पोखरण
से मिली सीख
शशांक
द्विवेदी
वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्रित्व में भारत ने पोखरण में 11
मई से 13 मई तक सफलतापूर्वक 5 परमाणु परीक्षण किए थे। इस सफलता के बाद प्रधानमंत्री वाजपेई ने जय जवान,
जय किसान और जय विज्ञान का नारा दिया था। यह दिन हमारी प्रौद्योगिकी
ताकत को दर्शाता है। पिछले दिनों भारत ने अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का
परिचय देते हुए आइसीबीएम यानी इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 और देश के पहले स्वदेश निर्मित राडार इमेजिंग उपग्रह रीसैट-1 का सफल प्रक्षेपण किया। इस तरह भारत दुनिया के छह ताकतवर देशों के समूह
में शामिल हो गया। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ने के बाद भी भारत
दुनिया कुछ देशों से पिछड़ा हुआ है और उसे अभी बहुत से लक्ष्य तय करने हैं।
अत्याधुनिक उपग्रहों के माध्यम से दुनिया के कोने-कोने की जानकारी रखने वाला
अमेरिका भी भारत के परमाणु विस्फोट की भनक नहीं लगा पाया था। भारत आज अपने दम पर
मिसाइल रक्षा कवच विकसित करने में भी सफल हो गया है। हालांकि अमेरिका, चीन जैसा बनने के लिए अभी बहुत मेहनत करनी होगी। चीन ने राडार की पकड़ में
न आने वाला स्टील्थ विमान विकसित कर लिया है जो अब तक केवल अमेरिका के पास ही था।
भारत को विश्वशक्ति बनने के लिए दूसरों से श्रेष्ठ हथियार प्रौद्योगिकी विकसित
करनी होगी। इस दिशा में अग्नि-5 और रीसैट-1 की कामयाबी हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि
इसमें अस्सी फीसदी से अधिक स्वदेशी तकनीक और उपकरणों का प्रयोग किया गया है। अगर
सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार अपनी प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा
करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाएं तो हम शीघ्र ही आत्मनिर्भर हो सकते हैं। इस
कामयाबी के साथ अब चीन और पाकिस्तान इसका जवाब देने के लिए नए हथियारों और उपकरणों
की होड़ में शामिल हो जाएंगे इसलिए हमें सतर्क रहते हुए अपने रक्षा कार्यक्रमों को
और अधिक मजबूत करना होगा। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक
और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। भारत
पिछले छह दशकों में अपनी अधिकांश प्रौद्योगिकीय जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से
करता आया है। वर्तमान में हमें अपनी सैन्य जरूरतों का 70 फीसदी
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात करना पड़ता है। अमेरिका भारत को हथियार व उपकरण तो दे
रहा है पर उनका हमलावर इस्तेमाल न करने और इसकी जांच के लिए अपने प्रतिनिधि भेजने
की शर्मनाक शर्ते भी लगाता है। वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक
देश बन रहा है। इससे मुक्त होने के लिए रक्षा मामले में आत्मनिर्भर बनने के अलावा
और कोई विकल्प नहीं है। हमारे घरेलू उद्योगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी
जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है इसलिए देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी भारतीय
उद्योग के कौशल संसाधनों एवं प्रतिभाओं का उपयोग जरूरी है। सुरक्षा मामलों में देश
को आत्मनिर्भर बनाने में सरकार और अकेडमिक संस्थाओं की भी सहभागिता जरूरी है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारा वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी ढांचा न तो विकसित
देशों जैसा मजबूत था और न ही संगठित। इसके बावजूद प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
हमने काफी कम समय में बड़ी उपलब्धियां हासिल की है। स्वतंत्रता के बाद भारत का
प्रयास रहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन
भी लाया जाए ताकि देश के जीवनस्तर में संरचनात्मक सुधार हो सके। अर्थव्यवस्था के
भूमंडलीकरण और उदारीकरण के कारण आज प्रौद्योगिकी की आवश्यकता बढ़ गई है। वास्तव
में प्रौद्योगिकीय गतिविधियों को बनाए रखने तथा सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना
करने के लिए जनमानस में वैज्ञानिक चेतना का विकास जरूरी है। (लेखक स्वतंत्र
टिप्पणीकार हैं) रक्षा मामले में आत्मनिर्भरता पर शशांक द्विवेदी के विचार
दैनिक जागरण (राष्ट्रीय ) में 14/05/2012 प्रकाशित
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