Friday, September 30, 2011

तकनीकी शिक्षा में बड़े सुधार की जरुरत


तकनीकी शिक्षा में बड़े सुधार की जरुरत
भारत में तकनीकी शिक्षा के वर्तमान स्वरूप को देखकर यह प्रतीत होता है कि हम अभी तक उसे व्यावहारिक और रोजगारपरक नहीं बना पाए हैं। पिछले 25 साल में उच्च शिक्षा और तकनीकी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है| हजारों इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए है और लगातार खुल भी रहे है | पर क्या इन संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी दी  जा सकती है | यही वजह है आज लोगो का रुझान तकनीकी शिक्षा  की तरफ कम होने लगा है और पूरे देश में तकनीकी शिक्षा के मौजूदा सत्र में बड़े पैमाने पर सीटे खाली रह गई  | वास्तव में इस स्थिति के जिम्मेदार भी कालेज संचालक है जिन्होनें गुणवत्ता की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और इंजीनियरिंग कालेज खोलने को एक कमाउ उपक्रम का हिस्सा मान लिया | प्रदेश के अधिकांश निजी तकनीकी   शिक्षा संस्थान बड़े व्यापारिक घरानों, नेताओं और ठेकेदारों के व्यापार का एक हिस्सा हैं। जो तकनीकी   शिक्षा के जरिए रूपया बनाना चाहते हैं।इन्होनें अपनी पूॅजी के बल पर बडे बड़े अलीशान भवन खड़े कर दिए। कार्पोरेट और शिक्षा जगत के नामी लोगों के बायोडाटा जुगाड़ कर मान्यता भी ले ली। मगर शैक्षिणिक गुणवत्ता के नाम पर फिसड्डी ही बने रहें। आज तक प्रदेश का कोई भी निजी इंजीनिरिंग कालेज देश के प्रतिष्ठित इंजीनिरिंग कालेजों की सूची में जगह नहीं बना पाया है।

निजी क्षेत्र की संस्थाएं सस्ते वेतनमान पर किसी को भी शिक्षक बनाकर विद्यार्थियों को धोखा देने का काम कर रही हैं। इनका नतीजा शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के रूप में सामने आ रहा है।पाठय़क्रमों में सालोंसाल कोई बदलाव न होना, उच्च शिक्षा की एक बड़ी कमी है। खासतौर पर इंजीनियरिंग और मेडिकल में, क्योंकि इन क्षेत्रों में नई-नई तकनीकें विकसित होती हैं, नए विभाग, नए पाठय़क्रम शुरू होते हैं। पर हमारे देश में यह सब दिखावे के लिए एक मुखौटा बन जाता है। घिसे-पिटे कोर्स से जो शिक्षा दी जाती है, उससे तैयार होने वाले ग्रेजुएट से न तो हम मेधा और न हुनर की उम्मीद कर सकते हैं।
शिक्षा संस्थान धड़ाधड़ खोले जा रहे हैं। भड़कीले रंगों की पुताई कर बिल्डिंगें तो बना दी जाती है। मगर एक अच्छे शिक्षण संस्थान के लिए पुस्तकालय, वर्कशॉप, कंप्यूटर सेंटर और प्रयोगशालाएं स्तरीय होनी चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश में इन्हें छोड़कर ही बाकी सब दिखावटी चीजों के बलबूते शिक्षण संस्थान खड़े किए जाते रहे हैं। यह सिलसिला चलता रहा, तो आने वाले समय में हमारे समाज में घटिया दर्जे के स्नातकों की बड़ी फौज खड़ी हो जाएगी। ये सभी युवा रोजगार के लिए इधर-उधर ठोकरें खाते फिरेंगे और उनकी ऊर्जा को समाज ने सही दिशा नहीं दी, तो उनका क्रोध किसी बड़े आंदोलन की शक्ल लेगा।
अभी कुछ दिनों पहले पूर्व महामहिम राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है कि स्नातक विद्यार्थियों को सरकारी नौकरियों का इंतजार करने के बजाय अपना उद्यम शुरू करने का साहस दिखाना चाहिए।

अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर किस दिशा में रोजगार के विकल्प तलाशे जाएं, जबकि भारत की बेरोजगारी कृषि व्यवसाय, परंपरागत व्यापार, जाति व्यवस्था, पूंजी प्रधान विकास की अवधारणा, सरकारी नौकरियों की तरफ अधिक झुकाव तथा उद्यमशीलता और जोखिम उठाने की क्षमता के अभाव के साथ जुड़ी हुई है। हमें समाधान खोजना होगा, तभी स्नातक छात्र इस दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। भारत में तकनीकी संस्थानों की संख्या कुकुरमुत्ते की तरह लगातार बढ़ रही है। इनमें अधिकांश संस्थानों का अपना कोई मानक और स्तर नहीं है। इन तकनीकी संस्थानों में सिर्फ पाठ्यक्रम से संबन्घित चीजें पढ़ा दी जाती हैं, लेकिन इनके पास छात्रों के भविष्य के लिए कोई योजना नहीं है।
तकनीकी शिक्षा संस्थानों के लिए शिक्षा व्यापार का साधन हो गई है।
भारत में भी स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए हमें शैक्षणिक व्यवस्था में उद्यमिता के महत्व को रेखांकित करना चाहिए और तकनीकी छात्रों को कॉलेज शिक्षा के स्तर से ही उद्यम स्थापित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, जो उनमें रचनात्मकता और स्वतंत्रता की भावना का विकास करे। सबसे पहले हमें उन क्षेत्रों की पहचान करना होगी, जिन क्षेत्रों में रोजगार की प्रबल संभावनाएं मौजूद हैं। उचित प्रशिक्षण तथा वित्तीय उद्यम के खतरे उठाने के बाद ही रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। हमें विकास की नई सृजनात्मक नीति अपनानी होगी, जिसमें पूंजी आधारित तकनीकों की बजाय श्रम आधारित तकनीकों पर अधिक बल दिया जाए। कृषि आधारित उद्योगों और लघु उद्योगों को कुशल तकनीकी प्रबंधन के आधार पर बढ़ावा दिया जाए। महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी आधारभूत ढांचा विकसित किया जाए, ताकि लोग महानगरों की बजाय अपने-अपने शहरों में ही रहकर विकास कर सकें।

भूमंडलीकरण के दौर में विकसित तथा विकासशील देशों के बीच "तकनीक" को लेकर प्रतिस्पर्घा बनी हुई है। विकसित देश अपनी नवीनतम तकनीक किसी अन्य देश को देना नहीं चाहते, केवल अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं।
 ऎसे समय में भारत जैसे विकासशील देश को अपनी तकनीक खुद ही विकसित करना होगी और इस दिशा में युवा वैज्ञानिक एवं शासन स्तर पर संयुक्त रणनीति बनाने की भी आवश्यकता है।
देश में रोजगार पैदा करने वाले तंत्रों की क्षमता बढ़ाना चाहिए और उद्योग जगत व सरकारी तंत्र की तरफ से इस दिशा में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चलना चाहिए। नई तकनीक के विकास में जो मौलिक काम हो रहे हैं, उन्हें बढ़ावा देना होगा। देश में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे, लेकिन उपयोगी आविष्कार हुए हैं, उन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है। ऎसे आविष्कारों के बारे में अकसर छपता रहता है, लेकिन उस ओर सरकार कम ध्यान देती है, जिससे नई तकनीक के विकास को ज्यादा बल नहीं मिलता है। भारतीय समाज में आज तकनीकी विकास के अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत है, तभी हम गली-गली में रोजगार पैदा कर पाएंगे।
आज जरुरत है ऐसे तकनीकी ज्ञान की जो वास्तविकता की धरातल पर हो  साथ में व्यावहारिक भी हो जिससे हम  उसे अपने देश की परिस्थितियों के हिसाब से प्रयोग कर सके | देश के नौजवानों में इसे सिर्फ डिग्री लेने तक ही सीमित रख पाए बल्कि उनके अन्दर इसे लेकर एक उत्साह हो ,समझ हो ,विश्वास हो कुछ सकारात्मक कर पाने के लिए |
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