Monday, January 6, 2014

पंखुड़ी मिश्रा की गजलें

ख़ुश्क था जो पेड उस पर पत्तियाँ अच्छी लगी, 
तेरे होठों पर लरज़ती सिसकियाँ अच्छी लगी ! 
हर सहूलत थी मयस्सर लेकिन इसके बावजूद, 
माँ के हाथों की पकाई रोटियाँ अच्छी लगी ! 
जिसने आज़ादी के क़िस्से भी सुने हों क़ैद में, 
उस परिन्दे को क़फ़स की तीलियाँ अच्छी लगी ! 
हाथ उठा कर वक़्ते-रुख़्सत जब दुआएं उसने दीं, 
उसके हाथों की खनकती चूडियाँ अच्छी लगी ! 
हम बहुत थक-हार कर लौटे थे लेकिन जाने क्यों, 
रेंगती, बढती, सरकती चींटियाँ अच्छी लगी

 सियासत में
झूट की होती है बोहतात सियासत में, सच्चाई खाती है मात सियासत में !
 दिन होता है अक्सर रात सियासत में, गूँगे कर लेते हैं बात सियासत में ! 
और ही होते हैं हालात सियासत में, जायज़ होती है हर बात सियासत में !! 
सभी उसूलों वाले आदर्शों वाले, जोशीले और जज़्बाती नरों वाले ! 
मर्दाना तेवर वाली मूँछों वाले, सच्चाई के बड़े बड़े दावों वाले !
 बिक जाते हैं रातों रात सियासत में, जायज़ होती है हरबात सियासत में !! 
दिये तेल बिन जगमग जगमग जलते हैं, सूखे पेड़ भी बे मौसम ही फलते हैं ! 
खोटे सिक्के खरे दाम में चलते हैं, लंगड़े लूले भी बल्लियों उछलते हैं ! 
लम्बे हो जाते हैं हात सियासत में, जायज़ होती है हर बात सियासत में !! 
वोटों के गुल जब कुर्सी पर महकेंगे, नोटों के बुलबुल हर जानिब चहकेंगे ! 
बर्फ़ के तोदे अंगारों से दहकेंगे, ख़ाली पैमाने झूमेंगे बहकेंगे ! 
होगी बिन बादल बरसात सियासत में, जायज़ होती है हर बात सियासत में !! 
इंसाँ कहना पड़ता है शैतानों को, दाना कहना पड़ता है नादानों को ! 
ख़्वाहिशात को, ख़्वाबों को, अरमानों को, रोकना पड़ता है उमड़े तूफ़ानों को ! 
काम नहीं आते जज़्बात सियासत में, जायज़ होती है हर बात सियासत में !! 
जितने रहज़न हैं रहबर हो जाते हैं, पस मंज़र सारे मंज़र हो जाते हैं ! 
पैर हैं जितने भी वो सर हो जाते हैं, बोने सारे क़द आवर हो जाते हैं ! 
बढ़ते हैं सब के दरजात सियासत में, जायज़ होती है हर बात सियासत में !! 
जब हालात की सख़्ती से घबरा जाऊँ, ख़ुशहाली की मंज़िल मैं भी पा जाऊँ ! 
सच्चे रस्ते से मैं भी कतरा जाऊँ, जी करता है राही मैं भी आ जाऊँ ! 
मार के सच्चाई को लात सियासत में, जायज़ होती है हर बात सियासत में !!

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