दैनिक जागरण और DNAमें शशांक द्विवेदी का लेख

राजनीतिक पार्टियों को डर सता रहा है कि आरटीआई के दायरे में आने से फंड को लेकर कई तरह के सवाल पूछे जाएंगे। राजनीतिक पार्टियों को कॉर्पोरेट घरानों से चंदे के नाम पर मोटी रकम मिलती है। हालांकि, 20 हजार से ज्यादा की रकम पर पार्टियों को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को सूचना देनी होती है। चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली संस्था असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म(एडीआर) का कहना है कि अब चालाकी से पार्टियां 20 हजार से कम की कई किस्तों में पैसा ले रही हैं। ऐसे में पता नहीं चलता है कि किसने कितनी रकम दी है और क्यों दी है।
असल में सत्ता में रहने वाली पार्टी फंड के दम पर कॉर्पोरेट घरानों को जमकर फायदा पहुंचाती है। सरकार दृराजनीतिक दलों-कॉर्पोरेट घरानों का गठजोड़ नयें तरह के भ्रष्टाचार को जन्म देता है । पिछले दिनों कोयला घोटाला में सस्तें में कोल ब्लॉक आवंटन इसी तरह का एक मामला है । आवंटित किए गए कोल ब्लॉक जिन लोगों को मिले है उनसे कांग्रेस और बीजेपी, दोनों पार्टियों को चंदा के नाम पर मोटी रकम मिलती रही है। आरटीआई के दायरे में आने के बाद राजनीतिक दलों से कई कई टेढ़े सवाल होंगे, जिनके जवाब देने में राजनीतिक पार्टियों को पसीने छूट जाएंगे। मसलन पार्टी फंड के सभी पैसों के स्रोत क्या क्या है ,किस आधार पर कौन पार्टी टिकट बांट रही है और पैसे लेकर टिकट बेचने समेत कई सवालों से राजनीतिक पार्टियों को दो-चार होना पड़ सकता है।
आर टी आई के दायरे में आने के बाद वास्तविक तौर पर यह भी पता चल जाएगा कि किस पार्टी के पास कितना फंड आया । अभी यह स्तिथि है कि पार्टियां चुनाव आयोग को जो फंड से सम्बंधित जो ब्यौरा उपलब्ध कराती है उसको मानना चुनाव आयोग की बाध्यता बन जाती है ।इस विषय में कोई जाँच न होती है ,न की जाती है जबकि पार्टी फंड के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है ।कार्पोरेट घराने बड़े पैमाने पर अपना काला धन पार्टी फंड के नाम पर पार्टियों को देते है ।इसी तरह चुनाव के दौरान पार्टी प्रत्याशी भी बड़े पैमाने पर कालेधन का प्रयोग करते है ।
इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले आरटीआई ऐक्टिविस्ट और एडीआर के सुभाष चंद्र अग्रवाल ने कहा कि राजनीति पार्टियों की बेचैनी से ही साफ हो जाता है कि क्यों ये आरटीआई के दायरे में नहीं आना चाहती हैं। वास्तव में सीआईसी के इस फैसले के राजनीति में पारदर्शिता बढ़ेगी और चुनाव सुधार के क्षेत्र में भी एक अहम कदम होगा। दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि आरटीआई जब संसद से पास किया गया था तब इसके दायरे में राजनीतिक पार्टियों को नहीं लाने का फैसला किया था। ऐसे में सीआईसी का यह फैसला संसद का अपमान है। अन्य पार्टियों से अलग इस मामले में आम आदमी पार्टी ने केंद्रीय सूचना आयोग के इस निर्णय की सराहना करते हुए अन्य दलों के लिए एक उदाहरण पेश किया है । आम आदमी पार्टी के संयोजक और देश में सूचना का अधिकार कानून लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अरविंद केजरीवाल शुरू से ही चुनावों में पारदर्शिता के लिए इस तरह के कानून की माँग करते रहें है ।

असल में हमारे देश में हर स्तर पर एक दोहरा रवैया कायम है। राजनीति में यह कुछ ज्यादा ही है। यहां धनिकों से नोट और गरीबों से वोट लिए जाते हैं। लेकिन कोई खुलकर इसे मानने को तैयार नहीं होता। राजनेताओं को लगता है कि अगर वे अपना वास्तविक खर्च बता देंगे तो गरीब और साधारण लोग शायद उनसे रिश्ता तोड़ लें। किसी में यह स्वीकार करने का साहस नहीं है कि उनकी पार्टी धनी-मानी लोगों की मदद से चलती है।
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