"दामिनी " की मौत के बाद से मन बहुत व्यथित है ,दामिनी की मौत एक सामन्य मौत नहीं है ये इंसानियत की मौत है ,आम आदमी के भरोसे की मौत है ,युवाओं/महिलाओं के उम्मीदों की मौत है ...इस मौत में हम सब गुनहगार है ..इस मौत ने हम सब के सामने ,समाज के सामने बहुत सारे प्रश्न खड़े कर दिए है जिनका उत्तर अगर अभी नहीं तलाशा गया तो शायद भविष्य हमें प्रश्न करने का भी मौका नहीं मिलेगा ...यह समय किसी और पर आक्षेप लगाने का नहीं बल्कि अपने भीतर झाकने का है ..दामिनी को सच्ची श्रधांजली सिर्फ यही हो सकती है कि आज से ही हम सब महिलाओं के प्रति अपने व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाएं ,उन्हें घर के अंदर और बाहर सम्मान दे ....ईश्वर करे ये जघन्यतम कृत्य किसी भी बेटी के साथ कभी न हो ...दामिनी को भावभीनी और अश्रुपूर्ण श्रधांजली..
Monday, December 31, 2012
Saturday, December 22, 2012
गंगा संरक्षण पर आईआईटी की पहल
अरुण तिवारी
यूंतो गंगा संरक्षण का यह सन्नाटा दौर है। कहीं कोई बवाल न हो, इस डर से
सरकार ने गंगा पर बनी अंतरमंत्रालयी समिति की रिपोर्ट को कुंभ तक के लिए
टाल दिया है। ताज्जुब है कि इसका आभास होने के बावजूद 17 जून, 2012 को
दिल्ली के जंतर-मंतर पर साधु-संतों के दिखाये दम ने चुप्पी साध ली है!
उत्तराखंड की पनबिजली परियोजनाओं पर सवाल उठाते-उठाते जनता-नेता जैसे थक
चुके हैं। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण को लेकर विशेषज्ञ सदस्य खुद
उठाये सवालों के जवाब नहीं मांग रहे हैं लेकिन इस सन्नाटे के दौर में
आईआईटी ने उम्मीद की छोटी सी खिड़की खोली है। यदि निर्मल-अविरल गंगा चाहिए,
तो जरूरी होगा सभी की राय का सम्मान और साझेदारी का ऐलान। आईआईटी, कानपुर
ने दिल्ली में त्रिदिवसीय चर्चा आयोजित कर यही संदेश देने की कोशिश की।
उसने ऐसे कई सुझावों से सहमति भी जताई है, लंबे समय से गंगा आंदोलनकारी
जिनकी मांग करते रहे हैं जैसे जीरो डिस्चार्ज, प्रकृति के लिए ताजा जल और
नदियों की जीवंत पण्राली छेड़े बगैर पनबिजली निर्माण, कार्यक्रम से पहले
नीति, नदी सुरक्षा के लिए कानून, नदियों की जीवंत पण्राली को ‘नैचुरल
पर्सन’ का दर्जा, उपयोगी नवाचारों को मान्यता और जननिगरानी आदि। उद्घाटन
सत्र के दौरान देशी गंगा प्रेमियों से ज्यादा विदेशी निवेशकों व तकनीकी
विशेषज्ञों की मौजूदगी को लेकर शंका व सवाल उठाये जा सकते हैं। योजना सरकार
को स्वीकार्य होगी-नहीं होगी, लागू होगी-नहीं होगी, इस पर भी सवाल हो सकते
हैं; लेकिन यदि आयोजित चर्चा को सच मानें, तो गंगा योजना को लेकर आईआईटी
ने खुले दिमाग का परिचय दिया है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन
पर्यावरणीय प्रबंधन योजना-2020 तैयार करने का संयुक्त जिम्मा देश के सात
प्रमुख आईआईटी संस्थानों के पास है। आईआईटी, कानपुर और इसके अकादमिक
प्रतिनिधि डॉ. विनोद तारे की भूमिका योजना निर्माण कार्य में संयोजक की है।
सभी की राय का सम्मान करने का निर्णय खासतौर पर डॉ विनोद तारे की निजी
सोच व प्रयासों का परिणाम है। गंगा कार्य योजना के योजनाकारों व
क्रियान्वयन के कर्णधारों ने यही नहीं किया था। कालांतर में गंगा कार्य
योजना के फेल होने का यह सबसे बड़ा कारण बना। उन्होंने इस सच को छिपाने की
भी कोशिश नहीं की कि सरकारी अमले के पास भारत के जल संसाधन की वस्तुस्थिति
की ताजा और समग्र जानकारी आज भी उपलब्ध नहीं है। डॉ तारे ने योजना से पहले
उसका नीति दस्तावेज, सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए कानून और
नवाचारों को भी जरूरी माना। सब जानते हैं कि नदी पूर्णत: प्राकृतिक व
संपूर्ण जीवंत पण्राली है। इसे ‘नैचुरल पर्सन’ के संवैधानिक दर्जे की
मांग हाल में जलबिरादरी के मेरठ सम्मेलन में उठी थी। डॉ. तारे ने इससे
सहमति जताई कि नदियों के अधिकार व उनके साथ हमारे व्यवहार की मर्यादा इसी
दज्रे से हासिल की जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के सफल
प्रबंधन के बगैर किसी भी राष्ट्र का सतत-स्वावलंबी आर्थिक विकास संभव नहीं।
अत: सुनिश्चित करना होगा कि नदी पण्राली को नुकसान पहुंचाये बगैर पनबिजली
निर्माण हो।इसके लिए क्या उचित व मान्य तकनीक हो सकती है? योजना इस पर काम करेगी।
उन्होंने योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए व्यापक व विकेन्द्रित जननिगरानी
को भी उपयोगी माना। माना गया कि उद्योगों, होटलों व ऐसे अन्य व्यावसायिक
उपक्रमों व रिहायशी क्षेत्रों से निकलने वाले शोधित- अशोधित मल-अवजल को
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी रूप में गंगा और उसकी सहायक धाराओं और प्राकृतिक
नालों में डालना पूरी तरह प्रतिबंधित हो। यह मांग पहली बार गंगा ज्ञान
आयोग अनुशंसा रिपोर्ट-2008 के जरिए सरकार के सामने रखी गई थी। गंगा संरक्षण
के काम से जुड़े अधिकारी व तकनीकी लोग इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठाते
रहे। सुखद है कि गंगा योजना ने ‘जीरो डिस्चार्ज’ हासिल करने को अपना
लक्ष्य बनाया है। हालांकि प्रस्तावित लक्ष्य को औद्योगिक अवजल के अलावा एक
लाख से अधिक आबादी यानी ए-श्रेणी शहरों के सीवेज तक सीमित रखा गया है,
बावजूद इसके ‘जीरो डिस्चार्ज’ को लक्ष्य बनाना सकारात्मक संकेत है।
सवाल है, तो सिर्फ यही कि ‘जीरो डिस्चार्ज’ लक्ष्य प्राप्ति की अवधि 25
से 30 साल रखी गई है और अनुमानित खर्च है सौ बिलियन डॉलर यानी पांच लाख
करोड़ रुपये। इसके तौर-तरीके, व्यावहारिकता व संभावित दुष्प्रभावों की अभी
से जांच जरूरी होगी। अवैज्ञानिक सिंचाई को अनुशासित कर नदी प्रवाह बनाये
रखने वाला बहुत सारा भूजल तथा नहरों के जरिए पहुंचा सतही जल बचाया जा सकता
है। रासायानिक उर्वरकों का प्रयोग प्रदूषण व पानी का खपत दोनों बढ़ाता है।
कीटनाशकों का जहर बांटने का काम है ही। इन समस्याओं से निजात के लिए फसल
चक्र में बदलाव करना होगा। मिश्रित खेती को प्राथमिकता देनी होगी। सिक्किम
ने जैविक कृषि राज्य बनने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। पूरे देश की
कृषि को ही जैविक कृषि की ओर मोङ़ना होगा, तभी हमारा खान-पान-स्वास्थ्य,
मिट्टी-पानी-नदियां यानी पूरी कुदरत रासायनिक उर्वरकों के जहर से बच सकती
है। योजना इससे भी इत्तेफाक रखती है कि ताजा पानी प्रकृति के लिए हो और
उद्योग, ऊर्जा, कृकृषि, निर्माण जैसी विकास की आवश्यकताओं के लिए ‘वेस्ट वाटर’ यानी अवजल
का इस्तेमाल हो। योजनाकारों ने औद्योगिक- व्यावसायिक-बागवानी प्रयोग के
लिए जलापूर्ति की लागत के बराबर वसूली का प्रस्ताव रखा है। नीतिगत तौर पर
यह तय करने व व्यावहारिक तौर पर लागू करने से ही मल व अवजल का शोधन तथा
पुन: उपयोग सुनिश्चित होगा। उक्त नीतिगत उपायों को ‘नेशनल गंगा रिवर
बेसिन एन्वायरन्मेंट मैनेजमेंट प्लान’ में जगह देकर आईआईटी संस्थानों ने
नायाब पहल की है। लेकिन योजना लक्ष्य से भटके नहीं और सरकार सकारात्मक
बिंदु लागू करे, कंपनियां लूटकर न ले जाने पायें; जन-जन को इसके लिए जागते
रहना होगा।(ref-sahara)
Friday, December 21, 2012
आरक्षण लेकिन कब तक
आरक्षण लेकिन कब तक ....कोई तो समय सीमा होनी
चाहिए ,आरक्षण के बाद अब प्रमोशन में भी आरक्षण ..कांग्रेस अपने घटियापन से
कभी समझौता नहीं करती ,हमेशा घटिया से घटिया फैसले लेती है लेकिन इस बार
बीजेपी ने भी प्रमोशन में आरक्षण बिल का समर्थन करके ये साबित कर दिया कि
इस पार्टी कि न कोई दशा है न कोई दिशा ...मैंने कई मुद्दों पर बीजेपी का
समर्थन किया लेकिन आज मुझे बहुत ठेस पहुँची है ...वास्तव में बीजेपी और कांग्रेस
में सबसे घटिया पार्टी बनने की होड है ...दोनों एक ही है बस सिर्फ नाम का
फर्क है ..सत्ता पाने के बाद दोनों का चरित्र एक जैसा ही हो जाता है ..सच
पुछा जाए तो इस बिल के पारित होने से भाजपा को तो कुछ भी हासिल नहीं होगा
,फायदा सिर्फ मायावती को होगा ...जिन मतदाताओं के सहारे बीजेपी राजनीति कर
रही है उसने उन्ही लोगों के साथ विश्वासघात किया है ..ये फैसला बीजेपी की
ताबूत में आख़िरी कील जरुर साबित होगा ...
समाज पर कलंक
दिल्ली गैंगरेप की घटना हमारे समाज पर कलंक है
,इस घटना के बारे में सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ..सोच कर स्तब्ध हूँ
कि देश की राजधानी ही सुरक्षित नहीं है ..लगता है सरकारें और पुलिस
बेशर्म हो गयी है . लेकिन हमारा समाज और हम सब भी कही न कही जिम्मेदार है
इन घटनाओं के बढ़ने के लिए ....जघन्यतम कृत्य की शिकार उस लड़की के प्रति
मेरी गहरी सवेदना है ,ईश्वर उसको जल्द ठीक करे और साहस दे ...मै सिर्फ इतना
कहना चाहता हूँ कि इस घटना के आरोपियों को हर हाल में मौत की सजा होनी
चाहिए ...अच्छा तो यह होता जब उन्हें इस जघन्यतम कृत्य के लिए भरे चौराहे
पर गोली मार दी जाये ...जिनमे मनुष्यता नहीं है उन्हें भी मनुष्यों के बीच
रहने का अधिकार नहीं है ...
इंडिया टूडे की नंगई
इंडिया टूडे के कार्यकारी संपादक आजकल अच्छा
महसूस कर रहें होगे .. पिछले दिनों ही २ सेक्स सर्वेक्षण “उभार की सनक “और
“छोटे शहर बने कामक्षेत्र “छापा था वो भी पूरे नंगे कवर पेज के साथ ..बहुत
तेजी से उनकी नंगई समाज में असर कर रही है ..इनकी देखादेखी में लगभग सभी
प्रमुख पत्रिकाए सेक्स सर्वेक्षणों पर ध्यान दे रही है और जम कर छाप भी रही
है ,दिल्ली गैंग रेप के दोषियों को तो देर सबेर सजा मिल ही जायेगी लेकिन
इन लोगों का क्या करें जो खुलेआम समाज में मीडिया के माध्यम सेक्स परोस
रहें है और नंगई फैला रहें है ...
Tuesday, December 18, 2012
तुष्टीकरण की राजनीति
पिछले दिनों पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक की भारत यात्रा के
दौरान भी भारत सरकार ने पाकिस्तान में
ध्वस्त हुए 100 साल पुराने मंदिर और 40 हिंदू परिवार के पलायन का मुद्दा नहीं उठाया .जबकि वहाँ पर हिंदू आबादी 75 लाख से घटाकर 18 लाख हो
गयी है और लगभग सभी प्रमुख मंदिर ध्वस्त कर दिए गए . रहमान मलिक मुंबई हमले की
तुलना बाबरी मस्जिद कर गए और अबू जिंदाल को रा का ही एजेंट बता दिया .उन्होंने
भारत में खूब विवादास्पद बयांन दिए .लेकिन भारत बैकफुट पर ही रहा .पाकिस्तान में
ध्वस्त मंदिर के मुद्दे पर विहिप ,संघ और
भाजपा के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तानी हाई कमीशन और अजमेर में पाकिस्तान के संसदीय
प्रतिनिधिमंडल को रोक कर ज्ञापन दिया .मै यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या ये
मुद्दा विहिप ,संघ या भाजपा का है ?क्या इस मुद्दे पर भारत की केंद्रीय
सरकार को कोई राजनयिक पहल नहीं करनी चाहिए ?आज देश में ऐसे हालात हो गए है कि जो हिंदुओं की बात करता है उसे सांप्रदायिक समझा
जाता है .यही वजह है कि पाकिस्तानी हिंदुओं से जुड़े इस मुद्दे को केंद्र सरकार
गंभीरता से नहीं ले रही है. क्या ये तुष्टीकरण की राजनीति नहीं है ? क्या
पाकिस्तानी हिन्दुओ को उनके हाल पर ही छोड़ देना चाहिए ?ये कुछ ऐसे सवाल है जिनका
जवाब देश चाहता है .
Monday, December 17, 2012
अस्तित्व के लिए
आदमी गिरता है
कई बार ,
टूटता है कई बार
पर संभल नहीं पाता
या संभालना ही नहीं
चाहता
वो जानता है कि यहाँ
दलदल है
वो मानता है कि
रास्ता गलत है
लेकिन फिर भी
आदमी चलता है
उसी रास्ते पर
क्योंकि
सही रास्ते ने
उसे कुछ नहीं दिया
ईमानदारी ने उसे
दी है सिर्फ
‘ठोकरें’
जिंदगी की ,समाज की
,परिवार की ,
ये ठोकरें
उसे लगती है दिल में
,
कभी कभी ये ठोकरें
चुनौती देती है
“अस्तित्व” को
तब वह सोचता है
रास्ता बदलनें की
जीवन को बदलनें की
तब वह जिंदगी के
रास्ते बदलता है
जिंदगी के आयाम
बदलता है
अच्छाई से बुराई पर
चलता है
सच से झूठ को पकड़ता
है
ईमानदार से बेईमान
बनता है
सही से गलत होता है
ये सब वो करता है
अपने जीवन को बचाने
के लिए
अपने अस्तित्व को
बचाने के लिए
शशांक द्विवेदी
सुरक्षाचक्र
कुछ करने से पहले
आदमी चाहता है
एक “सुरक्षाचक्र”,
जो उसे सुरक्षित करे
आर्थिक और सामाजिक
रूप से ,
“सुरक्षाचक्र” के
कवच
के बाद ही
वह कुछ सार्थक करना
चाहता है समाज के
लिए
देश के लिए
जब उसका पेट भरा है
तभी वह निकलता है
घर से भूखों के लिए
आंदोलन के लिए
अनशन के लिए ,
वो सही है या गलत
इसका फैसला चाहे जो
करे
चाहे जैसे करे ,
लेकिन सच तो यह है
कि
आज भूखे पेट
कोई भी आंदोलन नहीं
होता
कोई भी लेखन नहीं
होता !!
शशांक द्विवेदी
आदमी पाना चाहता है !!
आदमी हमेशा
वो क्यों
पाना चाहता है
जो उसने दिया ही
नहीं ,
आदमी सम्मान चाहता
है ,
प्यार चाहता है
अपने बच्चों से
लेकिन
उसने तो कभी
प्यार दिया ही नहीं
बच्चों को
अपनेपन का एहसास
कराया ही नहीं
इस खोखली और आभासी
दुनियाँ में
उन्हें छोड़ दिया
“मशीनों के हवाले “
और सिर्फ
“मशीनों के सहारे “
उन्हें सब कुछ दिया
लेकिन ‘वक्त’ नहीं
दिया
अब जब तुमने ही
‘वक्त ‘ नहीं दिया
तो बच्चे तुम्हे
‘ वक्त ‘ कैसे देंगे
,
शायद हम भूल गए
प्रकृति का ये
सिद्धांत
जो हम दूसरों को
देते है
वही हमें मिलता है
...
शशांक द्विवेदी
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