प्रभात खबर लेख |
जल संकट की बड़ी आहट
।। शशांक द्विवेदी ।।
(एसएमइ कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर)
(एसएमइ कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर)
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के सभी देशों को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पानी की बर्बादी को जल्द नहीं रोका गया तो जल्दी ही विश्व गंभीर जलसंकट से गुजरेगा. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में अनेक बड़ी चुनौतियां, मसलन गरीब तबके को स्वच्छ जल और साफ-सफाई की सुविधा मुहैया कराना, विश्व आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराना, भूमंडलीय तापमान में वृद्धि के दुष्प्रभाव आदि पूरे विश्व के सामने खड़ी हैं.
इन समस्याओं और चुनौतियों से निपटना हर देश की प्राथमिकता में सबसे ऊपर होना चाहिए, क्योंकि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी मौजूदा सात अरब से बढ़कर नौ अरब हो जाने की उम्मीद है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने इस रिपोर्ट में कहा है, कृषि की बढ़ती जरूरतों, खाद्यान उत्पादन, उर्जा उपभोग, प्रदूषण और जल प्रबंधन की कमजोरियों की वजह से स्वच्छ जल पर दबाव बढ़ रहा है.पर्यावरणीय प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या बन चुका है और भारत भी उससे अछूता नहीं है. इस क्रम में जल प्रदूषण को लेकर सबसे ज्यादा चिंता जतायी जा रही है. आने वाले समय में जहां स्वच्छ पेय जल की कमी को लेकर विश्वयुद्ध की संभावना जतायी जा रही है, तो दूसरी ओर जो जल हमारे पास उपलब्ध है, उसे प्रदूषित किया जा रहा है.
दुनिया में तकरीबन 20 फीसदी लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है और 40 फीसदी लोग सफाई की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. इन वंचितों में से आधे से ज्यादा लोग चीन या भारत में हैं. दुनिया में एक अरब 10 करोड़ लोग पीने के साफ पानी से अब भी वंचित हैं.इसके अलावा दो अरब 60 करोड़ लोगों को साफ-सफाई की मूलभूत सुविधाएं हासिल नहीं हैं. भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है. लेकिन, उसके लिए 4 प्रतिशत पानी ही उपलब्ध है. जल संकट आज देश के कई हिस्सों में विकराल रूप धारण कर चुका है. जल संरक्षण से हम इस समस्या से काफी हद तक निजात पा सकते है. कहावत है बूंद-बूंद से सागर भरता है, यदि इस कहावत को अक्षरश: सत्य माना जाए तो छोटे-छोटे प्रयास एक दिन काफी बड़े समाधान में परिवर्तित हो सकते हैं. वर्षा जल संग्रहण इस दृष्टि से पानी संरक्षण का सबसे नायाब और असरदार तरीका है. यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है, तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा. लंबे समय से तमिलनाडु में नए मकानों की छतों पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए इंतजाम करना आवश्यक है, पर पिछले कुछ सालों से गंभीर सूखे से जूझने के बाद अब तीन महीनों के अंदर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों (वजस) को लगाना अनिवार्य कर दिया गया है.
नौकरशाहों को वर्षा जल संरक्षण संयंत्रो को प्राथमिकता बनाने के लिए कहा गया. कई ऐसे उदाहरण है जिनसे आम आदमी को थोड़ा पैसा और थोड़ा प्रयास लगा कर इस काम को करने की प्रेरणा मिलती है. इन कामों के लिए किसी भी सहायता या निगरानी की जरूरत नहीं है और न ही नदियों को जोड़ने जैसी बृहद परियोजनाओं की.
इन बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने में समय लगता है, पैसा लगता है और साथ में भारी पर्यावरणीय, राजनीतिक और तकनीकी क्षतियां हो सकती हैं. इन सब कामों में ठेकेदारों के मिले होने की वजह से भ्रष्टाचार फैलता है. नयी पीढ़ी को ये अहसास नहीं कि पानी हमारे लिए प्रकृति की एक अमूल्य भेंट है.
सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे हर नागरिक को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराए, लेकिन वे इसके लिए सजग नहीं. भारत में पेयजल संकट बढ़ती आबादी और कृषि की जरूरतों के कारण भी गंभीर होता जा रहा है. करीब 65-70 प्रतिशत जल कृषि कार्यो में खप जाता है.
इसके अतिरिक्त उद्योगों के संचालन में भी जल का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. विडंबना यह है कि न तो उद्योग एवं कृषि क्षेत्र को अपनी आवश्यकता भर पानी उपलब्ध हो पा रहा है और न ही आम आदमी को.
आज जब जल संकट का विकट दौर चल रहा है, तो हमें यह समझना होगा कि जल का कोई विकल्प नहीं है, मानव का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है, जल सृष्टि का मूल आधार है, जल है तो खाद्यान्न है, जल है तो वनस्पतियां हैं, जल का कोई विकल्प नहीं है, जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण है, जल का पुर्भरण करना ही जल का उत्पादन करना है . इसलिए हमें जल संकट ही इस आहट को पहचानना होगा और इसके लिए सतत प्रयास करने होंगे.
प्रभातखबर में 14/04/12 को प्रकाशित
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