Saturday, December 21, 2013

अलविदा नन्ना ( नाना जी )

शशांक द्विवेदी
नन्ना आप इतना जल्दी ,इस तरह ये दुनियाँ छोड़ कर चले जायेंगे ,यकीन नहीं होता ..आप का जाना से एक युग का अंत हो गया ,उस युग का जिसने निस्वार्थ  भाव से अपने समाज और परिवार की सेवा की .हमेशा फकीरी में जिए और फकीरी में ही मरे ..सोचकर विश्वास ही नहीं होता कि घनघोर जंगल में रहकर आपने अपने परिवार के लिए वो कर दिखाया जो बड़े बड़े शहर में भी रहकर लोग नहीं कर पाए ,शायद नहीं कर पायेंगे .बाँदा जिले की नरैनी तहसील में बहुत छोटे से गाँव या ये कहें की कुछ सौ लोगों का पुरवा “मुर्दीराम पुर में रह कर आपने अपने परिवार के लिए विकासवादी  और आधुनिक सोच की जो नीव रखी वो एक मिसाल है आने वाली पीढियों के लिए . मुर्दीराम पुर,जहाँ जाने के लिए आज से 30-40 साल पहले सिर्फ पैदल या बैलगाड़ी ही एक माध्यम था, आपने शिक्षा की महिमा समझते हुए न सिर्फ अपने बेटों को शिक्षित किया बल्कि उन्हें उस जगह पहुँचाया जिसकी कल्पना आज के जमाने में कोई कर ही नहीं सकता .2 बेटे डाक्टर और एक बेटा इंजीनियर ,वो भी सभी शासकीय सेवा में ,सिर्फ और सिर्फ आपकी मेहनत और त्याग का ही परिणाम था .आपके विजन के बिना ये संभव ही नहीं था ...आपने अपना सुख –दुःख सब कुछ न्योछावर कर दिया अपने बच्चों के लिए .. “मुर्दीराम पुर “ में आपके वीरान घर की हकीकत शायद ही आपके बच्चों की कोठियाँ समझ पायें .नन्ना आपने बचपन से मुझे बहुत प्यार दिया ,प्यार और अपनेपन का सही और वास्तविक अर्थ मैंने सिर्फ अपने ननिहाल में महसूस किया ..आपको और नानी को देखकर लगता ही नहीं है आप इसी गृह के प्राणी है ..आपकी सादगी और अपनापन देख कर मै बचपन से ही अभिभूत रहा हूँ .. “मुर्दीराम पुर “ का घर ,उसकी गलियाँ ,नदी ,बांस के पेड़ और मेरा बचपन ,मेरी यादों की सबसे बड़ी धरोहर है ..बचपन में नरैनी से “मुर्दीराम पुर “ तक बैलगाड़ी की यात्रा अक्सर मेरी यादों में घूमता है ..मेरी गर्मी की छुट्टियाँ जब मैंने ननिहाल में जिंदगी जिया ,मेरी खूब शैतानियाँ जिस पर आप हमेशा हँसें,जिसकी वजह से ही मै मौलिक बन पाया ..शुक्रिया ..आपको और नानी को याद करके अक्सर आँखों में सिर्फ आँसू ही आते है ..नानी जैसी सादगी मैंने आज तक विश्व की किसी महिला में देखा ही नहीं जिन्होंने अपना सामान रखने के लिए आज तक संदूक और अटैची नहीं रखा ,,पैसे कितने है कहाँ है उसका भी कोई पता नहीं जिसने जब कुछ दे दिया रख लिया और जिसने जितना माँग लिया ,अगर है तो उसे पूरा दे दिया ,कोई हिसाब-किताब नहीं .देवियाँ मंदिरों में पूजी जाती है लेकिन वो साक्षात् जीवित देवी है ..इतना निस्वार्थ भाव कभी देखा सुना नहीं ,सिर्फ कल्पनाओं में ही हो सकता है ..मै खुशनसीब हूँ कि इतने अच्छे नाना –नानी का मुझे सानिध्य और आशीर्वाद मिला ..मेरे विकास में आप लोगों का  बहुत बड़ा योगदान है ....बुढापे और अंतिम समय में आपका “मुर्दीराम पुर “ में इस तरह अकेले रहना मुझे बहुत ज्यादा परेशान करता रहा है ..आपके बच्चे ,मेरे मामा लोग जो आज बहुत अच्छी पोजीशन में है ने आपके बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया ,इसका मुझे बहुत दुःख रहा है ... “मुर्दीराम पुर “ में रहकर भी आपकी जिंदादिली देखकर मै हमेशा हतप्रभ ही रहा ..अपने जीते जी आपने कभी किसी से सहायता नहीं माँगी .. लोगों को ,परिवार को दिया ...सिर्फ दिया ..किसी का कोई एहसान नहीं आपके जीवन पर ..आप ने अपनी जिंदगी शून्य और बेबसी से शुरू की लेकिन आपने अपनी जिंदगी में अपने पुरुषार्थ से बहुत धन –संपदा बनाया ..बस दुःख इस बात का है कि इसका आप कभी उपयोग नहीं कर पाए बल्कि जिंदगी भर सिर्फ पुत्र –मोह में फंसे रहें जिन्होंने आपकी जिंदगी को सुंदर बनाने के लिए कुछ भी नहीं किया ..नन्ना आपकी जिंदगी से मैंने सिर्फ एक बात सीखी कि आपके कितने भी बच्चे हो ,कितने भी लड़के हो ,कितने भी काबिल हो ,,आखिर में जिंदगी अकेले ही और अपने दम पर ही बितानी पड़ती है कोई साथ में नहीं आता ..कोई साथ नहीं देता ..2 साल पहले जब आपसे मिला था तब आपके अकेलेपन की बेबसी ने मुझे झकझोर दिया था ..पहली बार महसूस हुआ इतना बड़ा परिवार ,इतनी सम्रद्धि किस काम की ,किसके लिए ?जीवन के सांयकाल में तो जिंदगी अकेले ही बितानी पड़ती है ,इसलिए अभी से इसके लिए तैयार रहो ..कोई संतान काम नहीं आती सिर्फ अपना पुरुषार्थ ,अपनी जिंदादिली ही काम आती है ,हम बेवजह संतान मोह में फसें रहते है ..

नन्ना आपने अपने परिवार के लिए जो किया वो अनुकरणीय है ,इन परिस्थियों में शायद ही कोई ऐसा करके दिखा पाए ..नन्ना आप ये दुनियाँ छोड़ कर चले गये लेकिन आप हमेशा मेरी यादों में रहोगे ...ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे ,आपको मेरी भावभीनी श्रधांजली ....

Friday, December 20, 2013

घर में बेटी होने का सच !!

दयानंद पांडे 
जिस घर में बेटी नहीं, वह घर नहीं है। एक बार पढ़ने में, सुनने में यह सूत्र वाक्य विह्वल कर देता है। पर हकीकत में? और तो सब ठीक है लेकिन ज़रा बेटी की शादी खोज कर एक बार देख लीजिए। सारे सूत्र वाक्य भूल जाएंगे। यह और ऐ्से सारे सूत्र वाक्य ज़मीन पर आ जाएंगे। बहुत कठिन काम है यह। यह संविधान, समाज, परिवार और लोग भी झूठ ही कहते हैं कि स्त्री पुरुष सभी बराबर हैं। सिद्धांत और है, व्यवहार और। कहीं कोई बराबर नहीं है। कहीं कोई बराबरी नहीं। बेटी की शादी खोजने में सारे सच नंगे हो कर सामने आ जाते हैं। दुनिया के किसी भी बाज़ार से खतरनाक और पतनशील है शादी का बाज़ार। सारे के सारे पढ़े-लिखे लोग भी जहालत की मूर्ति बन कर खड़े हो जाते हैं। तन कर। पूरी बेशर्मी से। क्यों के वह बेटे के माता-पिता हैं। और सब कुछ और सारी बराबरी के बावजूद आप भिखारी बन कर बल्कि इस से भी बुरी स्थिति में खड़े हो जाते हैं क्यों कि आप बेटी के पिता हैं। बावजूद इस सब के बेटियां तो हमारी प्राण हैं और रहेंगी ! सर्वदा !


Thursday, December 19, 2013

कितने दूर -कितने पास

  
हम कितने दूर है ,कितने पास है
इसका न तुम्हे एहसास है ,न मुझे एहसास है ,
किसी क्षण में तो हम इतना दूर चले जाते है ,
कि लगता है पास ही न आ पायेंगे
और किसी क्षण में हम इतना पास हो जाते है
कि लगता है कभी दूर ही न जा पायेगें,
प्रति क्षण बदलता रहता है इस नजदीकी और दूरी का एहसास
कभी –कभी कितना दूर होकर भी पास होतें है हम ,
और कभी –कभी कितना पास होकर भी दूर रहतें है हम ,
नजदीकी और दूरी के इस पेंडुलम में हम झूलते ही रहते है
कभी नजदीकी ज्यादा होती है कभी दूरी ज्यादा होती है

 प्यार और नफरत की पूरकता

जिंदगी किताब नहीं होती
जिंदगी “जिंदगी “होती है
तभी तो प्यार में नफरत
और नफरत में प्यार
दोनों का एहसास साथ रहता है
कोई एक हमेशा ही प्रभावी रहता है
तभी तो जिंदगी की दूरी में भी नजदीकी
और नजदीकी में भी दूरी का एहसास साथ रहता है हमेशा
दोनों पूरक है एक दूसरे के
एक के न होने का मतलब दूसरे का होना है
हम कितनी भी दूर हो लें
फिर भी पास आ जातें है
और कितना भी पास हो ले दूर चले जाते है
स्वरचित -शशांक द्विवेदी 

(संपादक ,विज्ञानपीडिया डाट  कॉम)

स्वराज्य और रामराज्य !!!

हम स्वराज्य लायेंगे ,
हम रामराज्य लायेंगे ,
लेकिन जब वो आये थे तो न स्वराज्य दिखा ,न रामराज्य दिखा
तब सिर्फ स्वार्थ राज्य दिखा
“सौगंध राम की खातें है हम मंदिर वहीं बनायेंगें “,
नारा लगता था उस समय
लेकिन जब सत्ता मिली तब न सौगंध याद आयी न मंदिर याद आया
अब चुनाव आने वाले है
अब सौगंध भी याद आ गयी
मंदिर भी याद आ गया ,
अब नारे भी याद आने लगे ,
सारी याददाश्त वापस आ गयी चुनाव में ,
राम मंदिर और राम राज्य याद आ जाते है चुनाव में ,
चुनाव तक “राम “ का नाम ही चलता है ,
मुँह से राम का नाम ही निकलता है
गरीब और अमीर सबको “राम “ की याद दिलाएंगे
गरीब को बताएँगे कि “राम “ बड़ा है रोटी से
“राम “ को ही लायेंगे
तब सिर्फ “राम “ ही पहनना और “राम “ ही खाना
सब कुछ “राम मय“ हो जाएगा
अमीर तो राम की सौगंध पहले ही खाते थे
अब गरीब भी खाने लगा ,
“राम “ पहले अमीर के ही थे
अब गरीब के भी हो गये
रोटी से पहले “राम “ आ गया
चुनाव आ गया ....


स्वरचित -शशांक द्विवेदी 

सपने जरुर देखने चाहिए

शशांक द्विवेदी 
आज अजीज मित्र युवा कवि और लेखक प्रांजल धर ने इसी महीने की "योजना " (प्रकाशन विभाग ,भारत सरकार की महत्वपूर्ण पत्रिका ) भेजी जिसमें मेरा लेख प्रकाशित हुआ है .इसी अंक में उनका भी एक लेख है .."योजना " देखकर असीम प्रसन्नता हुई क्योंकि इस पत्रिका में छपना बेहद महत्वपूर्ण लगता है ,इसमें मेरे कई लेख प्रकाशित हुए है और हर बार एक सुखद अनुभूति होती है ..क्योंकि जब मै इलाहाबाद में था उस समय इस पत्रिका का क्रेज मैंने युवा प्रतियोगियों में देखा था तब से यही सपना देखा था कि योजना ,कुरुक्षेत्र और विज्ञान प्रगति में एक दिन मेरे लेख जरुर आयेंगे ..उस समय इलाहबाद में मेरे मामा जी नवभारतटाइम्स अखबार लेते थे जो एक दिन बाद आता था (आज का अखबार कल ) उसमें संपादकीय पेज बड़ा आकर्षित करता था और हर दिन का पढता और संभाल कर रखता था इस सपने के साथ कि एक दिन मै भी इसमें जरुर लिखूंगा और मेरे मामा उसे पढ़कर शाबाशी देंगे ..मै घर में बाबा जी से कहता था देखना बाबा एक दिन सब बड़े -बड़े अखबारों में लिखूंगा .. उस समय उम्र कम थी (12 वी पास करके इलाहाबाद में पहुँचा था ) लेकिन सपने काफी बड़े थे ..लेकिन उस समय के देखे हुए सपने आज जब पूरे होते है तो लगता है कि सपने देखने चाहिए ..एक दिन जरुर पूरे होते है ...उन सपनों को याद करके आज भी ताकत मिलती है .. 

खुर्शीद अनवर को विनम्र श्रधांजली ..

शशांक द्विवेदी
मै खुर्शीद अनवर को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता ,मुझे यह भी नहीं पता कि जो आरोप उन पर लगे है वो सही है या गलत ,लेकिन मै इतना जानता हूँ कि जनसत्ता में उनके लेख मुझे बहुत पसंद थे ..उनकी फ़ेसबुक पोस्ट शानदार रहती थी ..बेहतरीन सोच वाले व्यक्ति लगते थे ..आज उनकी आत्महत्या की खबर से मुझे दुःख हुआ क्योंकि सोशल मीडिया और मीडिया ट्रायल ने उनको अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया ,उनको जबरदस्ती "बलात्कारी " घोषित कर दिया .गया ...इस पर एक मशहूर गजल की एक पंक्ति याद आती है "मुझको पहले सजा दी गयी फिर अदालत में लाया गया "
उनकी मौत ने प्रगतिशील लोगों पर और न्याय के बेसिक सिद्धांत पर कई सवाल खड़े किये है ..जो भी हुआ वो ठीक नहीं हुआ ,बेहद अफसोसजनक ..खुर्शीद अनवर को मेरी तरफ से विनम्र श्रधांजली ..

Wednesday, November 27, 2013

लेखन में सफलता के पीछे का सच

आज कुछ कहने का मन है लेखन के बारे में
ये फोटो /न्यूज 9 पहले साल नवम्बर 2004 में दैनिक जागरण ,आगरा में प्रकाशित हुई थी 

पिछले 10 दिनों में विभिन्न विषयों पर देश के कई प्रमुख हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं में मसलन दैनिक जागरण ,नवभारतटाइम्स,हिंदुस्तान ,लोकमत ,नई दुनियाँ ,राष्ट्रीय सहारा ,डेली न्यूज ,प्रभातखबर ,जनसंदेश टाइम्स , हरिभूमि ,हिमाचल दस्तक ,ट्रिब्यून ,अमर उजाला कॉम्पैक्ट ,द सी एक्सप्रेस ,कल्पतरु एक्सप्रेस ,डीएनए ,दबंग दुनियाँ ,आई नेक्स्ट ,मिड डे ,जनवाणी ,दैनिक आज के साथ सुप्रसिद्ध मैगज़ीन शुक्रवार ,इलेक्ट्रानिकी में मेरे लेख प्रकाशित हुए.. कभी –कभी ये सब सपना जैसा लगता है लेकिन हकीकत में ये सब देखकर बेहद खुशी मिलती है कि बचपन में एक स्तंभकार बनने का सपना सच हो रहा है .हर दिन खुद से ही मेरा कंपटीशन रहता है ,हर दिन बस और बेहतर ..और बेहतर लिखने की ललक रहती है .कितना भी लिख लू ,कितना भी छप जाए हर दिन एक नई चुनौती लेकर फिर आगे बढ़ने की कोशिश करता हूँ .मेरे आलोचक ही मेरे प्रेरणा स्रोत रहें है ,जब कोई मेरे लेख पढ़कर मुझे नकारने लगता है तो सोचता हूँ अगली बार इससे भी ज्यादा बेहतर करूँगा ,कोई कब तक नकारेगा ? 20 साल की उम्र से लिखना शुरू किया पहले संपादक के नाम पत्र ,फिर लेख ,इस दौरान मैंने बहुत उपेक्षा झेली ..किसी ने कहा त्योहारी लेखक हो तो किसी ने कहा कि छापामार लेखक हो ,किसी ने कहा हिंदी में विज्ञान लिखते हो कौन छापेगा तो किसी ने कहा कि ये सब छोड़कर कुछ ढंग का काम करो ..बहुत सारी बाते लोगों ने कही ,..ठेस भी पहुँची लेकिन रुका नहीं ..इतने ज्यादा आलोचकों के साथ कुछ ऐसे भी लोग मुझे बहुत कम उम्र में मिले जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया ,लिखना सिखाया ,सम्मान दिया ..ऐसे लोगों के बारे में कुछ याद करता हूँ तो सबसे पहले सुभाष राय सर (उस समय अमर उजाला आगरा में स्थानीय संपादक थे ) का नाम याद आता है जिन्होंने 2003 में (जब मै इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष का छात्र था ) मुझे अमर उजाला के लिए एक कॉलम साइबर बाइट्स लिखने का मौका दिया ,खूब प्यार दिया ,सम्मान दिया ..उस दरम्यान मेरे सबसे बड़े अभिभावक वही थे ,आफिस में रोज कॉफी पिलाते थे.उनके पास रोज एक घंटे बैठकर मै बक –बक करता रहता था और वो ध्यान से सुनते रहते थे ..कभी कुछ कहा नहीं ,डांटा नहीं .सिर्फ सिखाया ,बताया ,समझाया .दूसरे व्यक्ति है राजीव सचान सर जिनसे मै कभी मिला नहीं ,पिछले 10 सालों से सिर्फ फोन पर बातें हुई लेकिन इन्होने मुझ जैसे बच्चे को भी गंभीरता से लिया .जब उनसे पहली बार बात हुई तो उसका बड़ा दिलचस्प किस्सा है ,मुझे उस समय किसी ने बताया कि अगर तुम्हारे लेख दैनिक जागरण ,अमर उजाला और जनसत्ता में छप गये तो तुम बड़े लेखक बन जाओगे ,मेरे मन में ये बात पूरी तरह से बैठ गयी थी ,अब तो सिर्फ बड़ा लेखक बनने के सपने आने लगे ,लेकिन हकीकत में बड़ा संघर्ष था आगे
मै दैनिक जागरण के कानपुर आफ़िस में अपने लेख भेजा करता था संपादकीय विभाग के नाम ,मैंने कई लेख भेजे लेकिन वो प्रकाशित नहीं हुए तो मै मायूस हुआ ,फिर क्या था एक दिन शाम को मैंने जागरण के कानपुर आफ़िस फोन किया ,बोला कि संपादक जी से बात कराओं तो आपरेटर ने कहा कि किस सम्बंध में और क्यों बात करनी है ,
मैंने कहा कि भाई मैंने कई लेख भेजे वो छपे क्यों नहीं ? आप तो बस बात कराइए (मुझे तो बस धुन सवार थी ,उस समय छात्र जीवन में लेख कागज़ पर पेन से लिखता था ,बाजार में उसे टाइप कराता था फिर उसे रजिस्ट्री या फैक्स के जरिये भेजता था ,एक लेख भेजने में 150 रुपये का खर्च आ जाता था इसलिए लेख कहीं नहीं छपता था तो बड़ा दुःख होता था )
आपरेटर ने फोन राजीव सचान जी को ट्रांसफर कर दिया
मैंने कहा शशांक बोल रहा हू ,उन्होंने कहा कौन शशांक
मैं बोला कि मैंने आपको कई लेख भेजे आपने छापा क्यों नहीं ?
वो बोले कि तुम करते क्या हो ?
मैंने कहा कि इंजीनियरिंग का छात्र हू
वो बोले कि जानते हो संपादकीय पेज क्या होता है ?
मैंने कहा कि जानता हूँ ,हर शहर में ये पेज समान होता है,बाकी पेज बदलते रहते है ,बड़े लेखक लोग यहीं पर लिखते है इसलिए मुझे भी यहाँ लिखना
राजीव जी बोले तुम अभी बच्चे हो ,बहुत छोटे हो
मैंने कहा कि कुलदीप नैय्यर,भरत झुनझुनवाला (इन्ही को मै बड़ा लेखक मानता था ) भी कभी छोटे रहें होंगे ,जन्म से नहीं लिखने लगे होंगे ,तो मुझे भी मौका मिलना चाहिए
फिर मैंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि आपकी टेबल के पास डस्ट्विन तो होगा
वो बोले कि हां है
मैंने कहा कि कृपया आप मेरे लेख एक बार पढ़िए अगर आप को पसंद न आये तो इन्हें फाड़ कर डस्ट्विन में फेक देना .लेकिन एक गुजारिश है कि इन्हें पढ़िए ,अगर गुणवत्ता दिखे तब प्रकाशित करियेगा .
इस बातचीत के बात पता नहीं उन्हें क्या लगा ,लेकिन कुछ दिन के बाद ही पहली बार मेरा लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ और ये सिलसिला आज तक जारी है .उस समय जनसत्ता में राजेंद्र राजन जी,अमर उजाला में कल्लोल चक्रवर्ती,दैनिक आज में शिवमूरत यादव जी ने भी मेरी बाते सुनी ,मेरे लेख पढ़े और उन्हें प्रकाशित किये .इससे मेरा आत्मविश्वास बहुत ज्यादा बढ़ गया .इन पूरे 10 सालों में मैंने सिर्फ ये महसूस किया कि सपने जरुर देखो सपने पूरे होते है ,मेहनत का कोई विकल्प नहीं .भले ही आज मेरे लेख कई जगह प्रकाशित होते हो लेकिन मै अपनी औकात नहीं भूलता .आज भी जब कोई लेख लिखता हूँ तो उतनी ही मेहनत और शिद्दत के साथ जितना पहली बार लिखा था .इस दौरान और आज भी हर दो चार दिन में किसी न किसी संपादक महोदय से मेरी बहस हो जाती है ,वो मुझे न छापने की धमकी भी देते है लेकिन मै रुका नहीं ,झुका नहीं क्योंकि आज मेरे पास खोने को कुछ नहीं है ..अगर कोई एक छापने को मना करता है तो दूसरा तैयार है मुझे छापने को ... कोई नहीं भी छापेगा तो लिखने के लिए मेरी वेबसाइट है मेरे पास .. लोग मेरी शिकायत /आलोचना करते रहते है लेकिन इन सबसे मैंने सिर्फ अपनी गलतियों को सुधारा है और कभी किसी से समझौता नहीं किया क्योंकि मुझे लगता है लेखन से समझौता नहीं किया जा सकता ..सिर्फ अपनी शर्तों पर लिखा ,लोगों की आलोचना और तारीफ़ दोनों को एक तरह से ही लिया .यहाँ तक कि अखबार में प्रकाशित अपने लेख को ५ मिनट देखने और खुश होने के बाद मै अपने अगले लेख में लग जाता हूँ .लेखन मेरे लिए गरीब की मजदूरी की तरह है जहाँ अस्तित्व बचाए रखने के लिए रोज मेहनत करनी पड़ती है .इन लाइनों को जिंदगी में हमेशा महसूस करता हूँ ..
“मै अपनी फन की बुलंदी से काम ले लूँगा
मुझे मुकाम न दो मै खुद मुकाम ले लूँगा ...”

कुलमिलाकर लेखन मेरा प्यार है और मेरी जिंदगी है .
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Sunday, November 17, 2013

खबरों में उपेक्षित रहें भारत रत्न वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर सीएनआर राव

विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान
शशांक द्विवेदी 
वैज्ञानिक शोध में शतक
केंद्र सरकार ने भारत का  सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर सीएनआर राव को देने का फैसला किया है .अपने अपने क्षेत्र में दोनों की सफलताएं असाधारण है .जहाँ सचिन ने बल्लेबाजी में शतकों का शतक लगाया है वहीं प्रोफ़ेसर राव ने अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रों के प्रकाशन में शतक लगाया है .दोनों की उपलब्धियाँ असाधारण है लेकिन मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया सचिन की कवरेज तो बहुत कर रहा है लेकिन प्रोफ़ेसर राव के बारे में या उनके काम के बारे में कोई भी प्रोग्राम नहीं दिखाया जा रहा है . टीवी पर जहाँ सचिन पर घंटो कार्यक्रम दिखाए गये वहीं पर प्रोफ़ेसर राव पर दस मिनट का कार्यक्रम अधिकतर टीवी न्यूज चैनलों में दिखाया तक नहीं गया . विज्ञान जगत के किसी व्यक्ति को भारत के सबसे बड़े सम्मान की खबर पूरी तरह से उपेक्षित नजर आयी जबकि दोनों को ही भारत रत्न मिला है .विज्ञान की खबरों के प्रति टीवी चैनलों का ये दुराग्रह नया नहीं है ,ऐसा पहली बार नहीं हुआ है .याद करिये भारत के सबसे बड़े अंतरिक्ष अभियान मार्स मिशन को भी टीवी वालों ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी . देश में विज्ञान ,अनुसंधान और शोध  से सम्बंधित खबरे  प्रिंट मीडिया में थोड़ी जगह बना रही है लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया इससे कोसों दूर है प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है आप खुद देखिये कि इस क्षेत्र में इलेक्ट्रानिक मीडिया कितना संजीदा है सिर्फ विज्ञान और तकनीक से जुड़ी सनसनीखेज खबरें ही खबरिया चैनलों में थोड़ी बहुत जगह बना पाती है ।खैर जो भी हो लेकिन आज वक्त है विलक्षण प्रतिभा के धनी वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर सीएनआर राव को याद करने का जिनकी वजह से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान-सम्मान  बढ़ा है . 
विलक्षण प्रतिभा के धनी है प्रोफेसर सीएनआर राव
भारत सरकार ने प्रख्यात वैज्ञानिक और प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख प्रोफेसर सीएनआर राव को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की है। सीएनआर राव सोलिड स्टेट और मैटीरियल केमिस्ट्री के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके  1400 शोध पत्र और 45 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। दुनियाभर के तमाम प्रमुख वैज्ञानिक शोध संस्थानों ने राव के योगदानों का महत्वपूर्ण बताते हुए उन्हें अपने संस्थान की सदस्यता के साथ ही फेलोशिप भी दी है। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
वास्तव में जो ऊंचाई 40 वर्षीय तेंदुलकर ने क्रिकेट में हासिल किया है वहीं ऊंचाई प्रोफेसर चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव (79) यानी सीएनआर राव ने भी शोध क्षेत्र में हासिल किया है । तेंदुलकर ने एक बल्लेबाज के रूप में 100 अंतरराष्ट्रीय शतक जड़े हैं तो राव भी पहले भारतीय हैं जो शोध कार्य के क्षेत्र में सौ के एच-इंडेक्स में पहुंचे हैं। राव ने इस साल अप्रैल में 100 के एच-इंडेक्स (शोधकर्ता की वैज्ञानिक उत्पादकता एवं प्रभाव का वर्णन करने का जरिया) तक पहुंचने वाले पहले भारतीय होने का गौरव हासिल किया। राव की इस उपलब्धि से पता चलता है कि उनके प्रकाशित शोध कार्यों का दायरा कितना व्यापक है। एच-इंडेक्स किसी वैज्ञानिक के प्रकाशित शोध पत्रों की सर्वाधिक संख्या है जिनमें से कम से कम प्रत्येक का कई बार संदर्भ के रूप में उल्लेख किया गया हो। राव की इस उपलब्धि का मतलब समझाते हुए कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि उन्होंने जो मुकाम हासिल किया, दरअसल वह सचिन के 100 शतकों की उपलब्धि से किसी भी मायने में कम नहीं है।
परमाणु शक्ति संपन्न होने और अंतरिक्ष में उपस्थिति दर्ज करा चुकने के बावजूद विज्ञान के क्षेत्र में हम अन्य देशों की तुलना में पीछे हैं। वैज्ञानिकों-इंजीनियरों की संख्या के अनुसार भारत का विश्व में तीसरा स्थान है, लेकिन वैज्ञानिक साहित्य में पश्चिमी वैज्ञानिकों का बोलबाला है ऐसे समय में प्रोफेसर राव ने पश्चिम के एकाधिकार को तोड़ते हुए शोध पत्रों के प्रकाशन के साथ साथ शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया । उनकी सफलता असाधारण है ।

प्रोफेसर सीएनआर राव का जन्म 30 जून 1934 को बेंगलूर में हुआ था। 1951 में मैसूर विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद बीएचयू से मास्टर डिग्री ली। अमेरिकी पोडरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद 1961 में मैसूर विश्वविद्यालय से डीएससी की डिग्री हासिल की। 1963 में आइआइटी कानपुर के रसायन विभाग से फैकल्टी के रूप में जुड़कर करियर की शुरुआत की । 1984-1994 के बीच इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के निदेशक रहे। ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज समेत अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं। वो इंटरनेशनल सेंटर ऑफ मैटिरियल साइंस के भी निदेशक रहे। रसायन शास्त्र की गहरी जानकारी रखने वाले राव फिलहाल बंगलौर स्थित जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिचर्स में कार्यरत हैं। डॉ. राव न सिर्फ न केवल बेहतरीन रसायनशास्त्री हैं बल्कि उन्होंने देश की वैज्ञानिक नीतियों को बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है।
राव के एक वैज्ञानिक के रूप में पांच दशकों के करियर में 1400 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। दुनियाभर की प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाएं, रसायन शास्त्र के क्षेत्र में उनकी मेधा का लोहा मानती हैं। वे  उन चुनिंदा वैज्ञानिकों में एक हैं जो दुनिया के सभी प्रमुख वैज्ञानिक अकादमी के सदस्य हैं। सीवी रमन, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बाद राव इस सर्वोच्च सम्मान को पाने वाले तीसरे भारतीय वैज्ञानिक हैं। राव को दुनिया के 60 विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की मानद उपाधि मिल चुकी है और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में वह एक आइकन की तरह देखे जाते हैं। । किसी वैज्ञानिक  के मूल्यांकन के लिए सिर्फ उसका एच-इंडेक्स ही काफी नहीं है बल्कि उसके कितने शोध पत्रों को दृष्टांत के रूप में उल्लेख किया गया है यब भी बहुत मायने रखता है । इस मामले में भी  प्रोफेसर राव दुनिया के कुछेक चुनिंदा वैज्ञानिकों में ऐसे एकमात्र भारतीय हैं जिनके शोध पत्र का दृष्टांत के तौर पर वैज्ञानिकों ने लगभग 50 हजार बार के करीब उल्लेख किया है। 
प्रोफेसर राव ठोस अवस्था, संरचनात्मक और मैटेरियल रसायन के क्षेत्र में दुनिया के जाने-माने रसायन शास्त्री हैं । भारत सरकार ने उन्हें 1974 में पदमश्री और 1985 में पदमविभूषण से सम्मानित किया। वर्ष 2000 में रायल सोसायटी ने उन्हें ह्युजेज पुरस्कार से सम्मानित किया वर्ष 2004 में भारतीय विज्ञान पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय बने । भारत-चीनी विज्ञान सहयोग को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें इसी साल जनवरी, 2013 में चीन के सर्वश्रेष्ठ विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया । प्रोफेसर राव ने ट्रांजीशन मेटल ऑक्साइड सिस्टम, (मेटल-इंसुलेटर ट्रांजीशन, सीएमआर मैटेरियल, सुपरकंडक्टिविटी, मल्टीफेरोक्सि), हाइब्रिड मैटेरियल, नैनोट्यूब और ग्राफीन समेत नैनोमैटेरियल और हाइब्रिड मैटेरियल के क्षेत्र में काफी शोध और अनुसंधान कार्य किये । प्रोफेसर राव सॉलिड स्टेट और मैटेरियल केमिस्ट्री में अपनी विशेषज्ञता की वजह से जाने जाते हैं। उन्होंने पदार्थ के गुणों और उनकी आणविक संरचना के बीच बुनियादी समझ विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है।
भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में आकाश की अनंत बुलंदी पर पहुँचाने वाले मंगल अभियान में भी उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । विज्ञान के क्षेत्र में भारत की नीतियों को गढ़ने में अहम भूमिका निभाने वाले राव, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के भी सदस्य थे। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी, एचडी दैवेगोड़ा, और आईके गुजराल के कार्यकाल में भी परिषद से जुड़े रहें । राव की मेधा और लगन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके साथ काम करने वाले अधिकतर वैज्ञानिक सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन वे 79 साल की उम्र में भी सक्रिय हैं और प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद में अध्यक्ष के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं । 
दुनिया में अब वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान आर्थिक स्त्रोत के उपकरण बन गए हैं। किसी भी देश की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता उसकी आर्थिक प्रगति का पैमाना बन चुकी है। दुनिया के ज्यादातर विकसित देश वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने के लिए अपने रिसर्च फंड का 30 प्रतिशत तक यूनिवर्सिटीज को देते हैं, मगर अपने देश में यह प्रतिशत सिर्फ छह है। उस पर ज्यादातर यूनिवर्सिटीज के अंदरूनी हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां शोध के लिए स्पेस काफी कम रह गया है। वैज्ञानिक शोध पत्रों के प्रकाशन में भी भारत की स्तिथि बहुत अच्छी नहीं है । इसको सुधारने के लिए सरकार को तुरंत ध्यान देना होगा । देश में प्रोफेसर सीएनआर राव जैसे कई वैज्ञानिक पैदा करने के लिए इस शोध के लिए नया माहौल और समुचित फंड देने की जरुरत है ।
कुलमिलाकर विज्ञान के क्षेत्र में प्रोफेसर सीएनआर राव का योगदान अभूतपूर्व है और उनको देश का सर्वोच्च सम्मान  भारत रत्न देने के फैसले से देश में वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान को प्रोत्साहन भी मिलेगा । इससे देश में वैज्ञानिक चेतना का माहौल बनाने में भी मदत मिलेगी । 

भारत रत्न वैज्ञानिक सीएनआर राव की उपेक्षा

वैज्ञानिक सीएनआर राव को भी भारत रत्न मिला है भाई लेकिन सभी अखबार और मीडिया सचिनमय है .उनके बारे में भी थोड़ा बहुत तो दिखा दो ,बता दो .कई अखबारों में पहले पेज में उनका नाम तक नहीं है .सचिन को कवरेज देना ठीक है ,मै खुद भी उनका बड़ा प्रशंसक हू लेकिन सीएनआर राव की इतनी ज्यादा उपेक्षा मुझे ठीक नहीं लगी .देश को बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों में उनका बहुत योगदान है लेकिन उनके बारे मीडिया कुछ बताने को तैयार ही नहीं है .मीडिया का यही दोहरा चरित्र मुझे खराब लगता है ..सचिन को सिर्फ बाजार के उत्पाद के रूप में पेश कर रहें है टीआरपी के लिए.भाई मै तो कहता हूँ सचिन को अगर 1 घंटे दिखाते हो तो सीएनआर राव साहब के बारें में 10 मिनट तो दिखाओ या लिखो लेकिन यहाँ तो वो पूरी तरह से उपेक्षित है ..उन्हें भी सचिन के बराबर सम्मान मिला है लेकिन ऐसा लग रहा है कि उन्हें कुछ मिला ही नहीं ..देश में वैज्ञानिक चेतना का इससे बड़ा अभाव क्या होगा कि भारत रत्न पाए व्यक्ति के बारे में भी देश के लोगों को कुछ नहीं बताया जा रहा है ....

Saturday, November 16, 2013

जब पत्नी के सामने अकड़ कम होने लगी...

एक दिलचस्प वाकया है मेरे लेखन से सम्बंधित जिसने मेरी लिखने की रफ़्तार काफी बढ़ा दी .

शशांक द्विवेदी 

लगभग 2 साल पहले जब दिल्ली में रामलीला मैदान में अन्ना हजारे जी का आंदोलन चल रहा था तो मै उससे बहुत ज्यादा प्रभावित था ,दिन रात बस उसी का चिंतन और खबरों ,विश्लेषणों में डूबा रहता था .इस दरम्यान मैंने कैंडल मार्च भी निकाला और आंदोलन के समर्थन में रामलीला मैदान भी गया .फिर वो दिन भी आया जब अन्ना का अनशन खत्म होने वाला था उसी दिन मैंने अमर उजाला और दैनिक जागरण के संपादकीय विभाग में फोन करके कहा कि इस विषय पर मै आज शाम तक एक लेख लिखकर भेजूंगा .उन्होंने कहा ठीक है आप शाम 5 :30 बजे तक भेज दीजिये .लगभग पूरे दिन मै टीवी पर नजरे गडाये रहा देखता रहा और लिखता रहा .उस समय तक मै लेख कागज़ के पन्नों पर लिखता था क्योंकि मुझे लैपटाप पर हिंदी में टाइपिंग नहीं आती थी .कृति देव फॉण्ट में लिखना तो बिल्कुल भी नहीं आता था उस समय अधिकतर अखबार वाले इसी फोंट में लिखा हुआ मागते थे .उस दौरान मै लेख कागज़ में लिखकर फिर उसे स्कैन करके भेजता था ,या बहुत जरूरी हुआ तो साइबर कैफे या फिर अपनी श्री मती प्रियंका से टाइप करवा कर भेजता था .प्रियंका चुकि कई साल तक अमर उजाला में काम कर चुकी थी इसलिए वो बहुत स्पीड से टाइप कर लेती थी ..इस तरह जैसे तैसे मेरा काम चल जाता था .अब अन्ना के अनशन समाप्ति वाले दिन किसी बात को लेकर मेरा प्रियंका से झगडा हो गया ,बोलचाल बंद हो गयी थी उस दिन ,मै खूब ऐठ में था लेख लिख रहा था ,टीवी देख रहा था .लेकिन टाइम बढ़ता जा रह था . लेख हर हाल में 5 :30 तक भेजना भी था . कालेज बंद था इसलिए स्कैन करके भी नहीं भेज सकता था दूसरी बात नीमराना में हिंदी टाइप करने वालों के बड़े नखरे थे .वो टाइप करके समय पर देते नहीं थे अब मै बड़ी दुविधा में फस गया कि क्या करू .और कोई तरीका उस समय मुझे पता नहीं था .
लड़ाई की वजह से चूँकि मै पूरी ऐठ में था इसलिए प्रियंका से बात करना अपनी शान के खिलाफ लग रहा था(पत्नी के साथ नोकझोक में ऐसा हो जाता है ,आप लोगों ने भी महसूस किया होगा ) .इधर घड़ी की सुई बढ़ रही थी ,टाइम तेजी से बढ़ता जा रहा था अखबार वालों से वादा किया था इसलिए लेख भी भेजना था अपनी क्रेडिबिलिटी का भी सवाल था .इधर टाइम बढ़ने के साथ मेरी अकड़ कम होने लगी थी ,लेकिन मै प्रियंका से बात नहीं कर पा रहा था .दोनों तरफ से "इज्जत" जाने का डर था आखिरकार 5 :30 बज गये अमर उजाला से फोन आया कि अभी तक भेजा क्यों नहीं ?अब मै उन्हें क्या बताता ,मैंने कहा बस भेजने वाला हू ,भेज ही रहा हू ..उस समय तक दिमाग की सारी अकड़ जा चुकी थी तब मैंने प्रियंका के सामने सरेंडर कर दिया कहा कि जल्दी से मदत करो लेख भेजना है इसे जल्दी से टाइप करो .वो पूरी तरह से सामान्य थी और किसी अकड़ में नहीं थी इसलिए उसने जल्दी से मेरी बात मान ली और उस पूरे मैटर को टाइप कर दिया इस दौरान मेरे पास अखबार से फोन आते रहें मै उन्हें 10 -10 मिनट करके टालता रहा .आखिरकार 6 :45 पर मैंने उस लेख को भेज दिया तब तक मेरे हाथ पैर फूल रहें थे ,खैर श्री मति जी ने इज्जत बचाई वो लेख भेज दिया अगले दिन वो अमर उजाला और दैनिक जागरण में प्रकाशित भी हुआ .लेकिन इस घटना से मुझे बहुत सबक मिला सोचा कि ऐसे तो लेखन होने से रहा फिर मैंने कुछ दोस्तों से पूछा कि क्या करू कैसे टाइप किया जाए कोई आसान रास्ता बताओ तो किसी ने बताया कि गूगल हिंदी इनपुट साफ्टवेयर का इस्तेमाल करो ,उसे लैपटाप में डाऊनलोड किया .फिर मंगल फाँट (यूनिकोड ) में लिखना आ गया फिर उसे कृति देव में कन्वर्ट करके लेख भेजने लगा .कुल मिलाकर उस दिन प्रियंका से किया हुआ झगड़ा मेरे लिए बहुत फायदेमंद रहा .साथ तो वो मेरा हमेशा ही देती रही लेकिन उस दिन मुझे उसका साथ बहुत फील हुआ ...चुकीं मुझे लिखने की बीमारी है ही इसलिए इस घटना के बाद तो लिखने की गति बहुत बढ़ गयी मै धड़ाधड़ लिखता गया ,छपता गया . लेकिन मै उन अखबार वालों का बहुत शुक्रगुजार हू जिन्होंने मेरे हाथ से लिखे और स्कैन किये हुए लेख कई साल तक प्रकाशित किये .क्योंकि आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में ये असंभव सा लगता है कि कोई आपके स्कैन किये हुए पेज पहले प्रिंट लेगा फिर उसे टाइप करेगा फिर उसे प्रकाशित भी करेगा ..लेकिन मै खुशनसीब रहा कि ये सब मेरे साथ हुआ ..एहसास हुआ कि श्रीमती जी से कभी -कभी लड़ाई -झगडा ,नोंकझोक भी फ़ायदेमंद होती है ..उनके साथ का भी अच्छा एहसास हुआ ... 

Thursday, November 14, 2013

शैतानी करना अच्छा लगता है ...

शशांक द्विवेदी
मेरी बेटी आन्या जबर्दस्त शैतान है ,तोड़ -फोड़ उथल पुथल मचाये रहती है .कल रात में मैंने उससे कहा कि इतनी शैतानी क्यों करती हो तो उसने कहा शैतानी करना अच्छा लगता है ...फिर बोली कि पापा आप गंदे हो आप मुझे मारते हो (जबकि मैं रेयर ही उसे मारता हूँ ) ,उसकी बात सुनकर मै चौक गया क्योंकि मैंने उस समय या कई  दिन पहले तक तो उसे मारा भी नहीं था ..उसकी बात मुझे दिल में लग गयी ,कल रात में ठीक से नींद नहीं आयी ,बेचैनी बनी रही ,उसके शब्द मेरे दिमाग में चलते रहें फिर मैंने इन्ही पर एक कविता लिख डाली ...
मेरी प्यारी सी बेटी आन्या को समर्पित
शैतानी करोगी ?
हाँ करूंगी
क्यों करोगी
क्योंकि शैतानी करना अच्छा लगता है ,
खेलना -कूदना ,गिरना और उठना अच्छा लगता है ,
पानी में भीगना ,पानी से खेलना अच्छा लगता है ,
मिट्टी खाना ,मिट्टी से खेलना और मिट्टी के घर बनाना अच्छा लगता है,
रोज नयें कपडें पहनना ,फिर उन्हें गंदा करना
उन पर खूब धूल मिट्टी लगाना अच्छा लगता है,
सामान तोडना ,फोड़ना,गिराना अच्छा लगता है ,
किसी भी काम के लिए ,किसी भी चीज के लिए जिद करना और उसे मनवाना अच्छा लगता है,
रोना और खूब रोना ,जम कर रोना ,हंगामा करना अच्छा लगता है,
खाने से ज्यादा दूध ,आइसक्रीम ,टॉफी,चॉकलेट ,चिप्स ,कुरकुरे अच्छा लगता है,
ठंडी में भी आइसक्रीम की जिद करना अच्छा लगता है ,
खिलौनों के साथ थोड़ी देर खेलना फिर उन्हें तोड़ -फोड़ देना अच्छा लगता है,
मम्मी -पापा को खूब छकाना ,चिढ़ाना और परेशान करना अच्छा लगता है ,
पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना और हुडदंग मचाना अच्छा लगता है ,
हर समय ,हर हाल में खुश रहना अच्छा लगता है ,
नई चीज को छूना ,उसके बारे में जानने की जिज्ञासा रखना अच्छा लगता है ,
हँसना भी अच्छा लगता है और रोना भी अच्छा लगता है ,
मम्मी -पापा की पिटाई के बाद भी शैतानी करना अच्छा लगता है ,
ये दुनियाँ बच्चों को जो कुछ भी नहीं करने देना चाहती
वो सब कुछ करना अच्छा लगता है ,
हजारों बंदिशों के बाद भी शैतानी करना अच्छा लगता है...





Saturday, November 9, 2013

राहुल गाँधी और वरुण गाँधी में फर्क

राहुल, गाँधी परिवार से है । वरुण भी गाँधी परिवार से है। राहुल गाँधी की दादी मरी वरुण गाँधी की भी दादी मरी राहुल गाँधी के पापा मरे। वरुण गाँधी के भी पापा मरे। राहुल की माँ अपने सास के साथ रही। वरुण की माँ को घर से निकाल दिया गया! राहुल और सोनिया के मुकाबले के मुकाबले ,वरुण और मेनका गाँधी को बहुत ज्यादा कष्ट सहना पड़ा लेकिन फर्क देखिये राहुल और उसकी माँ हमेशा अपना दुखदा रोते रहते है और वरुण और उसकी माँ अपने दुःख का प्रचार प्रसार नहीं करते। ये फर्क है भारतीय महिला और विदेशी महिला में

तथाकथित बुद्धिजीवी लोगों से सवाल

मंगल यान का सफल प्रक्षेपण देश के लिए बहुत ऐतिहासिक और गौरवशाली उपलब्द्धि है ,इसके लिए वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई .कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी लोग इस अभियान पर ४५० करोड़ के खर्च को फिजूल खर्च बता रहें है ,ऐसे लोग लाखों करोड़ के घोटालों पर क्यों नहीं कुछ कहते .उन्हें शायद ये भी पता नहीं कि इस अभियान में लगा खर्च बाकी देशों के इसी अभियान में हुए खर्च का मात्र एक तिहाई है .कुछ ऐसे भी प्रगतिशील लोग है जो इसरो अध्यक्ष के तिरुपति में पूजा पर उंगली उठा रहें है ,मै उन लोगों से पूछना चाहता हू कि क्या आस्तिक होना ,पूजा करना अवैज्ञानिक है ? प्रगतिशील लोगों से निवेदन है कि मेरे इस प्रश्न का जवाब जरुर दे ...

सुरक्षा पर राजनीति करना बिल्कुल गलत ..

इंडियन मुजाहिद्दीन मोदी को मारना चाहता है.... आइएसआइ मोदी को मारना चाहती है.... लश्कर-ए-तय्यबा मोदी को मारना चाहते है.... नक्सली मोदी को मारना चाहते है.... अल क़ायदा मोदी को मारना चाहते है..... तथाकथित सेक्युलर दल मोदी को मारना चाहते है.... उनकी रैली में विस्फोट किया जाता है ,आतंकवादी पकड़े जाते है ,होटलों से जिंदा बम बरामद होते है ,उनको मारने को लेकर गृह मंत्रालय ,आई बी ,इंटेलीजेंस लगातार इनपुट देता रहा है फिर भी सेकुलर सरकारें उन्हें मरने के लिए छोड़ देती है,रैली तक में कोई इंतजाम नहीं किये जाते . ...क्या वाकई नरेन्द्र मोदी के मरने से ही तथाकथित सेकुलर लोगों के कलेजे को ठंडक मिलेगी ...क्या मोदी की हत्या से ही लोकतंत्र मजबूत होगा ,क्या यही लोकतंत्र है ...लोकतंत्र में किसी का विरोध करना ठीक है लेकिन सुरक्षा पर राजनीति करना बिल्कुल गलत है ..

मायावती का भ्रष्टाचार


पहली खबर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने मायावती के भाई आनंद कुमार और उनकी कंपनियों के 400 करोड़ रुपये के फिक्स डिपॉजिट को रिलीज कर दिया है। दूसरी खबर केंद्र सरकार ने मायावती को दिल्ली में जो 3 बंगले अलाट किये थे उन्हें प्रेरणा स्थल के नाम पर मायावती ने अंदर से तोड़ कर 30000 वर्ग फूट का एक बंगला बना दिया .दिल्ली में किसी के पास भी इतना बड़ा बंगला नहीं है .लुटियन जोन स्तिथ इन बंगलों में अंदर कोई भी निर्माण नहीं किया जा सकता फिर ऐसा क्यों किया गया ?केंद्र सरकार मायावती पर इतनी मेहरबान क्यों है ? नोयडा में एक मामूली से क्लर्क रहें मायावती के भाई के पास इतने कम समय में 700 करोड़ की संपत्ति कैसे आयी ..क्या कोई बताएगा या यहाँ पर भी सब गोलमाल है मतलब कांग्रेस के साथ मिलकर पूरा देश लूट लो ,कांग्रेस को समर्थन के बदले में जितना मर्जी आये उतना भ्रष्टाचार करों ..

नेशनल दुनियाँ के संपादकीय पेज पर आज प्रकाशित मेरी कविता .

नेशनल दुनियाँ के संपादकीय पेज पर आज मेरी कविता ...जब भी मेरी कवियायें प्रकाशित होती है बहुत ज्यादा खुशी महसूस होती है क्योंकि कवितायेँ मेरे दिल के ज्यादा करीब लगती है ....
1 "जीवन "

न खुद को जान सका 
न पहचान सका                     
बस बहता ही रहा 
जीवन की इस अविरल धारा में 
जीवन को देखा बहुत 
समझा बहुत 
पर बदल न सका 
अपने आप को 
बहता ही रहा 
पर किनारा न मिला 
पर मिलता भी कैसे ?
जब कोई किनारा ही न था 
बहते हुए भी 
सँभल न सका 
बस डूबता ही गया 
जीवन के इस अंतर्मन में 
पर ,जब डूबा तो ऐसा डूबा 
इस अंतर्मन में 
इस चेतना में कि 
फिर लगा कि 
डूबना ही जीवन है 
क्योंकि फिर कोई ,
आस नहीं ,साँस नहीं 
बस जीवन ही जीवन 
जो अनंत है 
अविकार है 
वहाँ न तुम हो 
न "मैं "हूँ 
सब एक है ....

2 अकेलापन 

दो पाटों के बीच
पिसता है आदमी
एक तरफ है
उसका परिवार यानि वो और उसकी पत्नी
दुसरी तरफ है
बूढ़े माँ –बाप का परिवार
उम्मीदें बहुत है दोनों तरफ
आवश्यकताएं बहुत है दोनों तरफ
आदमी सिर्फ एक है
बीच में
अंतर्द्वंद है मन में क्या करें
और क्या न करें
कैसे संतुलन बैठाएं
पत्नी और माता –पिता के बीच
क्योंकि एक के साथ
होनें का मतलब
दूसरें के साथ न होना है
वो बेटा बनें या पति
दोनों भूमिकाएं विपरीत है
एक दूसरे के
परिवारों के साथ इस द्वन्द में
उसकी भावनाओं को
उसकी सोच को
कौन समझेगा ?
वो तो सिर्फ बेचारा है
अकेला है
और लगता है कि
अकेला ही रहेगा ..

@शशांक द्विवेदी 
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