Tuesday, March 5, 2019

अच्छे और कथित बुद्दिजीवियों का ढोंग

राहुल राज
"अच्छे लोग हिंसा या हिंसा के किसी भी संवाद से दूर रहते हैं| अच्छे लोग आतंकवादी हमलों पर दुःख व्यक्त करते हैं, गाँधी के सन्देश लिखते हैं, फैज़ की नज़्म पढ़ते हैं, चैनल बदल कर गुस्सा कम करते हैं, और फिर सो जाते हैं| अच्छे लोग मोदी की हंसी में भी युद्ध के विषैले गीत सुन लेते हैं और अच्छे लोग जैश-ए-मोहम्मद को पनाह देने वाले इमरान खान में statesmanship देख लेते हैं| अच्छे लोगों में अच्छा दिखने की इतनी होड़ लगी रहती है कि हिन्दुस्तान के सौ लोगों का पोस्ट पढ़कर उन्हें पूरा हिन्दुस्तान खून का प्यासा दिखने लगता है और पकिस्तान के दो पोस्ट पढ़कर पूरा पाकिस्तान उन्हें शान्ति की जन्म भूमि दिखने लगती है|

अच्छे लोगों का मानना है कि भारत को आतंकवादी कैम्पों पर हमला करने के बाद जश्न नहीं मनाना चाहिए था क्यूंकि इससे शान्ति की प्रक्रिया भंग होती है| अच्छे लोग अच्छा सच सुनना चाहते हैं, उन्हें बुरा सच उचित नहीं लगता| हर रोज़ जब हम शांति की अच्छी बातें लिखकर सो रहे होते हैं तो सीमा पर आतंकवादी हमलों में कोई न कोई जवान शहीद होता रहता है| हर रोज़ जब हम फैज़ और नेरुदा की कविताएं पढ़कर ख़ुद को अच्छा इंसान मानते रहते हैं तो उस समय कुछ निर्दोष लोग हमेशा के लिए शांत कर दिए जाते हैं| शान्ति और कविताएँ उन्हें भी पसंद होती हैं, लेकिन जब उनके सामने आतंकवादी बन्दूक लेकर खड़ा रहता है, तब उनके पास बड़ी बड़ी philosophical बातें करने का convenience नहीं होता|

अच्छे लोग कहते हैं कि केवल प्रेम और संवाद से हिंसा रोकी जा सकती है| अच्छे लोग आपको ये नहीं सुनना चाहते हैं कि कश्मीर को per-capita के मुताबिक़ सबसे ज्यादा फण्ड मिलता है| इसमें education और medical facilities पर बहुत ध्यान दिया जाता है| अच्छे लोग ये नहीं सुनना चाहते हैं कि जब कोई जवान आतंकवादी को घेरने जाता है तो उसपर पत्थर बरसाए जाते हैं| अच्छे लोग अच्छी बातें लिख कर समस्या हल कर लेते हैं| जी बिलकुल युद्ध से गरीबी और तबाही फैलती है| उससे आम आदमी परेशान होता है| आम आदमी के पास पहले से कम परेशानियाँ नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि आतंकवादी हमलों में सेना को शांति से मर जाना चाहिए ताकि आम आदमी शान्ति की कविता लिख पाए| एक गंभीर समस्या को बस इसलिए तो नहीं भूल जाना चाहिए क्यूंकि कुछ गंभीर समस्याएं है और भी हैं|

अच्छे लोग ये तो बोल देते हैं कि सेना की इतनी फ़िक्र है तो सीमा पर लड़ने क्यों नहीं चले जाते, लेकिन कभी ये नहीं बोलते कि मैं सीमा पर शान्ति का सन्देश लेकर जाऊंगा|

प्रश्न पूछना अच्छा है| आप पूछते रहिये, लेकिन जवाब यदि कड़वा हो तो कान बंद मत कीजियेगा|"


No comments:

Post a Comment