Friday, September 26, 2014

“मेक इन इंडिया” का सपना

विकसित भारत के सपने के लिए “मेक इन इंडिया”
शशांक द्विवेदी 
भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने के सपने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना “मेक इन इंडिया” अभियान को  लॉन्च किया। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में ये एक बड़ा कदम है .ये कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पड़ोसी देश चीन का दबदबा बढता ही जा रहा है .भारत में चाइनीज उत्पादों की संख्या बढ़ती ही जा रही है , भारतीय बाजार चाइनीज उत्पादों से भरे पड़े है .ऐसे में “मेड इन इंडिया” की अवधारणा को मजबूत करना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी हो गया था .इस अभियान का मकसद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना है। अभियान का फोकस ऑटो, फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल समेत 25 सेक्टर को बढ़ाने पर रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिए बगैर देश का विकास नहीं हो सकता है। सरकार इंडस्ट्री के रास्ते से सारी अड़चने दूर करना चाहती है। एफडीआई की उन्होंने नई परिभाषा दे दी। उनकी नजर में भारतीयों के लिए एफडीआई का मतलब होना चाहिए फर्स्ट डेवलप इंडिया। मेक इन इंडिया इकोनॉमी के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। साथ ही इसकी मदद से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार बढ़ेगा।
भारत के “मेक इन इंडिया” के लाँच के बाद  चीन ने एक बार फिर  मेड इन चाइना का नारा दिया है .ऐसे में भारत को चीन की मैन्युफैक्चरिंग को भी समझना होगा कि क्यों चीन इस क्षेत्र में दुनियाँ में सबसे आगे है .
चीन इंटरनेट और ई-कॉमर्स के जरिए अपनी इकोनॉमी को जोरदार रफ्तार देने का प्लान बना रहा है। चीन की तेज इकोनॉमिक ग्रोथ में स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एसएमई) अहम भूमिका निभा रहे हैं। दरअसल, चीन के छोटे उद्यमियों ने नई तकनीकी को अपनाकर न सिर्फ प्रोडक्टिविटी बढ़ाई, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया। शायद यही देखकर पिछले दिनों चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान भारत ने चीन को टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया है। भारत के ज्यादातर स्मॉल एंटरप्राइजेज अभी भी तकनीकी से दूर हैं। चीन दुनिया का सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी और सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। माइनिंग एंड ओर प्रोसेसिंग के अलावा चीन कोल, मशीनरी, टेक्सटाइल्स एंड अपैरल, पेट्रोलियम, सीमेंट, फर्टिलाइजर, फूड प्रोसेसिंग, ऑटोमोबाइल्स, ट्रान्सपोर्टेशन इक्विपमेंट, शिप्स एंड एयरक्राफ्ट, फुटवियर, ट्वायज, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकम्युनिकेशंस और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का एक्सपोर्ट करता है। ग्लोबल रिसर्च फर्म मैकेंजी का मानना है कि वहां के एसएमई अब “माइक्रो-मल्टीनेशनल” बन रहे हैं। पिछले 30 सालों में जोरदार इंडस्ट्रियलाइजेशन के दम पर चीन दुनिया की फैक्ट्री बन गया है। चीन की खासियत में बड़ी संख्या में लेबर, सस्ती लागत और तुलनात्मक रूप से बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल है। चीन ने सिर्फ तेज रफ्तार से मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान दिया, बल्कि टेक्नोलॉजी इनोवेशन पर भी ध्यान दिया। मैकेंजी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के 21 फीसदी स्मॉल एंटरप्राइजेज क्लाउड तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि इंटरनेट एडॉप्शन रेशियो 25 फीसदी तक है।जबकि भारत में ये बहुत कम है .

चीन ने न सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस किया, बल्कि टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन पर भी खासा ध्यान दिया। इसमें नई तरह और बेहतरीन प्रोडक्टिविटी वाली मशीनों, लो कार्बन टेक्नोलॉजी, एनर्जी जैसे सेगमेंट शामिल हैं। इंटरनेट के जरिए चीन की एसएमई एक्सपोर्ट के मोर्चे पर भी मजबूत हो रहे हैं। अलीबाबा या ग्लोबल सोर्सेज जैसे बी2बी मार्केटप्लेसेज के जरिए वे विदेशी कस्टमर्स को प्रोडक्ट बेच रहे हैं। वहां के एसएमई अब “माइक्रो-मल्टीनेशनल” बन रहे हैं. जबकि  भारतीय एसएमई को खासकर सर्विस से जुड़े एंटरप्राइजेज सरकार की तरफ से मिलने वाले फायदे या इन्सेन्टिव नहीं मिल पाते।
  भारत  की एसएमई के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से अलग-अलग स्कीमें तो चलाई जाती हैं, लेकिन जानकारी की कमी के चलते वे उनका फायदा नहीं उठा पाते या भ्रष्टाचार के चलते ये फायदे उन तक पहुंच नहीं पाते।  एसएमई को कर्ज मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, अब बैंकों ने एसएमई लोन पर फोकस करना शुरू कर दिया है। लेकिन यहां, एसएमई के लिए बैंक के अलावा कोई वैकल्पिक व्यवस्था को कोई ठोस प्लान नहीं है। हाल में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी बैंकों से एसएमई को आसान कर्ज मुहैया करवाने की बात कही है। फ्लिपकार्ट, शॉपक्ल्यूज, स्नैपडील जैसी कई ई-कॉमर्स कंपनियों ने एसएमई के लिए मार्केट प्लेस बनाए हैं, लेकिन उनकी छोटे कारोबारियों तक पहुंच धीमी रफ्तार से बढ़ रही है। इसके अलावा सरकार की तरफ से एसएमई को ई-रिटेलर्स के साथ जोड़ने का कोई सटीक प्लान नहीं है। इसके अलावा एसएमई को टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के जरिए ग्रोथ को रफ्तार देने का बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें पर्याप्त पूंजी और प्रोडक्ट बेचने का डिजिटल जरिया मिलने जैसे प्रयास होने चाहिए।

मेक इन इंडिया अभियान का मकसद विदेशी कंपनियों को भारत में फैक्ट्री लगाने और भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने के लिए आकर्षित करना है। अभियान के तहत निवेशकों की हर उलझन को दूर करने के लिए मेकइनइंडिया डॉट कॉम  नाम से एक वेब पोर्टल शुरू किया गया है। इस पोर्टल पर निवेशकों को अपने सभी सवालों का जवाब सिर्फ 72 घंटों में मिलेगा । इस अभियान के जरिए सरकार रेगुलेटरी प्रोसेस को आसान कर निवेश को प्रोत्साहित करेगी। नीति और नियमों के नाम पर जो अड़चनें आती हैं, सरकार ने इन्हें दूर करने के लिए इंवेस्ट इंडिया नाम का एक सेल भी बनाया है, जो उद्योग लगाने से लेकर रेगुलेटरी मंजूरी तक सभी मामलों में विदेशी निवेशकों की मदद करेगी। अभी तक नई कंपनी या नए व्यापार के लिए सरकारी लालफीताशाही आड़े आती थी मंजूरी के लिए फ़ाइल एक दफ्तर से दूसरें में घुमती रहती थी .काफी वक्त लगता था किसी भी काम को शुरू करने में लेकिन अब इन सब मुश्किलों को दूर करने की दिशा में ये एक बेहतर कदम उठाया गया है . प्रधानमंत्री के मुताबिक इंडस्ट्री का सरकार से भरोसा उठ गया था लेकिन अब माहौल बदल रहा है। नरेंद्र मोदी ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी की बजाय कॉरपोरेट गवर्नमेंट रिस्पॉन्सिबिलिटी पर जोर देने की बात कही है . मेक इंडिया इंडिया का मकसद देश में रोजगार के मौके भी पैदा करना है ताकि 100 करोड़ भारतीयों के लिए नई नौकरियों के अवसर खुलें।
सच बात तो यह है कि भारत में मेक इन इंडिया अभियान बरसों पहले ही शुरू किया जाना चाहिए था लेकिन अब भी देर नहीं हुई है क्योंकि देर आये पर  दुरुस्त आये. निवेश के लिए भारत काफी आकर्षक है क्योंकि भारत में लोकतंत्र, आबादी और मांग सबकुछ मौजूद है। कारोबारी माहौल सुधारने की सबसे ज्यादा जरुरत है ,देश में कारोबार और मैन्युफैक्चरिंग का माहौल बनते ही भारत विकसित राष्ट्र का अपना सपना जरुर पूरा कर पायेगा .






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