Sunday, April 28, 2019

डाइटिंग से जुड़ी हैं ये गलतफहमियां

*डाइटिंग से जुड़ीं ये गलतफहमियां तुरंत करें दूर, वरना सेहत को पड़ेगी भारी*
 शशांक द्विवेदी
1 क्रैश डाइटिंग - कई लोग जल्दी वजन कम करने के चक्कर में क्रैश डाइटिंग करने लगते हैं, और उसे फायदेमंद मानते हैं। दरअसल क्रैश डाइटिंग आपके वजन को कम कर आपको जल्दी स्लिम तो कर सकती है, लेकिन कुछ समय बाद इस‍के उतने ही हनिकारक परिणाम भी सामने आते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, क्रैश डाइटिंग करते समय शरीर से फैट छटने के साथ वे मसल्स और टिश्यू भी नष्ट हो जाते हैं, जि‍न्हें बनने में काफी समय लगता है। ऐसे में शरीर कमजोर हो जाता है।

2 ब्रेकफास्ट न करना - कुछ लोगों का मानना है कि सुबह का नाश्ता न करके, बढ़ते हुए वजन को कम किया जा सकता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ब्रेकफास्ट न करने से दोपहर का भोजन करने तक आप भूखे रहते हैं, जिससे उर्जा की कमी होने के साथ ही शरीर में कमजोरी महसूस होती है। इसके अलावा सुबह नाश्ता नहीं करने से दोपहर तक आपकी भूख बढ़ जाती है, जिसके कारण आप लंच में ज्यादा खाना खाते हैं। इसे पचाने में शरीर को अधिक समय लगता है।

3 शाम को कुछ न खाना - यही भी एक बड़ी गलतफहमी है, कि शाम के समय या उसके बाद कुछ भी न खाने से मोटापा नियंत्रित होगा। आप शाम को या रात को भी खा सकते हैं, बशर्ते वह कैलोरी फूड या फैटी फूड न हो। पापड़, चिप्स, पिज्जा, बर्गर या आइसक्रीम की जगह फल, जूस, सलाद या अन्य सेहतमंद चीजों को प्राथमिकता दें। यह चीजें किसी भी वक्त खाने पर नुकसान नहीं करेंगी।

NPS के बारे में सभी जरूरी जानकारी

NPS यानी 60 के बाद नो टेंशन
A to Z about National Pension System

क्या आपने कभी सोचा है कि 60 साल की उम्र के बाद जिंदगी की जरूरतों के लिए आप पैसे कहां से लाएंगे क्योंकि तब तक तो आप रिटायर हो चुके होंगे? अगर आपके पास इसका कोई जवाब नहीं है तो हमारे पास आपके लिए एक ऑप्शन है नैशनल पेंशन सिस्टम (NPS) का। NPS में निवेश और रिटर्न के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं राजेश भारती

क्या है NPS
नैशनल पेंशन सिस्टम (NPS) पैसों का वह पेड़ है जिस पर रिटायरमेंट या 60 साल की उम्र पूरी होने के बाद पैसे लगते रहते हैं और जिसे आप जॉब के दिनों में रोपते और सींचते हैं। अच्छी बात यह है कि इस दौरान यह आपका टैक्स भी बचाता रहता है। यह इन्वेस्टमेंट का एक टूल है जिसमें बैंकों के जरिए आप अपना पैसा जमा करते हैं और बैंक से जुड़े NPS फंड मैनेजर जोखिम उठाने की आपकी क्षमता के अनुसार अलग-अलग स्कीम में निवेश करते हैं। अगर आपको मार्केट की जानकारी है तो बिना फंड मैनेजर के आप खुद भी NPS अकाउंट को ऑपरेट कर सकते हैं। रिटायर होने पर या 60 साल की उम्र के बाद जमा रकम में से आपको बीमा कंपनियों से एन्युटी खरीदनी होती है और इसी से आपको पेंशन मिलती है। शुरू में इसका फायदा सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को मिलता था, लेकिन अब न केवल प्राइवेट जॉब करने वाले बल्कि बिजनेस या दूसरे तरीके से अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले भी इसका फायदा उठा सकता है। इस स्कीम में शामिल होने की उम्र 18 से 60 साल के बीच है। और हां, कोई व्यक्ति सिर्फ एक ही एनपीएस अकाउंट खोल सकता है।

फंड मैनेजर कौन
फंड मैनेजर आपकी जमा रकम को बेहतर ढंग से इन्वेस्ट करते हैं ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिल सके। NPS अकाउंट खुलवाने के दौरान ही आपको इसका चयन करना होता है। सरकार की ओर से मान्यता प्राप्त 8 फंड मैनेजर हैं। इनकी नियुक्ति पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) की ओर से की जाती है। ये हैं:
1. HDFC Pension Management Co. Ltd.
2. Reliance Capital Pension Fund Ltd.
3. UTI Retirement Solutions Ltd.
4. Kotak Mahindra Pension Fund Ltd.
5. LIC Pension Fund Ltd.
6. SBI Pension Funds Pvt. Ltd.
7. ICICI Prudential Pension Fund Management Company Ltd.
8. Birla Sun Life Pension Management Ltd.

फंड मैनेजर ऐसे चुनें
फंड मैनेजर के कारण ही आपका पैसा बढ़ता है और बाद में अच्छा रिटर्न मिलता है। ऐसे में जरूरी है कि आप एक बेहतर फंड मैनेजर चुनें। फंड मैनेजर चुनते समय इन बातों का ध्यान रखें:

रिटर्न देखें: उस फंड मैनेजर का चुनाव करें जिसने अब तक बेहतर रिटर्न दिलाया है। इसकी पूरी जानकारी आप npstrust.org.in/return-of-nps-scheme से ले सकते हैं।

AMU पता लगाएं: Assets under management (AUM) का मतलब फंड हाउस की उस रकम से होता है जो लोगों ने निवेश की होती है। यह वैल्यू जितनी अधिक होगी, फंड मैनेजर की ओर से रिटर्न मिलने की उम्मीद उतनी ही बेहतर होती है। इसके लिए आप सभी फंड मैनेजरों की वेबसाइट पर जाकर चेक करें।

बदल सकते हैं फंड मैनेजर: NPS खाते में जो रकम जमा की जाती है, उस पर रिटर्न मिलता है। यह रिटर्न फिक्स्ड नहीं होता और निर्भर करता है कि आपका फंड मैनेजर आपका पैसा किस योजना में लगा रहा है। अगर आपका फंड मैनेजर अच्छा रिटर्न नहीं दिलवा पा रहा है तो आप उसे साल में एक बार बदल भी सकते हैं।

क्या है एन्युटी
NPS के पूरी होने के बाद आपके पास जो रकम जमा हो जाती है, उसमें से कम से कम 40% पैसा आपको बीमा कंपनी को देना होता है। बीमा कंपनी इस पैसे से आपकी पेंशन शुरू करती है। पेंशन के लिए बीमा कंपनी की दी जाने वाली रकम ही एन्युटी कहलाती है। एन्युटी से पेंशन के लिए आपको इन 5 कंपनियों में से किसी एक को चुनना पड़ता है:
1. HDFC Standard Life Insurance Company Ltd.
2. Star Union Dai-Chi Life Insurance Company Ltd.
3. Life Insurance Corporation of India Ltd.
4. ICICI Prudential Life Insurance Company Ltd.
5. SBI Life Insurance Company Ltd.

जरूरत के हिसाब से चार तरह के अकाउंट
केंद्रीय कर्मचारी: इसे केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय कर्मचारियों के लिए खोला जाता है। सरकार की ओर से 14% और सैलरी (बेसिक+DA) का 10% NPS में जमा किया जाता है।
राज्य सरकारी कर्मचारी: जहां राज्य सरकारों ने PNS की सुविधा दे रखी है, वहां कर्मचारियों की सैलरी (बेसिक+DA) का अधिकतम 10% NPS अकाउंट में जमा किया जाता है।
कॉर्पोरेट सेक्टर: इसे प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए खोलती हैं। इसमें कंपनियां कर्मचारी की सैलरी (बेसिक) का अधिकतम 10% NPS अकाउंट में जमा कराती हैं।
ऑल सिटिजन्स मॉडल: इसमें बिजनेसमैन, स्वरोजगार करने वाले लोग आते हैं। इस सेक्टर में आने वाले लोगों को ऑनलाइन या बैंक जाकर NPS अकाउंट खुलवाना होता है। वे इसमें कितनी भी रकम जमा करा सकते हैं। अगर आप किसी कंपनी में जॉब करते हैं तो कंपनी की ओर से जमा कराई रकम के अतिरिक्त आप खुद से भी पैसा NPS अकाउंट में जमा करा सकते हैं। साथ ही अगर कंपनी में NPS की सुविधा नहीं है तो आप इस मॉडल के तहत अकाउंट खुलवा सकते हैं।

पोर्टेबल है अकाउंट
NPS अकाउंट पूरी तरह पोर्टेबल है। हर ग्राहक को 12 अंकों का एक परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर (PRAN) दिया जाता है। जॉब बदलने पर PRAN को नई कंपनी की सैलरी से जोड़ सकते हैं। इसके लिए कंपनी के एचआर से बात करें। अगर नई कंपनी में NPS की सुविधा नहीं है तो इसे व्यक्तिगत (ऑल सिटिजन्स मॉडल) रूप से ऑपरेट कर सकते हैं। वहीं अगर आप जॉब पूरी तरह छोड़ देते हैं तो आपको व्यक्तिगत रूप से अकाउंट चलाना होगा।

ऐसे खुलवाएं अकाउंट
एनपीएस में दो तरह के अकाउंट होते हैं। पहला टियर-1 और दूसरा टियर-2 है। NPS के लिए सरकार ने देश के लगभग सभी सरकारी और कुछ प्राइवेट बैंकों में पॉइंट ऑफ प्रजेंस (पीओपी) बनाए हैं। नजदीकी बैंक ब्रांच में जाकर NPS अकाउंट खुलवाया जा सकता है। अपने नजदीकी पीओपी जानने के लिए वेबसाइट www.npscra.nsdl.co.in/pop-sp.php पर जा सकते हैं। अकाउंट ऑनलाइन भी खुलवा सकते हैं।

यह है टीयर 1 और टीयर 2 में फर्क
टीयर 1: NPS स्कीम में शामिल होने के लिए यह अकाउंट खुलवाना अनिवार्य है। इस अकाउंट को पेंशन अकाउंट भी कहते हैं। इसे 500 रुपये से खोला जा सकता है। साल में कम से कम 1 हजार रुपये जमा करने होते हैं। इसमें 60 साल या रिटायरमेंट की उम्र तक पैसा जमा करना होता है। जमा पैसे को रिटायरमेंट के बाद ही निकाला जा सकता है। इस अकाउंट में जो जमा करते हैं उस पर टैक्स में छूट मिलती है।
टीयर 2: इस अकाउंट को वही व्यक्ति खुलवा सकता है जिसका टीयर 1 अकाउंट है। इसमें व्यक्तिगत रूप में कितना भी पैसा जमा किया जा सकता है। इस अकाउंट से पेंशन का कोई लेनादेना नहीं होता। इसमें जमा पैसा म्यूचुअल फंड्स में लगाया जाता है और इस पैसे को कभी भी निकाला जा सकता है। टीयर 2 अकाउंट में जमा या निकाले गए पैसे पर टैक्स देना होता है। इस अकाउंट का फायदा है कि टीयर 1 अकाउंट होल्डर बिना डीमैट अकाउंट खुलवाए टीयर 2 से पैसा म्यूचुअल फंड में लगा सकता है। टीयर 2 से पैसा बैंक खाते में आने में डीमैट की अपेक्षा कम समय लगता है।
(*बेटी की शादी, गृह निर्माण, बीमारी, शिक्षा जैसे कुछ जरूरी काम के लिए सबूत दिखाकर 25% तक राशि निकाले सकते हैं)

पैसा निकालने की ये भी हैं कुछ शर्तेंः
3 साल बाद ही पैसा निकाल सकते हैं NPS अकाउंट खोलने के बाद
60 साल या रिटायरमेंट तक कुल तीन बार ही पैसा निकालने की अनुमति

इतना मिलता है टैक्स में फायदा
आप एनपीएस में कितना भी पैसा जमा कर सकते हैं, लेकिन इनकम टैक्स छूट की कुछ सीमाएं हैं। इसे ऐसे समझें:
- टैक्स में छूट टियर 1 अकाउंट में ही मिलती है।
- NPS के तहत धारा 80C के अंतर्गत आप साल में अधिकतम 1.5 लाख रुपये निवेश पर टैक्स में छूट ले सकते हैं।
- कंपनी की ओर से NPS में आपकी बेसिक सैलरी का अधिकतम 10% हिस्सा जमा कराया जा सकता है। यह 80CCD(2) के तहत पूरी तरह टैक्स-फ्री होता है। यह छूट 80C के अतिरिक्त है। अगर आप इसके अतिरिक्त कुछ रकम NPS मे जमा कराते हैं, तो उस पर आपको धारा 80CCD(1B) के तहत अधिकतम 50 हजार रुपये तक के निवेश पर अतिरिक्त छूट मिलती है।
- ऑल सिटिजंस मॉडल के तहत आने वाले लोग 80C के तहत अधिकतम 50 हजार रुपये तक के निवेश पर छूट का लाभ ले सकते हैं।

जानें, रिटायरमेंट के बाद क्या मिलेगा
रिटायरमेंट या 60 साल की उम्र के बाद आप NPS में जमा रकम का अधिकतम 60% हिस्सा कैश निकाल सकते हैं। यह टैक्स फ्री होता है। बाकी 40% रकम की एन्युटी लेनी होती है। इस पर टैक्स देना पड़ता है। एन्युटी वह रकम होती है जिसमें से आपको पेंशन मिलेगी। आप कितने समय के लिए पेंशन लेना चाहते हैं, इसकी जानकारी उस बैंक और बीमा कंपनी को देनी होती है जहां आपने अकाउंट खुलवा रखा है। जितने समय के लिए आप एन्युटी लेना चाहते हैं, उतने समय तक आपको पेंशन मिलती है। हालांकि पेंशन, रकम निकालने, नॉमिनी आदि से संबंधित कई फैसले आप खुद ले सकते हैं। इसकी कुछ शर्तें होती हैं जो इस प्रकार हैं:

आॅप्शन-1: जिंदगीभर सालाना 9% की दर से पेंशन मिलती रहेगी। पेंशनभोगी के न रहने पर पेंशन की बची रकम किसी को नहीं दी जाएगी।

आॅप्शन-2: रिटायरमेंट के 5, 10, 15 या 20 साल तक 9% की दर से पेंशन ली जा सकती है। इसके बाद पेंशनभोगी जिंदगीभर 8.5% की दर से पेंशन ले सकेंगे।

आॅप्शन-3: अगर पेंशनभाेगी चाहता है कि उसके न रहने पर पेंशन की बची रकम नॉमिनी को दी जाए तो पेंशनभोगी को पेंशन 6.80% की दर से मिलेगी।

(नोट: यह दर मौजूदा समय के अनुसार एक बीमा कंपनी की हैं। रिटायरमेंट के समय इन दरों में बदलाव संभव है। साथ ही एन्युटी की दर बीमा कंपनी के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।)

EPS के तहत भी मिलती है पेंशन
किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब करने वाले एम्प्लॉई को कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के तहत भी पेंशन मिलती है। इस योजना के अंतर्गत एम्प्लॉई की बेसिक सैलरी का 12% EPF में जमा किया जाता है। इसमें से 8.33% कंपनी की ओर से EPS खाते में जमा किया जाता है। यह रकम कर्मचारी के 58 साल की आयु हो जाने पर पेंशन के रूप में दी जाती है। EPS का लाभ लेने के लिए EPF में कम से कम 10 साल तक पैसा जमा जरूर होना चाहिए। अगर आप कंपनी बदलते हैं, तो अपना पीएफ अकाउंट नई कंपनी में ट्रांसफर करा लें।

एक्सपर्ट पैनल
चिन्मय समाजदार, इंडस्ट्री प्रफेशनल
अर्चित गुप्ता, फाउंडर और सीईओ, क्लियर टैक्स
राहुल त्यागी, एरिया सेल्स मैनेजर (दिल्ली-नोएडा), एचडीएफसी सिक्योरिटीज
साभार नवभारत टाइम्स

सीताफल के बड़े फायदे जानिए

*जानिए, शरीफा (सीताफल) के सेवन से होने वाले बेशुमार फायदे*

1 शरीफे में पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी-6 पाया जाता है, जो अस्थमा अटैक से बचाव करने में मदद करता है।
2 ऐसा माना जाता है कि दिल के मरीजों को शरीफा का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। शरीफा में मौजूद पोटैशियम, मैग्निशियम दिल से जुड़ी बीमारियों से राहत दिलाने में बहुत मददगार होते है।
3 शरीफा का सेवन आंखों की रोशनी को बढ़ाने में भी फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं।
4 शरीफा में कॉपर और आयरन भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो खून की कमी को दूर करता है। इसलिए इसका सेवन गर्भवती महिलाओं के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है।
5 इसमें मौजूद फाइबर कब्ज की परेशानी को दूर करता है।
6 शरीफा में मौजूद विटामिन बी-6 और एंटीऑक्सीडेंट के गुण दिमाग को तेज करने में सहायक होने के साथ ही तनाव कम करने में भी मदद करते हैं।

Friday, April 26, 2019

पेट में गैस और एसिडिटी से बचने के लिए ये करें

*पेट में गैस बनने से निजात पाने के 12 उपाय*

1. नीबू के रस में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर सुबह के वक्त खाली पेट पिएं।
2. काली मिर्च का सेवन करने पर पेट में हाजमे की समस्या दूर हो जाती है।
3. आप दूध में काली मिर्च मिलाकर भी पी सकते हैं।
4. छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से भी गैस की समस्या में काफी लाभ मिलता है।
5. दालचीनी को पानी मे उबालकर, ठंडा कर लें और सुबह खाली पेट पिएं। इसमें शहद मिलाकर पिया जा सकता है।
6. लहसुन भी गैस की समस्या से निजात दिलाता है। लहसुन को जीरा, खड़ा धनिया के साथ उबालकर इसका काढ़ा पीने से काफी फादा मिलता है। इसे दिन में 2 बार पी सकते हैं।
7. दिनभर में दो से तीन बार इलायची का सेवन पाचन क्रिया में सहायक होता है और गैस की समस्या नहीं होने देता।
8. रोज अदरक का टुकड़ा चबाने से भी पेट की गैस में लाभ होता है।
9. पुदीने की पत्तियों को उबाल कर पीने से गैस से निजात मिलती है।
10. रोजाना नारियल पानी सेवन करना गैस का फायदेमंद उपचार है।
11. इसके अलावा सेब का सिरका भी गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होगा।
12. इस सभी उपचार के अलावा सप्ताह में एक दिन उपवास रखने से भी पेट साफ रहता है और गैस की समस्या पैदा नहीं होती।

Monday, April 22, 2019

स्वस्थ रहनें के लिए जीभ की करें सफाई

*बीमारी से रहना है दूर तो करें जीभ की भी सफाई, जानिए 5 तरीके*

1 दही -दही को जीभ पर लगाएं, ये प्रो-बायोटिक होता है जो कि जीभ पर जमा फंगस, सफेद परत और गंदगी को खत्म करने में मददगार होता है।
2 हल्दी -हल्दी पाउडर में थोड़ा सा नींबू का रस मिलाकर भी इसे जीभ पर रगड़ सकते है। फिर कुछ देर में गुनगुने पानी से कुल्ला कर लें। जीभ की अच्छे से सफाई हो जाएगी।
3 माउथवाश -भोजन करने या कुछ खाने के बाद खाने के कुछ अंश जीभ पर चिपके रह जाते हैं। इसलिए हर वक्त खाने के बाद पानी से कुल्ला करे और अगर माउथवाश इस्तेमाल करे तो और भी बेहतर है। ऐसा करने से जीभ और मुंह की गंदगी साफ होती रहेगी।
4 नमक -जीभ की सफाई के लिए नमक एक प्राकृतिक स्क्रब की तरह काम करता है। इसे जीभ पर छिड़क कर ब्रश के पिछले हिस्से से हल्का दबाव डालकर रगड़े ,फिर कुल्ला कर लें।
5 बेकिंग सोडा -बेकिंग सोडा भी एक प्रभावशाली स्क्रब की तरह काम करता है। इसमें नींबू की कुछ बूंदे मिलाएं और जीभ पर उंगली से लगाएं और थोड़ी देर रखने के बाद कुल्ला कर लें। ऐसा करने से जीभ पर जमी सफेद परत व गंदगी आसानी से निकल जाती है।

Saturday, April 20, 2019

मसूड़ो की समस्या से ऐसे निपटें

*क्या आपको भी मसूड़ों से आता है खून? तो पढ़ें घरेलू उपाय*
 शशांक द्विवेदी
1 खट्टे फलों का सेवन अधिक करें, उनमें विटामिन सी होता है जो मसूड़ों के लिए अच्छा होता है। कई बार विटामिन सी की कमी से भी मसूड़ों से खून आ सकता है।
2 दांतों और मसूड़ों के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी है, इसलिए कैल्शियम युक्त चीजें खाएं-पिएं जैसे दूध आदि।
3 कच्ची सब्जियां खाने से भी मसूड़े स्वस्थ रहते हैं और दांतों की चमक भी बरकरार रहती है।
4 मसूड़ों की समस्या होने पर बेकिंग सोडा का इस्तेमाल करें और उससे मसूड़ों की हल्की मसाज करें। बेकिंग सोडा में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते है जिससे मुंह तो साफ होता है ही, साथ ही मुंह की बदबू भी समाप्त हो जाती है।
5 लौंग को मुंह में रखना भी मसूड़ों के लिए फायदेमंद होता है। लौंग के तेल से मसूड़ों की मालिश करने से भी मसूड़े तो स्वस्थ होते हैं।

Thursday, April 18, 2019

वजन कम करने में सहायक हैं ये 5 फल

*जल्दी वजन कम करना है तो ये 5 फल खाना कर दें शुरू, फ‍िर देखि‍ए कमाल*
 शशांक द्विवेदी
अनार : अनार जितना टेस्टी है उतना ही गुणकारी भी। इसका रंग लाल होना इस बात की निशानी है कि ये आपको ढेर सारे पौषक तत्व देने के अलावा खून या हीमोग्लोबिन का भी कोटा पूरा करने में समर्थ है। वजन की तो आपको चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं।
अमरूद : एक और टेस्टी फल है अमरूद। आपके पाचन को बेहतरीन करने वाला अमरूद इतना गुणकारी है कि इसके न्यूट्रिएंट्स इसे लगभग संपूर्ण भोजन बनाते हैं। सबसे अच्छी बात है कि इसे भरपूर खाएं और बढ़ते वजन को एकदम भूल जाएं।
सेबफल : इसके बारे में प्रसिद्ध है कि रोज का एक सेब आपके पास डॉक्टर नहीं आने देगा। इसके पोषक तत्व इतने गुणकारी हैं कि आप बीमार भी नहीं पड़ेंगे। वजन की चिंता भूलने का समय आ गया है।
अनानास : पाइनेपल या अनानास का जूस सबसे पसंदीदा जूस में से एक है। इसे आप यूं भी सलाद का हिस्सा बनाकार भी खा सकते हैं। यह बेहद स्वादिष्ट और गुणकारी है। वजन कम करना भी इसके गुणों में से एक है।

Wednesday, April 17, 2019

जल्दी फिट रहनें के लिए करें ये काम

*कम समय में होना है फिट तो पढ़ें काम के 6 टिप्स*
 शशांक द्विवेदी
1 कम समय में आपको जब मोटापा घटाना हो, तो ध्यान रखें खाने की मात्रा एकदम से बिल्कुल कम न करें। शरीर को 1200 कैलोरी की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। ऐसे में आप 1000 से कम कैलोरी किसी भी स्थि‍ति में न लें। इससे थकान और उर्जा की कमी नहीं होगी।
2 खाने में तैलीय व मसालेदार चीजों से बिल्कुल परहेज करें। लो कैलोरी फूड पर ध्यान केंद्रित करें, उबली हुई सब्जियां भी फायदेमंद होंगी। चाहें तो बिना शकर का जूस, सूप, ग्रीन टी, नारियल पानी, नींबू पानी का सेवन कुछ घंटों में कर सकते हैं।
3 बिस्किट, ब्रेड, नमकीन, चॉकलेट, चिप्स जैसी चीजों से दूरी बना लें। मैदे की चीजें बिल्कुल न खाएं। सूप और जूस के मामले में भी बाजार की चीजों के बजाए घर पर बनाकर ही लें।
4 फल, सब्जियां, सलाद एवं सूखे मेवों को आहार में ज्यादा से ज्यादा शामिल करें। इससे आपके शरीर में पोषण की कमी नहीं होगी और उर्जा बनी रहेगी। इसके अलावा आपका पेट भी जल्दी भर जाएगा।
5 सुबह और शाम के समय लगभग 1 घंटा पैदल चलें और कार्डियो व्यायाम करें। लगभग 1 से डेढ़ घंटा कार्डियो करें। इसके अलावा योगा करने से भी शरीर सही आकार में आएगा।
6 सुबह खाली पेट गरम पानी में नींबू-शहद या फिर दालचीनी का पाउडर लें। आप चाहें तो हरा धनिया और नींबू का जूस बनाकर भी खालीपेट ले सकते हैं यह भी वजन कम करने में सहायक है।

बहुत गुणकारी है फिटकरी

*गर्मियों में नहाए फिटकरी के पानी से, होंगे कमाल के फायदे*

फिटकरी का इस्तेमाल आपने घर में होते कई बार देखा होगा। पानी को साफ करने के लिए अक्सर घरों में इसे मटके के पानी में डालकर घुमाया जाता है। फिटकरी के कुछ ऐसे घरेलू नुस्खे भी है, जो आपकी कई सेहत और सौन्दर्य समस्याओं को दूर कर सकते हैं। आइए, जानते हैं उन्हीं के बारे में -
1 शरीर पर जमी गंदगी और कीटाणुओं को समाप्त करने के लिए फिटकरी के पानी से नहाना बहुत अच्छा उपाय है।
2 यह आपके शरीर और पसीने की बदबू को भी कम करेगा।
3 त्वचा के दाग धब्बे हटाने के लिए फिटकरी एक बढ़िया उपाय है। आप चाहें तो नियमित रूप से चेहरे पर फिटकरी से मसाज करें या फिर फिटकरी मिले पानी से चेहरे को साफ करें। त्वचा बेदाग हो जाएगी।
4अगर आपके दांतों में दर्द है और आपको उससे निजात नहीं मिल रही, तो फिटकरी का पाउडर संबंधित स्थान पर लगाएं। ऐसा करने पर आपको दांत दर्द से निजात मिलेगा।


लिवर की सेहत के लिए जरूरी हैं ये

*लिवर की समस्या में फायदेमंद है इन 5 चीजों का सेवन, आप भी जानिए*
 शशांक द्विवेदी
1. कलौंजी का तेल : यह एक एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है। इसे हम खासतौर पर शरीर की प्रतिरोधकता बढाने वाला समझ सकते हैं। एंटीऑक्सीडेंट कैंसर से लडते हैं इसके अलावा लिवर की हेल्थ भी कलौंजी से बढ़िया रहेगी। इस तेल के उपयोग से लिवर लेड जैसी धातु को शरीर के बाहर आराम से निकाल देता है।
2. हल्दी : हल्दी का उपयोग भारतीय भोजन में रंग, स्वाद और न्यूट्रिएंट्स के लिए होता है। इसे जादुई चीज़ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेट्री (सूजन घटाने का), एंटीबैक्टेरियल गुण होते हैं। लिवर एकदम दुरूस्त रहेगा।
3. अदरक : अदरक लिवर को ऐसे तत्व देता है जिससे इसका काम की क्षमता बढ़ जाती है। यह भी एंटीऑक्सीडेंट गुणों का खजाना है। रिसर्च में तब बात साबित हो चुकी है कि अदरक का प्रयोग आपके लिवर को तंदुरूस्त रखेगा।
4. नींबू : नींबू का पेट या पाचन को दुरूस्त करने के लिए कई बार आपके सामने सलाह के रूप में आया होगा। हर दिन की शुरुआत नींबू और गर्म पानी के साथ करने की सलाह दी जाती है। लिवर की क्रियाओं को नींबू जमकर बूस्ट देता है।
5. चुकंदर : खून को हीमोग्लोबिन और आपको हेल्थ की लालिमा देने वाला चुकंदर गुणों का खजाना है। कई बीमारियों से आपकी रक्षा के अलावा चुकंदर आपके लिवर को भी कई गुना अधिक ताकतवर बना देगा।

Sunday, April 14, 2019

नींबू है बहुत फायदेमंद

*थोड़ा सा नींबू भोजन में शामिल करने से होंगे 12 बेहतरीन फायदे*

1. नींबू खराब गले, कब्ज, किडनी और मसूड़ों की समस्याओं में राहत पहुंचाता है।
 2. यह ब्लड प्रेशर और तनाव को कम करता है।
3. नींबू विटामिन सी का बेहतर स्रोत है इसलिए यह त्वचा को स्वस्थ बनाने के साथ ही लिवर के लिए भी यह बेहतर होता है।
4. नींबू पानी में कई तरह के मिनरल्स जैसे आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, पोटैशियम और जिंक पाए जाते हैं।
5. नींबू पानी पीने से शरीर को रिहाइड्रेट होने में मदद मिलती है और यह यूरीन को पतला रखने में मदद करता है। साथ ही यह किडनी स्टोन बनने के किसी भी तरह के खतरे को कम करता है।
6. नींबू पानी हाई शुगर वाले जूस व ड्रिंक का बेहतर विकल्प है। खासतौर से उनके लिए जो डायबिटिक या वजन कम करना चाहते हैं।
7. पाचनक्रिया में फायदेमंद- नींबू पानी में मौजूद नींबू का रस हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पित्त सिक्रेशन के प्रोडक्शन में वृद्धि करता है,जो पाचन के लिए आवश्यक है।
8. प्रतिदिन सुबह गर्म नींबू पानी पिएं और पूरे दिन कॉन्स्टीपेशन की समस्या से दूर रहें।
9. नींबू पानी को गुनगुना करके पीने से गले की खराबी या फैरिन्जाइटिस में आराम पहुंचाता है।
 10. नींबू पानी पीने से मसूड़ों से संबंधित समस्याओं से राहत मिलती है। नींबू पानी में एक चुटकी नमक मिलाकर पीने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
11. नींबू पानी में एंटी ट्यूमर गुण होते हैं, जिससे की कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
12. इसमें ब्लड प्रेशर को कम करने के गुण के साथ ही तनाव, डिप्रेशन और अवसाद कम करने के गुण पाये जाते हैं। नींबू पानी पीने से तुरंत ही आपको आराम का अनुभव होगा।

Saturday, April 13, 2019

ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करनें में मददगार है लीची

*ब्लडप्रेशर को नियंत्रित कर हृदयगति को रखना है सही तो खाएं गुणों से भरपूर लीची*

1. विटामिन, मिनरल्स, एंटी-ऑक्सीडेंट और डायट्री फाइबर से भरपूर लीची आपके स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी फल है, जिसमें 66 कैलोरी प्रति 100 ग्राम की मात्रा में उपलब्ध होती है।और इसमें सैच्युरेटेड फैट या संतृप्त वसा बिल्कुल भी नहीं होता।
2. लीची में मौजूद पोटेशि‍यम ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर ह्दय-गति और खून की चाल को नियंत्रित करता है, जिससे हृदय रोग या अटैक की संभावना कम होती है।
3. इसमें कॉपर भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण करता है।
4. लीची में एंटी-ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो आपकी त्वचा को स्वस्थ और खूबसूरत बनाए रखने में सहायक हैं।
5. लीची में विटामिन- सी भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। प्रति 100 ग्राम लीची में विटामिन-सी की मात्रा 71.5 मिलीग्राम होती है, जो प्रतिदिन की आवश्यकता का 119 प्रतिशत है।
6. बी-कॉम्प्लेक्स और बीटा कैरोटीन से भरपूर लीची, फ्री रेडिकल्स से रक्षा करती है, साथ ही मेटाबॉलिज्म को भी नियंत्रित करती है।
 7. ऑथ्राईटिस में लीची खाने से लाभ होता है और दमा के मरीजों के लिए भी लीची बेहद लाभदायक फल है।इसके अलावा यह रक्तसंचार को बेहतर करने में सहायक है।
 8. लीची में एंटी-ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो आपकी त्वचा को स्वस्थ और खूबसूरत बनाए रखने में सहायक हैं। इसके साथ ही लीची, सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से बचाव करने में भी बेहद फायदेमंद है।
9. इसमें मौजूद फाइबर की अत्यधि‍क मात्रा आपके पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के साथ ही सीने और पेट की जलन को भी शांत करती है।
 10. यदि आपको कफ की शिकायत बनी रहती है, तो लीची आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

यूरिक एसिड से संबंधित भ्रांतियों को दूर करिये

स्कंद शुक्ला

साधो , तुम्हें 'गाउट' है। गाउट नहीं समझते ? यूरिक एसिड वाला गठिया-रोग !

यूरिक एसिड के कारण होने वाला गठिया 'गाउट' के नाम से जाना जाता है।
साधो , समस्या यही है। लोग यूरिक एसिड को ज़्यादा जानते हैं और गाउट को कम। इसी लिए चारों ओर यह अन्धेर फैला है। कारक के बारे में जब लोगों को अधिक पता होगा और परिणति के बारे में कम , तो ऐसे ही तमाशे होंगे।
साधो , तुम्हारे पुराने वाले डॉक्टर साहब ने तुमसे प्रोटीन बन्द करने को कहा है ; उनका मानना है कि अगर प्रोटीन खाओगे तो यूरिक एसिड बढ़ जाएगा। इसलिए तुमने हर तरह के प्रोटीन-समृद्ध भोज्य का सेवन त्याग दिया है। प्रोटीन की वृद्धि रोकने के लिए तुमने अपने पुराने डॉक्टर साहब के साथ कमर कस ली है।
साधो , प्रोटीन के पीछे डण्डा लेकर क्यों पड़े हैं , तुम और तुम्हारे डॉक्टर साहब ! असली मुजरिम तो कोई और है ! वह जिसे न तुम्हारे डॉक्टर साहब देखते हैं और न तुम्हें दिखाते हैं। बिलावजह दाल-दूध-अण्डा --- सब के लिए तुम्हारी जीभ पर पहरा बिठा दिया है !
उनसे कहो कि एम.बी.बी.एस प्रथम वर्ष में पढ़ कर धर दी बायोकेमिस्ट्री की पाठ्यपुस्तक दोबारा खोलें और उसमें यूरिक एसिड के निर्माण-चक्र को फिर से पढ़ें। सम्भवतः बहुत सी अच्छी पुरानी बातों के तरह उन्होंने उसे भी बिसरा दिया है। यूरिक एसिड-निर्माण का तो प्रोटीन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है।
साधो , यूरिक एसिड एक अपशिष्ट है शरीर का --- एक प्रकार का मल , जो शरीर मुख्य रूप से पेशाब में बाहर निकालता है। यह प्रोटीन से नहीं , बल्कि प्यूरीन (डी.एन.ए. और आर.एन.ए.) के विखण्डन के फलस्वरूप बनता है। प्यूरीन ही यूरिक एसिड के निर्माण की कच्ची सामग्री हैं , कोई प्रोटीन-वोटीन नहीं।
अब तुम प्यूरीन के विषय में जानते ही नहीं और तुम्हारे पुराने डॉक्टर साहब को बायोकेमिस्ट्री अब याद नहीं रही। इसलिए वे प्रोटीन-परहेज़ की माला फेर रहे हैं और तुम्हें भी फेरने को कह रहे हैं। जब चिकित्सा लेने व देने वाले दोनों ही पढ़ाई-लिखाई में कमज़ोर होंगे , तो ऐसी ही भ्रान्तियाँ तो पैदा होंगी न !
साधो , गाउट नामक गठिया-रोग शरीर में यूरिक एसिड के अधिक पैदा होने से अथवा पेशाब में कम निकाले जाने से उत्पन्न होता है। ज़्यादा विस्तार में नहीं जाऊँगा , लेकिन इतना तो जानो ही कि इस रोग का मुख्य लक्षण किसी ख़ास जोड़ में ( विशेषकर पैर के अँगूठे , टखने अथवा घुटने में ) भयंकर दर्द व सूजन है। सूजन भी ऐसी कि जोड़ के ऊपर की खाल लाल नज़र आने लगती है।
गाउट नामक इस गठिया का दर्द कोई ऐसा-वैसा दर्द नहीं है। मेडिकल पाठ्यपुस्तकों में सबसे भीषण दर्दों --- प्रसवपीड़ा , हृदयाघात और दाँत-दर्द के साथ गाउट का नाम आता है। अब तुम समझ सकते हो कि मैं किस शिद्दत के दर्द की बात यहाँ कर रहा हूँ।
साधो , गाउट का उपचार तुम्हें नहीं बताऊँगा , नहीं तो तुम नीम-हक़ीमी करने लगोगे। लेकिन कुछ करणीय-अकरणीय बातों से अवश्य अवगत कराऊँगा।
गाउट में पानी का 2-3 लीटर सेवन लाभप्रद रहता है। यह पानी जो तुम पीते हो न , पेशाब बनकर यूरिक एसिड के उत्सर्जन में मदद करता है। मांस और मदिरा से यथासम्भव दूर रहो। ये दोनों वस्तुएँ शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ाती हैं। और हाँ ! फैंटा-पेप्सी-कोका कोला को भी नमस्ते कर लो , इनसे भी यह बढ़ता है।
दाल और दूध छोड़ने की बात मत करो , उन्हें खाते रहो। प्रोटीन का ढंग से सेवन ज़रूरी है , सभी के लिए। ( कोई गुर्दा-रोगी हो , तो बात अलग है !) नींबू / सन्तरा / मौसमी /आँवला खाओ , इनमें मौजूद विटामिन सी यूरिक एसिड की मात्रा नीचे रखने में सहायक है।
और फिर सबसे महत्त्वपूर्ण बात , साधो --- अपने तोंद छाँटो ! मोठे लोगों का तो यूरिक एसिड बढ़ा हुआ आएगा ही , यह तो एक वैज्ञानिक सत्य है ! मक्कारी -कामचोरी बन्द करो , कसरत करो , पसीना बहाओ !
और अन्त में ! अपने डॉक्टर साहब से ऊपर लिखी सभी बातों पर चर्चा करो , मगर ख़ुद बिना डिग्री के डॉक्टर न बनो। जिस मेडिकल साइंस को समझने में हमें पन्द्रह साल भी कम जान पड़े , उसे हम तुम्हें एक फ़ेसबुकिया लेख में नहीं समझा सकते।
लेकिन यूरिक एसिड प्रोटीन खाने से नहीं बनता , यह एक जैवरासायनिक सत्य है। इसे जानो , मानो और अपने डॉक्टर साहब को याद दिलाओ।

Wednesday, April 10, 2019

मर्ज को दें मीठी गोली

आज 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष
Homeopathy Basics: Special on World Homeopathy Day

मर्ज को दें मीठी गोली
होम्योपैथी से तो सभी परिचित हैं, लेकिन सवाल यह है कि हम होम्योपैथी को जानते कितना हैं? कहीं हमारी जानकारी सुनी-सुनाई बातों पर तो आधारित नहीं? एक मरीज के रूप में होम्योपैथी की खासियतों और सीमाओं के बारे में जानना जरूरी है। होम्योपैथी के विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपैथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपैथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं। भारत सरकार भी इस चिकित्सा पद्धति पर काफी ध्यान दे रही है। इसे आयुष मंत्रालय के अंतर्गत जगह दी गई है।

क्या है होम्योपैथी, क्यों है यह खास?
एलोपैथी और आयुर्वेद की तरह होम्योपैथ भी एक चिकित्सा पद्धति है। इसमें एलोपैथी की तरह दवाओं का एक्सपेरिमेंट जानवरों पर नहीं होता। इसे सीधे इंसानों पर ही टेस्ट किया जाता है। होम्योपैथिक दवाइयां एलोपैथी की तुलना में काफी सुरक्षित मानी जाती हैं।

क्या इसके भी साइड इफेक्ट्स हैं?
होम्योपैथी के साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर एलर्जी हो हो जाए। दरअसल, ये परेशानी साइड इफेक्ट की वजह से नहीं है। ये होम्योपैथी के इलाज का हिस्सा है, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं। इस प्रक्रिया को 'हीलिंग काइसिस' कहते हैं जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं।

क्या होम्योपैथी में इलाज काफी धीमा होता है?
80 फीसदी मामलों में लोग होम्योपैथ के पास तब पहुंचते हैं जब एलोपैथी या आयुर्वेद से इलाज कराकर थक चुके होते हैं। कई बार तो 15 से 20 साल से इंसुलिन लेने वाले शुगर के पेशंट थक-हारकर होम्योपैथ के पास पहुंचते हैं। ऐसे मामलों में इलाज में वक्त लग सकता है।

कैसे होता है इलाज?
इसमें मरीज की हिस्ट्री काफी मायने रखती है। अगर किसी की बीमारी पुरानी है तो डॉक्टर उससे पूरी हिस्ट्री पूछता है। मरीज क्या सोचता है, वह किस तरह के सपने देखता है जैसे सवाल भी पूछे जाते हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू होता है।
 
किस तरह की बीमारियों में सबसे अच्छी?
इलाज लगभग सभी बीमारियों का है। पुरानी और असाध्य बीमारियों के लिए सबसे अच्छा इलाज माना जाता है इसे। असाध्य बीमारियां वे होती हैं जो एलोपैथ से इलाज के बाद भी बार-बार आ जाती हैं, लेकिन माना जाता है कि होम्योपैथी उन्हें जड़ से खत्म कर ली है, मसलन एलर्जी (स्किन), एग्जिमा, अस्थमा, कोलाइटिस, माइग्रेन आदि।

किन बीमारियों में कम कारगर?
होम्योपैथी कैंसर में आराम दे सकती है। हां, पूरी तरह ठीक करना मुश्किल है। शुगर, बीपी, थायरॉइड आदि के नए मामलों में यह ज्यादा कारगर है। अगर किसी मर्ज का पुराना केस है तो पूरी तरह ठीक करने में देरी होती है।

इसके इलाज के लिए कोई डॉक्टर सफेद मीठी गोलियां देता है तो कोई लिक्विड। ऐसा क्यों?
होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

क्या होम्योपैथी में दवा सुंघाकर भी इलाज किया जाता है?
हां, कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें मरीज को सिर्फ सूंघने के लिए कहा जाता है। मसलन, साइनुसाइटिस और नाक में गांठ की समस्या होने पर डॉक्टर ऐसे ही इलाज करते हैं।

अगर किसी को 5 बीमारियां हैं तो क्या उसे 5 तरह की दवा दी जाएगी?
ऐसा बिलकुल भी नहीं है। एलोपैथ की तरह इसमें 5 अलग-अलग बीमारियों के लिए 5 तरह की दवा नहीं दी जाती है। होम्योपैथ डॉक्टर 5 बीमारियों के लिए एक ही दवा देता है।

इलाज के दौरान लहसुन-प्याज न खाएं?
10-15 साल पहले होम्योपैथी दवाई लिखने के बाद डॉक्टर यह ताकीद जरूर करते थे कि लहसुन, प्याज जैसी चीजें नहीं खाना है, क्योंकि माना जाता था कि इनकी गंध से दवाई का असर कम हो जाएगा। लेकिन नए शोधों ने इस तरह की सोच को बदल दिया है। अब डॉक्टर इन चीजों को खाने की मनाही नहीं करते। अब इंसानी शरीर प्याज, लहसुन आदि के लिए नया नहीं रहा।

तो इस चिकित्सा पद्धति से इलाज कराते हुए कोई परहेज नहीं है?
होम्योपैथी की दवा खाने के दौरान जिस एक चीज की सख्त मनाही होती है वह है कॉफी। दरअसल, कॉफी में कैफीन होती है। कैफीन होम्योपैथी दवा के असर को काफी कम कर देती है। कुछ डॉक्टर डीयो और परफ्यूम भी लगाने से मना करते हैं। माना जाता है कि इनकी खुशबू से भी दवा का असर कम हो जाता है।

एक होम्योपैथिक डॉक्टर की डिग्री क्या होनी चाहिए?
होम्योपैथी में इलाज करने के लिए साढे पांच साल की BHMS की डिग्री जरूरी है। यह एलोपैथ की MBBS की डिग्री के बराबर है। इसके अलावा डॉक्टर के पास अगर MD (3 साल) की डिग्री हो तो सोने पर सुहागा है। एमडी के कई ब्रांचेज हैं, मसलन मटीरिया मेडिका (दवाओं के बारे में), साइकाइट्री (मरीज की मानसिक स्थिति को समझना), रिपोर्टरी (दवाई ढूंढने का तरीका)। DHMS यानी डिप्लोमा वाले, जिन्होंने 1980 से पहले िडग्री ली है, प्रैक्टिस कर सकते हैं।

क्या होम्योपैथिक डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन भी होता है?
हां, होता है। एक केंद्रीय स्तर पर और दूसरा राज्य स्तर पर। इन दोनों जगहों पर डॉक्टरों को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। केंद्र में CCH (Central Council of Homeopathy) में सभी डॉक्टरों को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। इसकी साइट www.cchindia.com पर जाकर किसी खास डॉक्टर से संबंधित जानकारी RTI के द्वारा मांग सकते हैं। यह वेबसाइट आयुष मंत्रालय की साइट www.ayush.gov.in से सीधा लिंक्ड है। इनके अलावा जिस राज्य में होम्योपैथ प्रैक्टिस करता है, उसी राज्य की कौंसिल में भी रजिस्ट्रेशन जरूरी है।

कई होम्योपैथ डॉक्टर ऐलोपैथिक दवाई भी देते हैं, ऐसा क्यों है?
कोई भी होम्योपैथ एलोपैथी की दवाई नहीं दे सकता। कानूनी रूप से गलत है।

क्या प्लास्टिक या शीशे की डिब्बी से फर्क पड़ता है?
साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, होम्योपैथी की दवाएं कांच की बोतल में देना ही बेहतर है। अगर उस पर कॉर्क लगा हो तो और भी अच्छा। दरअसल, होम्योपैथी की दवाओं में कुछ मात्रा में अल्कोहल का उपयोग किया जाता है। अल्कोहल प्लास्टिक से रिऐक्शन कर सकता है। वैसे, आजकल प्लास्टिक बॉटल की क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कई डॉक्टर दवाई देने के लिए करते हैं। दरअसल, कांच की बॉटल को साथ में ले जाना करना मुश्किल होता है। इसके टूटने का खतरा बना रहता है।

क्या एलोपैथी और होम्योपैथी की दवाई एक साथ ले सकते हैं?
हां, जरूर ले सकते हैं, लेकिन यह समझना मुश्किल हो जाता है कि बीमारी ठीक किसकी वजह से हुई है।

कहां की बनी हुई दवाइयां बेहतर हैं?
होम्योपैथी की दवाई के उत्पादन और गुणवत्ता के मामले में जर्मनी पूरी दुनिया में आगे है। इंडिया में होम्योपैथी की डिमांड को देखते कुछ जर्मन कंपनियों ने यहां भी अपने सेंटर शुरू किए हैं। कई भारतीय कंपनियां भी अच्छी दवाएं बना रही हैं।

क्या है होम्योपैथी की सीमा?
- अगर किसी शख्स में किसी विटामिन या मिनरल की कमी हो जाती है तो होम्योपैथी में उनके लिए ज्यादा ऑप्शन नहीं हैं। मसलन, किसी को आयरन की कमी की वजह से एनीमिया हो गया है तो इस मामले में होम्योपैथी की एक सीमा है।
- इमर्जेंसी की स्थिति में यह काम नहीं करती। अगर किसी का एक्सिडेंट हुआ है या हार्ट अटैक आया है तो एलोपैथी ही बेहतर ऑप्शन है। हां, जब इमर्जेंसी की स्थिति खत्म हो जाए, फिर स्थायी इलाज के लिए होम्योपैथी को शामिल कर सकते हैं।
- हर शख्स के ऊपर होम्योपैथी अलग-अलग तरीके से काम करती है। ऐसा नहीं है कि एक दवाई अगर एक पर काम कर गई तो वही दवाई दूसरे पर भी काम करेगी। साथ ही, इसका असर भी अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग होता है। इसलिए लंबे समय से होम्योपैथी की दवाओं के उपयोग से फायदा न हो तो एलोपैथी, आयुर्वेद या नेचुरोपैथी को देखना चाहिए।
- मरीज की वर्तमान स्थिति से ज्यादा इतिहास खंगालने में यकीन करती है यह पद्धति। अगर किसी वजह से किसी की पूर्व की समस्याओं या इतिहास पता न हो तो होम्योपैथी से इलाज कराना मुश्किल हो जाता है।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. सुशील वत्स, बीएचएमएस, एमडी
डॉ. शुचींद्र सचदेव, बीएचएमएस,  एमडी
डॉ. कुशल बनर्जी, बीएचएमएस,  एमडी
डॉ. हिमांशु सक्सेना, बीएचएमएस, एमडी

संडे नवभारत टाइम्स में प्रकाशित