सब कुछ पा लेने
की चाहत में
हम खुद को भूल जाते
है
वो सवेरा ,वो सूरज
वो चाँद और तारे
वो बचपन की यादें
वो बचपन की बातें
हम भूल जातें है
थोड़ा सा पाने की
चाहत में
हम पूरा छोड़ जाते है
मुसाफिर है हम
इस जिंदगी में मगर
मालिक समझने की
भूल कर जातें है .
वो नदियों का पानी
वो झरनों की झिल मिल
सब छोड़ आते है
दुनिया को अपना
बनाने की कोशिश में
हम खुद की दुनिया
छोड़ आते है ..
सब कुछ पा लेने
की चाहत में
हम खुद को भूल जाते
है
स्वरचित -शशांक द्विवेदी
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