Saturday, April 21, 2012

मन और जीवन का द्वन्द

"मन और जीवन का द्वन्द "
हताश  हूँ  मै ,
मन से ,आत्मा से ,
सफल हूँ मै ,
अपने चहरे से ,दिखावे से 
दिखावे और मन का ,
ये द्वन्द तो 
चलता था 
चल रहा है 
और शायद 
जब तक जीवन है 
चलता ही रहेगा ,
हम क्यों नहीं जी पाते ?
अपने वास्तविक स्वरुप में ,
आज हमने सब कुछ 
पा लिया ,
चाँद,मंगल तक 
पहुँच गए ,
लेकिन अपने 
वास्तविक स्वरुप से,मन से 
तो दूरी बढ़ती 
ही जा रही है ,
अब लगता है ,
ये दूरी कभी 
कम न होगी ,
हम अपने तक 
कब पहुचेगें
ये एक प्रश्न है 
मेरे लिए और 
आपके लिए भी !!

स्वरचित -शशांक द्विवेदी 

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