आदमी गिरता है
कई बार ,
टूटता है कई बार
पर संभल नहीं पाता
या संभालना ही नहीं
चाहता
वो जानता है कि यहाँ
दलदल है
वो मानता है कि
रास्ता गलत है
लेकिन फिर भी
आदमी चलता है
उसी रास्ते पर
क्योंकि
सही रास्ते ने
उसे कुछ नहीं दिया
ईमानदारी ने उसे
दी है सिर्फ
‘ठोकरें’
जिंदगी की ,समाज की
,परिवार की ,
ये ठोकरें
उसे लगती है दिल में
,
कभी कभी ये ठोकरें
चुनौती देती है
“अस्तित्व” को
तब वह सोचता है
रास्ता बदलनें की
जीवन को बदलनें की
तब वह जिंदगी के
रास्ते बदलता है
जिंदगी के आयाम
बदलता है
अच्छाई से बुराई पर
चलता है
सच से झूठ को पकड़ता
है
ईमानदार से बेईमान
बनता है
सही से गलत होता है
ये सब वो करता है
अपने जीवन को बचाने
के लिए
अपने अस्तित्व को
बचाने के लिए
शशांक द्विवेदी
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