Sunday, December 2, 2012

“बाजारू मर्द “ क्यों नहीं ..

कल जनसंदेश टाइम्स में एड्स के इलाज से सम्बंधित प्रकाशित मेरे लेख पर यू पी के कई जिलों (बनारस ,आजमगढ़,गोरखपुर,लखनऊ ..इत्यादि )से मेरे पास फोन आये ..आजमगढ़ से एक व्यक्ति ने फोन पर कहा कि मैंने एक "बाजारू औरत " से मैंने सम्बंध बनाये , ........कुछ और भी बातें ...इस फोन के बाद एक शब्द मेरे दिमाग में तैरता रहा "बाजारू औरत "..मैंने सोचा कि औरत को ही बाजारू क्यों कहा जाता है ..क्या आपने कभी “बाजारू मर्द “ स
ुना है ?क्या वो आदमी बाजारू नहीं था ?जबकि मेरा मानना है कि अधिकांशतया मर्द ही बाजारू होता है ..हममें से अधिकतर लोग लड़कियों,औरतों को देखकर लार टपकाते रहते है और थोड़ा भी मौका मिलने पर उनके साथ कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते है..उस समय उनकी सभी चारित्रिक नैतिकता ताक पर होती है . 80 प्रतिशत लड़के /आदमी ही फ्लर्ट या पहल करते है फिर भी बाजारू औरत ही होती है ..मर्द नहीं ,यही हम सब का असली चेहरा है जिसे हम ढके रखना चाहते है .. क्या ये बात सही नहीं है ?..

No comments:

Post a Comment