दैनिक भास्कर लेख कामयाबी मिली लेकिन जिम्मेदारी बढ़ गई |
दो बूँद जिंदगी की ने एक नयी जिंदगी दी
पोलियो अभियान की पंच लाइन दो बूँद जिंदगी ने वास्तव में पूरे देश को एक नयी जिंदगी दी है । इस बीमारी का सफाया होना देश के लिए बहुत गौरवशाली उपलब्द्धि है । इस बीमारी को सिर्फ सरकारी प्रयास से ही नहीं हराया जा सकता था इसके लिए सभी देश वासियो और खासतौर से पोलियो ड्राप पिलाने वाले स्वयंसेवियो का अनुकरणीय योगदान रहा है । हमारे देश की साझी विरासत से ही यह संभव हो पाया है ,इस तरह के प्रयासों से हम और भी कई गंभीर बीमारियो को हरा सकते है ।
पोलिया के खिलाफ लड़ाई में भारत को जीत हासिल हुई है । लेकिन इस जीत से जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि जीतने से ज्यादा जीत को बनाएं रखना महत्वपूर्ण है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ, की ओर से पोलियो प्रभावित देशों की सूची से भारत का नाम हटा दिया गया है। ऐसा पिछले एक वर्ष में भारत में पोलियो का एक भी मामला सामने न आने की उपलब्धि को देखते हुए किया गया है। सूची से नाम हटने के बाद भी भारत को पोलियो मुक्त देश का दर्जा प्राप्त करने के लिए दो वर्ष तक पोलियो मुक्त रहना होगा। प्रधानमंत्री के अनुसार वास्तव में इस कामयाबी का श्रेय उन 23 लाख स्वयंसेवकों को जाता है, जिन्होंने मुश्किल परिस्थियों में दूर-दराज क्षेत्रों में जाकर बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाया। इससे यह उम्मीद भी जगी है कि हम सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से पोलियो को मिटा सकते हैं। लेकिन देश में इसे पूरी तरह से मिटाने के लिए टीकाकरण जारी रखना होगा और निगरानी भी बढ़ानी होगी।
पोलियो का टीका पोलियो वायरस के लिए प्रतिरक्षा उत्पनन्नि करने और लकवा मार जाने वाले पोलियो से सुरक्षा प्रदान करने में अत्यंात प्रभावी है। पोलियो टीका पाने वाले लगभग 90 प्रतिशत या इससे अधिक व्यक्तियों में तीनों प्रकार के पोलियो वायरस के खिलाफ सुरक्षात्मोक एंटीबॉडी दो खुराकों के बाद बन जाते हैं और कम से कम 99 प्रतिशत तीन खुराकों के बाद सुरक्षित हो जाते हैं। डॉ. एल्बसर्ट सेबिन ने 1961 में मौखिक पोलियो टीके (ओपीवी) का विकास किया था । वर्तमान में लगभग सभी देश पोलियो उन्मूलन लक्ष्य पूरा करने के लिए ओपीवी का उपयोग करते हैं। इस टीके से व्यक्ति में हमेशा के लिए संक्रमण की रोकथाम होने के साथ अब यह व्यक्ति अन्य लोगों में पोलियो वायरस को फैलाने से भी बच जाता है। चूंकि पोलियो का वायरस मेजबान के बाहर दो सप्ताह से अधिक समय के लिए जिंदा नहीं रह सकता है अत सैद्धांतिक रूप से यह समाप्त हो जाएगा जिससे पोलियो माइलिटिस पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा।
भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े 192 सदस्य देशों के साथ 1988 से वैश्विक पोलियो उन्मूलन का लक्ष्य् पूरा करने के लिए वचनबद्ध रहा है। भारत ने डब्यूएचओ वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणाम स्वरूप 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण (पीपीआई) कार्यक्रम आरंभ किया था । इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो समाप्त होने तक हर वर्ष दिसम्बर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) की दो खुराकें दी जाती हैं। यह अभियान सफल सिद्ध हुआ है और भारत में पोलियो माइलिटिस की दर अब लगभग खत्म हो गयी है । देश में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का प्रयास एक वरदान सिद्ध हुआ ।
पीपीआई की शुरुआत ओपीवी के तहत शत प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई थी। जिसकी वजह से पोलियो वायरस लगभग गायब हो चुका है और इससे देश की जनता का उच्च मनोबल बना हुआ है । वर्ष 1995 से देश में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय पोलियो वायरस को समाप्त करने के लिए सघन टीकाकरण और निगरानी गतिविधियों का आयोजन करता रहा है। सरकार को तकनीकी और रसद संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए 1997में राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना आरंभ की गई और अब यह राज्ये सरकारों के साथ समन्वय से कार्य करती है और देश में पोलियो उन्मूलन का लक्ष्य पूरा करने के लिए भागीदारी एजेंसियों की एक बड़ी श्रृंखला इसमें संलग्न है। देश में डब्यूएचओ के समर्थन के साथ राज्य सरकार के नेतृत्वो में यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एण्ड प्रीवेंशन , यूनिसेफ और बिल एण्डम मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने पोलियो उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
2009 के दौरान भारत में विश्व के पोलियो के मामलों का उच्चहतम भार (741) था।, यहां तीन अन्ये महामारियों से पीडित देशों की संख्या से अधिक मामले थे। यह टीका बच्चों तक पहुंचाने के असाधारण उपाय अपनाने से भारत में पश्चिम बंगाल राज्य की एक दो वर्षीय बालिका के अलावा कोई अन्य मामला नहीं देखा गया जिसे 13 जनवरी 2011 को लकवा हो गया था। आज भारत ने पोलियो के खिलाफ अपने संघर्ष में एक महत्वबपूर्ण पड़ाव प्राप्ता किया है, चूंकि अब पोलियो का अन्य कोई केन्द्र नहीं है।
देश में पोलियो से जुड़ा आखिरी मामला 13 जनवरी, 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में रुखसार खातून के रूप में सामने आया था। वर्ष 1999 में भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में पोलियो वायरस-दो पाया गया था जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी।
भारत में 13 जनवरी 2011 के बाद से सीवेज के नमूनों में कोई पोलियो वायरस का मामला दर्ज नहीं किया गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, नवंबर, 2010 के बाद भारत में पहली बार हवा में पोलियो वायरस की मौजूदगी के बारे में पर्यावरण से लिए गए अधिकांश नमूनों की जांच रिपोर्ट नकारात्मक आई है।
देश में 1988 से पोलियो के मामलों में 100 प्रतिशत की कमी आई है, जब महामारी से पीडित 125 देशों में इनकी संख्याम 350000से कम होकर 2010 में 1349 बताई गई। 2011 में दुनिया के तीन देशों के कुछ हिस्सेै रोग से प्रभावित रहे यह इतिहास का सबसे छोटा भौगोलिक क्षेत्र रहा और यहां वन्यु प्रकार के पोलियो वायरस टाइप 3 के मामलों की संख्या अब तक के अल्पतम स्तर पर बताई गई है।
समकालीन रूप से पोलियो केवल तीन देशों में महामारी बना हुआ है अफगानिस्तान, नाइजीरिया और पाकिस्तान - जिसके साथ चार देशों में पोलियो वायरस के फैलने की शंका (अंगोला, चाड और कोंगो लोक तांत्रिका गणतंत्र) या जिसके दोबारा फैलने की शंका (सूडान) है। अन्यल अनेक देशों में पोलियो वायरस के आने के कारण 2010 में इसका प्रकोप हुआ था।
वास्तव में पोलियो के खिलाफ यह असाधारण उपलब्धि लाखों टीका लगाने वालों, स्वयंसेवकों, सामाजिक प्रेरणादायी व्यीक्तियों, अभिनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और धार्मिक नेताओं के साथ सरकार द्वारा लगाई गई ऊर्जा, समर्पण और कठोर प्रयास का परिणाम है। वास्तव में अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और प्राथमिकताये निश्चित हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती । पोलियो जैसी भयंकर बीमारी से देश को मुक्ति मिलने जा रही है, तो यह समाज के सभी वर्गों की कोशिशों का ही नतीजा है।
लेकिन इस कामयाबी से जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गयी है क्योंकि दुनिया के कुछ देशों में पोलियो अभी खत्म नहीं किया जा सका है, अभी ऐसे केवल तीन देश ही बचे हैं, जहां पोलियो वायरस मूल रूप से पनपा है। इनमें नाइजीरिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान शामिल हैं। इन देशों से पोलियो के वायरस का फिर भारत पहुंचने का खतरा है। इसलिए अभी इस पर ध्यान देने की जरूरत है । अब जरुरत है इस कामयाबी को बनाये रखने कि जिससे पोलियो हमारे देश में सदा सर्वदा के लिए समाप्त हो जाये ।
लेखक शशांक द्विवेदी (दैनिक भास्कर में 29/02/12 को प्रकाशित )
लेखक शशांक द्विवेदी (दैनिक भास्कर में 29/02/12 को प्रकाशित )
No comments:
Post a Comment