उर्जा संकट के प्रति दूरगामी रणनीति जरुरी
पिछले दिनों उर्जा क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों के प्रतिनिधियो ,मालिकों ने प्रधानमंत्री से मिलकर इस क्षेत्र की अपनी समस्याए रखी । ये बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योकि इसमें प्रधानमंत्री के साथ साथ उर्जा मंत्री ,कोयला मंत्री ,पर्यावरण मंत्री ,योजना आयोग के उपाध्यक्ष सहित उर्जा क्षेत्र के लगभग सभी उद्योगपति थे । बीते साल उर्जा क्षेत्र के उद्योगपतियों, कोयला मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव और खींचतान की खबरें थी । जिस तरह से देश में अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है और आबादी दिनोंदिन बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा संकट के प्रति सरकार को पहले ही आगाह होना चाहिए था।
सस्ती व सतत ऊर्जा की आपूर्ति किसी भी देश की तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। देश में उर्जा के दो प्रमुख माध्यम बिजली और पेट्रोलियम पदार्थाे की कमी होने से वैज्ञानिकों का ध्यान पुनः ऊर्जा के अन्य स्रोतों की ओर गया है। किसी भी देश क लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्त्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन । इस तरह की ऊर्जा नीति अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बाँध आदि, गोबर गैस इत्यादि। भारत में इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं, और वैकल्पिक ऊर्जा के तरीके ग्राम स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने से भी अनुकूल हैं, इसलिए देश में इन्हे बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है । जिससे देश में उर्जा के क्षेत्र में बढती मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा सके । हमें न केवल वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि सांस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों से स्थानीय ऊर्जा की जरुरत पूरी हो सके।
जब से लोगों को विश्व-स्तर पर यह समझ में आ रहा है कि तेल तीव्रता से समाप्त हो रहा है, ऊर्जा का मुद्दा नीति-चर्चाओं में प्रमुख जगह लिए हुए है । पारंपरिक तौर पर ऊर्जा के रूप में बिजली प्रायः तेल, कोयला, जल या परमाणु ऊर्जा से प्राप्त की जाती है । गांव में ऊर्जा की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है जिसके कारण लोग रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन करते हैं । शहरों में बिजली की आपूर्ति के कारण वहां उद्योग विकसित हो रहे है जिसके कारण गांव की अपेक्षा शहरों में भीड़ बढ़ती जा रही है । ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ रही है कि इन स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 40 वर्षों में इन स्रोतों के खत्म होने की संभावना है । ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प रह जाएगा । अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है । हालांकि यह भी सत्य है कि देश की 80 प्रतिशत विद्युत आपूर्ति गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी हो रही है । जिसके लिए भारी मात्रा में कोयले का आयात किया जाता है । वर्तमान में देश की विद्युत आपूर्ति में 64 प्रतिशत योगदान कोयले से बनाई जाने वाली ऊर्जातापीय ऊर्जा का है । ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति और अन्य कार्यों के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का भी आयात किया जाता है जिसके कारण भारत की मुद्रा विदेशी हाथों में जाती है । अर्थशास्त्रियों के अनुसार यदि एक बैरल कच्चे तेल की कीमत में एक डालर की वृद्धि होती है तो भारत के तेल आयात बिल में 425 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त व्यय जुड़ जाता है अर्थात तेल की कीमतों में वृध्दि का सीधा असर हमारे मुद्रा भण्डार पर पड़ता है। इन दिनों तेल कीमतों में उफान जारी और जल्दी ही सार्वकालिक उचाईयो पर पहुचने की संभावना हैं,तेल की ये कीमतें हमारे घरेलू और बाहरी दोनों मोर्चाे को बुरी तरह से प्रभावित करेंगी। कीमतों का ये असर अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाला है जिसे कम किए जाने की जरूरत है ।। वर्तमान में देश की विद्युत आपूर्ति में 64 प्रतिशत योगदान कोयले से बनाई जाने वाली ऊर्जातापीय ऊर्जा का है । ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति और अन्य कार्यों के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का भी आयात किया जाता है जिसके कारण भारत की मुद्रा विदेशी हाथों में जाती है । आंकड़ों पर गौर किया जाए तो वर्ष 2010-11, 2009-10 में कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का कुल सकल आयात क्रमशः 4,18,475 करोड़, 4,22,105 करोड़ था जबकि इसकी तुलना में निर्यात क्रमशः 1,44,037 करोड़, 1,21,086 करोड़ था । अतः आयात और निर्यात के बीच इतना बड़ा अंतर अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाला है जिसे कम किए जाने की जरूरत है ।
देश में बिजली की आपूर्ति कम पड़ रही है। 10वीं पंचवर्षीय योजना में 41,000 मेगावाट अतिरिक्त विद्युत उत्पादन लक्ष्य के मुकाबले मात्र 21,200 मेगावाट उत्पादन ही हो पाया। 11वीं योजना में 78,577 मेगावाट अतिरिक्त उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था जिसे संशोधित कर 62,375 मेगावाट कर दिया गया। कुल मिलाकर देश में 1,60,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता है जबकि खपत दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
विकास का जो माँडल हम अपनाते जा रहे है उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमे उर्जा उत्पादन को लगभग दुगुना करते जाना होगा । हमारी उर्जा खपत बढ़ती जा रही है । इस प्रकार उर्जा की मांग व पूर्ति में जो अतंर है वह कभी कम होगा ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता।
किसी आधारभूत उत्पाद या तकनीक के सन्दर्भ में दूसरों पर आश्रित रहना किसी देश के अर्थ तंत्र के लिए कितना भारी पड़ता है इसका ज्वलंत और पीड़ाकारी प्रमाण है देश में उर्जा और पेट्रोलियम उत्पादों की कमी । ऊर्जा की बढ़ती मांग के हिसाब से उत्पादन में कमी है । जहां सन् 2000-01 में भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 374 किलोवाट प्रतिवर्ष थी वहीं वर्तमान में 602 किलोवाट हो गयी है। हमारे योजनाकार वर्ष 2012 तक प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 1000 किलोवाट का अनुमान लगा रहे हैं तथा इस हिसाब से ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने वाली परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। विकसित देशों में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 10000 किलोवाट ऊर्जा खपत है।
देश मे प्रति व्यक्ति औसत उर्जा खपत वहाँ के जीवन स्तर की सूचक होती है। इस दृष्टि से दुनियाँ के देशों मे भारत का स्थान काफ़ी नीचे है । देश की आबादी बढ़ रही है । बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए और विकास को गति देने के लिए हमारी उर्जा की मांग भी बढ़ रही है द्रुतगाति से देश के विकास के लिए औद्योगीकरण, परिवहन और कृषि के विकास पर ध्यान देना होगा. इसके लिए उर्जा की आवश्यकता है । दुर्भाग्यवश उर्जा के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत ही सीमित है। खनिज तेल पेट्रोलियम, गैस, उत्तम गुणवत्ता के कोयले के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत ही सीमित हैं। हमें बहुत सा पेट्रोलियम आयात करना पड़ता है । हमारी विद्युत की माँग उपलब्धता से कही बहुत ज़्यादा है । आवश्यकता के अनुरुप विद्युत का उत्पादन नहीं हो पा रहा है।
ऊर्जा क्षेत्र के विषय में देश के उद्योगपतियों को प्रधानमंत्री द्वारा एक महीने के भीतर वर्तमान समस्या का समाधान कर लिए जाने का आश्वासन मिलना और इसके लिए समिति का गठन किया जाना सकारात्मक है, लेकिन ऐसा होने के बावजूद पूरी समस्या के सिर्फ एक पहलू का ही समाधान होगा, जबकि आज जरूरत ऊर्जा संकट पर संपूर्णता में विचार करने का है। हमें घरेलू, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में जरूरी ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए दूसरे वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। यह अक्षय ऊर्जा के प्रयोग से ही संभव है । भारत में अक्षय ऊर्जा के कई स्रोत उपलब्ध है । सुदृढ़ नीतियों द्वारा इन स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है ।
लेखक
शशांक द्विवेदी
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