Saturday, August 23, 2014

मंदिर और हम मुसलमान

मेहनाज खान 
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अगर कहीं मस्जिद का आधार था और भूलवश उसपर मंदिर बनी तो हिन्दुओं को चाहिए की वो मुसलामनों को उसका मस्ज़िद धरोहर की तरह दें और मंदिर अन्य जगह बना लें। मुसलमानों को चाहिए की हर उस मस्ज़िद को अन्यत्र बना लें जो ठीक मंदिर ऊपर बना हो। और सबसे बड़ी बात जिस 'बाबर' को पूरा हिन्दोस्तान आक्रमणकारी, आततायी, विध्वंसकारी, भारतीय सभ्यता को नष्ट करनेवाला और अपनी व्यवस्था थोपने वाला मानता हो .. हम मुसलमान कैसे फिर उसके विरासत और अवशेषों को सहेजने का काम कर सकते हैं .... ??? बाबरी का विध्वंस 'हिन्दुओं' ने किया यह बहुत ही दुखद है … यह काम तो हम मुसलमानों को ही कर देना चाहिए था।
सरकार और सुप्रीमकोर्ट
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सरकार कोई भी हो यदि इन मुद्दों से संवेदनशील कहकर बचना चाहती है तो तो शर्मनाक है साथ ही इसे ठंढे बस्ते में गुसेड़े रखना सुप्रीम कोर्ट का एक बहुत बड़ा भूल है। क्यों ? क्योंकि इसतरह वे और हम अपने आने वाले पीढ़ी को क्या दे रहे हैं --- एक विवाद ! जरा सोचिये क्या इस विवाद के रहते हमारा भारत स्थिर रह सकता है ??? क्या भाईचारे और संविधान के धार्मिक निष्पक्षता का पाठ बरक़रार रह सकता है ? जरा सोचिये …
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
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मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, किलिमंजारो, लोथल और भी कई जगहों पर खुदाई हुई और दुनिया साक्षी है और हम मुसलमान भी मानते हैं की भारत मानवीय सभ्यता के विकास का प्रथम क्षेत्र है और साथ ही खुदाई के बाद इन जगहों से जो अवशेष मिले हैं वो हिन्दू देवी-देवताओं के ही मिले हैं। न तो कहीं इस मशीह की मूर्ती या क्रूस मिला न ही कोई इस्लामिक मजार या कब्रगाह .... इतिहास साफ कहता है भारत में मुसलमानों का आगमन ठीक उसी तरह हुआ जिसतरह पुर्तगाली और ब्रिटिस आये .... हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए हिन्दू सनातनियों का जिन्होंने हमें गले लगा लिया और हम भी हिंदुस्तानी सरजमीं में घुल गए।

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