Monday, June 24, 2013

आरटीआई से क्यों डर रहें है राजनीतिक दल

दैनिक जागरण और DNAमें शशांक द्विवेदी का  लेख 
पिछले दिनों केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने का  ऐतिहासिक फैसला किया ।  इस फैसले से सभी राजनीतिक दलों में हलचल मच गयी है ,कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है । सभी दल सीआईसी के इस फैसले के विरुद्ध अपनी अपनी दलील दे रहें है । बीजेपी देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए बड़ी बड़ी बात करती है लेकिन आरटीआई के दायरे में आना उसे मंजूर नहीं है । कांग्रेस आरटीआई को लाने का श्रेय लेती है लकिन खुद इसके दायरे से बाहर रहना चाहती है । जेडी(यू), एनसीपी और सीपीआई (एम) सहित सभी प्रमुख दल इस फैसले का  पुरजोर विरोध कर रहें है । इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों का दोहरा चरित्र सामने आ रहा है  ।
राजनीतिक पार्टियों को डर सता रहा है कि आरटीआई के दायरे में आने से फंड को लेकर कई तरह के सवाल पूछे जाएंगे। राजनीतिक पार्टियों को कॉर्पोरेट घरानों से चंदे के नाम पर मोटी रकम मिलती है। हालांकि, 20 हजार से ज्यादा की रकम पर पार्टियों को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को सूचना देनी होती है। चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली संस्था असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म(एडीआर) का कहना है कि अब चालाकी से पार्टियां 20 हजार से कम की कई किस्तों में पैसा ले रही हैं। ऐसे में पता नहीं चलता है कि किसने कितनी रकम दी है और क्यों दी है।
असल में सत्ता में रहने वाली पार्टी फंड के दम पर कॉर्पोरेट घरानों को जमकर फायदा पहुंचाती है। सरकार दृराजनीतिक दलों-कॉर्पोरेट घरानों का गठजोड़ नयें तरह के भ्रष्टाचार को जन्म देता है । पिछले दिनों कोयला घोटाला में  सस्तें  में कोल ब्लॉक आवंटन इसी तरह का एक मामला है । आवंटित किए गए कोल ब्लॉक  जिन लोगों को मिले है उनसे कांग्रेस और बीजेपी, दोनों पार्टियों को चंदा के नाम पर मोटी रकम मिलती रही है। आरटीआई के दायरे में आने के बाद राजनीतिक दलों से कई  कई टेढ़े सवाल होंगे, जिनके जवाब देने में राजनीतिक पार्टियों को पसीने छूट जाएंगे। मसलन पार्टी फंड के सभी पैसों के स्रोत क्या क्या   है ,किस आधार पर कौन पार्टी टिकट बांट रही है और पैसे लेकर टिकट बेचने समेत कई सवालों से राजनीतिक पार्टियों को दो-चार होना पड़ सकता है।
आर टी आई के दायरे में आने के बाद वास्तविक तौर पर यह भी पता चल जाएगा कि किस पार्टी के पास कितना फंड आया । अभी यह स्तिथि है कि पार्टियां चुनाव आयोग को जो फंड से सम्बंधित जो ब्यौरा उपलब्ध कराती है उसको मानना चुनाव आयोग की बाध्यता बन जाती है ।इस विषय में कोई जाँच न होती है ,न की जाती है जबकि पार्टी फंड के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है ।कार्पोरेट घराने बड़े पैमाने पर अपना काला धन पार्टी फंड के नाम पर  पार्टियों को देते है ।इसी तरह चुनाव के दौरान पार्टी प्रत्याशी भी बड़े पैमाने पर कालेधन का प्रयोग करते है ।

इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले आरटीआई ऐक्टिविस्ट और एडीआर के सुभाष चंद्र अग्रवाल ने कहा कि राजनीति पार्टियों की बेचैनी से ही साफ हो जाता है कि क्यों ये आरटीआई के दायरे में नहीं आना चाहती हैं। वास्तव में सीआईसी के इस फैसले के राजनीति में पारदर्शिता बढ़ेगी और चुनाव सुधार के क्षेत्र में भी एक अहम कदम होगा। दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि आरटीआई जब संसद से पास किया गया था तब इसके दायरे में राजनीतिक पार्टियों को नहीं लाने का फैसला किया था। ऐसे में सीआईसी का यह फैसला संसद का अपमान है। अन्य पार्टियों से अलग इस मामले में आम आदमी पार्टी ने केंद्रीय सूचना आयोग के इस निर्णय की सराहना करते हुए अन्य दलों के लिए एक उदाहरण पेश किया है । आम आदमी पार्टी के संयोजक और देश में सूचना का अधिकार कानून लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अरविंद केजरीवाल शुरू से ही चुनावों में पारदर्शिता के लिए इस तरह के कानून की माँग करते रहें है ।
सीआईसी का यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है। इससे चुनाव सुधार की प्रक्रिया को थोड़ी और गति मिलेगी। आयोग ने साफ किया है कि राजनीतिक पार्टियां भी सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में आती हैं, इसलिए उनसे किसी अन्य सरकारी विभाग की तरह सभी सूचनाएं मांगी जा सकती हैं। आयोग ने कांग्रेस और बीजेपी समेत कई राजनीतिक दलों से कहा है कि वे छह हफ्ते के भीतर अपने यहां केंद्रीय सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी नियुक्त करें। दलों को मांगी गई सूचनाओं की जानकारी चार हफ्ते के भीतर देनी होगी। लेकिन आयोग का यह महत्वपूर्ण निर्णय राजनीतिक दलों को रास नहीं आया है। कुछ दलों की ये दलील भी है कि आरटीआई के अंदर लाने से चुनाव के समय विरोधी दल अनावश्यक अर्जियां दायर कर परेशान करेंगे और उनका काम करना मुश्किल कर देंगे। पर सीआईसी ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि दुरुपयोग की आशंका के आधार पर कानून की वैधता को गलत नहीं ठहराया जा सकता। राजनीतिक दल सिस्टम में पारदर्शिता लाने की बात कहते जरूर हैं, पर वे अपने ऊपर किसी तरह की बंदिश नहीं चाहते। इलेक्शन कमिशन की तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी वे अपने चुनाव खर्च और अपनी संपत्ति का सही-सही ब्योरा देने को तैयार नहीं हैं। वे नहीं बताना चाहते कि उन्हें किस तरह के लोगों से मदद मिल रही है।
असल में हमारे देश में हर स्तर पर एक दोहरा रवैया कायम है। राजनीति में यह कुछ ज्यादा ही है। यहां धनिकों से नोट और गरीबों से वोट लिए जाते हैं। लेकिन कोई खुलकर इसे मानने को तैयार नहीं होता। राजनेताओं को लगता है कि अगर वे अपना वास्तविक खर्च बता देंगे तो गरीब और साधारण लोग शायद उनसे रिश्ता तोड़ लें। किसी में यह स्वीकार करने का साहस नहीं है कि उनकी पार्टी धनी-मानी लोगों की मदद से चलती है।

दूसरी तरफ, किसी पार्टी में इतना भी दम नहीं कि वह सिर्फ आम आदमी के सहयोग से अपना काम चलाए। यह दोहरापन कई तरह की समस्याएं पैदा कर रहा है। विकसित देशों में ऐसी कोई दुविधा नहीं है। अमेरिकी प्रेजिडेंट के इलेक्शन में सारे उम्मीदवार फेडरल इलेक्शन कमिशन के सामने पाई-पाई का हिसाब देते हैं। कोई उम्मीदवार यह बताने में शर्म नहीं महसूस करता कि उसने अमुक कंपनी से या अमुक पूंजीपति से इतने डॉलर लिए। अगर पार्टियां अपने को आम आदमी का हितैषी कहती हैं, तो आम आदमी को सच बताने में उन्हें गुरेज क्यों है? अगर एक नागरिक किसी पार्टी को वोट दे रहा है, तो उसे यह जानने का अधिकार भी है कि वह पार्टी अपना खर्च कैसे चलाती है। 
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Sunday, June 23, 2013

संत कबीर की जयंती

आज संत कबीर की जयंती है ,वही कबीर जिन्होंने अपने दोहों के माध्यम से इस देश में जातिपांति,अंध विश्वास ,रुदिवादिता ,पाखंड ,धार्मिक कट्टरता पर प्रहार किये .लेकिन आज इन्ही कबीर की फोटो लगाकर ,इनके दोहों को लिखकर कुछ पाखंडी कथित दलित चिंतक हर दिन ,हर समय ,हर मुद्दे पर सवर्णों को गरियाते रहते है ...क्या कबीर ने यही शिक्षा दी थी , आज संत कबीर को एक जाति और सम्प्रदाय का बंधक बनाने का प्रयास किया जा रहा है..मेरा कथित दलित चिंतकों से अनुरोध है कि कृपया संत कबीर के नाम का सहारा लेकर सड़ांध और जहर न फैलाये .. बचपन में कबीर के दोहों ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया ,आज भी मै यह मानता हूँ कबीर ने अपने दौर में बड़ी सामजिक क्रांति की थी और उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जिंतने पहले थे ....संत कबीर को उनकी जयंती पर शत -शत नमन ....

उत्तराखंड आपदा के लिए ब्राह्मण दोषी -कथित दलित चिंतक

इस देश में मानसिक रूप से बीमार लोगों की कोई कमी नहीं है उत्तराखंड आपदा पर भी कुछ कथित दलित चिंतक (दिलीप मंडल और उनके चेले ) इसके लिए ब्राह्मण वादियों ,ब्राह्मणों को दोष दे रहें है ...कह रहें है उन्ही की वजह से / बर्गलाने से दलित वहाँ गयें है /जातें है ...इसलिए वहाँ मरे है ,पहले कुंभ में भी इसीलिये मरें थे ...क्या कहें इस पर इनकी इसी बात से समझ में आता है कि इनका दिमाग और नीयत कैसी है ...ये लोग देश की किसी भी समस्या पर /आपदा पर सिर्फ ब्राह्मणों को दोष देते है ....इन लोगों पर तो अब गुस्सा भी नहीं आता सिर्फ दया आती है ...भगवान इन्हें सदबुद्धि दे

Saturday, June 22, 2013

मोबाइल से जुडी कई महत्वपूर्ण बातें

मोबाइल से जुडी कई ऐसी बातें जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती लेकिन मुसीबत के बक्त यह मददगार साबित होती है ।

इमरजेंसी नंबर -
दुनिया भर में मोबाइल का इमरजेंसी नंबर 112 है । अगर आप मोबाइल की कवरेज एरिया से बाहर हैं तो 112 नंबर द्वारा आप उस क्षेत्र के नेटवर्क को सर्च कर लें . ख़ास बात यह हैकि यह नंबर तब भी काम करता है जब आपका कीपैड लौक हो !

जान अभी बाकी है-
मोबाइल जब बैटरी लो दिखाए और उस दौरान जरूरी कॉल करनी हो , ऐसे में आप *3370# डायल करें , आपका मोबाइल फिर से चालू हो जायेगा और आपका सेलफोन बैटरी में 50 प्रतिशत का इजाफा दिखायेगा ! मोबाइल का यह रिजर्व दोबारा चार्ज हो जायेगा जब आप अगली बार मोबाइल को हमेशा की तरह चार्ज करेंगे !

मोबाइल चोरी होने पर-
मोबाइल फोन चोरी होने की स्थिति में सबसे पहले जरूरत होती है , फोन को निष्क्रिय करने की ताकि चोर उसका दुरुपयोग न कर सके । अपनेफोन के सीरियल नंबर को चेक करने के लिए *#06# दबाएँ . इसे दबाते हीं आपकी स्क्रीन पर 15 डिजिट का कोड नंबर आयेगा . इसे नोट कर लें और किसी सुरक्षित स्थान पर रखें . जब आपका फोन खो जाए उस दौरान अपने सर्विस प्रोवाइडर को ये कोड देंगे तो वह आपके हैण्ड सेट को ब्लोक कर देगा !

कार की चाभी खोने पर -
अगर आपकी कार की रिमोट केलेस इंट्री है और गलती से आपकी चाभी कार में बंद रह गयी है और दूसरी चाभी घर पर है तो आपका मोबाइल काम आ सकता है ! घर में किसी व्यक्ति के मोबाइल फोन पर कॉल करें ! घर में बैठे व्यक्ति से कहें कि वह अपने मोबाइल को होल्ड रखकर कार की चाभी के पास ले जाएँ और चाभी के अनलॉक बटन को दबाये साथ ही आप अपने मोबाइल फोन को कार के दरवाजे केपास रखें , दरवाजा खुल जायेगा!



Thursday, June 20, 2013

पत्नी और घड़ी के बीच का संबंध!

पत्नी और घड़ी के बीच का संबंध!
1. घड़ी चौबीस घंटे टिक-टिक करती रहती है और पत्नी चौबीस घंटे चिक-चिक करती रहती है।

2. घड़ी की सूइयाँ घूम-फिर कर वहीं आ जाती हैं और उसी प्रकार पत्नी को आप कितना भी समझा लो, वो घूम-फिर कर वहीं आ जायेगी और अपनी ही बात मनवायेगी।

3. घड़ी में जब 12 बजते हैं तो तीनों सूइयाँ एक दिखाई देती हैं, लेकिन पत्नी के जब 12 बजते हैं तो एक पत्नी भी 6-6 दिखाई देती है।

4. घड़ी के अलार्म बजने का फिक्स टाइम है लेकिन पत्नी के अलार्म बजने का कोई फिक्स टाइम नहीं है।

5. घड़ी बिगड़ जाये तो रूक जाती है लेकिन जब पत्नी बिगड़ जाये तो शुरू हो जाती है।

6. घड़ी बिगड़ जाये तो मैकेनिक के यहाँ जाती है पत्नी बिगड़ जाये तो मायके जाती है।

7. घड़ी को चार्ज करने के लिये सेल(बैटरी) का प्रयोग होता है और पत्नी को चार्ज करने के लिये सैलेरी का प्रयोग होता है।

8. लेकिन सबसे बड़ा अंतर ये कि घड़ी को जब आपका दिल चाहे बदल सकते हैं मगर पत्नी को चाह कर भी बदल नहीं सकते उल्टा पत्नी के हिसाब से आपको खुद को बदलना पड़ता है।

Tuesday, June 18, 2013

हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता की अवधारणा - एक गलतफहमी

लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं |
लेकिन ऐसा है नहीं और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है | दरअसल हमारे वेदों में उल्लेख है 33 “कोटि” देवी-
देवता |अब “कोटि” का अर्थ “प्रकार” भी होता है और “करोड़” भी | तो मूर्खों ने उसे हिंदी में करोड़ पढना शुरू कर दिया जबकि वेदों का तात्पर्य 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है (उच्च कोटि.. निम्न कोटि इत्यादि शब्दतो आपने सुना ही होगा जिसका अर्थ भी करोड़ ना होकर प्रकार होता है). ये एक ऐसी भूल है जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया | इसे आप इस निम्नलिखित उदहारण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं | अगर कोई कहता है कि बच्चों को “कमरे में बंद रखा” गया है | और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि बच्चों को कमरे में ” बंदर खा गया ” है| (बंद रखा=बंदर खा) कुछ ऐसी ही भूल अनुवादकों से हुई अथवा जानबूझ कर दिया गया ताकि, इसे HIGHLIGHT किया जा सके | सिर्फ इतना ही नहीं हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफउल्लेख है कि “निरंजनो निराकारो एको देवो महेश्वरः” अर्थात इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं | साथ ही यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि हिन्दू सनातन धर्म मानव की उत्पत्तिके साथ ही बना है और प्राकृतिक है इसीलिए हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है और प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है ताकि लोगप्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें |
जैसे कि :
1. गंगा को देवी माना जाता है क्योंकि गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं|
2. गाय को माता कहा जाता है क्योंकि गाय का दूध अमृततुल्य और, उनका गोबर एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं |
3. तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं |
4. इसी तरह वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं | यही कारण है कि हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है | अतः प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है | यही कारण है कि हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य, चन्द्र, वरुण, वायु , अग्नि को भी देवता माना गया है और इसी प्रकार कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं | इसीलिए, आपलोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें क्योंकि ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं | 
कुल 33 प्रकार के देवता हैं :
12 आदित्य है : धाता , मित् , अर्यमा , शक्र , वरुण , अंश , भग , विवस्वान , पूषा , सविता , त्वष्टा , एवं विष्णु |
8 वसु हैं : धर , ध्रुव ,सोम , अह , अनिल , अनल , प्रत्युष एवं प्रभाष
11 रूद्र हैं : हर , बहुरूप, त्र्यम्बक , अपराजिता , वृषाकपि , शम्भू , कपर्दी , रेवत , म्रग्व्यध , शर्व तथा कपाली |
2 अश्विनी कुमार हैं |
कुल : 12 +8 +11 +2 =33

Thursday, June 13, 2013

दलित चिंतन का ढ़ोंग करते कथित दलित चिंतक

शशांक द्विवेदी 
इस देश में दो तरह के दलित चिंतक है एक वो है जो वाकई में दलित उत्थान चाहते है ,उनके लिए लिखते है जैसे डॉ तुलसी राम (पिछले दिनों तहलका में प्रकाशित उनका इंटरव्यू कई मामलों में महत्वपूर्ण था ,ऐतिहासिक था ) दूसरे तरह के दलित चिंतक दिलीप मंडल जैसे लोग है जो दलितों को विशुद्ध बेवकूफ बनाते है इसको एक उदहारण से समझिये पिछले दिनों उन्होंने मायावती द्वारा ब्राह्मणों को टिकट देने के मामलें में (घोषित 36 में 19 लोकसभा टिकट )उन्होंने अपने वाल में लिखा था की "जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी" जबकि 90 के दशक में इस नारे का मतलब कुछ और था लेकिन आज वक्त बदला और अचानक ब्राह्मण ही इनके आराध्य हो गए और बसपा में उनकी हिस्सेदारी और भागीदारी दोनों ही जबरदस्त तरीके से बढ़ गयी ,बसपा के टिकटों को देखें तो 70 फीसदी सवर्णों को मिल रहें है ...फिर भी उन्होंने मायावती के फैसले का समर्थन और स्वागत किया .जबकि डॉ तुलसी राम ने इस बात की आलोचना की थी .फिर दिलीप मंडल ने अपने वाल में लिखा की ब्राह्मणों का तुष्टीकरण (जैसे अल्पसंख्यकों का )हो रहा है तो मै ये समझ नही पा रहा हूँ की ६० फीसदी टिकट सिर्फ ब्राह्मणों को टिकट देने से तुष्टीकरण कैसे हो गया (क्या आज तक किसी पार्टी ने दलितों को या मुस्लिमों को इतनी ज्यादा मात्र में टिकट दियें है ) ये तो मायावती की मजबूरी और बदलती राजनीति की तरफ इशारा करता है ...कुलमिलाकर कार्पोरेट पत्रकारिता के पक्षधर दिलीप मंडल वैसे ही दलितों की चिंतक है जैसे मायावती है ...(मतलब जिन दलितों का वोट लिया आज उन्ही को दरकिनार कर दिया ) ..डॉ तुलसी राम जैसे लोग सम्मान के पात्र है जो वाकई में दलित उत्थान चाहते है..उनके लिए काम करतें है ..सिर्फ दिखावा नहीं करतें...

Saturday, June 8, 2013

मैच फिक्सरों को इतनी मीडिया कवरेज क्यों ..

मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी में शामिल अंकित चव्हाण की शादी की फोटो आज पंजाब केसरी के पहले पेज पर और कल रात में कई न्यूज चैनलों पर उसकी फुटेज देखकर मै बहुत व्यथित रहा .सोच रहा था कि अंकित चव्हाण ने ऐसा क्या महान काम किया जो मीडिया उसको इतनी कवरेज दे रहा है ..अखबार पहले पेज पर उसकी शादी की फोटो छाप रहें है ...भारतीय मीडिया किस दिशा में जा रहा है ये स्पष्ट दिख रहा है ..एक चोर /सट्टेबाज /फिक्सर को सेलिब्रेटी बना कर पेश किया जा रहा है ..खैर मीडिया के मठाधीशो से ईमानदारी /नैतिकता की उम्मीद करना मूर्खता ही है ...काश वो इन सब बातों को समझ पाते ..
u can also read in this link is 
http://www.jansattaexpress.net/electronic/872.html

पर्यावरण.गंगा और हम

गंगा एक्शन प्लान सरकार का सबसे बड़ा छलावा
पिछले महीने बेटी के मुंडन संस्कार के लिए संगम (इलाहाबाद) जाना हुआ .गंगा स्नान करते समय मेरी 3 साल की बेटी ने तोतली जबान से कहा पापा पानी गंदा है ,मैंने कहाँ हाँ .उसने फिर पूँछा पानी क्यों गंदा है ?अब मै उसे क्या बताता कि पानी क्यों गंदा है ,ये सोच ही रहा था तो उसने कहा इसको हटा दो (पानी में फूल ,नारियल इत्यादि )तो अच्छा हो जायेगा न !!..उसकी इस बात से मै हतप्रभ रह गया ..कई दिनों तक सोचता रहा कि जो बात एक छोटी सी बच्ची की समझ में आ जाती है वो सरकारों /नेताओं को क्यों समझ में नहीं आती ?गंगा एक्शन प्लान सरकार का सबसे बड़ा छलावा है जिसमें अरबों रुपयें कागज पर खर्च किये जा रहें है ..भाई आप गंगा में गंदगी /केमिकल डालना छोड़ दे तो गंगा ,यमुना एक साल के भीतर पूरी तरह से स्वच्छ हो जायेगी ..इसमें हजारों करोड़ रुपये खर्च करने की जरुरत ही नहीं है ..ये पैसे तो सिर्फ भ्रष्टाचार /जेब में भरने के लिए है ...सोचता हूँ जो बात एक बच्चे की समझ में आ जाती है वो बातें सरकारों के समझ में क्यों नहीं आती ?बड़ी -बड़ी बैठके होती है ,पर्यावरण को बचाने के लिए करोड़ों रुपये बैठकों में खर्च हो जाता है ..लेकिन होता कुछ नहीं है ..हम सब लोग जिस कथित विकास की बेहोशी में जी रहें है एक दिन यही हमारे विनाश का कारण बनेगी ..आप देख लेना ..

ईर्ष्यालु लोग भी बड़ी किस्मत से मिलते है..

अगर आप लोगों की इर्ष्या और जलन का शिकार हो रहें है तो इसका सीधा मतलब है आप तरक्की कर रहें है ..अगर लोग आप पर नजर रख रहें है मतलब आप क्या कर रहें है ,कब कर रहें है ,कहाँ कर रहें है ,क्या खा -पी रहें है,पूरा खा रहें है या छोड़ भी रहें है..क्या पहन रहें है आदि आदि ...उनका अधिकाँश समय आपकी गतिविधियों को ट्रैक करने /शिकायत करने /चुगली करने में जाता है ...तो इसका सीधा मतलब है आप सेलिब्रेटी बनने की तरफ अग्रसर है ,या आप में कुछ खास है विशिष्ट है जो उनमे नहीं है ...इसलिए जितना ज्यादा आपके ईर्ष्यालुओं की संख्या बढ़ेगी ..आपकी सफलता भी बढ़ती जायेगी ..ईर्ष्यालु लोग भी बड़ी किस्मत से मिलते है ,सबकी नसीब में नहीं होतें है ..इसलिए मेरी ईश्वर से कामना है की मेरे ईर्ष्यालु मित्रों की संख्या लगातार बढ़ती रहें ..कभी कम न हो .....

Saturday, June 1, 2013

धर्म और लोकतंत्र

असग़र वजाहत
हाल ही में बसपा के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क सदन से उठ कर चले गए थे क्योंकि वहां वंदे मातरम् की धुन बज रही थी। अगर किसी का इस्लाम इतना कमजोर है कि वह वंदे मातरम् की धुन से खंडित हो जाता है तो उसे पहले अपने धर्म को पक्का करने पर ध्यान देना चाहिए। बर्क को यह भी मालूम होना चाहिए कि वे किसी इस्लामी देश में नहीं बल्कि संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं, जहां मुसलमान कई मुसलिम देशों से ज्यादा सुरक्षित और सम्मानित हैं। बर्क साहब अगर वंदे मातरम् की धुन को इस्लाम-विरोधी मानते हैं तो क्या वे हिंदू-बहुल देश में रहने को गैर-इस्लामी नहीं मानते, जबकि अब भी दुनिया में इस्लामी देश हैं जहां जाया जा सकता है। बर्क साहब का इस्लाम हिंदू वोट लेने और सांसद हो जाने की अनुमति तो देता है, देश और संसद की आचार संहिता पर विश्वास करने की अनुमति नहीं देता यह आश्चर्य की बात है। धर्म की आग पर रोटियां सेंकने वाले ही समाज में द्वेष, घृणा और अलगाव पैदा कर रहे हैं, क्योंकि संभवत: उन्हें अपने इन कृत्यों से धर्मांध मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है। उन्हें शायद नहीं मालूम कि वे मुसलमानों का जितना अहित कर रहे हैं उतना कोई और नहीं कर रहा है।