Wednesday, October 7, 2015

दादरी में कथित सेकुलरों ने दिया सांप्रदायिक रंग

शशांक द्विवेदी 
दादरी में जो हुआ वो गलत हुआ लेकिन उसके बाद जो हुआ वो तो और भी ज्यादा ग़लत है .जितनी मेरी समझ है उसके अनुसार दादरी का मामला सुनियोजित नही था ,ये एक अफवाह के बाद हुई दुर्घटना है जिसे बाद में सेकुलर लोगों ने सांप्रदायिक रंग दे दिया ,इस मामले पर टीवी चैनलों की बेवजह रिपोर्टिंग और तूल देने से यह और बिगड़ गया .अब मुख्य सवाल यह है कि जिन लोगों ने अख़लाक़ को मारा वो तो दोषी है ही लेकिन बाद में जिन बुद्धिजीवियों /सेकुलर लोगों ने इसे जबर्दस्त तूल दिया क्या वो दोषी नहीं है ?काटजू ने कहा ,शोभा डे ने कहा कि हमनें गौमांस खाया ,क्या कर लोगों ,केरल में वामपंथियों ने बाकायदा आयोजन करके गौमांस खाया ...क्या इस सबसे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होगी ? मै यहाँ हिन्दू –मुस्लिम की बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि सीधे सीधे यह कह रहा हूँ कि ये कैसा वामपंथ है ,ये कैसा सेकुलरिज्म है जिसे हिन्दुओं की भावनाएं भड़काने या आहत करने में आनंद आ रहा है .ये बात भी यहाँ जानना जरुरी है कि ये सब लोग मुस्लिमों के साथ भी नहीं है बल्कि ये वो लोग है जो उनका सबसे बड़ा नुक्सान कर रहें है .आखिर ये वही बुद्धिजीवी है जिन्होंने दादरी के बाद इतना रायता फ़ैला दिया कि स्पष्ट तौर पर हिन्दू –मुस्लिम ध्रुवीकरण दिख रहा है .हर बार की तरह ,दादरी के बाद फिर मोदी को ये लोग गरियाने लगे ,दोषी बताने लगे लेकिन मुस्लिम समुदाय को ये सोचना होगा कि इन बुद्धिजीवियों के विधवा विलाप से किसे  फ़ायदा  होगा ?सीधी सी बात है इससे मोदी और भाजपा को ही फ़ायदा होगा क्योकि जब मुस्लिम एक तरफ होगा तो हिन्दुओ में भी यही भावना आयेगी ..कहने का मतलब सीधा है कि सेकुलर लोगों ही दादरी को सांप्रदायिक रंग दे दिया..जिसका सीधा फायदा ग़ाली खाने वाली भाजपा और मोदी को ही होगा और हर बार की तरह मुस्लिम समाज को फिर ये बुद्धिजीवी ठग लेंगे ...

Monday, October 5, 2015

हिमानी त्यागी का लेख और कवितायेँ

हिमानी त्यागी
दहेज का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में जो विचार कौंधते है वो हैं ससुराल पक्ष द्वारा लडकी को दहेज के लिये प्रताडित करना,लडकी को ससुराल से निकाल देना या फिर  बारात ले जाने के बाद वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष के सामने माँग रखना और वो माँग पूरी न होने पर बारात का वापस लौट जाना | इन घटनाओं को सुनकर या पढकर हम सभी के मुँह से 'गलत' शब्द निकलता है,हम ऐसा करने वालो को अपराधी करार देते हैं | 
लेकिन यदि इस मुद्दे के दूसरे पक्ष पर गौर किया जाए तो उसमें  शादी की बात आते ही लडके वालो की ओर से पहला सवाल शादी के बजट से सम्बन्धित ही होता है और यदि बजट उनकी इच्छा से कम हो तो उन्हे आगे बात करने में कोई दिलचस्पी नही रहती,इसमे वधू पक्ष भी पीछे नही रहता,लडकी के पिता क्योंकि अच्छा रिश्ता हाथ से नही जाने देना चाहते इसलिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है,भले ही उन्हे कर्ज ही क्यों न लेना पडे | आश्चर्य की बात ये है कि हमारा समाज इसे दहेज नही बल्कि परम्पराओं का नाम देता है |जबकि सच्चाई ये है कि यें परम्पराएँ उस दहेज की मांग से भी ज्यादा खतरनाक है | इन परम्पराओं को निभाने के लिये एक इंसान का पूरा जीवन कर्ज चुकाने में चला जाता है,ये परम्पराएँ एक इंसान की रातों की नींद व दिन का सुकून छीन लेती है |लेकिन अफसोस कि इस बुराई को खत्म करने की तरफ न तो सरकार का ध्यान जाता है और न ही समाज का | 
यदि कोई पिता अपनी बेटी को बेच दे तो वहाँ का समाज उसे अपने साथ बैठने तक नही देता,उस इंसान को समाज से बेदखल कर दिया जाता है लेकिन विडम्बना ही है कि जो लोग खुलेआम बैठकर अपने बेटो का सौदा कर रहे हैं वही समाज उन्हे दुगुनी इज्जत दे रहा है | ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि बेटी का पिता होना किसी भी इंसान को कमजोर होने का एहसास कराता है और यही कमजोरी उसे इस बुराई के सामने झुकने के लिये मजबूर कर देती है | और ये कमजोरी इसलिए है क्योंकि एक तय उम्र के अन्दर बेटी की शादी होनी जरूरी है,यदि ऐसा नही होता तो समाज के ताने जीना मुश्किल कर देते है |
लेकिन क्या इस स्थिति को इसी तरह चलते रहने के लिए छोड देना समझदारी होगी | यदि देश की गुलामी के समय हर कोई यही सोच लेता कि हमारा आजाद होना असम्भव है तो क्या ये कार्य सम्भव हो पाता,यदि उस समय कोई भी अपना जीवन दाँव पर लगाकर ये बीडा न उठाता तो क्या हम आज एक आजाद देश के नागरिक होते |बाल विवाह व लडकियों को शिक्षित न करने जैसी कुप्रथाओं को कुदरत का नियम मानकर यदि कोई भी इस दिशा में प्रयास के लिए आगे न आता तो क्या ये बदलाव सम्भव था |
किसी भी क्षेत्र में बदलाव के लिए किसी न किसी को तो आगे आना ही पडता है |और इस विषय में ये उम्मीद युवाओं से की जा सकती है |देश के युवा इस बुराई को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है | बस जरूरत है तो केवल थोडे साहस व जागरूकता की |
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कमजोर हूँ नही,कमजोर बनाया जाता है मुझे 

जिन्दगी तो मिली पर जीने का अधिकार न मिला,
प्यार तो मिला पर अपनो का एतबार ना मिला,
आज हूँ पिता की "चिन्ता" तो कल पति की "जिम्मेदारी",
क्या बस यही पहचान है मेरी,
बेटा करेगा नाम रोशन ,बेटी तो होती है पराया धन,
यही सुनते-सुनते बीत गया मेरा बचपन,
मैं भी तो थी तुम्हारा ही अंश,फिर क्यूँ बना ली मुझसे इतनी दूरी,
ये नियति थी या थी जमाने की मजबूरी,
कमजोर हूँ नही मैं,कमजोर मुझे बनाया जाता है,
ताउम्र औरों के भरोसे जीना सिखाया जाता है,
गलती पर किसी ओर की,सिर झुकाना सिखाया जाता है,
पाप करे कोई ओर,मुँह मुझे छिपाना सिखाया जाता है,
अस्मिता को अपनी बचाने का यही रास्ता है तेरे पास,
गलत को सहन कर बन्द कर लेना अपनी आवाज,
ये जीवन है पाया या पायी है कोई सजा,
तमाम उम्र बीत गयी पर हमें हमारा वजूद न मिला,
हमसे तो अच्छे हैं यें परिंदे जिनका न कोई समाज है न अधिकारी,
सुबह बेखौफ भरते हैं उँची उडान खुले आसमान मे,और इसी में जी लेते हैं उम्र सारी



Friday, September 11, 2015

डिजिटल इंडिया से बनेगा स्मार्ट इंडिया


शशांक द्विवेदी 
दैनिक जागरण में प्रकाशित 
शहरी भारत की नई तस्वीर
दैनिक जागरण 
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार की 2 सबसे महत्वपूर्ण और महत्वकांक्षी परियोजना “डिजिटल इंडिया “ और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को लॉन्च किया। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट  के अंतर्गत देश भर में 100 स्मार्ट सिटी का निर्माण किया जाएगा इसके साथ ही 500 नगरों के लिए अटल शहरी पुनर्जीवन एवं परिवर्तन मिशन और 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिए आवास योजना भी लॉन्च हुई । इन  परियोजनाओं के परिचालन दिशा-निर्देश, नियमों, लागू करने के ढांचे को केंद्र द्वारा राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, स्थानीय शहरी निकायों के साथ पिछले एक साल के दौरान की गई चर्चा के आधार पर तैयार की गई हैं। पीएम मोदी ने कहा कि हर शहरी गरीब को इस लायक बनाया जाएगा कि उनके पास अपना घर होगा। स्मार्ट सिटी प्रॉजेक्ट के कई फायदे हैं, एक ओर जहां इससे वर्ल्ड क्लास शहरों का निर्माण होगा, जीवन स्तर में सुधार आएगा वहीं रोजगार की दृष्टि से भी यह काफी अहम है। केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया मिशन के लिए 1,13,000 करोड़ का बजट रखा है जबकि देशभर में 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 48000 करोड़ का बजट प्रस्तावित है
पीएम मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि स्मार्ट सिटी परियोजना किसी भी राज्य पर थोपी नहीं जाएगी। बल्कि उस शहर के लोगों को खुद फैसला करना होगा। सच्चाई यह है कि भारत की 40 फीसदी आबादी या तो शहरी केंद्रों में रहती है या आजीविका के लिए इन पर निर्भर रहती है। शहरीकरण पर 25-30 साल पहले भी काम हो सकता था। शहरीकरण को एक अवसर के रूप में अगर देखा गया होता तो आज स्थिति कुछ और होती। स्मार्ट सिटी परियोजना का मकसद उपलब्ध संसाधनों और ढांचागत सुविधाओं का कुशल और स्मार्ट निदान अपनाने को प्रोत्साहित करना है ताकि शहरी जीवन को बेहतर बनाया जा सके तथा स्वच्छ एवं बेहतर परिवेश उपलब्ध कराया जा सके
स्मार्ट सिटी मॉडल :स्मार्ट लोग स्मार्ट शहर
दुनियाँ तेजी से बदल रही है,ऐसे में शहर भी बदल रहें है अब शहर भी स्मार्ट होते जा रहे है या फिर सरकार उन्हें स्मार्ट बनाना चाहती है ऐसे में सवाल उठता है कि   स्मार्ट सिटी आखिर होता क्या है? शायद ऐसी टाउनशिप जहां आपकी सभी जरूरतें पूरी हो जायें। आबू धाबी में मसदर से लेकर दक्षिण कोरिया के सोंगदो तक दुनियाभर में ऐसे शहरों के निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है। हो सकता है कि आप जिस शहर में रह रहे हैं वो भी स्मार्ट करवट ले रहा हो। भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज एक नेटवर्क से जुड़ी होगी। बिल्डिंग की बिजली अपने-आप बंद हो जायेगी, ऑटोनोमस कार खुद पार्क हो जायेगी और यहां तक कि कूड़ादान भी स्मार्ट होगा। लेकिन सवाल यह है कि हम इस स्मार्ट भविष्य में कैसे पहुंच सकते हैं? शहर में हर इमारत, बिजली के खंभे और पाइप पर लगे सेंसरों पर कौन निगरानी रखेगा और कौन उन्हें नियंत्रित करेगा। आईबीएम, सीमन्स, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल और सिस्को जैसी तकनीकी कंपनियां शहर में पानी के लीकेज से लेकर वायु प्रदूषण और ट्रेफिक जाम तक हर समस्या को सुलझाने के लिए सॉफ्टवेयर बेच रही हैं।
 सिंगापुर, स्टॉकहोम और कैलिफोर्निया में आईबीएम यातायात के आंकड़े जुटा रही है और जाम लगने के बारे में एक घंटे पहले ही भविष्यवाणी कर रही है। रियो में आईबीएम ने नासा की तरह एक कंट्रोल रूम बना रखा है जहां स्क्रीनें पूरे शहर में लगे सेंसरों और कैमरों से आंकड़े जुटाती हैं। आईबीएम के पास कुल मिलाकर दुनियाभर में 2500 स्मार्ट शहरों के प्रॉजेक्ट हैं। कंपनी का कहना है कि वो स्मार्ट शहर की अपनी परियोजनाओं में लोगों को साथ लेकर चलती है। डबलिन में कंपनी ने सिटी काउंसिल के साथ मिलकर पार्कया एप तैयार किया है जो लोगों को शहर में पार्किंग की जगह ढूंढने में मदद करता है। अमरीकी शहर डुबुक में कंपनी स्मार्ट वाटर मीटर बना रही है और कम्यूनिटी पोर्टल के जरिये लोगों को डेटा उपलब्ध करा रही है ताकि वे पानी की अपनी खपत को देख सकें। चीन दर्जनों ऐसे नए शहर बसा रहा है जिसमें रियो की तरह कंट्रोल रूम स्थापित किए जा रहे हैं।
स्मार्ट शहर की कहानी में एक और अध्याय है और इसे एप, डीआईवाई सेंसर, स्मार्टफोन तथा वेब इस्तेमाल करने वाले लोग लिख रहे है। डॉन्ट फ्लश मी एक छोटा डीआईवाई सेंसर और एप है जो अकेले दम पर न्यूयॉर्क की पानी से जुड़ी समस्याओं को सुलझा रहा है। इसी तरह सेंसर नेटवर्क एग लोगों को शहर की समस्याओं के प्रति सचेत कर रहा है। शोधों के मुताबिक हर साल 20 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। एग लोगों को सस्ते सेंसर बेचकर वायु की गुणवत्ता के बारे में आंकड़े जुटा रहा है। लोग इन सेंसरों को अपने घरों के बाहर लगाकर हवा में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड के स्तर का पता लगा सकते हैं। इन आंकड़ों को इंटरनेट पर भेजा जाता है जहां इन्हें एक नक्शे से जोड़कर दुनियाभर में प्रदूषण के स्तर को दिखाया जाता है। अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करेगी जिससे यातायात व्यवस्था, आपातकालीन सेवाओं और अन्य व्यवस्थाओं पर जबर्दस्त दबाव होगा। इस समय जो  स्मार्ट शहर बन रहे हैं वो बहुत छोटे हैं जैसे कोई नमूना हो।
स्मार्ट सिटी बनानें में समस्याएं
भारतीय शहरों को स्मार्ट सिटीबना पाना आसान काम तो बिल्कुल नहीं होगा सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि हमारे ज्यादातर पुराने शहर अनियोजित हैं, उनकी सही मैपिंग उपलब्ध नहीं है इन शहरों की 70 से 80 फ़ीसदी आबादी अनियोजित इलाकों में रहती है इन इलाकों में लगातार आवाजाही होती रही है ऐसे में काम की शुरूआत भी कैसे कर पाएंगे इससे तो लगता है कि नए शहर ही बसाए जाएँ, जहां हर चीज़ कि प्लानिंग पहले से की गई हो हमारे शहरों की संरचना और लोगों के रहन-सहन में बड़ी जटिलता है शहर की एक बड़ी आबादी पक्के मकानों में रहती है, जबकि लगभग उतनी ही आबादी सड़कों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है सरकार को ऐसे शहर बनाने चाहिए, जहां लोगों के रहन-सहन में थोड़ी समानता दिखे
डिजिटल इंडिया से बनेगा स्मार्ट इंडिया
डिजिटल इंडिया के सपने को साकार किये बिना स्मार्ट सिटी योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता । आनलाइन और डिजिटल तकनीक मदद से न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकेगा बल्कि साथ ही साथ उपयोग के संसाधनो के खर्च को घटाया जा सकेगा तथा अधिक से अधिक लोगों तक इन सेवाओं को पहुंचाना भी आसान हो सकेगा।   भारत में  बनने  जा रहे स्मार्ट सिटी में सरकारी सेवाओ की कार्यप्रणाली, परिवहन एवं ट्रैफिक व्यवस्था, विद्युत एवं पानी व्यवस्था, मेडिकल सेक्टर की सेवाओं और कूड़े कचरे आदि के प्रबंधन को तकनीक की मदद से बेहतर बनाया जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग स्मार्ट सिटी में विधुत उपयोग एवं इसके वितरण को बेहतर बनाने, शहर की सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने, शहरो के बिज़नेस क्षेत्रो एवं कुछ खुले क्षेत्रो में वाई-फाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए किया जाएगा। 

स्मार्ट मीटर, क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक एवं वायरलेस सेंसर तकनीक की मदद से बिजली  खपत की व्यवस्था को बेहतर बनाना एवं इसका सही से प्रबंधन  करना संभव हो सकेगा। बिजली खपत जानने के लिए उपलब्ध स्मार्ट मीटर की मदद से बिजली प्रदानकर्ता और ग्राहक दोनों तरफ की सही सही जानकरी मिल सकेगी, जिसकी मदद से उपयोगकर्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार ही बिजली खर्च कर पायेंगे। पावर प्लांट से शहरी  क्षेत्रो में बिजली भेजने  के लिए सामान्य पावर ग्रिड के स्थान पर पर 'स्मार्ट पावर ग्रिड' का उपयोग किया जाएगा। जिसकी मदद से न सिर्फ बिजली का सही प्रकार से वितरण हो सकेगा बल्कि कटौती के समय बिजली का संग्रहण भी संभव हो सकेगा एवं इसके परिचालन, प्रबंधन में आने वाले खर्च को भी कम किया जा सकेगा। स्मार्ट सिटी में सूचना एवं संचार तकनीक की मदद से सभी प्रकार के परिवहन नेटवर्क जैसे रेल, मेट्रो, बस, कार एवं अन्य को जोड़ा जा सकेगा, ताकि इनसे सम्बंधित जानकारी सही-सही मिल सके और शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सके।    

Friday, August 21, 2015

प्रेम बनाम विवाह

रचना त्रिपाठी
स्त्री हो या पुरुष- दोनों के जीवन में प्रेम का होना बहुत जरुरी है! प्रेम- यह वो संजीवनी है जिसे पाने की चाह शायद हर प्राणी में होती है। पर प्रेम में पागल होकर प्रेमी के साथ विवाह कर लेना बहुत समझदारी नहीं होती। क्योंकि प्रेम और विवाह दोनों की प्रकृति अलग-अलग है। इसलिए प्रेम को विवाह के खाके में फिट करना थोड़ा कठिन हो जाता है। तो जरुरी नहीं है कि जिससे प्रेम करें उससे विवाह भी करें। क्यों कि प्रेमविवाह में विवाह के बाद पवित्र प्रेम की जैसी आशा होती है वह कहीं न कहीं विवाह के पश्चात क्षीण होने लगती है।
देश की अदालत ने लिव-इन को क़ानूनी मान्यता भले ही दे दी हो, लेकिन हमारी सामाजिक बनावट ऐसी नहीं है जहाँ प्रेम करने वालों को शादी किये बिना विशुद्ध प्रेम की मंजूरी मिलती हो। इसलिए प्रेमीयुगल इस संजीवनी को पाने की चाह में प्रेम की परिणति विवाह के रूप में करने को मजबूर हो जाते हैं; और विवाह हो जाने के बाद वैसा प्रेम बना नहीं रह पाता। दूसरी तरफ हमारे समाज में ऐसे युगलों की भी बहुत बड़ी संख्या है जिनके जीवन में प्रेम का आविर्भाव ही शादी के बाद होता है। अरेंज्ड मैरिज की इस व्यवस्था को समाज में व्यापक मान्यता प्राप्त है। इसमें साथ-साथ पूरा जीवन बिताने के लिए ऐसे दो व्यक्तियों का गठबंधन करा दिया जाता है जो उससे पहले एक दूसरे को जानते तक नहीं होते। फिर भी अधिकांशतः इनके भीतर ठीक-ठाक आकर्षण, प्रेम और समर्पण का भाव पैदा हो जाता है। गृहस्थ जीवन की चुनौतियों का मुकाबला भी कंधे से कंधा मिलाकर करते हैं। संबंध ऐसा हो जाता है कि इसके विच्छेद की बात प्रायः कल्पना में भी नहीं आती। ऐसी आश्वस्ति डेटिंग करने वाले प्रेमी जोड़ों में शायद ही पायी जाती हो। वहाँ तो कौन जाने किस मामूली बात पर रास्ते अलग हो जाँय कह नहीं सकते। प्रेम उस मृगनयनी के समान है जिसे पाकर कोई भी फूला न समाये लेकिन शादीशुदा व्यक्ति के लिए है यह अत्यंत दुर्लभ है। यह मत भूलिए कि विवाह उस लक्ष्मण रेखा से कम नहीं जिससे बाहर जाने की तो छोड़िये ऐसा सोचना भी भीतर से हिलाहकर रख देता है।
विवाह के पश्चात् स्त्री पुरुष के बीच प्रेम का अस्तित्व वैसा नहीं रह जाता जैसा कि विवाह से पहले रहता है। प्रेम का स्वभाव उन्मुक्त होता है और विवाह एक गोल लकीर के भीतर गड़े खूंटे से बँधी वह परम्परा है जिसके इर्द गिर्द ही उस जोड़े की सारी दुनिया सिमट कर रह जाती है। फिर विवाह के साथ प्रेम का निर्वाह उसके मौलिक रूप में सम्भव नहीं रह जाता। प्रेम का विवाह के बाद रूपांतरण सौ प्रतिशत अवश्यम्भावी है। विवाह और प्रेम को एक में गड्डमड्ड कर प्रेमविवाह कर लेने वालों की स्थिति वेंटिलेटर पर पड़े उस मरीज की भाँति हो जाती है जिसकी नाक में हर वक्त ऑक्सीजन सिलिंडर से लगी हुई एक लंबी पाइप से बंधा हुआ मास्क लगा रहता है। यह प्रेम-विवाह में प्रेम-रस का वह पाइप होता है जिसपर यह संबंध जिन्दा रहता है। जिसके बिना चाहकर भी दूर जाने की सोचना खतरे को दावत देने जैसा है। सिलिंडर से लगी वह पाइप सांस लेने में सहायक तो जरूर बन जाती है पर वह स्वाभाविक जिंदगी नहीं दे पाती। अगर जिंदगी बची भी रह जाय तो शायद उसे उन्मुक्त होकर जीने की इजाजत न दे।

Thursday, August 6, 2015

देश के लिए खतरा स्तरहीन मीडया

शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर ((रिसर्च, मेवाड़ यूनिवर्सिटी
पिछले दिनों याकूब मेनन की  "फांसी लाइव" दिखाने की जो होड़ टीवी चैनलों में दिखी न सिर्फ वो घटिया थी बल्कि देश के लिए बेहद खतरनाक भी थी या आगे जाकर खतरनाक हो सकती है ..जिस तरह से दिन रात सिर्फ याकुब को ही दिखाया गया और मामले को जानबूझकर संवेदनशील बनाया गया उससे पता चलता है कि इस देश का टीवी मीडिया पूरी तरह से स्तरहीन है जिसे पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांत भी नहीं पता है ..कई बार लगता है कि ये टीवी वाले सीधे सीधे अपने देश के साथ देशद्रोह कर रहें है इस तरह से लोगों की भावनाएं भड़का कर जिसके लिए इन्हें कभी माफ़ न किया जा सकता है ना ही कभी किया जाना चाहिए ..एक दुर्दांत अपराधी को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया इन लोगों ने ...शर्म करो ..शर्म करो ..मीडिया की इस तरह की घटिया कवरेज रोकने के लिए भी एक मजबूत नियामक संस्था होनी चाहिए जो देश में शांति /संवेदनशीलता के मुद्दों पर इस तरह की रिपोर्टिंग करने से इन्हें रोके नहीं तो भविष्य में यही मीडिया देश के लिए बड़ा खतरा भी साबित हो सकते है .. ..

Wednesday, July 29, 2015

"मसान" विद मोदी विद वामपंथ

कई सालों बद कल अकेले कोई फिल्म देखने गया था .फेसबुक पर कुछ लोगोने ने तारीफ़ करी तो मसान देखने चला गया ..जैसा कि उम्मीद थी सुबह के शो में ज्यादा दर्शक नहीं थे पीछे से चौथी पंक्ति में बैठा था ,फिल्म शुरू होने के १० मिनट तक तो हॉल में शांति का महाल था लेकिन १० मिनट के बाद मेरे पीछे की पंक्ति में बैठे ३-४ लड़कों ने मोदी के बारे में जोर जोर से बात करनी शुरू कर दी ..कोई बोला ये मोदी बिहार में कुछ नहीं कर पायेगा तो कोई बोलाइसकी ताबूत में आख़िरी कील है ये चुनाव .,नीतिशवा इन्हें मजा चखा देगा ...कुलमिलाकर उनके इस वार्तालाप से मै बहुत परेशान हो रहा था तो मैंने उनसे कहा कि वो लोग मोदी के बारें में बाहर बात कर लें ..खैर मेरे २-३ बार कहने पर भी वो लोग नहीं माने तो मैं अपनी सीट  चेंज करके शांति से फिल्म देखने लगा ....फिल्म के इंटरवल में उन ३-४ लडको से फिर बातचीत हुई तो पता चला कि वो सब जे एन यू  से थे और वामपंथी थे .मुझे पहली बार प्रत्यक्ष तौर पर अहसास हुआ कि मोदी ,वामपंथियों की रग रग  में कैसे समाये हुए है, जिन्हें ये लोग सोते जागते ,नहाते ,धोते ,खाते ,पिक्चर देखते समय भी ये मोदी की चर्चा ,परिचर्चा और आलोचना में दिल से लगे रहते है ..ये कभी अपनी पार्टी के बारें में नहीं सोचते है न ही उसके लिए कुछ कहते या करते है ..हनुमान जी की तरह अगर किसी वामपंथी का हृदय चीर कर देखा जाए तो उसमे सिर्फ मोदी ही  दिखेंगे ...इनकी इसी मानसिक बीमारी से आज इन लोगों का पतन हो गया ..पूरे देश में कोई नामलेवा भी नहीं बच रहा है इनका ..यार अब तो इन धूर्तों को देखकर बिलकुल भी गुस्सा नहीं आता बल्कि बहुत ज्यादा दया आती है देखो इन्हें मोदी ने क्या से क्या बना दिया ...सच में असली भक्त तो यही लोग है जो दिन रात तल्लीनता से मोदी विरोध में लगे रहते है  ..फिल्म का टिकट लेकर भी मोदी भक्ति  ....मान गया इन वामपंथियों को भाई ... खैर फिल्म तो बहुत ही ज्यादा अच्छी थी ,जितनी तारीफ़ करू उतनी कम ...फिल्म का अहसास तो अभी तक है दिल दिमाग में ...

Wednesday, July 1, 2015

अन्त में हम दोनों ही होंगे !!!.

पति-पत्नी के रिश्तों पर एक बहुत ही मानवीय संवेदनशील कविता ,(मूल लेखक पता नही ..)

अन्त में हम दोनों ही होंगे !!!.
" भले ही झगड़े, गुस्सा करें एक दूसरे पर
 टूट पड़ें एक दूसरे पर दादागिरि करने के लिये,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
जो कहना है, वह कह लें जो करना है, वह कर लें
एक दुसरे के चश्मे और लकड़ी ढूँढने में,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
मैं रूठूं तो तुम मना लेना, तुम रूठो ताे मै मना लूँगा
एक दुसरे को लाड़ लड़ाने के लिये,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
आँखें जब धुँधला जायेंगी, याददाश्त जब कमजोर होंगी
तब एक दूसरे को एक दूसरे मे ढूँढने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
घुटने जब दुखने लगेंगे, कमर भी झुकना बंद करेगी
तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे
घुटने जब दुखने लगेंगे, कमर भी झुकना बंद करेगी
तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए,
अन्त में हम दोनों ही होंगे साथ जब छूटने वाला होगा,
बिदाई की घड़ी जब आ जायेगी तब एक दूसरे को माफ करने के लिए, .
अन्त में हम दोनों ही होंगे...."

Wednesday, May 13, 2015

अलविदा सेंट मार्गेट ...अलविदा नीमराना



शशांक द्विवेदी 
पिछले 10 दिनों से अपने भीतर खुशी और उदासी दोनों को एक साथ महसूस कर रहा हूँ .खुशी इसलिए कि मेवाड़ यूनिवर्सिटी (मेवाड़ इंस्टीट्यूट,वसुंधरा गाजियाबाद कैम्पस ) में As a Deputy Director (Research ) ज्वाइन करने वाला हूँ और मेरे साथ मेरी श्रीमती जी Assistant Professor in Mass Comm..Deptt ज्वाइन कर रही है .एक बेहतर आफर और मनपसंद काम के साथ जॉब की ये एक नयी शुरुआत है .इसलिए काफी खुश हूँ लेकिन 10 साल सेंट मार्गेट में काम करने के बाद उसे छोड़ने को लेकर एक अजीब सी उदासी है मेरे मन में क्योकि यहाँ पढ़ाते हुए मुझे बहुत कुछ हासिल हुआ ,सबसे बड़ी बात एक शानदार माहौल, कभी लगा ही नहीं कि जॉब कर रहा हूँ .सुबह आठ से दोपहर 2 बजे की जॉब के बाद जिंदगी के बहुत सारे काम यूं ही हो जाते थे .अरावली हिल्स के नीचे रहते हुए हमेशा प्रकृति को अपने पास ही महसूस किया जो अब शायद नहीं कर पाऊंगा लेकिन हर अच्छी चीज , जगह और लोग भी कभी न कभी ,किसी न किसी वजह से बिछड़ते जरुर है शायद वही अलविदा वाली फीलिंग्स आ रही है मुझे ....फिलहाल 31 मई तक यही हूँ उसके बाद 1 जून को मेवाड़ यूनिवर्सिटी के वसुंधरा कैम्पस में नई जॉब ज्वाइन करूँगा .दिल्ली के नजदीक या यूं कहें दिल्ली में ही आ गया हूँ .... अब दिल्ली वाले मित्रों से मुलाक़ात हो पाएगी ...सेंट मार्गेट के मेरे सहयोगियों और इसके प्रबंधन को मेरा ह्रदय से आभार कि इन्होने हमेशा मुझे बेहतर काम करने के लिए एक अच्छा माहौल दिया और हमेशा मेरा साथ दिया,अपने स्टूडेंट्स को बहुत मिस करूँगा जिन्हें सालों पढ़ाया ...Love u all ,love u Neemrana .....

Monday, March 23, 2015

अच्छी लड़कियाँ बुरे लड़कों को क्यों पसंद करती है

मोनिका जैन 
ज्यादातर लड़कियाँ बुरे लड़कों की तरफ आकर्षित होती है. इस फैक्ट ने अच्छाई को खत्म करने में कहीं ना कहीं अपना योगदान दिया है. इसलिए लड़कियों गौर फरमाओं. एक अच्छा लड़का तुमसे बहुत ज्यादा रोमांटिक और फ़्लर्टी बातें ना कर पाए पर वह प्यार तुम्हें बड़ी शिद्दत से करेगा. वह तुम्हें ठहाकों वाली हँसी भले ही ना दे पाए पर कभी रुलाएगा भी नहीं. हो सकता है वह बड़े-बड़े गिफ्ट्स और सरप्राइज पार्टी के दिखावे ना कर पाए पर वह तुम्हें जो भी देगा वह ओरिजिनल होगा...और ओरिजिनल तो ओरिजिनल ही होता है 

Friday, February 20, 2015

हमारी भी लड़ाई होती है ...


शशांक द्विवेदी 
कल किसी ने मेरी मैरिज एनिवर्सरी की पोस्ट पढ़ने के बाद एक सवाल किया कि क्या आपके और आपकी पत्नी के बीच भी लड़ाई होती है तो मैंने जवाब में कहा कि दुनियाँ में पति –पत्नी की शायद ही ऐसी कोई जोड़ी होती होगी जिनके बीच कभी भी लड़ाई –झगड़ा ,नोक झोंक ना होती हो .खैर मेरे और प्रिया के बीच भी कभी कभार यह सब हो जाता है . आखिर हम दोनों भी इंसान है ,आदर्श स्तिथि तो सिर्फ देवी –देवताओं में ही होती होगी .
हम दोनों के विचार बहुत भिन्न है कई मुद्दों पर मतभेद भी रहता है लेकिन विचारों की यही भिन्नता मुझे कई बार बहुत ठीक लगती है इससे किसी भी चीज के हर पहलू को समझने में मदत मिलती है .वैसे भी मेरा मानना है कि पति –पत्नी होने का मतलब यह नहीं है कि एक दूसरे की जी –हुजूरी करने लग जाएँ या गुलामी जैसा महसूस करें .सीधी सी बात है व्यक्तित्व भिन्न है तो विचार भी भिन्न ही होंगे .इसलिए बेहतर आपसी समझ बनाने की जरुरत होती है .

खाने के मामले में प्रियंका जहाँ बेहद सात्विक है मतलब वो लहसुन और प्याज बिल्कुल नहीं खाती ना ही उसके परिवार में कोई खाता वहीं मुझे ये बेहद पसंद है .प्रियंका के होते हुए घर में सभी सब्जियां बिना लहसुन और प्याज के ही बनती है ,सबसे खास बात यह है कि सब्जियां बेहद शानदार और टेस्टी बनती है और अब तो मुझे भी खूब पसंद आने लगी ..हाँ अब मै अलग से प्याज सलाद के साथ  में खा लेता हूँ . कई मामले ऐसे भी है जहाँ वो मेरी बात मानती है .करियर के मामले में जहाँ मै पूर्णकालिक तौर पर मीडिया में जाना चाहता था /चाहता हूँ लेकिन प्रियंका ने कभी जाने नहीं दिया उसने कहा पढाने के साथ लेखन करो वही ठीक है मीडिया में जाने की जरुरत नहीं है.. प्रिया ने अमर उजाला में कई साल काम किया इसलिए उसे मीडिया का अनुभव मुझसे कहीं ज्यादा है फिलहाल उसकी बात मानना ही मुझे ठीक लगा .मेरे अंदर ड्रेसिंग सेंस नहीं है प्रिया में है और आज की डेट में मेरे ८० फीसदी कपड़े प्रियंका ही खरीदती है .प्रियंका आम ठेठ भारतीय पत्नियों की तरह सिर्फ “यस मैन “ नहीं है बल्कि मेरे  अंदर या फिर मेरे किसी काम में उसे जो ठीक नहीं लगता उस पर वो बिना झिझक कर बोलती है .चाहे वो मुझे बुरा ही क्यों ना लगे ..बहुत मामलों में मेरी पहली आलोचक मेरी पत्नी ही है ..एक बात जरुर है कि मुझे कई बार शादी एक बंधन के रूप में भी दिखती है क्योंकि शादी के पहले भी मै ५ साल प्रिया के साथ रहा वहाँ मुझे बड़ी स्वतंत्रता महसूस होती थी लेकिन शादी के बाद बिना वजह बहुत सारे झंझट आ जाते है मसलन परिवार ,समाज ,रिश्तेदार..इन्हें खुश करो ,उन्हें खुश करो ...ज्यादातर नोंकझोक भी इन्ही बातों से होती है ..बेवजह के ढकोसलों से भी बहुत खीज और परेशानी होती है ...लेकिन फिर भी ये सब तो झेलना ही पड़ेगा भाई क्योंकि प्रेम विवाह की  कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. लेकिन विचारों में थोड़ा बहुत मतभेद होते हुए भी हमारे बीच “प्रेम “ का गहरा अहसास है जो हमें हमेशा जोड़े रहता है और सच्चाई है कि सिर्फ “प्रेम “ में ही इतना सामर्थ्य है जो आपको जिंदगी भर जोड़े रख सकता है .

Thursday, February 19, 2015

तुम्हे देखा है बहुत ,फिर भी बहुत कम देखा ..

शशांक द्विवेदी 
6 year of togetherness ... आज शादी को 6 साल पूरे हो गये ,लेकिन प्रियंका से दोस्ती -प्रेम को तो 11 साल हो गये ..इतना वक्त गुजर गया पता ही नहीं चला ..आगरा आया था इंजीनियरिंग की पढाई करने उसी दौरान पहले "प्रेम" हुआ फिर "विवाह " मतलब प्रेम -विवाह हो गया...काफी मुश्किलें आई लेकिन हो गया ...वैसे मेरा स्पष्ट मानना है कि संघर्ष के ,प्रेम के ,रोमांस के वे 5 साल काफी जबर्दस्त थे...काश वो दिन फिर से वापस आ जाए ... मेरी जिंदगी की कहानी पूरी फ़िल्मी है फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ के सभी पात्र वास्तविक है ....प्रियंका के प्रेम ने ही मुझे "लेखक "भी बना दिया ..सच कहूँ तो मै पत्थर था उसने ही मुझे तराश कर किसी काम का बना दिया ...मै जो कुछ भी हूँ उसमें उसका बहुत ज्यादा योगदान है .. .अमर उजाला ,आगरा से चली ये प्रेम कहानी तो फिलहाल जबर्दस्त तरीके से चल रही है ,उम्मीद करता हूँ कि आगे भी चलती रहेगी ..क्योंकि मुझे हमेशा से यही लगता है कि सिर्फ "प्रेम "ही आपको जोड़े रख सकता है ,विवाह तो एक पड़ाव भर है ..
प्रिया के लिए तो यही पंक्तियाँ याद आ रहीं है कि 

"तुमसा ना कोई हमदम देखा ,उड़ गये होश जवानी का वो आलम देखा ,तुम्हे देखकर जी भरता ही नहीं ,तुम्हे देखा है बहुत ,फिर भी बहुत कम देखा ..."

मै बहुत खुश नसीब हूँ कि मुझे प्रिया जैसी प्रेमिका और जीवन संगिनी मिली ,उसने मुझे बहुत खुशी और प्यार दिया ,हर कदम पर मेरा साथ देते हुए मेरा हौसला भी बढ़ाया ...प्रियंका को शादी की सालगिरह पर ढेरों शुभकामनाएँ.....ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारे संबंधों की मजबूत डोर ऐसे ही बंधी रहें ...












हमारी भी लड़ाई होती है ...

कल किसी ने मेरी मैरिज एनिवर्सरी की पोस्ट पढ़ने के बाद एक सवाल किया कि क्या आपके और आपकी पत्नी के बीच भी लड़ाई होती है तो मैंने जवाब में कहा कि दुनियाँ में पति –पत्नी की शायद ही ऐसी कोई जोड़ी होती होगी जिनके बीच कभी भी लड़ाई –झगड़ा ,नोक झोंक ना होती हो .खैर मेरे और प्रिया के बीच भी कभी कभार यह सब हो जाता है . आखिर हम दोनों भी इंसान है ,आदर्श स्तिथि तो सिर्फ देवी –देवताओं में ही होती होगी .
हम दोनों के विचार बहुत भिन्न है कई मुद्दों पर मतभेद भी रहता है लेकिन विचारों की यही भिन्नता मुझे कई बार बहुत ठीक लगती है इससे किसी भी चीज के हर पहलू को समझने में मदत मिलती है .वैसे भी मेरा मानना है कि पति –पत्नी होने का मतलब यह नहीं है कि एक दूसरे की जी –हुजूरी करने लग जाएँ या गुलामी जैसा महसूस करें .सीधी सी बात है व्यक्तित्व भिन्न है तो विचार भी भिन्न ही होंगे .इसलिए बेहतर आपसी समझ बनाने की जरुरत होती है .
खाने के मामले में प्रियंका जहाँ बेहद सात्विक है मतलब वो लहसुन और प्याज बिल्कुल नहीं खाती ना ही उसके परिवार में कोई खाता वहीं मुझे ये बेहद पसंद है .प्रियंका के होते हुए घर में सभी सब्जियां बिना लहसुन और प्याज के ही बनती है ,सबसे खास बात यह है कि सब्जियां बेहद शानदार और टेस्टी बनती है और अब तो मुझे भी खूब पसंद आने लगी ..हाँ अब मै अलग से प्याज सलाद के साथ  में खा लेता हूँ . कई मामले ऐसे भी है जहाँ वो मेरी बात मानती है .करियर के मामले में जहाँ मै पूर्णकालिक तौर पर मीडिया में जाना चाहता था /चाहता हूँ लेकिन प्रियंका ने कभी जाने नहीं दिया उसने कहा पढाने के साथ लेखन करो वही ठीक है मीडिया में जाने की जरुरत नहीं है.. प्रिया ने अमर उजाला में कई साल काम किया इसलिए उसे मीडिया का अनुभव मुझसे कहीं ज्यादा है फिलहाल उसकी बात मानना ही मुझे ठीक लगा .मेरे अंदर ड्रेसिंग सेंस नहीं है प्रिया में है और आज की डेट में मेरे ८० फीसदी कपड़े प्रियंका ही खरीदती है .प्रियंका आम ठेठ भारतीय पत्नियों की तरह सिर्फ “यस मैन “ नहीं है बल्कि मेरे  अंदर या फिर मेरे किसी काम में उसे जो ठीक नहीं लगता उस पर वो बिना झिझक कर बोलती है .चाहे वो मुझे बुरा ही क्यों ना लगे ..बहुत मामलों में मेरी पहली आलोचक मेरी पत्नी ही है ..एक बात जरुर है कि मुझे कई बार शादी एक बंधन के रूप में भी दिखती है क्योंकि शादी के पहले भी मै ५ साल प्रिया के साथ रहा वहाँ मुझे बड़ी स्वतंत्रता महसूस होती थी लेकिन शादी के बाद बिना वजह बहुत सारे झंझट आ जाते है मसलन परिवार ,समाज ,रिश्तेदार..इन्हें खुश करो ,उन्हें खुश करो ...ज्यादातर नोंकझोक भी इन्ही बातों से होती है ..बेवजह के ढकोसलों से भी बहुत खीज और परेशानी होती है ...लेकिन फिर भी ये सब तो झेलना ही पड़ेगा भाई क्योंकि प्रेम विवाह की  कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. लेकिन विचारों में थोड़ा बहुत मतभेद होते हुए भी हमारे बीच “प्रेम “ का गहरा अहसास है जो हमें हमेशा जोड़े रहता है और सच्चाई है कि सिर्फ “प्रेम “ में ही इतना सामर्थ्य है जो आपको जिंदगी भर जोड़े रख सकता है ...