आदमी क्या दिखाना
चाहता है
न जानें क्या पाना
चाहता है ,
सब कुछ लुटा कर भी
गवां कर भी
न जानें क्यों
सबको आजमाना चाहता
है
सब कुछ पाने की चाहत
में
क्यों दूसरों को
गिरना चाहता है
चेहरे पे चेहरे लगा
के वो
न जानें क्या पाना
चाहता है
खुद की नजरों में
गिरकर भी
न जानें क्यों
दुनियाँ की नजरों
में
खुद को उठाना चाहता
है
उजालोँ को छोड़कर
न जानें क्यों वो
अंधेरो में जाना
चाहता है
अपनों को अकेला
छोड़कर
न जानें क्या पाना
चाहता है
आदमी क्या दिखाना
चाहता है .....
स्वरचित -शशांक द्विवेदी
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