स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं है और देश का बहुसंख्यक समुदाय प्रतिदिन महज साढ़े सैंतीस रुपये में जीवनयापन को मजबूर है। यह सर्वे सच्चर समिति की उस रिपोर्ट का समर्थन करता है जिसमें देश में मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दयनीय बताया गया था। एनएसएसओ द्वारा ‘भारत के बड़े धार्मिक समूहों में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति’ नाम से जारी रिपोर्ट के मुताबिक सिख समुदाय 55.30 रुपये प्रतिदिन खर्च कर सबसे बेहतर जीवनयापन करने वालों की सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद ईसाई (51.43 रुपया प्रतिदिन) सबसे ज्यादा खर्च करते हैं। इसी तरह हिंदू समुदाय के लोग प्रतिदिन साढ़े सैंतीस रुपये पर जीवनयापन करते हैं। एनएसएसओ के मुताबिक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति उपभोग (मासिक) की दर 901 जबकि शहरी क्षेत्रों 1,773 रुपये है। ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति व्यय (मासिक) के मामले में भी सबसे निचली पायदान पर मुस्लिम (833 रुपये) और उसके बाद हिंदू समुदाय (888) है। शहरी क्षेत्रों में भी इन दोनों समुदाय की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। एनएसएसओ के सर्वे में कहा गया है, ‘अखिल भारतीय स्तर पर (वर्ष 2009-10 के लिए जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक) सिख समुदाय का व्यक्ति एक महीने में 1,659 रुपये खर्च करता है, जबकि मुस्लिम समुदाय के मामले में यह आंकड़ा तकरीबन आधा (980 रुपये) है।’ हिंदुओं और ईसाइयों के मामले में यह आंकड़ा क्रमश: 1,125 और 1,543 रुपये है।

Tuesday, August 20, 2013

एक छोटा बच्चा भगवान के सामने

एक छोटा बच्चा भगवान के सामने :-
आपको पता है? पापा कह रहे थे कि हर चीज बढ़ रही है ....
डॉलर 63 हो गया है, पेट्रोल 80 हो गया है, 
दूध हो 50 गया है, प्याज 70 हो गया है, 

भगवान जी बस आपका शुक्र है..
'पासिंग मार्कस' अभी भी 35 ही है...
प्लीज इसे मत बढ़ने दिजीयेगा ….

भारतीय पत्नी

भारतीय पत्नी काफी संस्कारिक होती हैं एवं पति का सम्मान करने वाली.. वोह कभी भी अपने पति को " ए गधे(Aye gadhe) " ," ओ गधे (O gadhe)" ,"सुनो गधे(suno gadhe)" कहकर संबोधित नहीं करती..

बस वोह शोर्ट फॉर्म इस्तमाल करती हैं " ए जी" ,"ओ जी" , "सुनो जी" ..

संस्कारिक पत्नियाँ के लिए संस्कारिक पतियों को बधाई..
 

Sunday, August 18, 2013

हिंदी के स्तंभकारों की स्तिथि ..


मै पिछले कुछ सालों से देश के प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में नियमित रूप से स्तंभ लिख रहा हूँ , प्रिंट मीडिया में बिना किसी गाडफादर और सिफारिश के सिर्फ अपनी मेहनत और लगन के बूते मैंने अपना स्थान बनाया है ..(मै अच्छा लिखता हूँ इसलिए छपता हूँ ,,मै छपता हूँ इसलिए नहीं लिखता )आज से १० साल पहले जब इंजीनियरिंग का छात्र था तब भी खूब लिखता था भले ही वो छपे या न छपे तब भी मेरे कई लेख जनसत्ता ,दैनिक जागरण ,अमर उजाला  आदि के संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुए थे..कुलमिलाकर लेखन शुरू से ही मेरे लिए जूनून रहा है और आज भी है और आगे भी रहेगा .पिछले दिनों एक पत्रकार ने मेरी शिकायत करते हुए कहा कि मेरा एक ही लेख देश के कई अखबारों में प्रकाशित हुआ है .मै उनकी शिकायत से पूरी तरह से सहमत हूँ (इस देश के अधिकांश बड़े नाम वाले लेखक तो घोषित तौर पर यही करते है ) और मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर आप का लेख लखनऊ,दिल्ली ,जयपुर ,भोपाल ,पुणे ,राँची आदि अलग अलग जगह पर छप रहा है तो ये अच्छी बात है विभिन्न पाठकों तक आपकी बात पहुँच रही है .आज के समय में हिंदी के लेखकों को अखबार वाले बहुत कम पारिश्रमिक देते है (मात्र कुछ सौ रुपये ,कई अखबार तो ऐसे भी है जो इतना भी नहीं देते ).. पारिश्रमिक भी छोड़िये उसे ठीक से सम्मान तक नहीं दिया जाता ,उसका लेख प्रयोग होगा कि नहीं अधिकांश संपादक यह जवाब देना तक जरूरी नहीं समझते .कुल मिलाकर लेखक को वो टेक एज अ ग्रांट की तरह लेते है .जरुरत हुई तो लेख प्रयोग कर लिया नहीं तो लेखक भाड़ में जाए .ऐसी परिस्थितियों में लेखक क्या करे ?कुछ सालों में मैंने मीडिया इंडस्ट्री को बहुत अच्छी तरह से देखा है ,समझा है ,आप भारत जैसे देश में आर्थिक रूप से मजबूत होने पर  ही “हिंदी में “ स्वतंत्र लेखन कर सकते है अगर आप बिना किसी जाब के या मजबूत आधार के  फ्रीलांसिंग कर रहें है तो निश्चित तौर पर भूखे मर जायेगें.यहाँ स्तिथी बहुत ज्यादा भयावह है ,जो दिखता है वो है नहीं ,और भी बहुत सारी बाते है फिर कभी बताऊँगा..
इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने मेरी चिंताओ को साझा करते हुए लिखा है 
“हाल के दिनों में एक नवेले हिंदी पत्रकार ने कुछ अखबारों के संपादकीय और ऑप एड पेज प्रभारियों को कुछ स्तंभ लेखकों के एक ही लेख के कई जगह प्रकाशित होने की जानकारी दी है...इससे कुछ लेखकों के कुछ संपादकों ने लेख छापने भी कम कर दिए हैं...इस बारे में मुझे याद आता है अपना एक संस्मरण..दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में मैं 1998 में काम कर रहा था...तब दैनिक भास्कर के प्रधान संपादक कमलेश्वर थे। उस समय भास्कर सिर्फ मध्य प्रदेश और राजस्थान में ही प्रकाशित होता था। उन दिनों मृणाल पांडे एनडीटीवी छोड़ चुकी थीं। तब रविवारीय भास्कर की कुछ कवर स्टोरियां अच्युतानंद मिश्र और मृणाल पांडे जी से लिखवाई गईं। संयोग से भास्कर में प्रकाशित मृणाल जी की एक स्टोरी किसी दूसरे अखबार में भी प्रकाशित हुई। रविवारीय में कार्यरत हमारे एक साथी ने कमलेश्वर जी से इसकी शिकायत की। कमलेश्वर जी ने शिकायत सुनी...फिर साथी से सवाल पूछा- आप एक लेख का मृणाल जी जैसे लेखक को कितना पारिश्रमिक देते हैं...उन दिनों मिलने वाली रकम कुछ सौ रूपए होती थी..मित्र ने वही जवाब दिया...कमलेश्वर जी का जवाब था--पहले एक लेख का पारिश्रमिक पांच हजार देने का इंतजाम करो..तब सोचना कि मृणाल जी या दूसरे लेखक एक ही लेख दूसरी जगह छपने को ना दें...फिर उन्होंने उसे समझाया कि अगर एक ही लेख दो अलग-अलग इलाकों के दो या चार अखबारों में छपें तो हर्ज क्या है..आखिर पाठक भी तो अलग-अलग इलाकों के हैं..

Thursday, August 15, 2013

स्वतंत्रता दिवस पर कविता

आज स्वतंत्रता दिवस और मेरा जन्मदिवस दोनों है .यह संयोग मुझे काफी सुखद लगता है , आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की यह कविता मुझे बहुत पसंद है
15 अगस्त का दिन कहता ,आजादी अभी अधूरी है
सपने सच होने बाकी है ,रावी की शपथ न पूरी है
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएगें
गिल –गिल से गारो पर्वत तक आजादी पर मनाएंगे
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसे बलिदान करें

जो पाया उसमे खो न जाएँ ,जो खोया उसका ध्यान करें ......

Wednesday, August 14, 2013

मेरा और मेरे देश दोनों का जन्मदिवस

आज मेरा और मेरे देश दोनों का जन्मदिवस है...मेरा तो कुछ नहीं पर मेरा देश सदा सर्वदा के लिए अमर हो जाये, खूब आगे बढे, हमेशा तरक्की करें ,विश्व महाशक्ति बने ,फिर से विश्व गुरु बने (तेरा गौरव बना रहें माँ ,हम दिन चार रहें न रहें )इसी कामना के साथ आप सभी को सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...मेरे जन्मदिवस पर आप सभी मित्रों की शुभकामनाओं से मै अभिभूत हूँ ,इसके लिए आप सभी का ह्रदय से आभार

Monday, August 12, 2013

नेशनल दुनिया के संपादकीय पेज पर मेरी कवितायेँ ..

आज के नेशनल दुनिया के संपादकीय पेज पर मेरी कवितायेँ .. लेख लिखने और छपने से कई गुना ज्यादा ख़ुशी होती है कवितायेँ लिखते और छपते समय .कवितायेँ मेरे दिल के बहुत ज्यादा करीब है ..आज काफी ख़ुशी हो रही है ..

poem link
http://www.nationalduniya.com/Admin/data/2013/08/10/Delhi/Delhi/images/page10_07.gif