Tuesday, July 30, 2019

फल खा, फल की चिंता मत कर

फल खा, फल की चिंता मत कर...
Useful info about Mangoes, Watermelon, Muskmelon & Leechi

जब भी हम फल खाते हैं तो उसके फल की चिंता भी साथ में हो जाती है। फल यानी उसे खाने का शरीर पर कोई उलटा असर तो नहीं होगा? ऐसे ही सवालों और चिंताओं के बारे में हमने कई एक्सपर्ट से बात की। नतीजा आया कि अगर हम कुछ एहतियात बरतें तो फल खाने पर फल की चिंता करने की जरूरत नहीं रहेगी। इन्हीं एहतियातों के बारे में जानकारी दे रहे हैं राजेश भारती

आम ही खास है
आम का सीजन शुरू हो चुका है। मार्केट में कई वैरायटी के आम आ भी चुके हैं। लेकिन अभी डाल के पके आम मार्केट में काफी कम मात्रा में आ रहे हैं। दरअसल इन आमों को कच्चा ही पेड़ से तोड़ लिया जाता है और आर्टिफिशल तरीके से पकाया जाता है। अगर ये आम सही तरीके से पकाए नहीं गए हैं तो इन्हें खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। आम को खाने से पहले उसे अच्छे से साफ करना जरूरी होता है।

आम का असली सीजन हुआ है शुरू अब
हो सकता है कि आपको मार्केट में आम कुछ समय पहले से ही दिखाई देने लगे हों, लेकिन इसका असली सीजन अब शुरू हुआ है। चाहे सफेदा आम हो या दशहरी या लंगड़ा या चौसा, ये सभी आम जून के आखिरी महीने से मार्केट में आने शुरू होंगे जो जुलाई-अगस्त तक रहेंगे। इनमें दशहरी और चौसा आम मुख्यत: यूपी से आना शुरू होगा।

डाल का पका आम होता है बेस्ट
पका हुआ बेस्ट आम डाल का ही माना जाता है। यह आम न केवल सेहत के लिए अच्छा होता है, बल्कि काफी मीठा भी होता है। ये आम पकने पर अपने-अाप डाल से टूटकर गिर जाते हैं। हालांकि इस तरह के पके हुए आम मार्केट में काफी कम मिलते हैं, क्योंकि पेड़ पर इन्हें पकने में कुछ समय लगता है।

ऐसे पकाते हैं कच्चे आमों को
कच्चे आमों को कई तरह से पकाया जा सकता है। इन्हें पकाने के लिए सबसे पहले कच्चे आम पूरी तरह परिपक्व होने चाहिए यानी वे आकार में बड़े हों और दबाने पर कड़े हों। घर पर कच्चे आमों को इस तरह पका सकते हैं:

देसी तरीका: कच्चे आमों को टिश्यू पेपर या अखबार में लपेटकर 3-4 दिन के लिए किसी ऐसी जगह रख दें जो घर के बाकी हिस्सों की अपेक्षा कुछ गर्म हो। यहां ध्यान रहे कि आम रखने की जगह पर अंधेरा भी होना चाहिए। 3-4 दिन पर आम को थोड़ा दबाकर देंगे। अगर वह दब जाए तो समझ लें कि आम पक गया है।

इथरेल दवा से: इस दवा को पानी में मिलाकर उनमें कच्चे आमों को डुबोया जाता है। करीब पांच मिनट बाद आमों को निकालकर अलग किसी बड़े बर्तन में रख देते हैं। इसके बाद उन आमों को ऐसे ही करीब रातभर छोड़ दिया जाता है। सुबह आम पके हुए मिलते हैं। इस तरह से पके आमों को खाने से सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता। इथरेल की 100 ml की शीशी करीब 250 रुपये में आती है।

चीनी पुड़िया (Ethylene Ripener): अब मार्केट में एक पुड़िया आती है, जिसमें एक केमिकल पाउडर के रूप में होता है। यह चीन से आती है। इसे पानी से भिगोकर कच्चे आमों के बीच में रखा जाता है और फिर करीब 20 घंटे के लिए आमों को छोड़ दिया जाता है। इस दौरान ध्यान रहे कि आम किसी पुराने अखबार से ढके हों। इससे निकलने वाली एथिलीन गैस से आम पक जाते हैं। ये आम सेहत के लिए हानिकारक नहीं होते।
कैल्शियम कार्बाइड है खतरनाक: आमों को पेड़ से कच्चा तोड़ने के बाद उन्हें कैल्शियम कार्बाइड से भी पकाया जाता है। आम पकाने का यह तरीका सेहत के लिए काफी खतरनाक होता है। कैल्शियम कार्बाइड से आर्सेनिक जैसी घातक गैसें निकलती हैं। इस तरीके में कैल्शियम कार्बाइड को एक छोटी पुड़िया में रखकर उसे आमों के बीच में रख देते हैं। 24 घंटे बाद आम पक जाते हैं।
ऐसे करें पके आम की पहचान
- आम के ऊपर सफेद धब्बे या पाउडर न हो।
- पका हुआ आम पूरी तरह से मैच्योर नजर आएगा।
- आम के डाल वाले हिस्सा सॉफ्ट और निचला हिस्सा टाइट है तो इसका मतलब कि उसे सही तरह से पकाया नहीं गया है।
- सही तरह से पके आम का रंग एक जैसा और थोड़ा सुनहरा होता है।
- अच्छी तरह से पका आम थोड़ा सॉफ्ट होता है। अधपका आम कहीं से सॉफ्ट और कहीं से ठोस होगा जबकि कच्चा आम पूरा ही ठोस होगा।

खाने का सही तरीका
- आमों को नमक मिले गुनगुने पानी में एक-दो घंटे के लिए छोड़ दें।
- अब आम को हाथ से रगड़ें और फिर से साफ पानी से धो लें। इसके बाद साफ आम को कपड़े से पौछ लें।
- इसके बाद आम का डंठल वाला हिस्सा हल्का-सा काट कर कुछ बूदें रस निकाल दें। अब आप आम खा सकते हैं।
- कई बार हम लोग आम को छिलके समेत काट लेते हैं और फिर उसे खाते हैं। कई बार खाने के इस तरीके से आम का छिलका भी मुंह में आ जाता है। इससे बचें क्योंकि अक्सर आमों पर खतरनाक पेस्टिसाइड का छिड़काव होता है।

डायबीटीज के मरीज भी खाएं
डायबीटीज का मरीज एक दिन में 50 से 60 ग्राम आम खा सकता है। हालांकि मरीज को इस दौरान ऐसी दूसरी चीजें खाने की मात्रा कम करनी पड़ेगी। आम में पोटैशियम भी होता है। ऐसे में किडनी के मरीज डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही खाएं।
आम आदमी के लिए: अगर मान लें कि एक आम का वजन 300 से 400 ग्राम है और अगर आप बहुत ऐक्टिव नहीं हैं और एक्सरसाइज नहीं करते हैं तो दिन भर में 2 से ज्यादा आम न खाएं।

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तरबूज भी क्या खूब
तरबूज के लिए हर साल मई-जून का मौसम आदर्श माना जाता है। जिला बुलंदशहर में तरबूज और खरबूजा के उत्पादक किसान सुरेंद्र पाल सिंह के मुताबिक ज्यादा गर्मी वाला मौसम तरबूज और खरबूजा के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि अधिक गर्मी से इनमें मीठापन ज्यादा आता है। यह जुलाई तक मार्केट में रहते हैं। बारिश पड़ने के बाद इनकी मिठास कम हो जाती है और फिर इनका पीक सीजन भी खत्म हो जाता है।

तरबूज के भी हैं कई रूप
मार्केट में आपको कई प्रकार के तरबूज हैं। अब ऐसे भी तरबूज आ रहे हैं जो अंदर से पीले भी निकलते हैं। तरबूज की मुख्य किस्में इस प्रकार हैं:
शुगर बेबी: यह गोलाकार और बाहर से गहरे हरे रंग का होता है। इसका आकार दूसरे तरबूजों की अपेक्षा छोटा और खाने में काफी मीठा होता है। इसी कारण इसे शुगर बेबी कहते हैं। आजकल मार्केट में ये तरबूज ही अधिक हैं। एक तरबूज का वजन 1.5 किलो से 4 किलो तक का होता है। यह थोक मार्केट में 4 से 7 रुपये प्रति किलो और रिटेल में 10 से 50 रुपये किलो तक मिल जाता है।

माधुरी: यह तरबूज आकार में लंबा होता है। इसमें बाहर की ओर हरे रंग की धारियां होती हैं। यह तरबूज खाने में काफी मीठा होता है। इस वैरायटी का एक तरबूज 6 से 15 किलो का होता है। आम परिवार छोटे हैं। इस कारण अब इसकी डिमांड काफी कम है और मार्केट में कम ही दिखाई देते हैं। इसकी कीमत करीब 20 रुपये प्रति किलो है।
अनमोल: यह तरबूज बाहर से हरा, लेकिन अंदर से हल्के पीले रंग का होता है। इसका स्वाद शहद जैसा मीठा होता है। यह मार्केट में 15 से 20 रुपये प्रति किलो की दर से मिल जाता है। हालांकि दिल्ली-एनसीआर में यह कम बेचा जाता है।
ऐसे करें सही तरबूज की पहचान
- तरबूज को उठाकर चारों ओर से देखें। अगर उसमें कोई निशान या कहीं से गला नजर आए तो न खरीदें।
- अगर तरबूज के एक हिस्से पर गहरे पीले रंग का बड़ा धब्बा है तो वह पका हुआ होता है।
- तरबूज को हाथ से बजाकर देखें। अगर भारी और किसी धातु के बजने जैसी आवाज (टन-टन) आए तो वह पका हुआ है। वहीं अगर थप-थप या डब-डब की आवाज आए तो वह ज्यादा पका हुआ होता है।
- तरबूज को उठाकर देखें। अगर वह वजन में हलका है तो उसे खरीदने से बचें।

कैसे और कहां रखें
तरबूज को कटा हुआ या टुकड़ों में काटकर न छोड़ें। अगर मजबूरी में कटा हुआ छोड़ना पड़े तो उन्हें एयरटाइट ढक्कन वाले कंटेनर या पॉलीथीन से ढककर फ्रिज में रख दें। यहां ध्यान रहे कि कटे हुए तरबूज को दो घंटे से ज्यादा समय तक फ्रिज में न रखें। काटकर ठंडा करने के लिए फ्रिज में रखने से बेहतर है कि जब खाना हो, साबुत ही दो घंटे पहले फ्रिज में रख दें। अगर तरबूज कटा हुआ भी है तो उसे फ्रिज में रखने के बजाय सामान्य तापमान पर ही घर में छांव में रखें।

कब और कितना खाएं
- 300 से 400 ग्राम रोजाना
- इन्हें खाने का कोई निश्चित समय नहीं है।
- तरबूज में नमक (काला या सफेद) मिलाकर खाने से शरीर को कुछ एक्स्ट्रा मिनरल्स मिल जाते हैं।

तरबूज की तासीर-
92% पानी
8% शुगर और कार्ब्स
न्यूट्रिशन भी कम नहीं-
विटामिन: A, B, B1, B6, C, D आदि
मिनरल: आयरन, कैल्शियम, कॉपर, बायोटिन, पोटेशियम और मैग्नेशियम।
एसिड: पैंटोथेनिक और अमीनो एसिड।
फैक्ट (100 ग्राम तरबूज में)-
कैलरी: 30
पानी: 92%
प्रोटीन: 0.6 ग्राम
कार्ब्स: 7.6 ग्राम
शुगर: 6.2 ग्राम
फाइबर: 0.4 ग्राम
फैट: 0.2 ग्राम
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खरबूजा-सा ना कोई दूजा
खरबूजे के लिए भी अधिक गर्मी का मौसम आदर्श माना जाता है। जितनी ज्यादा गर्मी पड़ती है, बेल पर लगे खरबूजे उतने ही मीठे होते हैं। बारिश पड़ने के बाद इनकी भी मिठास कम हो जाती है और धीरे-धीरे पीक सीजन खत्म हो जाता है। खरबूजा अभी मार्केट में कुछ दिन और मिलेगा। खरबूजे को खाने के कई तरीके हैं। इसे सीमित मात्रा में खाया जाए तो यह सेहत के लिए काफी लाभदायक होता है।

खरबूजा एक, रंग अनेक
वैसे तो मार्केट में कई किस्म के खरबूजे मौजूद हैं, लेकिन कुछ प्रमुख वैराइटी इस प्रकार हैं:
नामधारी: यह खरबूजा मुख्यत: पंजाब से आता है। यह मई-जून तक मार्केट में मिलता है। इसका छिलका सफेद सा और खुरदरा होता है। वहीं यह अंदर से संतरी रंग का और काफी मीठा होता है।
कीमत-
थोक मार्केट: 5-7 रु. प्रति किलो
रिटेलर: 20-30 रु. प्रति किलो

लाल परी: यह खरबूजा मुख्यत: राजस्थान और यूपी से आता है। इसका सीजन भी मई-जून तक रहता है। यह बाहर से दिखने में ईंट जैसा गहरा लाल होता है। वहीं इसमें बीच-बीच में पीली और हरी धारियां होती हैं।
कीमत-
थोक मार्केट: 15-17 रु. प्रति किलो
रिटेलर: 40-20 रु. प्रति किलो

मधुरस: यह खरबूजा मुख्यत: यूपी से आता है। इसका सीजन भी मई से जून तक रहता है। इसका ऊपरी हिस्सा चिकना और हरे-सफेद रंग का होता है। साथ ही इसमें इसमें बीच-बीच में हरे रंग की धारियां होती हैं।
कीमत-
थोक मार्केट: 15-20 रु. प्रति किलो
रिटेलर: 40-50 रु. प्रति किलो
नोट: तरबूज और खरबूजे की कीमतों में कमी-बेशी मुमकिन
ऐसे करें सही खरबूजे की पहचान
- खरबूजे को उठाकर हर तरफ से चेक करें। अगर कहीं से गला दिखाई दे तो उसे न खरीदें।
- अगर खरबूजा दबाने पर मुलायम लग रहा है तो उसे खरीदने से बचें। हो सकता है कि दुकानदार आपको ऐसे खरबूजा को अधिक पका या कुछ और बहाना लगाकर बेचने की कोशिश करे, लेकिन दुकानदार को ना कह दें।
- खरबूजा सूंघें। उसमें से मीठी-मीठी खुशबू आए तो वह पका हुआ और मीठा होता है।

कैसे और कहां रखें
खरबूजा उतना ही काटें, जितने आप एक बार में खा सकें। अगर खरबूजा बच जाए तो उसे एयरटाइट ढक्कन वाले कंटेनर या पॉलीथीन से ढककर फ्रिज में रख दें। खरबूजा दो घंटे से ज्यादा समय तक फ्रिज में न रखें। बिना काटे गर्मी के मौसम में दो दिन तक घर में रख सकते हैं। ध्यान रखें कि इस दौरान खरबूजा छांव और ठंडी जगह में रखा हो।

कब और कितना खाएं
- 150 से 200 ग्राम रोजाना
- खरबूजा खाने का कोई निश्चित समय नहीं है।
- खाना खाने से पहले खाएं तो बेहतर है।

खरबूजे के गुण
90% पानी
10% शुगर और कार्ब्स
न्यूट्रिशन भी कम नहीं-
विटामिन: A, B1, B3, B6, C, K आदि
मिनरल: आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नेशियम, फाॅस्फोरस, जिंक, कॉपर।
एसिड: पैंटोथेनिक, फैटी और अमीनो एसिड।
फैक्ट (150 ग्राम तरबूज में)-
कैलरी: 53
पानी: 90%
प्रोटीन: 0.9 ग्राम
कार्ब्स: 12.8 ग्राम
शुगर: 12 ग्राम
फाइबर: 1.9 ग्राम
फैट: 0.3 ग्राम

पेस्टिसाइड का प्रयोग
तरबूज और खरबूजे के बीज की बुवाई के समय खतरनाक पेस्टिसाइड का प्रयोग किया जाता है। यही नहीं, तरबूज और खरबूजे की बेल की ग्रोथ के लिए काफी जगह ड्रिप इरिगेशन का प्रयोग करते हैं, लेकिन इसके लिए पेस्टिसाइड मिले पानी का प्रयोग होता है। जब तरबूज और खरबूजा बड़े होते जाते हैं तो पेस्टिसाइड का काफी हिस्सा इनमें चला जाता है और ऐसे तरबूज/खरबूजा खाने से सेहत पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

दावा और सचाई
दावा किया जाता है कि तरबूज और खरबूजे में उनका आकार बढ़ाने, मिठास लाने और पकाने के लिए इंजेक्शन के जरिए कुछ दवा का प्रयोग किया जाता है। इन दावों के बीच हमने भी तरबूज और खरबूजा पर एक एक्सपेरिमेंट किया। हमने दोनों फलों में इंजेक्शन की एक खाली नीडल डाली और करीब 10 सेकंड बाद निकाल ली। फिर हमने दोनों फलों को कमरे के सामान्य तापमान पर छोड़ दिया। तीन दिन बाद जब हमने देखा तो खरबूजा का न केवल रंग बदल गया था, बल्कि वह बहुत ज्यादा सॉफ्ट हो गया था। जब उसे काटा गया, तो अंदर से भी खराब निकला। वहीं तरबूज के जिस जगह नीडल डाली गई थी, वह हिस्सा अंदर से गल गया था। तरबूज का बाकी हिस्सा भी खाने लायक नहीं बचा था। इससे पता चलता है कि अगर इन फलों में किसी भी प्रकार का इंजेक्शन लगाया जाता है, तो वह दो-तीन दिन में ही खराब हो जाएगा।

शुगर पेशंट क्या करें
डायबीटीज के मरीज को तरबूज या खरबूजा खाने में कोई परेशानी नहीं है। इन दोनों फलों को 100 ग्राम तक डायबीटीज के मरीज खा सकते हैं। वहीं किडनी के मरीजों को तरबूज या खरबूजा खाने को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। चूंकि दोनों फलों में पोटैशियम होता है। ऐसे में किडनी के मरीज इन दोनों फलों को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही खाएं।
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लीची खाएं, लेकिन ध्यान से
बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार यानी एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एसईएस) से करीब 128 बच्चों की मौत हो गई है। वहीं इसकी वजह से बड़ी तादाद में बच्चे बीमार हो गए हैं। इन मौतों की वजह हाइपोग्लाइसीमिया और अन्य अज्ञात बीमारी है। कुछ रिपोर्ट में इन मौतों की वजह को लीची भी बताया गया है। रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि लीची में पाए जाने वाले एक जहरीले तत्व की वजह से ये मौतें हो रही हैं। अगर आप खुद या बच्चे को लीची खिला रहे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें:

कुपोषित बच्चों को लीची न खाने दें
चमकी बुखार का असर 10 साल तक के कुपोषित बच्चों पर ही पड़ रहा है। एक्सपर्ट के मुताबिक इन बच्चों को ठीक ढंग से खाना और जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। इस कारण इन बच्चों के शरीर की इम्युनिटी कम होती है। सुबह को ये बच्चे खाली पेट ही लीची को बिना ढंग से साफ किए खा लेते हैं। इसके बाद बच्चों के शरीर में शुगर का लेवल गिरना शुरू हो जाता है और बच्चा बीमार पड़ जाता है।

कुपोषित बच्चों की पहचान
- बच्चा पतला-दुबला होता है और उसकी हड्डियां दिखाई देती रहती हैं।
- बच्चे का शरीर पतला और पेट बाहर की ओर निकला रहता है।
- बच्चे के बाल कुछ सुनहरी हो जाते हैं।
- बच्चा शारीरिक रूप से ऐक्टिव नहीं होता है और अधिकतर समय एक ही जगह बैठा-बैठा रोता रहता है।
- उम्र के अनुसार बच्चे की लंबाई और वजन का अनुपात सही नहीं होता है।
- घाव भरने में अधिक समय लगता है।
- बच्चे को सांस लेने में परेशानी होती है और वह चिड़चिड़ा रहता है।

अधपकी या कच्ची लीची न खाएं
लीची कभी भी अधपकी या कच्ची और खाली पेट नहीं खानी चाहिए। पकी और बिना कीड़े वाली लीची को पहले छील लें। अब उसके खाने वाले हिस्से (गूदा) को उसकी गुठली से अलग कर लें। गूदा को भी गौर से देखें कि कहीं उसमें भी कीड़े तो नहीं हैं। अगर गूदा में कीड़े नहीं हैं तो उसे किसी बर्तन में इकट्ठे कर लें। इकट्ठे उतने ही करें जितना आप खा सकें। इसके बाद गूदा को फिर से साफ पीने वाले पानी से दो बार धोएं। अब इस गूदे को खा सकते हैं। यह तरीका आपको लंबा जरूर लग सकता है, लेकिन सेहत के लिए जरूरी है।

कीड़ों का रखें ध्यान
इस फल में कीड़े मिलने की भी आशंका ज्यादा होती है। लीची का वह हिस्सा जो डंठल से लगा होता है, वहां कीड़े अधिक मिलते हैं। इन कीड़ों का रंग लीची के रंग जैसा होता है, इसलिए ये कई बार दिखाई भी नहीं देते। लीची खाते समय अगर कीड़े दिखाई दें तो उस लीची को फेंक दें।

एक्सपर्ट पैनल
- डॉ. आर. आर. शर्मा
चीफ साइंटिस्ट
पूसा इंस्टिट्यूट

- डॉ. अशोक झिंगन
डायबीटीज एक्सपर्ट

- डॉ. स्कंद शुक्ल
सीनियर फिजिशन

- इशी खोसला
न्यूट्रिशनिस्ट ऐंड डाइट एक्सपर्ट

- नीलांजना सिंह
सीनियर डाइटिशन

- एस. सी. शुक्ला
आम उत्पादक, लखनऊ

- संजय वत्नानी
प्रमुख आम व्यापारी

- राम गोपाल मिश्रा
प्रमुख फल व्यापारी


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