Saturday, November 16, 2013

जब पत्नी के सामने अकड़ कम होने लगी...

एक दिलचस्प वाकया है मेरे लेखन से सम्बंधित जिसने मेरी लिखने की रफ़्तार काफी बढ़ा दी .

शशांक द्विवेदी 

लगभग 2 साल पहले जब दिल्ली में रामलीला मैदान में अन्ना हजारे जी का आंदोलन चल रहा था तो मै उससे बहुत ज्यादा प्रभावित था ,दिन रात बस उसी का चिंतन और खबरों ,विश्लेषणों में डूबा रहता था .इस दरम्यान मैंने कैंडल मार्च भी निकाला और आंदोलन के समर्थन में रामलीला मैदान भी गया .फिर वो दिन भी आया जब अन्ना का अनशन खत्म होने वाला था उसी दिन मैंने अमर उजाला और दैनिक जागरण के संपादकीय विभाग में फोन करके कहा कि इस विषय पर मै आज शाम तक एक लेख लिखकर भेजूंगा .उन्होंने कहा ठीक है आप शाम 5 :30 बजे तक भेज दीजिये .लगभग पूरे दिन मै टीवी पर नजरे गडाये रहा देखता रहा और लिखता रहा .उस समय तक मै लेख कागज़ के पन्नों पर लिखता था क्योंकि मुझे लैपटाप पर हिंदी में टाइपिंग नहीं आती थी .कृति देव फॉण्ट में लिखना तो बिल्कुल भी नहीं आता था उस समय अधिकतर अखबार वाले इसी फोंट में लिखा हुआ मागते थे .उस दौरान मै लेख कागज़ में लिखकर फिर उसे स्कैन करके भेजता था ,या बहुत जरूरी हुआ तो साइबर कैफे या फिर अपनी श्री मती प्रियंका से टाइप करवा कर भेजता था .प्रियंका चुकि कई साल तक अमर उजाला में काम कर चुकी थी इसलिए वो बहुत स्पीड से टाइप कर लेती थी ..इस तरह जैसे तैसे मेरा काम चल जाता था .अब अन्ना के अनशन समाप्ति वाले दिन किसी बात को लेकर मेरा प्रियंका से झगडा हो गया ,बोलचाल बंद हो गयी थी उस दिन ,मै खूब ऐठ में था लेख लिख रहा था ,टीवी देख रहा था .लेकिन टाइम बढ़ता जा रह था . लेख हर हाल में 5 :30 तक भेजना भी था . कालेज बंद था इसलिए स्कैन करके भी नहीं भेज सकता था दूसरी बात नीमराना में हिंदी टाइप करने वालों के बड़े नखरे थे .वो टाइप करके समय पर देते नहीं थे अब मै बड़ी दुविधा में फस गया कि क्या करू .और कोई तरीका उस समय मुझे पता नहीं था .
लड़ाई की वजह से चूँकि मै पूरी ऐठ में था इसलिए प्रियंका से बात करना अपनी शान के खिलाफ लग रहा था(पत्नी के साथ नोकझोक में ऐसा हो जाता है ,आप लोगों ने भी महसूस किया होगा ) .इधर घड़ी की सुई बढ़ रही थी ,टाइम तेजी से बढ़ता जा रहा था अखबार वालों से वादा किया था इसलिए लेख भी भेजना था अपनी क्रेडिबिलिटी का भी सवाल था .इधर टाइम बढ़ने के साथ मेरी अकड़ कम होने लगी थी ,लेकिन मै प्रियंका से बात नहीं कर पा रहा था .दोनों तरफ से "इज्जत" जाने का डर था आखिरकार 5 :30 बज गये अमर उजाला से फोन आया कि अभी तक भेजा क्यों नहीं ?अब मै उन्हें क्या बताता ,मैंने कहा बस भेजने वाला हू ,भेज ही रहा हू ..उस समय तक दिमाग की सारी अकड़ जा चुकी थी तब मैंने प्रियंका के सामने सरेंडर कर दिया कहा कि जल्दी से मदत करो लेख भेजना है इसे जल्दी से टाइप करो .वो पूरी तरह से सामान्य थी और किसी अकड़ में नहीं थी इसलिए उसने जल्दी से मेरी बात मान ली और उस पूरे मैटर को टाइप कर दिया इस दौरान मेरे पास अखबार से फोन आते रहें मै उन्हें 10 -10 मिनट करके टालता रहा .आखिरकार 6 :45 पर मैंने उस लेख को भेज दिया तब तक मेरे हाथ पैर फूल रहें थे ,खैर श्री मति जी ने इज्जत बचाई वो लेख भेज दिया अगले दिन वो अमर उजाला और दैनिक जागरण में प्रकाशित भी हुआ .लेकिन इस घटना से मुझे बहुत सबक मिला सोचा कि ऐसे तो लेखन होने से रहा फिर मैंने कुछ दोस्तों से पूछा कि क्या करू कैसे टाइप किया जाए कोई आसान रास्ता बताओ तो किसी ने बताया कि गूगल हिंदी इनपुट साफ्टवेयर का इस्तेमाल करो ,उसे लैपटाप में डाऊनलोड किया .फिर मंगल फाँट (यूनिकोड ) में लिखना आ गया फिर उसे कृति देव में कन्वर्ट करके लेख भेजने लगा .कुल मिलाकर उस दिन प्रियंका से किया हुआ झगड़ा मेरे लिए बहुत फायदेमंद रहा .साथ तो वो मेरा हमेशा ही देती रही लेकिन उस दिन मुझे उसका साथ बहुत फील हुआ ...चुकीं मुझे लिखने की बीमारी है ही इसलिए इस घटना के बाद तो लिखने की गति बहुत बढ़ गयी मै धड़ाधड़ लिखता गया ,छपता गया . लेकिन मै उन अखबार वालों का बहुत शुक्रगुजार हू जिन्होंने मेरे हाथ से लिखे और स्कैन किये हुए लेख कई साल तक प्रकाशित किये .क्योंकि आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में ये असंभव सा लगता है कि कोई आपके स्कैन किये हुए पेज पहले प्रिंट लेगा फिर उसे टाइप करेगा फिर उसे प्रकाशित भी करेगा ..लेकिन मै खुशनसीब रहा कि ये सब मेरे साथ हुआ ..एहसास हुआ कि श्रीमती जी से कभी -कभी लड़ाई -झगडा ,नोंकझोक भी फ़ायदेमंद होती है ..उनके साथ का भी अच्छा एहसास हुआ ... 

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