तकनीकी शिक्षा के लक्ष्य का क्या होगा
यह पहला मौका है, जब देश के 14
राज्यों के 143 तकनीकी शिक्षण संस्थानों ने
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी एआईसीटीई से अपने पाठय़क्रम बंद करने की
इजाजत मांगी है। इस बार देश में तकनीकी शिक्षा के मौजूदा सत्र में कॉलेजों में
बड़े पैमाने पर सीटें खाली रह गई थीं। जहां कुछ साल पहले तक तकनीकी शिक्षण संस्थान
खोलने की होड़-सी मची थी, वहीं अब इन्हें बंद करने की इजाजत
मांगने वालों की लाइन लगी हुई है। शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान रखे बगैर जिस तरह
से पूरे देश में तकनीकी कॉलेजों की बाढ़-सी आ गई थी, ऐसे में
एक दिन यह तो होना ही था।
देश
में यह पहली बार हो रहा है कि एक तरफ तो सरकार उच्च शिक्षा के व्यापारीकरण पर जुटी
है, वहीं दूसरी तरफ,
लोगों का रुझान इस ओर कम हो रहा है। पिछले दिनों इस पर योजना आयोग
ने अपना दृष्टिकोण-पत्र जारी किया था। उस दृष्टिकोण-पत्र के मुताबिक आयोग चाहता है
कि ऐसे उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना के लिए अनुमति दी जाए, जिनका उद्देश्य मुनाफा कमाना हो। दृष्टिकोण-पत्र के मुताबिक, 12वीं पंचवर्षीय योजना में उच्च शिक्षा, खासकर
तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बड़ी भूमिका देने की
जरूरत है। यह सुझाव पिछले वर्षों के दौरान उच्च शिक्षा क्षेत्र के बारे में चली
चर्चा के अनुरूप ही है, क्योंकि विदेशी विश्वविद्यालयों को
भारत में अपनी शाखा खोलने की इजाजत के साथ भी यह बात जुड़ी हुई है कि वे मुनाफे की
संभावना दिखने पर ही यहां आएंगे।
शिक्षा
के अधिकार के बाद से सरकार और उसके संसाधनों पर प्राथमिक शिक्षा के लिए दबाव बढ़ा
है, इसीलिए न सिर्फ
केंद्र सरकार, बल्कि राज्यों की सरकारें भी उच्च शिक्षा के
निजीकरण की बातें करने लगी हैं। यह उम्मीद की जाती रही है कि निजीकरण के बाद
गुणवत्ता नियामक संगठन इन संस्थानों की गुणवत्ता पर नजर रखेंगे। एआईसीटीई जैसे
संगठन इसी सोच के साथ बने थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मेडिकल कौंसिल ऑफ
इंडिया जैसे कई संगठन तभी से यह काम कर रहे थे, जब उच्च
शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थान आए भी नहीं थे। निजीकरण के बाद ज्यादातर कॉलेज
और ये संगठन उम्मीद पर खरे नहीं उतर सके। मोटी फीस लेकर तरह-तरह की तकनीकी शिक्षा
देने वाले कॉलेजों की बाढ़ आ गई। देश भर में इनकी रंगी-पुती भव्य इमारतें तो दिखने
लगीं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता कहीं नजर नहीं आई। पोल खुलने
के बाद अब ये कॉलेज पाठय़क्रम बंद करना चाहते हैं।
अगर ये पाठय़क्रम बंद होते हैं, तो तकनीकी शिक्षा
के हमारे लक्ष्य का क्या होगा? सरकार निजीकरण तो चाहती है,
लेकिन जो व्यवस्था बनी है, उसमें भारी खर्च के
बावजूद गुणवत्ता वाली शिक्षा लोगों को मिल सके, इसकी कोई
गारंटी नहीं है। पर हमारा लक्ष्य तो यही है।
हिन्दुस्तान में 01/05/2012 को प्रकाशित
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