आदमी हमेशा
वो क्यों
पाना चाहता है
जो उसने दिया ही
नहीं ,
आदमी सम्मान चाहता
है ,
प्यार चाहता है
अपने बच्चों से
लेकिन
उसने तो कभी
प्यार दिया ही नहीं
बच्चों को
अपनेपन का एहसास
कराया ही नहीं
इस खोखली और आभासी
दुनियाँ में
उन्हें छोड़ दिया
“मशीनों के हवाले “
और सिर्फ
“मशीनों के सहारे “
उन्हें सब कुछ दिया
लेकिन ‘वक्त’ नहीं
दिया
अब जब तुमने ही
‘वक्त ‘ नहीं दिया
तो बच्चे तुम्हे
‘ वक्त ‘ कैसे देंगे
,
शायद हम भूल गए
प्रकृति का ये
सिद्धांत
जो हम दूसरों को
देते है
वही हमें मिलता है
...
शशांक द्विवेदी
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