Tuesday, May 22, 2012

काले धन पर श्वेत पत्र

काले धन पर पर्दा

केंद्र सरकार को पता नहीं है कि देश में कितना काला धन है। काले धन पर सरकार का बहु प्रतीक्षित श्वेत पत्र सूचनाओं, रणनीतियों और साहस में खोखला निकला है। ज्यादा छिपाने और कम बताने वाले इस श्वेत पत्र में वित्त मंत्रालय ने देश में काले धन के जो अंदाज दिए भी हैं वह आंकड़े आठवें दशक के हैं। जबकि तब से देश की अर्थव्यवस्था का आकार काफी बढ़ चुका है। यह पुराने आंकड़े भी सरकार के अपने नहीं बल्कि स्वतंत्र विशेषज्ञों के हैं।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में सोमवार को काले धन पर श्वेत पत्र पेश किया। श्वेत पत्र सरकार की तरफ से किसी विशेष मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर जारी किया गया नीतिगत पत्र होता है। इसे सरकार स्वेच्छा से भी जारी करती है। कभी-कभी किसी मुद्दे पर अस्पष्टता की स्थिति में सांसदों की मांग को ध्यान में रखते हुए जारी किया जाता है। इसका उद्देश्य सरकार की नीतियों को जनता के सामने लाना और उस मसले की स्थिति को पेश करना होता है। पिछला श्वेत पत्र पूर्व केंद्रीय रेलमंत्री ममता बनर्जी बतौर रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के पांच वर्षो के कार्यकाल के दौरान वित्तीय हालात को स्पष्ट करने के लिए लाई थीं।
काले धन पर पेश इस श्वेत पत्र में सरकार ने जो जानकारियां उपलब्ध कराई हैं वो कई तथ्य उपलब्ध कराने की सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े कर रही है। सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त का गठन कर काले धन की समस्या से निपटने का जो भरोसा दिया उसकी कलई भी सोमवार को संसद में खुल गई। श्वेत पत्र आने के चार-पांच घंटे के भीतर ही सरकार ने लोकपाल कानून को संसद की प्रवर समिति के पास भेज कर इसे लंबे समय के लिए टाल दिया है।
विदेश में जमा काली कमाई के जो आंकड़े सरकार ने श्वेत पत्र में दिखाए हैं उससे ज्यादा जानकारी तो अंतरराष्ट्रीय रिसर्च एजेंसियों के पास उपलब्ध है। श्वेत पत्र के इस आंकड़े पर भरोसा करना मुश्किल होगा कि 2010 में विदेशी बैंकों खासतौर पर स्विस बैंकों में भारतीयों के सिर्फ 9295 करोड़ रुपये ही जमा है। सरकार कह रही है कि यह राशि 2006 में 23,373 करोड़ रुपये थी यानी कि टैक्स हैवेन को भारत से पैसा भेजने में कमी आई है?
भारत से टैक्स हैवेन जाने वाले पैसे के मामले यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आइएमएफ] और ग्लोबल इंटीग्रिटी फाउंडेशन [जीआइएफ] के सर्वविदित आंकडे़ दोहराती है। इस मामले में भी सरकार ने अपनी तरफ से कोई जानकारी जुटाने की कोशिश नहीं की है। इन आंकड़ों के मुताबिक 2001 में 88 अरब डालर की काली कमाई देश से बाहर गई। सरकार ने माना है कि दोहरे कर से बचने वाली संधियां ही काले धन के सृजन का मुख्य स्त्रोत बन रहीं हैं।
बताया कम छिपाया ज्यादा:-
-विदेशी बैंकों में खाता रखने वालों का नाम नदारद
-काले धन पर आठवें दशक के एनआइपीएफपी रिपोर्ट का ब्योरा
-काले धन का सृजन रोकने वाले कानूनों का उल्लेख
-रीयल एस्टेट, सार्वजनिक खरीद, वित्तीय बाजार और बुलियन काला धन सृजन के प्रमुख स्त्रोत
छद्म नामों से हो रहा देश में निवेश
सरकार के श्वेत पत्र ने देश में होने वाले विदेशी निवेश की भी कलई खोल दी है। सरकार ने एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि दोहरे कराधान से बचने के लिए किए जाने वाले समझौते [डीटीएए] की आड़ में भारत में काला धन निवेश किया जा रहा है। इस समझौते का ही असर है कि पिछले 12 वर्षो में भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] का बड़ा हिस्सा सिंगापुर और मॉरीशस के जरिये आ रहा है। सरकार को इस बात की आशंका है कि भारतीय ही इन देशों के रास्ते काला धन एफडीआइ के रुप में देश में भेज रहे हैं।
श्वेत पत्र डीटीएए को लेकर सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। खासतौर पर जब सरकार यह समझती है कि डीटीएए की खामियों को दूर करने में गार [कर चोरी रोकने के सामान्य नियम] काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं फिर उसे क्यों लंबित किया जा रहा है? वित्त मंत्री ने वित्त विधेयक 2012-13 में इसे प्रस्तावित किया था लेकिन बाद में हटा दिया था। यह श्वेत पत्र इस तथ्य को भी सामने लाता है कि कर चोरी और काले धन के संबंध में विदेश से सूचनाएं तो खूब आ रही हैं लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर सरकार सुस्ती दिखा रही है। यह भी स्पष्ट है कि देश की जनता भारत में अर्जित धन को विदेश में छिपाने वाले लोगों के नाम कभी नहीं जान सकेगी। विदेशी सरकारों के साथ होने वाले समझौते की वजह से सरकार ऐसा नहीं कर सकेगी।
श्वेत पत्र के मुताबिक अप्रैल, 2000 से मार्च, 2011 के बीच भारत ने जितना एफडीआइ आकर्षित किया उसका 51 फीसद से ज्यादा हिस्सा मॉरीशस और सिंगापुर में पंजीकृत कंपनियों ने किया। इन दोनों देशों के साथ भारत का पुराना समझौता है जो दोहरे कराधान की समस्या से कंपनियों को राहत देता है। सरकार को अंदेशा है कि भारत में काली कमाई की जाती है और उसे किसी न किसी तरीके से इन देशों के रास्ते फिर भारत में लगाकर 'सफेद' कर लिया जाता है। इस बारे में बाहरी एजेंसियां तो काफी कुछ कह चुकी हैं। यह पहला मौका है जब सरकार इसे स्वीकार कर रही है। सरकार ने कहा है कि इस खामी को दूर करने के लिए इन दोनों देशों के साथ नए सिरे से डीटीएए करने की तैयारी है।सबसे ज्यादा काली कमाई कंपनियों ने बनाई
देश में कितना काला धन छिपा है, इसका आकलन सरकार तो सही-सही अभी तक नहीं लगा पाई है लेकिन उसने जो आंकड़े दिए हैं उससे स्पष्ट है कि यह आम अनुमान से काफी ज्यादा है। सिर्फ पिछले पांच वर्षो में ही आयकर विभाग की विभिन्न एजेंसियों ने देश-विदेश में मोटे तौर पर दो लाख करोड़ रुपये के काले धन का पता लगाया है। विदेशों में कारोबार फैला रहा भारतीय कारपोरेट उद्योग हो या देश के छोटे व्यापारी या आम कर दाता, काला धन बनाने में सब एक से बढ़ कर एक हैं।
काले धन पर सरकार की तरफ से पेश श्वेत पत्र में पहली बार आयकर विभाग के छापों और इसमें उजागर होने वाले धन के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराई गई है। अमूमन ये आंकड़े पिछले छह वित्त वर्षो के हैं, जो अपने आप ही बता रहे हैं कि काले धन की समस्या कितनी विकराल हो गई है। मसलन, आयकर विभाग कानून के तहत मारे जाने वाले छापों में पकड़े जाने वाली राशि इन वर्षो में तीन गुनी हो चुकी है। 2006-07 में 3612.89 करोड़ के काले धन का पता चला था जबकि 2011-12 में आंकड़ा 9289.43 करोड़ रुपये का हो गया।
छोटी व मझोली औद्योगिक इकाइयां भी पीछे नहीं। गत छह वर्षो में इनके बीच किये गये सर्वे से 26,579 करोड़ के काले धन का पता चला है। रिपोर्ट से यह भी साफ होता है कि कारपोरेट सेक्टर में भी काले धन के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। चाहे विदेशों में कारोबार फैला रही देशी कंपनियां हो या भारत में कार्यरत विदेशी कंपनियां, सही तरीके से कर अदा करने में इन सब की भूमिका संदेहास्पद है। अंतरराष्ट्रीय कराधान निदेशालय को इनसे सही आय व कर वसूलने में नाकों चने चबाना पड़ता है। पिछले एक दशक के दौरान उन भारतीय कंपनियों के एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर वसूला गया जो सही सूचना नहीं दे रही थी।
श्वेत पत्र के मुताबिक, गत दो वर्षो के दौरान भारतीय कंपनियों ने विदेशी सहयोगी कंपनियों की मिलीभगत से 67,768 करोड़ का कर बचाने की कोशिश की है। यह पूरा खेल ट्रांसफर प्राइसिंग है जिसमें ये कंपनियां एक उत्पाद या सेवा का भारत में तो कुछ और मूल्य दिखाती हैं लेकिन विदेशों में ज्यादा राजस्व प्राप्त करती हैं।
आयकर विभाग के छापे में जब्त धन
09-10-301--132.2----8101
10-11-440--184.15--10,649
11-12-499--271------9289



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