Tuesday, July 24, 2012

सुरक्षा मोरचे पर नई चुनौतियां


शशांक द्विवेदी
अमर उजाला कॉम्पैक्ट

आधुनिक युग में सुरक्षा के मोरचे पर उभरी नई किस्म की चुनौतियों के मद्देनजर हमें नए सिरे से रक्षा कार्यक्रमों की समीक्षा की जरूरत है।

हाल ही में ब्रिटेन के पूर्व संचार निदेशक एलिस्टर कैंपबेल ने अपनी डायरी में यह खुलासा किया कि पाकिस्तान के एक सैन्य जनरल ने उनसे कहा था कि इसलामाबाद आठ सेकेंड में भारत पर परमाणु हमला करने में सक्षम है और उसके पास ऐसी तकनीक है कि भारत उसकी किसी भी मिसाइल प्रणाली को नष्ट नहीं कर पाएगा। जाहिर है, आधुनिक युग में ऐसी नई सुरक्षा चुनौतियों पर हमें और भी सचेत रहना होगा और उच्च स्तर की तकनीक भी विकसित करनी होगी ।
भले ही हमारा सुरक्षा कार्यक्रम चीन और पाकिस्तान के हमलों की स्थिति में आत्म-रक्षात्मक कवच को मजबूत करने पर आधारित है, लेकिन उपग्रहों का सैन्य इस्तेमाल किए जाने, हमारे उपग्रहों को मिसाइलों से नष्ट किए जाने, मिसाइलों को उसके मार्ग में ही ध्वस्त किए जाने जैसी आशंकाओं को हम नजरंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि पड़ोसी चीन के पास मिसाइल रोधी तकनीक है। परमाणु हथियारों और उन्हें ले जाने वाली भरोसेमंद प्रणाली की मौजूदगी हमें हमलावर को हतोत्साहित करने की क्षमता तो प्रदान करती है, लेकिन दूसरे किस्म के हमलों की आशंका से मुक्त नहीं करती। जैसे, हमारे संचार तंत्र को नष्ट किए जाने की आशंका। ऐसी स्थितियों में अस्थायी उपग्रहों को स्थापित करने की क्षमता बहुमूल्य सिद्ध हो सकती है। थोड़ा फेरबदल करके उसे आक्रामक मिसाइलों को नष्ट करने वाली मिसाइल में भी बदला जा सकता है। इतना ही नहीं, हम हमलावर राष्ट्र के सैन्य उपग्रहों को निशाना बनाने की स्थिति में आ सकते हैं और उपग्रहों पर भी परमाणु संपन्न मिसाइलें तैनात कर सकते हैं। युद्ध में आक्रमण ही बचाव की सर्वश्रेष्ठ रणनीति है। यदि हमें अपनी सुरक्षा तैयारियों को हमलावर राष्ट्र को हतोत्साहित करने तक ही सीमित रखना है, तब भी अंतरिक्षीय चुनौतियों को परास्त करने के लिए एक भरोसेमंद प्रणाली का विकास जरूरी है। इसके लिए हमें अपनी अंतरिक्ष सुरक्षा और सैन्य-अंतरिक्ष नीति को असरदार और व्यापक बनाना होगा।
इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च ऐंड एनालिसिस की स्पेस सिक्योरिटी रिपोर्टकहती है कि बदलती सामरिक परिस्थितियों और चीन के अंतरिक्ष क्षेत्र में अपने दायरे बढ़ाने के जबरदस्त प्रयास के बावजूद भारत की सैन्य तैयारियां मुख्य रूप से जमीन पर ही केंद्रित हैं। भारत की मौजूदा अंतरिक्ष नीति मुख्य रूप से नागरिक उद्देश्यों के लिए संचालित है और अंतरिक्ष से जुड़ा सैन्य कार्यक्रम काफी छोटा है। जबकि चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार प्रयोग कर रहा है। इसी के तहत वर्ष 2007 में उसने अपने ही उपग्रह को निशाना बनाते हुए उसे मार गिराया था। चीन के परीक्षण से साबित हो गया कि हमें अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की सुरक्षा नीति को व्यापक बनाने की जरूरत है। इसमें सैन्य संकाय को भी शामिल किया जाना चाहिए।
अंतरिक्ष सुरक्षा पर मैक्सवेल एयरफोर्स बेस के स्कूल ऑफ एडवांस एयर ऐंड स्पेस स्टडीज के प्रोफेसर जान बी शेल्डन ने एक लेख में कहा कि वाणिज्य और शासन व्यवस्था से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक देशों के उपग्रह पर निर्भर होने के कारण अंतरिक्ष को युद्ध के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता है। अगर कोई देश उपग्रह के माध्यम से युद्ध का सटीक संचालन करता है, तो यह कैसे संभव है कि अंतरिक्ष युद्ध के दायरे से बाहर रहे। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का स्टार वारकार्यक्रम इसी सोच का हिस्सा था। चीन आज इसी नीत पर काम कर रहा है।
सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार जमीन, साइबर दुनिया एवं अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन का बढ़ता दखल चिंता का विषय है। वह आर्थिक, प्रौद्योगिकी एवं सैन्य क्षेत्र में लगातार अपनी क्षमता बढ़ा रहा है और पाकिस्तान को भी सैन्य प्रौद्योगिकी मुहैया करा रहा है। इसलिए हमें नए सिरे से अपने रक्षा कार्यक्रमों की समीक्षा करने की जरूरत है।(अमर उजाला कॉम्पैक्ट में २४ /०७/२०१२ को प्रकाशित )
आर्टिकल लिंक 
http://compepaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120724a_012105009&ileft=293&itop=58&zoomRatio=158&AN=20120724a_012105009


Thursday, July 19, 2012

विज्ञान संचार हो रोजगारपरक

बहुत याद आयेंगें ‘काका’


डीएनए में मेरा लेख 

आज आंनद’ ,’चिर आनंदमें समाहित हो गया
लोगों के दिलों पर राज करने वाले बालीवुड के सदाबहार अभिनेता और हिन्दी फिल्मों के पहले सुपरस्टार ने इस दुनिया से सदा के लिए विदा ले ली ,लेकिन रंगमंच का यह महान कलाकार अपने शानदार अभिनय के लिए हमेशा याद किया जायेगा । आनंद फिल्म में उनके द्वारा निभाया गया किरदार और बोला गया डायलाग कि हम सब रंगमंच की कठपुतलियाँ है ,जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाँथ में है कब किसे जाना है यह सब निश्चित है हमेशा के लिए अमर हो गया ।
29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना को स्कूल और कॉलेज जमाने से ही एक्टिंग की से खासा लगाव था । नए हीरों की खोज में सन 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेअर द्वारा  टैलेंट हंट से फिल्म इंडस्ट्री में उनका पदार्पण हुआ । फाइनल में दस हजार में से आठ लड़के चुने गए थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। अंत में राजेश खन्ना विजेता घोषित किए गए। राजेश खन्ना का वास्तविक नाम जतिन खन्ना है। 1969 से 1975 के बीच राजेश ने कई सुपरहिट फिल्में दीं। इसी वजह से उस दौर में पैदा हुए ज्यादातर लड़कों के नाम राजेश रखे गए थे । फिल्म इंडस्ट्री में राजेश को प्यार से काका कहा जाता था। जब वे सुपरस्टार थे तब एक कहावत बड़ी मशहूर थी- ऊपर आका और नीचे काका। 1967 में रिलीज हुई  आखिरी खतफिल्म से उनकी फिल्मी पारी की शुरुवात हुई  है। 1969 में रिलीज हुई आराधना और दो रास्ते की सफलता के बाद राजेश खन्ना सीधे शिखर पर जा बैठे। उन्हें सुपरस्टार घोषित कर दिया गया और लोगों के बीच उन्हें अपार लोकप्रियता हासिल हुई।
वास्तव में ऐसी  लोकप्रियता किसी को हासिल नहीं हुई जो राजेश को हासिल हुई ।उस दौर में लड़कियों के बीच उनका आकर्षण जबरदस्त था । स्टुडियो या किसी निर्माता के दफ्तर के बाहर राजेश खन्ना की सफेद रंग की कार रुकती थी तो लड़कियां उस कार को ही चूम लेती थी। लिपिस्टिक के निशान से सफेद रंग की कार गुलाबी हो जाया करती थी। राजेश खन्ना को रोमांटिक हीरो के रूप में बेहद पसंद किया गया। उनकी आंख झपकाने और गर्दन टेढ़ी करने की अदा के लोग दीवाने हो गए।आराधना, सच्चा झूठा, कटी पतंग, हाथी मेरे साथी, मेहबूब की मेहंदी, आनंद, आन मिलो सजना, आपकी कसम जैसी फिल्मों ने सफलता  के नए रिकॉर्ड बनाए। आराधना फिल्म का गाना मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू...उनके करियर का सबसे बड़ा हिट गीत रहा।  1971 में रिलीज आनंद फिल्म राजेश खन्ना के करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जा सकती है, जिसमें उन्होंने कैंसर से ग्रस्त जिंदादिल युवक की भूमिका निभाई। भारतीय फिल्मी इतिहास की यह सबसे शानदार फिल्मों में से एक है जिसमे जिंदगी और मौत को बहुत संवेदनशील तरीके से दिखाया गया है .यह फिल्म और इसमें निभाया गया राजेश खन्ना का किरदार सदा दृसर्वदा के लिए अमर हो गया ।इस फिल्म में जिंदगी के सफर में गुजर गए मुकाम  फिर कभी नहीं आतेगीत अमर हो गया .।
मुमताज और शर्मिला टैगोर के साथ राजेश खन्ना की जोड़ी को काफी पसंद किया गया। मुमताज के साथ उन्होंने 8 सुपरहिट फिल्में दी।शर्मिला और मुमताज, जो कि राजेश की लोकप्रियता की गवाह रही हैं, का कहना है कि लड़कियों के बीच राजेश जैसी लोकप्रियता बाद में उन्होंने कभी नहीं देखी। उस जमाने में राजेश खन्ना ने जो कुछ पहना वह फैशन बन गया ,उनका द्वारा पहना गया कुर्ता युवाओं में बहुत पसंद किया गया ।जंजीर और शोले जैसी एक्शन फिल्मों की सफलता और अमिताभ बच्चन के उदय ने राजेश खन्ना की लहर को थाम लिया। लोग एक्शन फिल्में पसंद करने लगे और 1975 के बाद राजेश की कई रोमांटिक फिल्में असफल रही।  बाद राजेश खन्ना ने कई फिल्में की, लेकिन सफलता की वैसी कहानी वे दोहरा नहीं सके। राजेश ने उस समय कई महत्वपूर्ण फिल्में ठुकरा दी, जो बाद में अमिताभ को मिली। यही फिल्में अमिताभ के सुपरस्टार बनने की सीढ़ियां साबित हुईं।
अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना को प्रतिद्वंद्वी माना जाता था। दोनों ने आनंद और नमक हराम नामक फिल्मों में साथ काम किया है। दोनों ही सुपरहिट रही रोमांटिक हीरो राजेश दिल के मामले में भी रोमांटिक निकले। अंजू महेन्द्रू से उनका जमकर अफेयर चला, लेकिन फिर ब्रेकअप हो गया। राजेश खन्ना ने अचानक डिम्पल कपाड़िया से शादी कर करोड़ों लड़कियों के दिल तोड़ दिए। समुंदर किनारे चांदनी रात में डिम्पल और राजेश साथ घूम रहे थे। अचानक उस दौर के सुपरस्टार राजेश ने कमसिन डिम्पल के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया जिसे डिम्पल ठुकरा नहीं पाईं। शादी के वक्त डिम्पल की उम्र राजेश से लगभग आधी थी। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि  राजेश-डिम्पल की शादी की एक छोटी-सी फिल्म उस समय देश भर के थिएटर्स में फिल्म शुरू होने के पहले दिखाई जाती थी।  90 के दशक में फिल्मों में कुछ असफलता के बाद राजेश खन्ना  राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए। कांग्रेस  की तरफ से लोकसभा  चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी को कड़ी टक्कर दी और शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर 1992 से 1996 के बीच नई दिल्ली से लोकसभा से सांसद बनें । बाद में उनका राजनीति से मोहभंग हो गया।  काका का कहना था कि वे अपनी जिंदगी से बेहद खुश थे। दोबारा मौका मिला तो वे फिर राजेश खन्ना बनना चाहेंगे और वही गलतियां दोहराएंगे। लगभग 180 फिल्म में काम करने वाले राजेश खन्ना ने श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेअर पुरस्कार तीन बार जीता और चैदह बार वे नॉमिनेट हुए। वर्तमान दौर के सुपरस्टार शाहरुख खान का कहना है कि राजेश ने अपने जमाने में जो लोकप्रियता हासिल की थी, उसे कोई नहीं छू सकता है। आज राजेश खन्ना हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका अभिनय ,उनकी जिंदादिली ,उनकी अदाएं हमेशा याद आयेगी  । वास्तव में वह सुपरस्टार थे ,सुपरस्टार है और सुपरस्टार रहेंगे । आज आंनद’ ,’चिर आनंदमें समाहित हो गया ,उनको भावभीनी श्रधांजली ।

DNA Article on Rajesh Khanna-A Tribute

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Tuesday, July 3, 2012

“बाबा” कहते थे -कविता


ये कविता मेरे परम पूज्यनीय बाबा स्वर्गीय गोरेलाल द्विवेदी को समर्पित है.आज मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ सिर्फ उनकी वजह से हूँ .मेरे पहले गुरु वही थे ,आज गुरु पूर्णिमा पर बाबा को शत शत नमन

“बाबा” कहते थे 

बाबा ने बड़ा किया
बाबा ने ही खड़ा किया
बाबा ने ही विचार दिए
बाबा ने ही जीवन दृष्टी दी
“बाबा” कहते थे  बबलू
बड़ा आदमी नहीं बनना है
सिर्फ साधारण आदमी बनना है
जो दूसरों के काम आयें
ऐसा आदमी बनना है
जो पाया है ,उससे ज्यादा
देना है परिवार को
समाज को और इस देश को
उनको हमेशा रिश्ते
सहेजते देखा है
रिश्तों को रिश्ता
समझते देखा है
दूसरों के लिए सर्वस्व
अर्पित करते हुए भी देखा है
अहिंसा ,दया और सहनशक्ति
के साथ जीते देखा है
जिंदगी के हर पहलू में
हमेशा इन्ही को
आजमाते देखा है
कहते थे बबलू सपने देखों
सपने ही सच होते है
आगे बढ़ो ,रुको नहीं
ईश्वर सदा साथ है आदमी के
ऐसा ही विश्वास करते देखा है
कहते थे बबलू
सहारे न लो
सिर्फ सहारा बनों
ग़मों के सायों में
दुखों के भूचाल
में भी उन्हें
सदा मुस्कराते देखा है
सिर्फ रिश्तों के लिए
परिवार के लिए
उनको रोते देखा है
पुराने जमाने में भी
उन्हें आधुनिक होते हुए देखा है
परम्परा के साथ नयें विचारों
के संगम को देखा है
गृहस्थ के रूप में भी
संत को देखा है .

स्वरचित –शशांक द्विवेदी


विकास की नींद -कविता संग्रह


विकास की नींद  

कब जागेगें हम
विकास की नींद से
विनाश की ओर है
बढ़ते कदम
क्या दिख नहीं रहा
या हम देखना नहीं चाहते !!
शायद हम देखकर भी
जान कर भी
अनजान बन रहें है
बेहोशी में जी रहें है
ये विकास ही
विनाश की आहात है
हमने भुला दिया इस प्रकृति को
जिसने हमें ,
सब कुछ दिया
आगे भी देती ही रहेगी
लेकिन जब हम
उसके पास भी ,कुछ बचने दे
जमीन को हमने बंजर बना दिया
नदियों ,तालाब ,कुओं को सुखा दिया
जंगल और पहाड़ हमने नष्ट कर दिए
और बना दिया
कंक्रीट का संसार
मशीनों का संसार
आभासी दुनियाँ
हमनें विकास कर लिया
यही भ्रम है
सबमें
यही डुबोयेगा
इस दुनियाँ को
इस मनुष्यता को
अभी भी समय है जागने का
सोचने का
पर ,कब जागेंगे हम
विकास की नींद से  
कथित विकास के बाद
आज पेड़ को देखा
पत्तियों को देखा ,
भवरों और तितलियों को देखा
खुशियों को देखा
लेकिन अब विकास दिख रहा है
कथित विकास के बाद
क्या पेड़ ,पत्तियां
फूल ,भवरें ,तितलियाँ
दिखेगी
झूठी खुशी ,आभासी खुशी
मिलेगी इस
विकास के बाद
मन का चैन
और चेहरे की मुस्कान
भी मिटेगी इस विकास के बाद
इस कथित विकास की बेहोशी से
कब जागेंगे हम
यही विकास
हमारी सदियों का
हमारी आगे की पीढीयों का
सर्वनाश करेगा .

आदमी और सदी का संकट
आदमी बोलता कुछ और है
करता कुछ और है
और सोचता कुछ और है
यही संकट है
इस सदी का
इस पीढ़ी का
यह संकट दूर नहीं होगा
ये बढ़ेगा
और नष्ट करेगा
समूची मानव जाति को
मानव सभ्यता को
क्योंकि जब
आदमी ही
आदमी के
काम नहीं आएगा
तो ये संस्कृति
नष्ट होगी
परस्परता में ही जीवन है
बोलने ,सोचने और करने
की एकरूपता में ,समरसता में
ही जीवन है
इस संकट को दूर करना होगा
आदमी को आदमी
बनना होगा
जो जिन्दा है सिर्फ अपने लिए
उन्हें दूसरों के लिए
भी जीना होगा
मानव सभ्यता के लिए
कुछ करना होगा
परस्परता में ही जीना होगा
आदमी को आदमी बनना होगा .

नोट :आदमी की जगह इंसान ले सकते है
रुकना होगा
भाग रहा है
आदमी
खुद से ,परिवार से
और समाज से भी
वो सिर्फ भाग रहा है
बिना मंजिल के
भाग रहा है
उसे क्या चाहिए
पाता नहीं
जाना कहाँ है
पता नहीं
उसके पास क्या है
ये भी पता नहीं
वो सिर्फ भाग रहा है
अपने मन से
अपनी आत्मा से
भी भाग रहा है
इस जन्म के साथ –साथ
कई जन्मो से भाग रहा है
अब उसे रुकना होगा
कुछ पाने के लिए रुकना होगा
खुद को जानने के लिए
रुकना होगा
अब नहीं रुके तो
फिर भागना होगा
अगले कई जन्मो तक
रुकना होगा ,स्थिर होना होगा
स्वयं में ,अपनी आत्मा में
तभी प्रकाश का
दिया जलेगा ,
नहीं तो अँधेरे रास्तों में ही
भागना होगा
रास्तों और मंजिल के बिना
भागना होगा  
रुकने से ही
अस्तित्व समझ में आएगा
प्रकृति के साथ सह –अस्तित्व
समझ में आएगा
जीवन का मूलमंत्र
समझ में आएगा
तभी खुद ,परिवार
और समाज भी
समझ में आएगा .
आदमी का दर्द
कौन समझेगा
आदमी के दर्द को   
परिवार में और रिश्तों में
सबकी उम्मीदें
सबकी इच्छाएं पूरी
करते करते
जिंदगी बीत रही है
पर उसके सपनों को
कौन समझेगा
कौन पूरी करेगा
उसकी इच्छाएं
वो तो अकेला है
परिवार में
आदमी कम मशीन ज्यादा है
सुबह से शाम तक
और रत से दिन तक
सिर्फ जीता है
परिवार की उम्मीदों के लिए
परिवार के सपनों के लिए
लेकिन उसके सपनों का
क्या होगा
आज वो भी बच्चा
बनना चाहता है
पर कोई बड़ा तो हो
आज वो फिर से
जीना चाहता है
उन्मुक्त होकर
बिना बोझ के
लेकिन परिवार और रिश्तें
उसको देते है समस्याएं
और वो देता है समाधान
वो मशीन है
समस्यायों को सुलझानें की
अब उसमे भावनाएं
नहीं बची
जो थी
वो मर गयी
बिना अभिव्यक्ति के
अब वो
जियेगा तो जरुर
लेकिन
आदमी की तरह नहीं
बल्कि मशीनों की तरह !!
लम्हा –लम्हा
लम्हा लम्हा
वक्त गुजर जायेगा
उसके आसुओं का
सैलाब भी  सूख जायेगा
जिंदगी जीने के लिए
तिनका भी सहारा
बन जायेगा
अंधेरों के इस दौर में
उजाला भी जरुर आएगा
नाकामियों के इस दौर में
हौसला ही काम आएगा
लम्हा –लम्हा
वक्त गुजर जायेगा
कुछ कदम तो बढ़ा
जमाना तेरे पास आएगा
जो दूर हुए थे ,
तेरी नाकामियों को देखकर
वो पास आयेगें तेरी
बुलंदियों को देखकर
लम्हा –लम्हा
वक्त गुजर जायेगा .
स्वरचित –शशांक द्विवेदी