Friday, December 20, 2013

घर में बेटी होने का सच !!

दयानंद पांडे 
जिस घर में बेटी नहीं, वह घर नहीं है। एक बार पढ़ने में, सुनने में यह सूत्र वाक्य विह्वल कर देता है। पर हकीकत में? और तो सब ठीक है लेकिन ज़रा बेटी की शादी खोज कर एक बार देख लीजिए। सारे सूत्र वाक्य भूल जाएंगे। यह और ऐ्से सारे सूत्र वाक्य ज़मीन पर आ जाएंगे। बहुत कठिन काम है यह। यह संविधान, समाज, परिवार और लोग भी झूठ ही कहते हैं कि स्त्री पुरुष सभी बराबर हैं। सिद्धांत और है, व्यवहार और। कहीं कोई बराबर नहीं है। कहीं कोई बराबरी नहीं। बेटी की शादी खोजने में सारे सच नंगे हो कर सामने आ जाते हैं। दुनिया के किसी भी बाज़ार से खतरनाक और पतनशील है शादी का बाज़ार। सारे के सारे पढ़े-लिखे लोग भी जहालत की मूर्ति बन कर खड़े हो जाते हैं। तन कर। पूरी बेशर्मी से। क्यों के वह बेटे के माता-पिता हैं। और सब कुछ और सारी बराबरी के बावजूद आप भिखारी बन कर बल्कि इस से भी बुरी स्थिति में खड़े हो जाते हैं क्यों कि आप बेटी के पिता हैं। बावजूद इस सब के बेटियां तो हमारी प्राण हैं और रहेंगी ! सर्वदा !


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