शशांक द्विवेदी
दादरी में जो हुआ वो गलत हुआ लेकिन उसके बाद जो
हुआ वो तो और भी ज्यादा ग़लत है .जितनी मेरी समझ है उसके अनुसार दादरी का मामला
सुनियोजित नही था ,ये एक अफवाह के बाद हुई दुर्घटना है जिसे बाद में सेकुलर लोगों
ने सांप्रदायिक रंग दे दिया ,इस मामले पर टीवी चैनलों की बेवजह रिपोर्टिंग और तूल
देने से यह और बिगड़ गया .अब मुख्य सवाल यह है कि जिन लोगों ने अख़लाक़ को मारा वो तो
दोषी है ही लेकिन बाद में जिन बुद्धिजीवियों /सेकुलर लोगों ने इसे जबर्दस्त तूल
दिया क्या वो दोषी नहीं है ?काटजू ने कहा ,शोभा डे ने कहा कि हमनें गौमांस खाया
,क्या कर लोगों ,केरल में वामपंथियों ने बाकायदा आयोजन करके गौमांस खाया ...क्या
इस सबसे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होगी ? मै यहाँ हिन्दू –मुस्लिम की
बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि सीधे सीधे यह कह रहा हूँ कि ये कैसा वामपंथ है ,ये कैसा
सेकुलरिज्म है जिसे हिन्दुओं की भावनाएं भड़काने या आहत करने में आनंद आ रहा है .ये
बात भी यहाँ जानना जरुरी है कि ये सब लोग मुस्लिमों के साथ भी नहीं है बल्कि ये वो
लोग है जो उनका सबसे बड़ा नुक्सान कर रहें है .आखिर ये वही बुद्धिजीवी है जिन्होंने
दादरी के बाद इतना रायता फ़ैला दिया कि स्पष्ट तौर पर हिन्दू –मुस्लिम ध्रुवीकरण
दिख रहा है .हर बार की तरह ,दादरी के बाद फिर मोदी को ये लोग गरियाने लगे ,दोषी
बताने लगे लेकिन मुस्लिम समुदाय को ये सोचना होगा कि इन बुद्धिजीवियों के विधवा
विलाप से किसे फ़ायदा होगा ?सीधी सी बात है इससे मोदी और भाजपा को ही
फ़ायदा होगा क्योकि जब मुस्लिम एक तरफ होगा तो हिन्दुओ में भी यही भावना आयेगी
..कहने का मतलब सीधा है कि सेकुलर लोगों ही दादरी को सांप्रदायिक रंग दे दिया..जिसका
सीधा फायदा ग़ाली खाने वाली भाजपा और मोदी को ही होगा और हर बार की तरह मुस्लिम
समाज को फिर ये बुद्धिजीवी ठग लेंगे ...
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