कुछ करने से पहले
आदमी चाहता है
एक “सुरक्षाचक्र”,
जो उसे सुरक्षित करे
आर्थिक और सामाजिक
रूप से ,
“सुरक्षाचक्र” के
कवच
के बाद ही
वह कुछ सार्थक करना
चाहता है समाज के
लिए
देश के लिए
जब उसका पेट भरा है
तभी वह निकलता है
घर से भूखों के लिए
आंदोलन के लिए
अनशन के लिए ,
वो सही है या गलत
इसका फैसला चाहे जो
करे
चाहे जैसे करे ,
लेकिन सच तो यह है
कि
आज भूखे पेट
कोई भी आंदोलन नहीं
होता
कोई भी लेखन नहीं
होता !!
शशांक द्विवेदी
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