“मौत “
किसी के लिए आंकड़ों का खेल है ,
किसी के लिए राजनीति का खेल है ,
किसी के लिए जाति और धर्म का खेल है ,
किसी के लिए दिखावे की संवेदना का खेल है ,
लेकिन आम आदमी की “मौत “ ,
उसके परिवार की उम्मीदों की मौत है
उसके सपनों की मौत है
सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी में मौत बन जाती है “कागजी “
जिससे मानवीय संवेदनाएं कोसों दूर है
जहाँ कागज में
मौत को मुआवजें के तराजू में तौला जाता है
जहाँ मौत को जाति और धर्म के तराजू में तौला जाता है
लेकिन मौत को मौत के तराजू में कभी तौला नहीं जाता
अक्सर मौत हार जाती है मुआवजें के सामने
पैसे के सामने
अक्सर सरकारें भूल जाती है
आम आदमी के दर्द को ,मातम को
उसके आसुंओं को
क्या मुआवजा लौटा सकता है
किसी की जिंदगी को
किसी के सपनों को
किसी की उम्मीदों को ....
स्वरचित –शशांक द्विवेदी
किसी के लिए आंकड़ों का खेल है ,
किसी के लिए राजनीति का खेल है ,
किसी के लिए जाति और धर्म का खेल है ,
किसी के लिए दिखावे की संवेदना का खेल है ,
लेकिन आम आदमी की “मौत “ ,
उसके परिवार की उम्मीदों की मौत है
उसके सपनों की मौत है
सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी में मौत बन जाती है “कागजी “
जिससे मानवीय संवेदनाएं कोसों दूर है
जहाँ कागज में
मौत को मुआवजें के तराजू में तौला जाता है
जहाँ मौत को जाति और धर्म के तराजू में तौला जाता है
लेकिन मौत को मौत के तराजू में कभी तौला नहीं जाता
अक्सर मौत हार जाती है मुआवजें के सामने
पैसे के सामने
अक्सर सरकारें भूल जाती है
आम आदमी के दर्द को ,मातम को
उसके आसुंओं को
क्या मुआवजा लौटा सकता है
किसी की जिंदगी को
किसी के सपनों को
किसी की उम्मीदों को ....
स्वरचित –शशांक द्विवेदी
wah kya bat likhi hai ' लेकिन आम आदमी की “मौत “ ,
ReplyDeleteउसके परिवार की उम्मीदों की मौत है
उसके सपनों की मौत है '
उत्साह बढ़ाने के लिए राकेश जी धन्यवाद
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