Thursday, June 13, 2013

दलित चिंतन का ढ़ोंग करते कथित दलित चिंतक

शशांक द्विवेदी 
इस देश में दो तरह के दलित चिंतक है एक वो है जो वाकई में दलित उत्थान चाहते है ,उनके लिए लिखते है जैसे डॉ तुलसी राम (पिछले दिनों तहलका में प्रकाशित उनका इंटरव्यू कई मामलों में महत्वपूर्ण था ,ऐतिहासिक था ) दूसरे तरह के दलित चिंतक दिलीप मंडल जैसे लोग है जो दलितों को विशुद्ध बेवकूफ बनाते है इसको एक उदहारण से समझिये पिछले दिनों उन्होंने मायावती द्वारा ब्राह्मणों को टिकट देने के मामलें में (घोषित 36 में 19 लोकसभा टिकट )उन्होंने अपने वाल में लिखा था की "जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी" जबकि 90 के दशक में इस नारे का मतलब कुछ और था लेकिन आज वक्त बदला और अचानक ब्राह्मण ही इनके आराध्य हो गए और बसपा में उनकी हिस्सेदारी और भागीदारी दोनों ही जबरदस्त तरीके से बढ़ गयी ,बसपा के टिकटों को देखें तो 70 फीसदी सवर्णों को मिल रहें है ...फिर भी उन्होंने मायावती के फैसले का समर्थन और स्वागत किया .जबकि डॉ तुलसी राम ने इस बात की आलोचना की थी .फिर दिलीप मंडल ने अपने वाल में लिखा की ब्राह्मणों का तुष्टीकरण (जैसे अल्पसंख्यकों का )हो रहा है तो मै ये समझ नही पा रहा हूँ की ६० फीसदी टिकट सिर्फ ब्राह्मणों को टिकट देने से तुष्टीकरण कैसे हो गया (क्या आज तक किसी पार्टी ने दलितों को या मुस्लिमों को इतनी ज्यादा मात्र में टिकट दियें है ) ये तो मायावती की मजबूरी और बदलती राजनीति की तरफ इशारा करता है ...कुलमिलाकर कार्पोरेट पत्रकारिता के पक्षधर दिलीप मंडल वैसे ही दलितों की चिंतक है जैसे मायावती है ...(मतलब जिन दलितों का वोट लिया आज उन्ही को दरकिनार कर दिया ) ..डॉ तुलसी राम जैसे लोग सम्मान के पात्र है जो वाकई में दलित उत्थान चाहते है..उनके लिए काम करतें है ..सिर्फ दिखावा नहीं करतें...

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