Friday, September 26, 2014

“मेक इन इंडिया” का सपना

विकसित भारत के सपने के लिए “मेक इन इंडिया”
शशांक द्विवेदी 
भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने के सपने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना “मेक इन इंडिया” अभियान को  लॉन्च किया। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में ये एक बड़ा कदम है .ये कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पड़ोसी देश चीन का दबदबा बढता ही जा रहा है .भारत में चाइनीज उत्पादों की संख्या बढ़ती ही जा रही है , भारतीय बाजार चाइनीज उत्पादों से भरे पड़े है .ऐसे में “मेड इन इंडिया” की अवधारणा को मजबूत करना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी हो गया था .इस अभियान का मकसद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना है। अभियान का फोकस ऑटो, फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल समेत 25 सेक्टर को बढ़ाने पर रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिए बगैर देश का विकास नहीं हो सकता है। सरकार इंडस्ट्री के रास्ते से सारी अड़चने दूर करना चाहती है। एफडीआई की उन्होंने नई परिभाषा दे दी। उनकी नजर में भारतीयों के लिए एफडीआई का मतलब होना चाहिए फर्स्ट डेवलप इंडिया। मेक इन इंडिया इकोनॉमी के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। साथ ही इसकी मदद से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार बढ़ेगा।
भारत के “मेक इन इंडिया” के लाँच के बाद  चीन ने एक बार फिर  मेड इन चाइना का नारा दिया है .ऐसे में भारत को चीन की मैन्युफैक्चरिंग को भी समझना होगा कि क्यों चीन इस क्षेत्र में दुनियाँ में सबसे आगे है .
चीन इंटरनेट और ई-कॉमर्स के जरिए अपनी इकोनॉमी को जोरदार रफ्तार देने का प्लान बना रहा है। चीन की तेज इकोनॉमिक ग्रोथ में स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एसएमई) अहम भूमिका निभा रहे हैं। दरअसल, चीन के छोटे उद्यमियों ने नई तकनीकी को अपनाकर न सिर्फ प्रोडक्टिविटी बढ़ाई, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया। शायद यही देखकर पिछले दिनों चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान भारत ने चीन को टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया है। भारत के ज्यादातर स्मॉल एंटरप्राइजेज अभी भी तकनीकी से दूर हैं। चीन दुनिया का सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी और सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। माइनिंग एंड ओर प्रोसेसिंग के अलावा चीन कोल, मशीनरी, टेक्सटाइल्स एंड अपैरल, पेट्रोलियम, सीमेंट, फर्टिलाइजर, फूड प्रोसेसिंग, ऑटोमोबाइल्स, ट्रान्सपोर्टेशन इक्विपमेंट, शिप्स एंड एयरक्राफ्ट, फुटवियर, ट्वायज, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकम्युनिकेशंस और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का एक्सपोर्ट करता है। ग्लोबल रिसर्च फर्म मैकेंजी का मानना है कि वहां के एसएमई अब “माइक्रो-मल्टीनेशनल” बन रहे हैं। पिछले 30 सालों में जोरदार इंडस्ट्रियलाइजेशन के दम पर चीन दुनिया की फैक्ट्री बन गया है। चीन की खासियत में बड़ी संख्या में लेबर, सस्ती लागत और तुलनात्मक रूप से बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल है। चीन ने सिर्फ तेज रफ्तार से मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान दिया, बल्कि टेक्नोलॉजी इनोवेशन पर भी ध्यान दिया। मैकेंजी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के 21 फीसदी स्मॉल एंटरप्राइजेज क्लाउड तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि इंटरनेट एडॉप्शन रेशियो 25 फीसदी तक है।जबकि भारत में ये बहुत कम है .

चीन ने न सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस किया, बल्कि टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन पर भी खासा ध्यान दिया। इसमें नई तरह और बेहतरीन प्रोडक्टिविटी वाली मशीनों, लो कार्बन टेक्नोलॉजी, एनर्जी जैसे सेगमेंट शामिल हैं। इंटरनेट के जरिए चीन की एसएमई एक्सपोर्ट के मोर्चे पर भी मजबूत हो रहे हैं। अलीबाबा या ग्लोबल सोर्सेज जैसे बी2बी मार्केटप्लेसेज के जरिए वे विदेशी कस्टमर्स को प्रोडक्ट बेच रहे हैं। वहां के एसएमई अब “माइक्रो-मल्टीनेशनल” बन रहे हैं. जबकि  भारतीय एसएमई को खासकर सर्विस से जुड़े एंटरप्राइजेज सरकार की तरफ से मिलने वाले फायदे या इन्सेन्टिव नहीं मिल पाते।
  भारत  की एसएमई के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से अलग-अलग स्कीमें तो चलाई जाती हैं, लेकिन जानकारी की कमी के चलते वे उनका फायदा नहीं उठा पाते या भ्रष्टाचार के चलते ये फायदे उन तक पहुंच नहीं पाते।  एसएमई को कर्ज मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, अब बैंकों ने एसएमई लोन पर फोकस करना शुरू कर दिया है। लेकिन यहां, एसएमई के लिए बैंक के अलावा कोई वैकल्पिक व्यवस्था को कोई ठोस प्लान नहीं है। हाल में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी बैंकों से एसएमई को आसान कर्ज मुहैया करवाने की बात कही है। फ्लिपकार्ट, शॉपक्ल्यूज, स्नैपडील जैसी कई ई-कॉमर्स कंपनियों ने एसएमई के लिए मार्केट प्लेस बनाए हैं, लेकिन उनकी छोटे कारोबारियों तक पहुंच धीमी रफ्तार से बढ़ रही है। इसके अलावा सरकार की तरफ से एसएमई को ई-रिटेलर्स के साथ जोड़ने का कोई सटीक प्लान नहीं है। इसके अलावा एसएमई को टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के जरिए ग्रोथ को रफ्तार देने का बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें पर्याप्त पूंजी और प्रोडक्ट बेचने का डिजिटल जरिया मिलने जैसे प्रयास होने चाहिए।

मेक इन इंडिया अभियान का मकसद विदेशी कंपनियों को भारत में फैक्ट्री लगाने और भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने के लिए आकर्षित करना है। अभियान के तहत निवेशकों की हर उलझन को दूर करने के लिए मेकइनइंडिया डॉट कॉम  नाम से एक वेब पोर्टल शुरू किया गया है। इस पोर्टल पर निवेशकों को अपने सभी सवालों का जवाब सिर्फ 72 घंटों में मिलेगा । इस अभियान के जरिए सरकार रेगुलेटरी प्रोसेस को आसान कर निवेश को प्रोत्साहित करेगी। नीति और नियमों के नाम पर जो अड़चनें आती हैं, सरकार ने इन्हें दूर करने के लिए इंवेस्ट इंडिया नाम का एक सेल भी बनाया है, जो उद्योग लगाने से लेकर रेगुलेटरी मंजूरी तक सभी मामलों में विदेशी निवेशकों की मदद करेगी। अभी तक नई कंपनी या नए व्यापार के लिए सरकारी लालफीताशाही आड़े आती थी मंजूरी के लिए फ़ाइल एक दफ्तर से दूसरें में घुमती रहती थी .काफी वक्त लगता था किसी भी काम को शुरू करने में लेकिन अब इन सब मुश्किलों को दूर करने की दिशा में ये एक बेहतर कदम उठाया गया है . प्रधानमंत्री के मुताबिक इंडस्ट्री का सरकार से भरोसा उठ गया था लेकिन अब माहौल बदल रहा है। नरेंद्र मोदी ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी की बजाय कॉरपोरेट गवर्नमेंट रिस्पॉन्सिबिलिटी पर जोर देने की बात कही है . मेक इंडिया इंडिया का मकसद देश में रोजगार के मौके भी पैदा करना है ताकि 100 करोड़ भारतीयों के लिए नई नौकरियों के अवसर खुलें।
सच बात तो यह है कि भारत में मेक इन इंडिया अभियान बरसों पहले ही शुरू किया जाना चाहिए था लेकिन अब भी देर नहीं हुई है क्योंकि देर आये पर  दुरुस्त आये. निवेश के लिए भारत काफी आकर्षक है क्योंकि भारत में लोकतंत्र, आबादी और मांग सबकुछ मौजूद है। कारोबारी माहौल सुधारने की सबसे ज्यादा जरुरत है ,देश में कारोबार और मैन्युफैक्चरिंग का माहौल बनते ही भारत विकसित राष्ट्र का अपना सपना जरुर पूरा कर पायेगा .






Thursday, September 18, 2014

शशांक को सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान


  देश के विभिन्न अखबारों में शशांक द्विवेदी को सर्वश्रेष्ठ ब्लाँगर सम्मान दिए जाने पर ख़बरें प्रकाशित हुई
 
जनसंदेश टाइम्स
राजस्थान पत्रिका 
अमर उजाला आगरा से अपने एक कॉलम “साइबर बाइट्स “ से तकनीकी लेखन की शुरुआत करने वाले शशांक द्विवेदी को हिन्दी दिवस पर नई दिल्ली में एबीपी न्यूज  के एक खास कार्यक्रम में विज्ञान और तकनीकी लेखन के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्ध वेबसाइट विज्ञानपीडिया के लिए के लिए सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का पुरस्कार दिया गया . शशांक द्विवेदी सेंट मार्गरेट इंजीनियरिंग कॉलेज,नीमराना में प्रोफ़ेसर और प्रसिद्ध वेबसाइट विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संपादक है .एबीपी न्यूज़ ने एक भव्य कार्यक्रम में देश भर के चुनिंदा 10 ब्लॉगरों को  सम्मानित किया. पुरस्कार के लिए ब्लॉगरों का चयन प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक सुधीश पचौरी, कवि डॉ. कुमार विश्वास, गीतकार प्रसून जोशी और नीलेश मिश्र ने किया.
दैनिक जागरण 
विज्ञानपीडिया डॉट कॉम (विज्ञान और तकनीक की दुनियाँ ) आम आदमी 
,छात्रों और प्रोफेशनल्स को हिंदी में विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित नवीनतम जानकारी ,खोज ,लेख उपलब्ध कराती है .इस वेबसाईट के संपादक शशांक द्विवेदी के अनुसार आम आदमी और छात्रों की विज्ञान में रूचि बढानें के उद्देश्य से दो साल पहले इसकी शुरुवात की गई थी जो काफी सफल रही .हिंदी में विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित गुणवत्तापूर्ण कंटेंट की काफी कमी है .जबकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को उनकी  भाषा में ही विज्ञान कंटेंट देकर उनकी रूचि बढ़ाई जा सकती है .इस समस्या को ध्यान में रखते हुए ही विज्ञानपीडिया .कॉम जैसा प्रयोग किया गया ,जिसको आशातीत सफलता मिल रही है .
दैनिक जागरण ,चित्रकूट 
द सी एक्सप्रेस 
दुनियाँ के कई देशों से इस साईट को देखा जा रहा है और इसकी सामग्री पर हजारों हिट्स मिल रहें है ,वर्ड वाइड अब तक वेबसाईट के 64200 पेज व्यू हो चुके है. विज्ञानपीडिया अपनी विशिष्ट सामग्री  की वजह  से  युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसमें अंतरिक्ष उर्जा संकट ,जल संकट ,ग्लोबल वार्मिग ,उच्च शिक्षा ,तकनीकी शिक्षा ,मंगल अभियान पर कई विशेष लेख है . वेबसाइट के संपादक शशांक द्विवेदी देश के प्रमुख हिन्दी अख़बारों के लिए विज्ञान और तकनीकी विषयों पर नियमित स्तंभ लिखते है . विज्ञान संचार  से जुडी   देश की कई संस्थाओं द्वारा उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है . अख़बारों में उनके प्रकाशितअधिकांश लेख आपको यहीं मिल जायेंगे .इस वेबसाइट का उद्देश्य आम आदमी को विज्ञान और तकनीक से जोड़ना है .इस वेबसाइट पर विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित अच्छी से अच्छी जानकारी  उपलब्ध है .नियमित अपडेट होने से यह पाठकों को नई जानकारी उपलब्ध कराती है.
द सी एक्सप्रेस 



शशांक द्विवेदी को सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान

ABP News द्वारा सम्मान  

कभी सोचा नहीं था कि ब्लाँगिंग /वेबसाइट के लिए मुझे कोई पुरस्कार मिलेगा .लेकिन कल जब ABP News ने इसके लिए सम्मानित किया तो बहुत खुशी हुई .दो साल पहले जब ब्लागिंग शुरू की तो इसके बारे में कुछ खास नहीं पता था आज भी ज्यादा कुछ नहीं पता है ...मेरा ब्लाँग/ वेबसाइट अतिसाधारण है लेकिन मुझे विज्ञान लेखन से प्यार है और इसे मैंने इसी उद्देश्य से बनाया कि रोज कुछ न कुछ अच्छी जानकारी इसमें अपडेट करके आप लोगों से शेयर कर सकू ..आम आदमी को विज्ञान और तकनीक के बारे में जानकारी उसकी अपनी भाषा में दे सकू .. हिंदी में विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित गुणवत्तापूर्ण कंटेंट की काफी कमी है .जबकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को उनकी  भाषा में ही विज्ञान कंटेंट देकर उनकी रूचि बढ़ाई जा सकती है .इस समस्या को ध्यान में रखते हुए ही विज्ञानपीडिया .कॉम जैसा प्रयोग किया गया ,जिसको आशातीत सफलता मिल भी रही है .आगे भी इसे और अच्छा बनाने की कोशिश करूँगा जिसमें आप लोगों का भी सहयोग अपेक्षित है .अगर आप मित्रों के पास विज्ञान /तकनीक से जुड़ी कोई खबर ,लेख हो तो वो आप मेरी वेबसाइट के लिए सहर्ष भेज सकते है .मेरे इस पुरस्कार में आप सभी मित्रों/पाठकों का भी  ही बहुत योगदान है क्योंकि आप लोगों के प्रोत्साहन ,तारीफ़ और आलोचना की वजह से ही मै कुछ अच्छा कर पा रहा हूँ इसलिए आप सभी के सहयोग और प्यार के लिए मै सदैव आपका आभारी रहूँगा .




 

सम्मानित हुए देश के 10 ब्लॉगर

हिन्दी दिवस पर ABP NEWS के खास कार्यक्रम में सम्मानित हुए देश के 10 ब्लॉगर
हिन्दी दिवस पर एबीपी न्यूज़ ने एक खास कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें देश भर के चुनिंदा 10 ब्लॉगरों का सम्मानित किया गया. पुरस्कार के लिए ब्लॉगरों का चयन हमारे चार खास मेहमान सुधीश पचौरी, डॉ. कुमार विश्वास, गीतकार प्रसून जोशी और नीलेश मिश्र ने किया.
दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी को पर्यावरण के मुद्दों पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. पंकज पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लगातार लिखते रहे हैं
http://pankajbooks.blogspot.in  पर आप इनके ब्लॉग को देख सकते हैं.

# दिल्ली के पंकज तिवारी को राजनीतिक मुद्दों पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया.

सेंट मार्गरेट इंजीनियरिंग कॉलेज ,नीमराना ,अलवर राजस्थान के शशांक द्विवेदी को विज्ञान के मुद्दे पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://www.vigyanpedia.com  पर पढ़े जा सकते हैं

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 दिल्ली की रचना को महिलाओं के मुद्दे पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://indianwomanhasarrived.blogspot.in
पर पढ़े जा सकते हैं.
मुंबई के अजय ब्रह्मात्मज को सिनेमा और लाइफ स्टाइल पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://chavannichap.blogspot.in
पर पढ़े जा सकते हैं.
इंदौर के प्रकाश हिंदुस्तानी को समसामयिकी विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉगhttp://prkashhindustani.blogspot.in पर पढ़े जा सकते हैं
लंदन की शिखा वार्ष्णेय को महिला और घरेलू विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉगhttp://www.shikhavarshney.com
 पर पढ़े जा सकते हैं.

फतेहपुर (यूपी) के प्रवीण त्रिवेदी को स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://blog.primarykamaster.com
पर पढे जा सकते हैं
दिल्ली के प्रभात रंजन को हिंदी साहित्य और समाज पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग को http://www.jankipul.com
पर पढ़ सकते हैं

दिल्ली की फिरदौस खान को साहित्य के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉगhttp://firdausdairy.blogspot.in

Thursday, September 11, 2014

पाकिस्तान में अल्पसंखयकों का उत्पीड़न

शशांक द्विवेदी 

नेशनल दुनियाँ में प्रकाशित 
नेशनल दुनियाँ के संपादकीय पेज पर प्रकाशित 
पाकिस्तान की एक संस्था पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर एजुकेशन एंड रिसर्च (पाइलर ) की एक रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले 20 सालों के दौरान पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरवाद बढ़ा है । जिसकी वजह से धार्मिक अल्पसंखयकों के साथ भेदभाव, उत्पीड़न एवं हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। वहां के हिंदुओं, सिखों और  ईसाइयों के साथ हो रहे भेदभाव के कारण वहां मानवाधिकारों के लिए खतरा पैदा हो गया है। वास्तविकता तो यह है कि धार्मिक अल्पसंखयकों के साथ भेदभाव का यह सिलसिला भारत पाकिस्तान के बँटवारे के बाद से ही शुरू हो गया था जो बाद के सालों में बढ़ता ही गया । उसके बाद भी न सिर्फ जारी है, बल्कि इसमें बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल पाकिस्तान के कराची में लगभग 100 साल पुराने मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके आस-पास बसे करीब 40 हिन्दू परिवार के घरों को भी उजाड़ दिया गया । पकिस्तान में यह कोई पहला मौका नहीं है जब ऐसे मंदिर ध्वस्त किया गया हो या हिंदू परिवारों को उजाड़ा गया हो बल्कि यह घटनाएँ तो साल दर साल बढ़ रही रही है और वहाँ की अल्पसंख्यक हिंदू आबादी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है । पाकिस्तान में हिन्दू होना एक अभिशाप के सिवा कुछ नही रह गया है । हिन्दू लडकियों का जबरन धर्म-परिवर्तन, मंदिरों को ध्वस्त कर देना वहाँ की बहुसंख्यक आबादी के लिए आम बात है । 1951 में पाकिस्तान में 75 लाख हिंदू थे और अब 18 लाख रह गए हैं।जबकि भारत में आजादी के समय लगभग २ करोड़ मुस्लिम थे जिनकी आबादी इस समय बढ़ कर लगभग ३२ करोड़ हो गई है ..इससे साफ़ है कि भारत मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए दुनियाँ का सबसे बेहतर देश है फिर भी यहाँ के कथित सेकुलर लोग सिर्फ मुस्लिम वोटबैक के लिए उनकी भावनाएं भडकाते रहते है. इनके लिए इस देश में धर्मनिरपेक्षता का सिर्फ एक मतलब है वो है सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण जबकि भारत में मुस्लिम न तो अल्पसंख्यक है न ही कमजोर है बल्कि दुनियाँ के किसी और देश के मुकाबले मजबूत और बेहतर स्तिथि में है .लेकिन इन घटिया और दो कौड़ी के कथित सेकुलर लोगों को पाकिस्तान में हिंदुओं की स्तिथि नहीं दिखती ,न ही ये देखना चाहते ,इन्हें पाकिस्तान के हिंदू शरणार्थी नही दिखते ,इन्हें कश्मीरी पंडित भी नहीं दिखते ...लानत है ऐसी घटिया धर्मनिरपेक्षता पर
 जनरल जियाउल हक के तानाशाही शासन के दौरान तो कट्टरवाद की सारी हदें ही पार हो गई थी । पाकिस्तान में लगातार बढ़ रहे कट्टरवाद एवं धार्मिक पहचानवाद के कारण वहां के अल्पसंखयकों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है और वे वहां के मुख्य समाज से कटते जा रहे हैं। हिंसक भीड़ का शिकार होना, ईशनिंदा कानून का शिकार होना एवं लड़कियों के जबरन धर्मातरण के कारण इन समुदायों को वहां या तो भय के वातावरण में जीवन गुजारना पड़ रहा है या मौका पाते ही वे दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं।
पिछले साल पाकिस्तान के कराची में लगभग 100 साल पुराने मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके आस-पास बसे करीब 40 हिन्दू परिवार के घरों को भी उजाड़ दिया गया । पकिस्तान में यह कोई पहला मौका नहीं है जब ऐसे मंदिर ध्वस्त किया गया हो या हिंदू परिवारों को उजाड़ा गया हो बल्कि यह घटनाएँ तो साल दर साल बढ़ रही रही है और वहाँ की अल्पसंख्यक हिंदू आबादी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है । पाकिस्तान में हिन्दू होना एक अभिशाप के सिवा कुछ नही रह गया है । हिन्दू लडकियों का जबरन धर्म-परिवर्तन, मंदिरों को ध्वस्त कर देना वहाँ की बहुसंख्यक आबादी के लिए आम बात है । 1951 में पाकिस्तान में 75 लाख हिंदू थे और अब 18 लाख रह गए हैं। वर्ष 2013 में वहां के मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि वहां हर महीने 25 हिंदू  लड़कियों का अपहरण हो रहा है। इनका धर्मांतरण करके मुसलमान युवकों से निकाह  करवा दिया जाता है। लगातार बढ़ रहे कट्टरवाद और  ईश निंदा कानून के चलते यहाँ  अल्पसंख्यक हिंदुओं  का जीना मुश्किल  हो गया है। इसी वजह से पाकिस्तान से हिंदुओं  का पलायन जारी है । यहाँ शारीरिक और मानसिक शोषण  के अलावा उनके धर्मस्थलों को भी तबाह किया जा रहा है। साल 2012 में यहाँ हिंदुओं के 4 प्रसिद्ध धर्मस्थल नष्ट  किए गए । जो अपने आप में  ऐतिहासिक धरोहर भी थे । फरवरी 2012 में रावलपिंडी में राम मंदिर तोड़ा गया, फिर नवम्बर में कराची स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर और अधिकृत कश्मीर में मनेसरा स्थित विशाल शिवालय ध्वस्त किया गया है। कराची की एक अदालत में मामला लम्बित होने व अदालत की निषेधाज्ञा के बावजूद पिछले साल 100 साल पुराना श्री राम पीर मंदिर तथा इसके आसपास के कई मकान भी बुल्डोजरों की सहायता से तोड़ दिए जिससे लगभग  40  परिवार बेघर हो गए।
पाकिस्तान में रह रहें अल्पसंख्यक हिंदुओं की स्तिथि काफी दयनीय होती जा रही है । अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों के पूजास्थल मंदिर और गुरुद्वारे बहुत बुरी हालत में हैं । इनके अधिकाँश पूजास्थल या तो ध्वस्त कर दिए गए या निकट भविष्य में ध्वस्त कर दिए जायेगें । सरकार सिर्फ मूकदर्शक बन कर हिंदुओं पर हो रहें अत्याचारों को देख रही है । साल दर साल हालात बिगड़ रहें है ,हिंदू पलायन को मजबूर हो रहें है लेकिन पाकिस्तानी सरकार कुछ नहीं कर रही है । अल्पसंख्यक हिंदू आबादी मंदिरों पर हमलों से परेशान है ।
पाकिस्तान में सरकार अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों मंदिरों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है । पाकिस्तान में मंदिर,गुरुद्वारा  या चर्च गिराने लगातार जारी है । देश में व्यावसायिक कारणों से अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को गिराया जा चुका है । अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है । पिछले कुछ सालों में ये हमले कई गुना बढ़ गए हैं । पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय खासकर हिंदू काफी डरे हुए हैं और उन्हें सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मिल रही है, यहाँ पर कुछ कट्टरपंथी संगठन यह सोचते हैं कि हिंदुओं पर और मंदिरों पर हमला कर के इन्हें जन्नत नसीब होगी । पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथ बढ़ता जा रहा है और समय के साथ साथ कट्टरपंथी और ताकतवर होते जा रहे हैं । जबकि सरकार अल्पसंख्यकों को और उनके धार्मिक स्थलों को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है । पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेम्बली एवं राज्य असेम्बलियों में अल्पसंखयकों के लिए आरक्षित सीटों पर उनके सीधे नामांकन के बजाय उन्हें चुनाव में उतरने का कानून बनने के बाद वहां की संसद व विधानसभाओं में अल्पसंखयकों के पहुंचने का रास्ता भी करीब-करीब बंद हो गया है।
यहाँ के हिंदू-मुसलमान के बीच असली समस्या  1947 से चली आ रही है  जब मुस्लिम बहुल पाकिस्तान को धार्मिक आधार पर एक अलग राष्ट्र बनाया गया था । ज्यादातर  ऊंची जाति के हिंदू पाकिस्तान छोड़कर भारत चले गए जबकि दलित जाति के हिंदू पाकिस्तान में ही रह गए जो मुख्य रूप से गरीब और अनपढ़ हैं । 1980-1990  में इस्लामी कट्टरपंथ के  दौर में  असुरक्षित हिंदू समुदाय और ज्यादा असुरक्षित हो गया । पिछले कुछ वर्षों में हिंदुओं को सिलसिलेवार ढंग से महिलाओं के अपहरण और जबरन धर्मांतरण का सामना करना पड़ा है । इस तरह के कदमों को अकसर कट्टरपंथी गुटों का संरक्षण मिला होता है । इन गुटों का काम होता है, अल्पसंख्यक हिंदुओं पर दबाव बनाना । पाकिस्तान के कानून में अब भी औपनिवेशिक समय के कानून हैं जिनमें धार्मिक स्थानों और वस्तुओं का अपमान करने के लिए सजा निर्धारित है । लेकिन ये समाज पर निर्भर करता है कि समाज उन्हें लागू करने के लिए कितना प्रतिबद्ध है ।

पाकिस्तान में योजनाबद्ध रूप से अल्पसंख्यकों व उनके धर्म स्थलों को समाप्त किया जा रहा है।  पाकिस्तान में रह रहे लाखों  हिन्दुओं के साथ स्थानीय बहुसंख्यक  समुदायों के द्वारा काफी बदतर सुलूक किया जाता है। इतनी बदतर जिंदगी जीने के बाद भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय अपनी  रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है लेकिन विश्व समुदाय और  भारत सरकार इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर रहा है । जबकि पाकिस्तान में लगभग हर दिन  अल्पसंखयकों की हत्यायें हो रही है और उनके धार्मिक स्थलों को तोडा जा रहा है । पाकिस्तान में इस शोषण से आजिज आकर अब  हजारों हिन्दू परिवार वहां से पलायन कर भारत में आ कर शरण ले रहे है। पाइलर की इस रिपोर्ट के आने के बाद विश्व समुदाय और खासकर भारत को इस दिशा में कुछ ठोस करना होगा जिससे पाकिस्तान में अल्पसंख्यको की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके ।

Tuesday, September 2, 2014

लिखना और छपना

शशांक द्विवेदी 

मै अच्छा लिखता हूँ इसलिए छपता हूँ ,,मै छपता हूँ इसलिए नहीं लिखता.....

मै पिछले कुछ सालों से देश के प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में नियमित रूप से स्तंभ लिख रहा हूँ , प्रिंट मीडिया में बिना किसी गाडफादर और सिफारिश के सिर्फ अपनी मेहनत और लगन के बूते मैंने अपना स्थान बनाया है ..(मै अच्छा लिखता हूँ इसलिए छपता हूँ ,,मै छपता हूँ इसलिए नहीं लिखता )आज से 10 साल पहले जब इंजीनियरिंग का छात्र था तब भी खूब लिखता था भले ही वो छपे या न छपे तब भी मेरे कई लेख जनसत्ता ,दैनिक जागरण ,अमर उजाला  आदि के संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुए थे..कुलमिलाकर लेखन शुरू से ही मेरे लिए जूनून रहा है और आज भी है और आगे भी रहेगा .पिछले दिनों एक पत्रकार ने मेरी शिकायत करते हुए कहा कि मेरा एक ही लेख देश के कई अखबारों में प्रकाशित हुआ है .मै उनकी शिकायत से पूरी तरह से सहमत हूँ (इस देश के अधिकांश बड़े नाम वाले लेखक तो घोषित तौर पर यही करते है ) और मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर आप का लेख लखनऊ,दिल्ली ,जयपुर ,भोपाल ,पुणे ,राँची आदि अलग अलग जगह पर छप रहा है तो ये अच्छी बात है विभिन्न पाठकों तक आपकी बात पहुँच रही है .आज के समय में हिंदी के लेखकों को अखबार वाले बहुत कम पारिश्रमिक देते है (मात्र कुछ सौ रुपये ,कई अखबार तो ऐसे भी है जो इतना भी नहीं देते ).. पारिश्रमिक भी छोड़िये उसे ठीक से सम्मान तक नहीं दिया जाता ,उसका लेख प्रयोग होगा कि नहीं अधिकांश संपादक यह जवाब देना तक जरूरी नहीं समझते .कुल मिलाकर लेखक को वो टेक एज अ ग्रांट की तरह लेते है .जरुरत हुई तो लेख प्रयोग कर लिया नहीं तो लेखक भाड़ में जाए .ऐसी परिस्थितियों में लेखक क्या करे ?कुछ सालों में मैंने मीडिया इंडस्ट्री को बहुत अच्छी तरह से देखा है ,समझा है ,आप भारत जैसे देश में आर्थिक रूप से मजबूत होने पर  ही “हिंदी में “ स्वतंत्र लेखन कर सकते है अगर आप बिना किसी जाब के या बिना मजबूत आधार के  फ्रीलांसिंग कर रहें है तो निश्चित तौर पर भूखे मर जायेगें.यहाँ स्तिथि  बहुत ज्यादा भयावह है ,जो दिखता है वो है नहीं ,और भी बहुत सारी बाते है फिर कभी बताऊँगा..

इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने मेरी चिंताओ को साझा करते हुए लिखा है
हाल के दिनों में एक नवेले हिंदी पत्रकार ने कुछ अखबारों के संपादकीय और ऑप एड पेज प्रभारियों को कुछ स्तंभ लेखकों के एक ही लेख के कई जगह प्रकाशित होने की जानकारी दी है...इससे कुछ लेखकों के कुछ संपादकों ने लेख छापने भी कम कर दिए हैं...इस बारे में मुझे याद आता है अपना एक संस्मरण..दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में मैं 1998 में काम कर रहा था...तब दैनिक भास्कर के प्रधान संपादक कमलेश्वर थे। उस समय भास्कर सिर्फ मध्य प्रदेश और राजस्थान में ही प्रकाशित होता था। उन दिनों मृणाल पांडे एनडीटीवी छोड़ चुकी थीं। तब रविवारीय भास्कर की कुछ कवर स्टोरियां अच्युतानंद मिश्र और मृणाल पांडे जी से लिखवाई गईं। संयोग से भास्कर में प्रकाशित मृणाल जी की एक स्टोरी किसी दूसरे अखबार में भी प्रकाशित हुई। रविवारीय में कार्यरत हमारे एक साथी ने कमलेश्वर जी से इसकी शिकायत की। कमलेश्वर जी ने शिकायत सुनी...फिर साथी से सवाल पूछा- आप एक लेख का मृणाल जी जैसे लेखक को कितना पारिश्रमिक देते हैं...उन दिनों मिलने वाली रकम कुछ सौ रूपए होती थी..मित्र ने वही जवाब दिया...कमलेश्वर जी का जवाब था--पहले एक लेख का पारिश्रमिक पांच हजार देने का इंतजाम करो..तब सोचना कि मृणाल जी या दूसरे लेखक एक ही लेख दूसरी जगह छपने को ना दें...फिर उन्होंने उसे समझाया कि अगर एक ही लेख दो अलग-अलग इलाकों के दो या चार अखबारों में छपें तो हर्ज क्या है..आखिर पाठक भी तो अलग-अलग इलाकों के हैं..