Sunday, September 25, 2011

गरीबी पर योजना आयोग


गलत आंकड़ो से गरीबी और गरीबों का मजाक
गरीबों और गरीबी का मजाक तो सदियों से उड़ाया जाता रहा है | लेकिन बाकायदा पूरा गणितीय तर्क देकर सरकार द्वारा भद्दा मजाक करना पहली बार देख रहा हूँ |योजना आयोग ने जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में पेश करके यह कहा की शहर में ३२ रुपये और गाँव में २६ रुपये रोजाना पर जो खर्च चला सकते है वो गरीब नहीं है | मै तो यह कहता हू कि व्यावहारिक यह होगा कि इस रिपोर्ट को बनाने वाले सभी योजना आयोग के सदस्यों को ९६५ रुपये देकर कहा जाये कि आप सब लोग इन रुपये पर कम से कम १ महीना गुजर बसर करके दिखाए |अगर संभव हो तो इस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने वाले योजना आयोग के अध्यक्ष हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी को भी इसी तरह व्यावहारिक रूप से एक बार शहर या गाँव में इतने ही रुपये पर रहने को कहा जाये | तब इन लोगो को समझ में आएगा कि रिपोर्ट बनाने और वास्तविक जीवन जीने में कितना फर्क है | यह देश कि विडम्बना है कि इतने बड़े अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के होते हुए भी ,इतनी चरम महगाई को देखते हुए भी योजना आयोग द्वारा इस तरह कि रिपोर्ट बनाई गई | यह तो सरासर गरीब और गरीबों के साथ मजाक है |
यह रिपोर्ट बनाने वाले लोगो से कहा जाये की पहले आप और आपके परिवार वाले इस रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ो के मुताबिक शहर या गाँव में रह कर देख ले |४ सदस्यों वाले परिवार को ३८६० रुपये प्रति माह खर्च  करने को दिया जाये |तब इन लोगो को वास्तविकता का पता चलेगा ,तब उन्हें भी समझ में आएगा की गरीब लोग कैसे रहते है| इस पर क्यों कोई आयोग रिपोर्ट नहीं देता कि हमारे देश का कितना काला धन देश के बाहर है और उसे कैसे देश में लाये |सिर्फ गरीब और गरीबी के आंकड़ो के लिए ही क्यों इस तरह के आयोग बनते है जो सही रिपोर्ट तक नहीं देते |
खास बात है कि यह आंकड़ा इतनी ज्यादा  महंगाई दर के बावजूद है| सुप्रीम कोर्ट में योजना आयोग के सलाहकार बीडी विर्दी ने कहा कि गरीबी रेखा के नीचे आंकड़ों के लिए एनएसएसओ ने घर-घर सर्वे किया है जिसके आंकड़े आ चुके हैं| आंकड़ों की समीक्षा की जा रही है लेकिन प्रोविजनल आंकड़ों से कहा जा सकता है कि जून २०११  तक के हिसाब से गांवों में ७८१  रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह और शहरों में ९६५  रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिमाह उपभोग हो गया है|तेंदुलकर समिति ने २००४ -०५  में अनुमान लगाया था कि गांवों में १५  रुपए प्रति व्यक्ति और शहरों में २०  रुपए प्रति व्यक्ति उपभोग काफी है|
सुप्रीम कोर्ट ने बीपीएल परिवारों को खाना उपलब्ध कराने के बाबत जस्टिस वाधवा समिति का गठन किया था| सुप्रीम कोर्ट ने २९  मार्च, २०११  और २२  जुलाई, २०११  के आदेश में कहा था कि आज की तारीख में शहरों के एक व्यक्ति को २१००  कैलोरीज २०  रुपए में और गांवों में एक व्यक्ति को २४००  कैलोरी १५  रुपए में मिलना असंभव है|सुप्रीम कोर्ट ने योजना आयोग से कहा था कि वह चाहे तो अतिरिक्त शपथपत्र दायर कर अपना पक्ष रखे| इसी आदेश के तहत योजना आयोग ने  शपथपत्र दायर कर दिया, जिसमें ये रोचक बातें हैं|
इस रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन में एक आदमी प्रति दिन अगर .५०  रुपये दाल पर, .०२  रुपये चावल-रोटी पर, .३३  रुपये दूध, .५५  रुपये तेल, .९५  रुपये साग-सब्जी, ४४  पैसे फल पर, ७०  पैसे चीनी पर, ७८  पैसे नमक मसालों पर, .५१  पैसे अन्य खाद्य पदार्थों पर, .७५  पैसे ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्यक्ति अगर ४९ .१०  रुपये मासिक किराया दे तो आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जाएगा। योजना आयोग की मानें तो हेल्थ सर्विसेज पर ३९ .७०  रुपये प्रति महीने खर्च करके आप स्वस्थ रह सकते हैं। एजुकेशन पर ९९  पैसे प्रतिदिन खर्च करते हैं तो आपको शिक्षा के संबंध में कतई गरीब नहीं माना जा सकता। यदि आप ६१ .३०  रुपये महीनेवार, .  रुपये चप्पल और २८ .८०  रुपये बाकी पर्सनल सामान पर खर्च कर सकते हैं तो आप आयोग की नजर में बिल्कुल भी गरीब नहीं कहे जा सकते।
 इस देश में शायद ही कोई इन आंकड़ो के आधार पर अपनी जिन्दगी जी पाता हो |ये तो वास्तविकता से बहुत ज्यादा परे है |
आज के समय में भारत काफी तरक्की कर रहा है| आज भारत विश्व की चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था है|आज लगभग हर क्षेत्र में भारत अच्छी तरक्की कर रहा है|हमारी क्षमता का लोहा सारी दुनिया मान रही है|लेकिन इतनी तरक्की होने के बावजूद भारत आज भी गरीब राष्ट्रों में शुमार है|भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए गरीबी एक अभिशाप बनकर उभरी है|इसलिए राष्ट्रहित में यह आवश्यक है की इसका उन्मूलन किया जाये|
आज जीडीपी के  आंकड़े   सिर्फ  कागजों तक ही सीमित है|असल में तो आज भी झुग्गी झोपडी में रहने वाले लोग ४० से ५० रूपये रोजाना कमाते है|उनका जीवनस्तर काफी निम्न है|उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है|देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यापन कर रही है| इसलिए यह आवश्यक है की इस गंभीर समस्या की तरफ सर्कार का ध्यान आकर्षित होना चाहिए|विश्व संस्थाएं,विश्व बैंक आदि भी निर्धनता दूर करने के लिए काफी मदद करते है|लेकिन वह मदद भ्रष्टाचार के कारण गरीबों तक नहीं पहुँच पाती|इसके कारण उनकी स्तिथि में कोई सुधर नहीं हुआ है|इससे निपटने के लिए सबसे पहले सरकार को भ्रष्टाचार दूर करना पड़ेगा|तभी सही मायने में गरीबी का उन्मूलन होगा|इसके लिए सरकार के साथ-साथ जनता का भी फ़र्ज़ बनता है कि अपनी कमाई का छोटा सा हिस्सा गरीबो को देना चाहिए|तभी भारत सही मायने में विकसित देश कहलायगा|   

वर्ल्ड बैंक ने भारत में गरीबी के बारे जो आंकड़े पेश किए हैं, वे आंखें खोलने वाले हैं। विश्व संस्था के आकलन के अनुसार, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी के प्रतिशत के लिहाज से भारत की स्थिति केवल अफ्रीका के सब-सहारा देशों से ही बेहतर है। बैंक की ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्टस फॉर २०१०  शीर्षक से जारी रिपोर्ट भारत के 'शाइनिंग इंडिया' के पीछे की हकीकत दिखाती है  बैंक ने अनुमान जताया है कि २०१५  तक भारत की एक तिहाई आबादी बेहद गरीबी (1.२५  डॉलर, यानी करीब ६०  रुपये प्रति दिन से कम आय) में अपना गुजारा कर रही होगी। १९९०  में गरीबी के मामले में भारत की स्थिति चीन से बेहतर थी। उस वक्त चीन में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली जनसंख्या ६०.२  प्रतिशत और भारत में ५१.३  प्रतिशत थी। लेकिन १५  साल बाद २००५  में चीन में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली जनसंख्या घटकर १५ .९  प्रतिशत रह गई और भारत में बढ़कर ४१.६  प्रतिशत हो गई।
हमने गरीबी और गरीबो को जानने के लिए एक रेखा खीच दी है जिसे गरीबी रेखा कहते है पर आजादी के बाद से लेकर  आज तक इस रेखा का उपयोग सिर्फ भ्रस्ताचार करने ,गरीबो के नाम पर योजनाये बनाकर उनको लुटने के काम ही आई है |  हमारे समाज में एक ऐसी रेखा खिंच गयी है या खींच दी गयी है जो मनुष्य को दो हिस्सों में बांटता है| एक वह जो अमीर है दूसरा वह जो गरीब है| अमीर होने के लिए आपके पास क्या कुछ होना चाहिए इसकी परिभाषा  सबके लिए अलग है  लेकिन जो साधन संपन्न हैं वे अपने आप को अमीर मानते हैं| जिनके पास साधन नहीं है वे गरीब लोग हैं| अब अमीर होने के लिए जरूरी है कि गरीब उन साधनों को इकट्ठा करे जिससे वह अमीरों की श्रेणी में आ सके| जिससे कभी कभी वर्ग संघर्ष भी पैदा होता है |
हमारे देश में  नेताओ ,नौकरशाहों की संवेदनशीलता ,जवाबदेही लगता है खत्म हो गई है नहीं तो इतनी शर्मनाक रिपोर्ट सामने नहीं आती जिसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं हो |वास्तव में इस रिपोर्ट  का असली मकसद सस्ते दर पर वितरित किए जाने वाले अनाज की मात्रा को कम करना है। जब योजना आयोग के ऐसे इरादे हों तो फिर किसी को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि जो खाद्य सुरक्षा विधेयक चर्चा में है वह आम आदमी का भला करने वाला नहीं |
अब समय आ गया है जब लोग इस तरह की सरकारी रिपोर्ट्स का अपने स्तर पर पुरजोर विरोध करे | जिससे सरकार को लगे की जनता में इसे लेकर काफी गुस्सा है|
सिर्फ आंकड़ो की बाजीगरी से गरीबी कम नहीं हो जाती इसके लिए धरातल पर काम करना पड़ता है |गरीबों के लिए सिर्फ योजनाये बनाने से कुछ नहीं होगा ,उनका सही क्रियान्वन हो यह भी सुनिश्चित करना पड़ता है | क्योकि उपर से नीचे तक बड़े पैमाने पर भ्रस्ताचार है ,इसको खत्म करना पड़ता है |
शशांक द्विवेदी
(स्वतंत्र लेखक और पत्रकार )

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