घोटालों की
गिरफ्त में देश
शशांक द्विवेदी
हरिभूमि लेख |
भारत के
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार कोयला खानों को
प्रतिस्पर्धी बोलियों की बजाय आवेदन के आधार पर आवंटित करने से चुनिंदा निजी
फार्मों को संभावित 1.86 लाख करोड रुपये का फायदा हुआ. सीएजी की राय में यदि
प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए आवंटन किए गए होते तो निजी फर्मों के इस संभावित
लाभ का एक हिस्सा सरकारी खजाने को भी मिल सकता था. प्रतिस्पर्धी बोलियां नहीं
मंगाकर निजी क्षेत्र की कंपनियों को सीधे नामांकन के आधार पर कोयला ब्लॉक आवंटित
किये जाने से उन्हें फायदा हुआ. इस रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की 25 कंपनियों के
नाम गिनाये गये हैं जिन्हें सीधे नामांकन के आधार पर कोयला ब्लॉक आवंटित किये गये.
इनमें एस्सार पावर, हिन्डाल्को इंडस्टरीज,
टाटा स्टील, टाटा पावर ,लक्ष्मी
मित्तल आर्सेलर्स ग्रुप , वेदांता और जिंदल स्टील एण्ड पावर
का नाम शामिल है.
नीलामी के आधार
पर आवंटन की प्रक्रिया में देरी की वजह से कोयला ब्लॉक आवंटन की मौजूदा प्रक्रिया
निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिये फायदेमंद साबित हुई.कैग ने यह अनुमान कोल इंडिया
की वर्ष 2010.11 के दौरान कोयला उत्पादन की औसत लागत और खुली खदान से कोयला बिक्री
के औसत मूल्य के आधार पर लगाया है.
यदि कोयला ब्लॉक
आवंटन के लिये प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाने के कई साल पहले लिये गये निर्णय पर अमल
कर लिया जाता तो कंपनियों को होने वाले इस अनुमानित वित्तीय लाभ का कुछ हिस्सा
सरकारी खजाने में पहुंच सकता था.लेकिन ऐसा नहीं किया गया . सरकारी आय-व्यय की
लेखापरीक्षा करने वाली इस संस्था ने कहा है कि ग्राहकों तक सस्ता कोयला पहुंचे यह
सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्र में मजबूत नियामक और निगरानी प्रणाली की आवश्यकता
है. कोयला खानों का आवंटन प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिये किये जाने की घोषणा वर्ष
2004 में ही कर ली गई थी. लेकिन सरकार अभी तक इस प्रकार की बोलियां मंगाने के तौर
तरीके ही तय नहीं कर पाई.
कॉरपोरेट घरानों
को कोयले की खानें सरकार ने कौड़ियों के भाव दीं .सरकार ने 2004 से 2009 के बीच
लगभग 100 कंपनियों को 155 कोयला खदानों का आवंटन किया। इससे सरकारी खज़ाने को बहुत
नुकसान हुआ। ये 1.76 लाख करोड़ के 2जी घोटाले से ज्यादा बड़ी रकम है। इस दौरान
कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था। आवंटन की नीति निजी कंपनियों
को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई.
बिजली
परियोजनाओं को लेकर भी सीएजी रिपोर्ट में निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की बात
कही गई है। मसलन एक ही कंपनी को एक से ज्यादा अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट विकसित
करने की इजाजत दी गई जिसमें कैग ने सरकार पर टाटा पॉवर और रिलायंस पॉवर को फायदा
पहुंचाने का आरोप लगाया है। टाटा और रिलायंस को उनकी जरूरत से ज्यादा जमीन
अधिग्रहीत करने की इजाजत दी गई।
सासन प्रोजेक्ट
हासिल करने के लिए कंपनियों ने गलत जानकारी दी। सरकार ने रिलायंस पॉवर को सासन
प्रोजेक्ट के लिए आवंटित तीन ब्लॉक से तय मात्रा से कहीं ज्यादा कोयला निकालने की
इजाजत दी। सीएजी के मुताबिक निजी कंपनियों को कम से कम 29 हजार करोड़ का फायदा
हुआ।
दिल्ली में निजी
कंपनी जीएमआर और सरकार की भागीदारी से बने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के
मामले पर भी सीएजी की एक रिपोर्ट पेश हुई है। इससे जुड़ी सीएजी की ड्राफ्ट रिपोर्ट
में कहा गया है कि सरकार ने महज 1,813 करोड़ रुपये में 60 साल के लिए जीएमआर को
दिल्ली एयरपोर्ट की जमीन लीज पर दे दी।
एयरपोर्ट के
अलावा लगभग पांच हजार एकड़ ज़मीन भी मामूली रकम लेकर दे दी गई। नागरिक उड्डयन
मंत्रालय ने यात्रियों और करदाताओं को हुए नुकसान की भी अनदेखी की। ये नुकसान करीब
3 हजार 750 करोड़ रुपये का है। सीएजी ने तत्कालीन एविएशन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की
भूमिका पर सवाल खड़ा किया है। सीएजी के मुताबिक प्रफुल्ल पटेल के दौर में मंत्रालय
ने दिल्ली एयरपोर्ट बनाने वाली कंपनी जीएम्आर
को 3400 करोड़ का फायदा पहुंचाया। इसके साथ ही दिल्ली एयरपोर्ट संचालित
करने वाली कंपनी डायल पर नियमों के विपरीत डेवलेपमेंट फीस वसूलने का आरोप भी लगा
है।
हमारे देश का
दुर्भाग्यप है कि हम किसी विदेशी द्वारा नहीं, बल्कि अपने ही लोगों द्वारा लूटे जा रहे हैं। देश में भ्रष्टाचार कम होने की जगह बढ़ता ही जा
रहा है। देश में भ्रष्टाचार की वजह से ही मंहगाई बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था पर लगातार विपरीत असर पड़ रहा है
.देश में राजनीतिज्ञों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार ने सभी हदे पार कर दी है
.भ्रष्टाचार के मामले में भारत की छवि और बदतर हुई है। पिछले दिनों ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार मापक
सूचकांक में 183 देशों की सूची में भारत और नीचे खिसककर 95वें पायदान पर चला गया
है। पिछले साल यह 87वें स्थान पर था। इसके
निष्कर्ष के अनुसार पिछले तीन सालों में
बड़े-बड़े घोटाले उजागर हुए हैं। जिस तरीके से कोल ब्लाक आवंटन पर बंदरबाट हुई और
कोयला (काले सोने ) पर घोटाला किया गया यह
देश के लिए शर्मशार कर देने वाली घटना है .
कोयले जैसे
प्राकृतिक संसाधन को नीलाम न करवा कर और उसे ऐसे ही निजी एवं सार्वजानिक क्षेत्र
की कंपनियों को सस्ते दामों मनमाने तरीके से देने पर देश को इतना बड़ा नुक्सान हुआ है | यह अनुमान सस्ते कोयले पर लगाया गया है न कि मध्यम
दर्जे के कोयले पर, यानी मध्यम कीमतों पर अनुमान लगायें तो
ये राशि और अधिक होगी | इस घोटाले में २० अरब टन कोयला शामिल है जो वर्तमान उत्पादन
क्षमता के अनुसार ४० साल तक देश के लिए
बिजली पैदा करने के लिए काफी होता |
वास्तव में इसकी
सीधी सीधी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की है जिससे अब वह भाग नहीं सकते
क्योंकि इस पूरे समय चक्र के दौरान वो खुद कोयला मंत्री रहें है .बेहतर होगा कि वह
खुद सामने आकर अपना पक्ष रखे और इस घोटालें में शामिल लोगों पर कड़ी कारवाही करते
हुए निजी कंपनियों को आवंटित कोल ब्लाकों को अबिलम्ब रद्द करके नए सिरे से इनकी
नीलामी का आदेश दे. जब उनके पास मंत्रालय का प्रभार था तो सरकारी खजाने को हुए
नुकसान की जिम्मेनदारी उन्हेंु लेनी चाहिए।'देश
में लगातार हो रहें घोटालों के लिए अब समय आ गया है जब जनता को भी जागना होगा और
सरकार को भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कड़ी कर्त्वाही के लिए मजबूर करना होगा .
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http://epaper.haribhoomi.com/ Details.aspx?id=3163&boxid= 139007528
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