Tuesday, February 14, 2012

कायदा तोड़ने वाले कानून मंत्री


कायदा तोड़ने वाले कानून मंत्री
केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद लगातार चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं। आयोग की ताकीद के बावजूद खुर्शीद अल्पसंख्यक आरक्षण संबंधी बयान देते रहे। हद तो तब हो गई, जब उन्होंने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जीतती है तो पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे में अल्पसंख्यकों का उप-कोटा 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर नौ प्रतिशत कर देगी। इस तरह जब पानी सिर से ऊपर होने लगा तो चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाते हुए शनिवार को कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के खिलाफ कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा और तत्काल उनके निर्णायक हस्तक्षेप की मांग की। संभवत: देश के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि कानून मंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति लगातार कानून तोड़ रहा है। शायद यह भी पहली बार ही है, जब चुनाव आयोग को किसी केंद्रीय मंत्री के खिलाफ कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति के पास जाना पड़ा है। इस पूरे प्रकरण को गहराई से देखें तो समझ में आता है कि बिना आलाकमान की मर्जी के कम से कम सलमान खुर्शीद से इस कदर बेलगाम होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। वैसे भी जब राष्ट्रपति ने आयोग की शिकायत पर कार्रवाई के लिए गेंद प्रधानमंत्री के पाले में डाल दी है तो वहां से भी कार्रवाई के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अलबत्ता, कांग्रेस पार्टी ने खुर्शीद के बयानों से यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि किसी को भी संवैधानिक संस्था के नियम-कायदों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। जिस तरह से प्रधानमंत्री इस पूरे मसले पर खामोश हैं, इससे तो यही मतलब निकाला जाएगा कि सरकार में अहम पदों पर बैठा आदमी कुछ भी बोले, लेकिन सरकार कुछ नहीं करेगी। सलमान खुर्शीद के बयानों से तो ऐसा लगने लगा है कि वह चुनाव आयोग को कुछ समझते ही नहीं हैं। वह संवैधानिक संस्था की दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और सरकार तथा कांग्रेस पार्टी उन्हें लगातार सह दे रही है। क्या यह लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक है? वास्तव में चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की केंद्रीय मंत्री द्वारा अवज्ञा अप्रत्याशित है। उनके अनुचित और गैरकानूनी कृत्य से संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज के बीच नाजुक संतुलन पर दबाव बन गया है। दूसरी ओर पूरा देश इस बात से स्तब्ध है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर अफसोस जताने के बजाय कानून मंत्री खुर्शीद ने आक्रामक रुख अपनाया। वास्तव में यह अप्रत्याशित और दुर्भाग्यपूर्ण है। आदर्श आचार संहिता पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति है और सुप्रीमकोर्ट की भी मुहर लगी हुई है। बहरहाल, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को लिखे पत्र में आयोग ने कहा है कि इस मोड़ पर तत्काल और निर्णायक हस्तक्षेप के लिए चुनाव आयोग का आपके पास आना आवश्यक और अपरिहार्य है, ताकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव निष्पक्ष ढंग से संपन्न कराए जा सकें। एक तरह से देश का निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति से न्याय की भीख मांग रहा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति कि पहल पर केंद्र सरकार क्या कदम उठाती है। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद सिर्फ चुनाव आचार संहिता का ही उल्लंघन नहीं कर रहे हैं, बल्कि अल्पसंख्यक मुस्लिमों और बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच दरार डालने का भी काम कर रहे हैं। पिछले दिनों आजमगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान सलमान खुर्शीद ने कहा कि बाटला हाउस मुठभेड़ की तस्वीरें देखकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की आंखों से आंसू फूट पड़े थे। सवाल यह नहीं है कि सोनिया गांधी रोई थीं या नहीं, बल्कि प्रश्न यह है कि इस मुद्दे को लेकर लोगों की भावनाएं कितनी बार भड़काई जाएंगी। जबकि पिछले दिनों गृहमंत्री पी चिदंबरम ने साफ कर दिया था कि बाटला हाउस मुठभेड़ फर्जी नहीं थी और उसकी दोबारा जांच का सवाल ही नहीं है। फिर भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के मंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह लगातार भड़काऊ बयान दे रहे हैं। कांग्रेस के नेता, मंत्री आजमगढ़ जाकर बार-बार इस मुद्दे पर अल्पसंख्यक मुस्लिमों को जिस प्रकार से गुमराह कर रहे हैं, वह स्तब्ध करने वाला है। क्या इन नेताओं ने कभी शहीद इंस्पेक्टर मोहन शर्मा के घर जाना जरूरी समझा या उनके बारे में कभी कोई सकारात्मक बात की, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। उनकी इन बातों से देश की सुरक्षा में लगे जवानों का मनोबल तो टूटता ही है, आतंकवादियों के हौसले भी बुलंद होते हैं। एक सवाल और उठता है कि क्या सोनिया गांधी कभी कश्मीरी पंडितों के लिए रोई थीं, जो आज अपने ही कश्मीर में पराए हो गए हैं? क्या संसद पर हमले में शहीद हुए जवानों की तस्वीरों को देखकर उनकी आंखों से आंसू फूटे थे? सच तो यह है कि संसद पर हुए हमले शहीद हुए जवानों के परिजन आज भी दर-दर भटक रहे हैं। उनकी पीड़ा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शहीदों के मेडल तक वापस कर दिए। कांग्रेस अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच भावनाएं भड़काने का जो खेल खेल रही है, वह इस देश के लिए भारी पड़ने वाला है। बार-बार आजमगढ़ जाकर मुस्लिम वोटों की खातिर भावनाएं भड़काना ठीक नहीं है। कांग्रेस आग से खेल रही है, जिसकी बड़ी कीमत इस देश को चुकानी पड़ेगी, क्योंकि इन्ही सब कारणों से ही देश का विभाजन हुआ था। उस समय भी कांग्रेस के ही एक धड़े ने हिंदू और मुसलमानों के बीच भावनाएं भड़काने का काम किया था। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह कुख्यात आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी और संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को अफजल जी कहकर बुलाते हैं। वह तो यह भी कहते हैं कि मुंबई हमले में संघ का हाथ है और बाटला हाउस मुठभेड़ फर्जी थी। यह सब बातें क्या साबित करती हैं? क्या यह मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति नहीं है? क्या यह मुस्लिम वोटों की खातिर देश को बांटने कि राजनीति नहीं है। देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील और गंभीर मुद्दे पर सोनिया गांधी को देश को जवाब देना होगा कि क्या वह बाटला हाउस मुठभेड़ के बाद रोई थीं। अगर हां, तो क्यों? अगर नहीं, सलमान खुर्शीद पर शिकंजा क्यों नहीं कसा गया? हालांकि केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद अब अपनी बात से पीछे हटने लगे हैं, लेकिन उनका यह बयान और भाषण तो रिकॉर्ड हो चुका है। कई बार न्यूज चैनलों ने दिखाया और सुनाया है। तब वह पीछे कैसे हट सकते हैं? अपनी ही बात को गलत साबित कैसे कर सकते हैं? सलमान खुर्शीद जो बार-बार अपना बयान बदल रहे हैं, इसमें भी बड़ी साजिश और दबाव नजर आता है, जबकि इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री शरद पवार भी कह रहे हैं कि सरकार के दो मंत्रियों के बीच इस मुद्दे पर मतभेद और अलग-अलग बयानबाजी चिंताजनक है। सियासी रणनीति के तहत बाटला हाउस घटना को लेकर कांग्रेस और सरकार दोमुंही बातें कर रही है, जो देश को अस्वीकार्य है। ऐसा खेल बंद होना चाहिए। अगर सलमान खुर्शीद या दिग्विजय राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को चाहिए कि वे उन्हें मंत्री और पार्टी के महत्वपूर्ण पद से तुरंत इस्तीफा देने कहें या बर्खास्त करें। कांग्रेस पार्टी बार-बार इस मुद्दे को उछालकर क्या साबित करना चाहती है। देश में पंथनिरपेक्षता का डंका पीटने वाली कांग्रेस पार्टी क्या वास्तव में पंथनिरपेक्ष है या यह सिर्फ महज दिखावा है। देश की सुरक्षा से जुड़े इतने संवेदनशील और गंभीर मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को देश को जवाब देना होगा। शशांक द्विवेदी  (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण )में १४ /०२/२०१२ को प्रकाशित 

No comments:

Post a Comment