Wednesday, April 10, 2019

मर्ज को दें मीठी गोली

आज 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष
Homeopathy Basics: Special on World Homeopathy Day

मर्ज को दें मीठी गोली
होम्योपैथी से तो सभी परिचित हैं, लेकिन सवाल यह है कि हम होम्योपैथी को जानते कितना हैं? कहीं हमारी जानकारी सुनी-सुनाई बातों पर तो आधारित नहीं? एक मरीज के रूप में होम्योपैथी की खासियतों और सीमाओं के बारे में जानना जरूरी है। होम्योपैथी के विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपैथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपैथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं। भारत सरकार भी इस चिकित्सा पद्धति पर काफी ध्यान दे रही है। इसे आयुष मंत्रालय के अंतर्गत जगह दी गई है।

क्या है होम्योपैथी, क्यों है यह खास?
एलोपैथी और आयुर्वेद की तरह होम्योपैथ भी एक चिकित्सा पद्धति है। इसमें एलोपैथी की तरह दवाओं का एक्सपेरिमेंट जानवरों पर नहीं होता। इसे सीधे इंसानों पर ही टेस्ट किया जाता है। होम्योपैथिक दवाइयां एलोपैथी की तुलना में काफी सुरक्षित मानी जाती हैं।

क्या इसके भी साइड इफेक्ट्स हैं?
होम्योपैथी के साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर एलर्जी हो हो जाए। दरअसल, ये परेशानी साइड इफेक्ट की वजह से नहीं है। ये होम्योपैथी के इलाज का हिस्सा है, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं। इस प्रक्रिया को 'हीलिंग काइसिस' कहते हैं जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं।

क्या होम्योपैथी में इलाज काफी धीमा होता है?
80 फीसदी मामलों में लोग होम्योपैथ के पास तब पहुंचते हैं जब एलोपैथी या आयुर्वेद से इलाज कराकर थक चुके होते हैं। कई बार तो 15 से 20 साल से इंसुलिन लेने वाले शुगर के पेशंट थक-हारकर होम्योपैथ के पास पहुंचते हैं। ऐसे मामलों में इलाज में वक्त लग सकता है।

कैसे होता है इलाज?
इसमें मरीज की हिस्ट्री काफी मायने रखती है। अगर किसी की बीमारी पुरानी है तो डॉक्टर उससे पूरी हिस्ट्री पूछता है। मरीज क्या सोचता है, वह किस तरह के सपने देखता है जैसे सवाल भी पूछे जाते हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू होता है।
 
किस तरह की बीमारियों में सबसे अच्छी?
इलाज लगभग सभी बीमारियों का है। पुरानी और असाध्य बीमारियों के लिए सबसे अच्छा इलाज माना जाता है इसे। असाध्य बीमारियां वे होती हैं जो एलोपैथ से इलाज के बाद भी बार-बार आ जाती हैं, लेकिन माना जाता है कि होम्योपैथी उन्हें जड़ से खत्म कर ली है, मसलन एलर्जी (स्किन), एग्जिमा, अस्थमा, कोलाइटिस, माइग्रेन आदि।

किन बीमारियों में कम कारगर?
होम्योपैथी कैंसर में आराम दे सकती है। हां, पूरी तरह ठीक करना मुश्किल है। शुगर, बीपी, थायरॉइड आदि के नए मामलों में यह ज्यादा कारगर है। अगर किसी मर्ज का पुराना केस है तो पूरी तरह ठीक करने में देरी होती है।

इसके इलाज के लिए कोई डॉक्टर सफेद मीठी गोलियां देता है तो कोई लिक्विड। ऐसा क्यों?
होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

क्या होम्योपैथी में दवा सुंघाकर भी इलाज किया जाता है?
हां, कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें मरीज को सिर्फ सूंघने के लिए कहा जाता है। मसलन, साइनुसाइटिस और नाक में गांठ की समस्या होने पर डॉक्टर ऐसे ही इलाज करते हैं।

अगर किसी को 5 बीमारियां हैं तो क्या उसे 5 तरह की दवा दी जाएगी?
ऐसा बिलकुल भी नहीं है। एलोपैथ की तरह इसमें 5 अलग-अलग बीमारियों के लिए 5 तरह की दवा नहीं दी जाती है। होम्योपैथ डॉक्टर 5 बीमारियों के लिए एक ही दवा देता है।

इलाज के दौरान लहसुन-प्याज न खाएं?
10-15 साल पहले होम्योपैथी दवाई लिखने के बाद डॉक्टर यह ताकीद जरूर करते थे कि लहसुन, प्याज जैसी चीजें नहीं खाना है, क्योंकि माना जाता था कि इनकी गंध से दवाई का असर कम हो जाएगा। लेकिन नए शोधों ने इस तरह की सोच को बदल दिया है। अब डॉक्टर इन चीजों को खाने की मनाही नहीं करते। अब इंसानी शरीर प्याज, लहसुन आदि के लिए नया नहीं रहा।

तो इस चिकित्सा पद्धति से इलाज कराते हुए कोई परहेज नहीं है?
होम्योपैथी की दवा खाने के दौरान जिस एक चीज की सख्त मनाही होती है वह है कॉफी। दरअसल, कॉफी में कैफीन होती है। कैफीन होम्योपैथी दवा के असर को काफी कम कर देती है। कुछ डॉक्टर डीयो और परफ्यूम भी लगाने से मना करते हैं। माना जाता है कि इनकी खुशबू से भी दवा का असर कम हो जाता है।

एक होम्योपैथिक डॉक्टर की डिग्री क्या होनी चाहिए?
होम्योपैथी में इलाज करने के लिए साढे पांच साल की BHMS की डिग्री जरूरी है। यह एलोपैथ की MBBS की डिग्री के बराबर है। इसके अलावा डॉक्टर के पास अगर MD (3 साल) की डिग्री हो तो सोने पर सुहागा है। एमडी के कई ब्रांचेज हैं, मसलन मटीरिया मेडिका (दवाओं के बारे में), साइकाइट्री (मरीज की मानसिक स्थिति को समझना), रिपोर्टरी (दवाई ढूंढने का तरीका)। DHMS यानी डिप्लोमा वाले, जिन्होंने 1980 से पहले िडग्री ली है, प्रैक्टिस कर सकते हैं।

क्या होम्योपैथिक डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन भी होता है?
हां, होता है। एक केंद्रीय स्तर पर और दूसरा राज्य स्तर पर। इन दोनों जगहों पर डॉक्टरों को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। केंद्र में CCH (Central Council of Homeopathy) में सभी डॉक्टरों को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। इसकी साइट www.cchindia.com पर जाकर किसी खास डॉक्टर से संबंधित जानकारी RTI के द्वारा मांग सकते हैं। यह वेबसाइट आयुष मंत्रालय की साइट www.ayush.gov.in से सीधा लिंक्ड है। इनके अलावा जिस राज्य में होम्योपैथ प्रैक्टिस करता है, उसी राज्य की कौंसिल में भी रजिस्ट्रेशन जरूरी है।

कई होम्योपैथ डॉक्टर ऐलोपैथिक दवाई भी देते हैं, ऐसा क्यों है?
कोई भी होम्योपैथ एलोपैथी की दवाई नहीं दे सकता। कानूनी रूप से गलत है।

क्या प्लास्टिक या शीशे की डिब्बी से फर्क पड़ता है?
साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, होम्योपैथी की दवाएं कांच की बोतल में देना ही बेहतर है। अगर उस पर कॉर्क लगा हो तो और भी अच्छा। दरअसल, होम्योपैथी की दवाओं में कुछ मात्रा में अल्कोहल का उपयोग किया जाता है। अल्कोहल प्लास्टिक से रिऐक्शन कर सकता है। वैसे, आजकल प्लास्टिक बॉटल की क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कई डॉक्टर दवाई देने के लिए करते हैं। दरअसल, कांच की बॉटल को साथ में ले जाना करना मुश्किल होता है। इसके टूटने का खतरा बना रहता है।

क्या एलोपैथी और होम्योपैथी की दवाई एक साथ ले सकते हैं?
हां, जरूर ले सकते हैं, लेकिन यह समझना मुश्किल हो जाता है कि बीमारी ठीक किसकी वजह से हुई है।

कहां की बनी हुई दवाइयां बेहतर हैं?
होम्योपैथी की दवाई के उत्पादन और गुणवत्ता के मामले में जर्मनी पूरी दुनिया में आगे है। इंडिया में होम्योपैथी की डिमांड को देखते कुछ जर्मन कंपनियों ने यहां भी अपने सेंटर शुरू किए हैं। कई भारतीय कंपनियां भी अच्छी दवाएं बना रही हैं।

क्या है होम्योपैथी की सीमा?
- अगर किसी शख्स में किसी विटामिन या मिनरल की कमी हो जाती है तो होम्योपैथी में उनके लिए ज्यादा ऑप्शन नहीं हैं। मसलन, किसी को आयरन की कमी की वजह से एनीमिया हो गया है तो इस मामले में होम्योपैथी की एक सीमा है।
- इमर्जेंसी की स्थिति में यह काम नहीं करती। अगर किसी का एक्सिडेंट हुआ है या हार्ट अटैक आया है तो एलोपैथी ही बेहतर ऑप्शन है। हां, जब इमर्जेंसी की स्थिति खत्म हो जाए, फिर स्थायी इलाज के लिए होम्योपैथी को शामिल कर सकते हैं।
- हर शख्स के ऊपर होम्योपैथी अलग-अलग तरीके से काम करती है। ऐसा नहीं है कि एक दवाई अगर एक पर काम कर गई तो वही दवाई दूसरे पर भी काम करेगी। साथ ही, इसका असर भी अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग होता है। इसलिए लंबे समय से होम्योपैथी की दवाओं के उपयोग से फायदा न हो तो एलोपैथी, आयुर्वेद या नेचुरोपैथी को देखना चाहिए।
- मरीज की वर्तमान स्थिति से ज्यादा इतिहास खंगालने में यकीन करती है यह पद्धति। अगर किसी वजह से किसी की पूर्व की समस्याओं या इतिहास पता न हो तो होम्योपैथी से इलाज कराना मुश्किल हो जाता है।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. सुशील वत्स, बीएचएमएस, एमडी
डॉ. शुचींद्र सचदेव, बीएचएमएस,  एमडी
डॉ. कुशल बनर्जी, बीएचएमएस,  एमडी
डॉ. हिमांशु सक्सेना, बीएचएमएस, एमडी

संडे नवभारत टाइम्स में प्रकाशित

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