Thursday, December 19, 2013

कितने दूर -कितने पास

  
हम कितने दूर है ,कितने पास है
इसका न तुम्हे एहसास है ,न मुझे एहसास है ,
किसी क्षण में तो हम इतना दूर चले जाते है ,
कि लगता है पास ही न आ पायेंगे
और किसी क्षण में हम इतना पास हो जाते है
कि लगता है कभी दूर ही न जा पायेगें,
प्रति क्षण बदलता रहता है इस नजदीकी और दूरी का एहसास
कभी –कभी कितना दूर होकर भी पास होतें है हम ,
और कभी –कभी कितना पास होकर भी दूर रहतें है हम ,
नजदीकी और दूरी के इस पेंडुलम में हम झूलते ही रहते है
कभी नजदीकी ज्यादा होती है कभी दूरी ज्यादा होती है

 प्यार और नफरत की पूरकता

जिंदगी किताब नहीं होती
जिंदगी “जिंदगी “होती है
तभी तो प्यार में नफरत
और नफरत में प्यार
दोनों का एहसास साथ रहता है
कोई एक हमेशा ही प्रभावी रहता है
तभी तो जिंदगी की दूरी में भी नजदीकी
और नजदीकी में भी दूरी का एहसास साथ रहता है हमेशा
दोनों पूरक है एक दूसरे के
एक के न होने का मतलब दूसरे का होना है
हम कितनी भी दूर हो लें
फिर भी पास आ जातें है
और कितना भी पास हो ले दूर चले जाते है
स्वरचित -शशांक द्विवेदी 

(संपादक ,विज्ञानपीडिया डाट  कॉम)

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